भारत की तलाश

 

Monday, March 31, 2008

७२ घंटे: ३६ कर्मचारी

सिर्फ 72 घंटे के लिए गए एक अधिकारी ने 18 लोगों को नौकरी दे दी और 18 लोगों का निलम्बन समाप्त कर दिया। अपने इस निर्णय को यह अफसर यह कहकर सही ठहरा रहे हैं कि उन्होंने जो कुछ किया न्याय संगत किया। इसमें गलत कुछ भी नहीं है। लेकिन अभ्यर्थियों का आरोप है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है। नियुक्तियां इतनी हड़बड़ी में की गईं कि जाति और शिक्षा प्रमाण पत्रों का सत्यापन तक नहीं हो सका। अब कुछ अभ्यर्थी इधर-उधर भाग रहे हैं और उनकी सुनवाई भी नहीं हो रही है।

हिन्दुस्तान टाइम्स की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तरप्रदेश महिला कल्याण, बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में निदेशक पद पर बीते चार मार्च को आवास विभाग के विशेष सचिव राम बहादुर का तबादला किया गया। उन्होंने पांच मार्च से काम शुरू किया। छह मार्च को शिवरात्रि की छुट्टी पड़ गई और सात मार्च को उनका तबादला लखनऊ विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष पद पर हो गया। लेकिन रामबहादुर इन दोनों पदों पर एक साथ 13 मार्च तक काम करते रहे। ऐसी परम्परा है कि तबादला होने के बाद अधिकारी बड़े निर्णय नहीं लेते। लेकिन इस विभाग में नए अफसर के आने का इंतजार नहीं किया गया।

विभाग में विभिन्न पदों पर बैकलॉग की भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी। कार्मिक नियमावली के मुताबिक प्रमाणपत्रों के बिना सत्यापन कराए नियुक्ति नहीं की जा सकती। लेकिन न तो अभ्यर्थियों की जाति प्रमाणपत्रों की जांच पड़ताल कराई गई और न ही उनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों का सत्यापन कराया गया। प्रमाणपत्रों की जांच के निर्णय को नजरंदाज करते हुए विभिन्न पदों पर 18 कर्मचारियों की नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए गए। इसी दौरान 18 निलम्बित कर्मचारियों को बहाल करने के आदेश भी जारी किए गए। इनमें किसी पर पुष्टाहार बेचने का आरोप था तो किसी को रिश्वत लेते पकड़ा गया था। कुछ को जिलाधिकारी स्तर पर निलम्बित किया गया था।

इन कर्मचारियों को विभाग ने आरोप पत्र जारी किया और पर्याप्त उत्तर न मिल पाने के कारण मामले विचाराधीन थे। लेकिन रामबहादुर ने निलम्बित कर्मचारियों को बहाल कर दिया। दलील थी कि किसी भी कर्मचारी को लम्बे समय तक निलम्बित नहीं रखा जा सकता, या तो कर्मचारी को बहाल किया जाए अथवा उसे सेवा मुक्त किया जाए।

जानिए, साल भर के मौसम का हाल एक माह में!?

कोई सुपर कंप्यूटर नहीं और ही मौसम विज्ञान का सहारा। फिर भी हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति क्षेत्र के लोग साल भर के मौसम का हाल एक महीने में ही जान लेते हैं। इसी आधार पर उनकी कृषि अन्य कार्यो की योजना बनती है।

हिमाचल के इस दुर्गम कबाइली क्षेत्र में मौसम की गणना का आधार 13 मार्च से 13 अप्रैल के बीच का समय होता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सदियों से चली आ रही यह परंपरा यहां के जीवन में रची-बसी है। यहां के लोगों को इसके लिए न किसी किताब की आवश्यकता है और न जोड़-घटाव की। यह गणना सरल और सटीक मानी जाती है। इसलिए यहां के लोगों को इस पर विश्वास है, और वे इसी आधार पर साल भर की तैयारियां भी करते हैं।

