‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट’ (आईआईएम) के होनहार छात्रों ने विदेश जाने के बजाय देश में ही अपनी योग्यता के इस्तेमाल का फैसला किया है। इन्होंने विदेश से मिल रहे नौकरी के अवसर को ठुकराने में क्षण भर का भी समय नहीं लिया। हाल में ही आईआईएम-लखनऊ की मेधा सूची में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले गौरव अग्रवाल आम आदमी से जुड़कर देश की उन्नति में सहयोग देना चाहता है। यही वजह है कि उसने विदेश तो दूर की बात कॉर्पोरेट जगत में ही नहीं आने का फैसला लिया है। गौरव ने आईएएनएस से कहा कि, “मैं अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल अपने देश हित में ही करुंगा। आम आदमी से जुड़कर उनकी समस्या कर समाधान करुंगा इसलिए मैनें अब प्रशासनिक सेवा में जाने का मन बनाया है”।
दूसरा स्थान पाने वाली सुरभि खुटेटा ने भी विदेश जाने के पेशकश को ठुकरा चुकी हैं। उन्होंने मैकेन्जी का प्रस्ताव तो चुना लेकिन अपनी शर्तों पर, लिहाजा उन्हें लंदन, दुबई, सिंगापूर, मुम्बई और दिल्ली में से चयन का विकल्प दिया गया। इसमें उन्होंने दिल्ली को चुना। सामाजिक कार्य में रुचि रखने वाली सुरभि भविष्य में ऐसे कार्यक्रमों से जुड़कर अपने ही देश के लिए कुछ करने कर जज्बा रखती हैं। उन्होंने कहा, “मेरे देश से मुझे पहचान मिली है। अब इसकी सेवा की बारी हमारी है। ”
तीसरे स्थान पर रहे हिमांशु सरीन के विचार भी इन्हीं लोगों से मिलते-जुलते हैं। गौरतलब है कि पिछले साल आईआईएम-एल में 280 छात्रों के लिए 28 विदेशी कम्पनियों के प्रस्ताव आए थे। वहीं इस साल 256 छात्रों को 32 विदेशी कम्पनियों ने प्रस्ताव दिया था लेकिन ज्यादातर छात्रों ने अपने ही देश में रहने का फैसला लिया। इन छात्रों में एक चलन और जोर पकड़ रहा है कि वह नौकरी के बजाय अपना व्यवसाय शुरू करने में ज्यादा रुचि ले रहें हैं। इन छात्रों की इच्छा है कि वह अपनी प्रतिभा का मन मुताबिक उपयोग करें और दूसरों को भी रोजगार दे सकें।
आईआईएम के सूत्र बताते हैं कि अब छात्र कृषि जैसे क्षेत्र में जाने के लिए आतुर हैं जहां पहले ये जाना स्वीकार नहीं करते थे। आईआईएम-एल बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष डॉ। जे। जे। ईरानी इसे भविष्य के लिए बेहतर मानते हैं। उन्होंने कहा कि, “हम आधी सदी के भीतर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने जा रहे हैं। हमारे पास दूसरी बौद्धिक शक्ति है जो इस वक्त सर्वश्रेष्ठ है। विज्ञान, चिकित्सा और सॉफटवेयर के क्षेत्र में भारतीय अपना लोहा मनवा चुके हैं। ये फक्र की बात है”।
भारत की तलाश
Tuesday, April 1, 2008
ये हमारे देश के होनहार हैं?
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1 comment:
काश! ऎसी ही सोच देश के नेता लोग देश के धन के बारे में बना पाते.
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