13 मार्च से आरंभ होने वाली गणना में मान्यताओं के मुताबिक 15 से 21 मार्च तक साढ़े तीन-तीन दिन बुजुर्ग पुरुष व महिलाओं के लिए साल के मौसम का भविष्य तय करते हैं। इस अवधि में मौसम बरस पड़े तो साल बुजुर्गो के लिए भारी तथा साफ रहे तो शांति से गुजरने वाला माना जाता है। 22 से 28 मार्च तक की अवधि नौजवान मर्द व औरतों के लिए तय होती है। बरसने की स्थिति में अशुभ तथा मौसम के साफ रहने को शुभ माना जाता है। 29 मार्च को खराब मौसम खेत-खलिहान में कृषि कार्यो की शुरुआत को प्रभावित करने वाला तथा उस अवधि में बरसता रहने वाला माना जाता है। 30 मार्च को खराब मौसम की सूरत में क्षेत्र में हल चलाने की अवधि में निरंतर बारिश व ठंड परेशान करेगी। 31 मार्च को साफ मौसम की सूरत में फसल उगने पर मौसम पूरी तरह अनुकूल मिलेगा।

इस मान्यता के मुताबिक अगर एक अप्रैल को बारिश होती है, तो फसल तैयार होने के बाद भी मौसम की बाधा बरकरार रहेगी। दो अप्रैल को मौसम साफ रहे, तो घाटी में घास कटाई का काम सुगमता से हो सकेगा तथा मौसम तंग नहीं करेगा। यदि तीन अप्रैल को बारिश होती है, तो सितंबर में मौसम का मिजाज भारी रहेगा। चार अप्रैल को बारिश जल्द बर्फबारी व लंबी सर्दियों का संकेत देता है, जिससे रोहतांग दर्रा जल्द बंद हो जाएगा। पांच से 13 अप्रैल तक का दिन नौ ग्रहों के साल भर का मिजाज तय करता है।

मौसम की इस अनूठी गणना के पीछे भले ही कोई वैज्ञानिक आधार न हो, मगर सदियों से की जा रही इस गणना के बूते ही कबाइली मौसम का हाल जानते रहे हैं। वस्तुत:, यह मौसम पूर्वानुमान की देसी परंपरा का हिस्सा है। यह न केवल हिमाचल की वादियों में प्रचलित है, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी सदियों से जारी है। तभी तो बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में अब भी कहीं न कहीं लोककवि घाघ की यह लोकोक्ति सुनने को मिल सकती है -

माघ क उखम जेठ के जाड़
पहिलै बरखा भरिगा ताल।
कहै घाघ हम होब वियोगी
कुवां खोदि के धोइहैं धोबी।।

साभार: जागरण

Sunday, March 30, 2008

ये इश्क नहीं आसां, ख़ुद को दरिया में डुबायो, आग से बचो

आज भी हम कुछ इस तरह की पंक्तियाँ पढते है 'ये इश्क नहीं आसान, बस यूँ समझ लीजे, इक आग का दरिया है, डूबकर जाना है ...' यहाँ भी कुछ-कुछ ऐसा ही है, फर्क इतना है कि अगर दरिया में नहीं डूबते तो आग लग ही जाती।

सुनकर यकीन नहीं होता, लेकिन 14 मार्च को पुणे के पास बारामती में हुए विमान हादसे के बारे में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय की रिपोर्ट में यही पाया गया है। विमान में तकनीकी खराबी नहीं थी, बस पायलट विमान उड़ाने के बजाय आपस में रोमांस करने में व्यस्त थे। नतीजतन विमान नाक के बल सीधे नदी में जा गिरा।

रिपोर्ट के मुताबिक वीटी-एसी विमान में तकरीबन बीस साल की उम्र के पुरुष और महिला प्रशिक्षु पायलट सवार थे। डीजीसीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि कारवर एविएशन एकेडमी के इन प्रशिक्षु पायलटों ने कॉकपिट की मर्यादा तोड़ी, जिसके कारण विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। सूत्रों ने बताया, ‘दोनों प्रशिक्षु पायलट रोमांस में इस कदर डूबे हुए थे कि विमान का नियंत्रण उनके हाथ से निकल गया’। इस दुर्घटना में दोनों प्रशिक्षु पायलट तो सकुशल बच गए, लेकिन विमान बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था।

दैनिक भास्कर के अनुसार, इस मामले की जांच डीजीसीए के मुंबई क्षेत्र की सुरक्षा शाखा के इंचार्ज संजय ब्रम्हाने ने की है। उन्होंने बताया कि नियमों के मुताबिक, एकेडमी के चीफ फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की यह जिम्मेदारी होती है कि वह एक प्रशिक्षक को विमान के साथ भेजे। सूत्रों ने यह भी कहा कि अगर विमान नदी में गिरने की बजाय किसी आवासीय इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हुआ होता तो एक बड़ा हादसा हो सकता था।

दारू पीने के लिए गूंगे-बहरे दोस्त की नसबंदी करवाई!

शराब पीने के लिए जब उनको पैसों की जरूरत पड़ी, तो दोस्तों ने मिलकर गूंगे दोस्त की नसबंदी (स्टरलाइजेशन) करवा दी। गूंगे की अभी शादी भी नहीं हुई है। स्टरलाइजेशन की 1,100 सौ रुपये की राशि लेकर दोस्त दारू पी गए। इस संबंध में गूंगे इंद्रकुमार के परिजनों ने पुलिस में शिकायत की है। पुलिस ने उसका मेडिकल कराया, तो उसमें स्टरलाइजेशन किए जाने की पुष्टि हुई है। सिविल हॉस्पिटल के एमएस असरुद्दीन के अनुसार, मामले की जांच की जा रही है।

गुड़गांव अर्जुन नगर कैंप में रहने वाले 30 साल के इंद्रकुमार के दोस्तों ने उसके गूंगे होने का फायदा उठाया। इंद्र के मामा ओमप्रकाश गाबा के मुताबिक, उसके दोस्त गुरुवार को उसे सिविल हॉस्पिटल ले गए, जहां उसका स्टरलाइजेशन करा दिया गया। इस संबंध में जब परिजनों को भनक लगी, तो पता लगा कि कॉलोनी के कुछ आवारा लड़कों ने दारू पीने के लिए उसका ऑपरेशन करवा दिया। इसके बाद मिले 1,100 रुपये की वे शराब पी गए। गौरतलब है कि नसबंदी करवाने वाले पुरुषों को 1,100 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। पुलिस को मामले में अशोक व अन्य लड़कों की तलाश है।

उधर, इस तरह का मामला प्रकाश में आने से सिविल हॉस्पिटल में हड़कंप मच गया। जानकारी के अनुसार, ऑपरेशन कर रहे दो डॉक्टरों में से एक ने इंद्र को पहचाना नहीं, जबकि दूसरा डॉक्टर उपलब्ध नहीं हो सका। हॉस्पिटल रजिस्टर में इंद्र नाम से कोई इंट्री नहीं है। हालांकि मेडिकल जांच में नसबंदी होना पाया गया है। ओमप्रकाश गाबा के अनुसार, वह जन्मजात गूंगा-बहरा है। कॉलोनी के लड़कों ने इसका फायदा उठाया है। पढ़ा लिखा नहीं होने से उसका अंगूठा लगवाया गया है। हॉस्पिटल प्रबंधन अब अंगूठे का मिलान करने की तैयारी में है।

प्रयोगशाला पूरे साल नहीं खुलीं: प्रैक्टिकल में सब पास!

उत्तर प्रदेश के 866 इंटर कालेजों में पूरे साल भर प्रयोगशाला का ताला नहीं खुला। विद्यार्थियों को पता नहीं कि किस विषय में कितने प्रयोग होने हैं। वे केमिकल के नाम तक नहीं बता गए लेकिन बोर्ड के पास प्रैक्टिकल परीक्षा का जो एवार्ड ब्लैंक भेजा गया, उसमें उन विद्यालयों के सभी विद्यार्थी पास हैं। केवल पास नहीं बल्कि किसी को भी 30 में से 20 से कम नंबर नहीं मिले। विद्यार्थियों में से ज्यादातर को पता भी नहीं कि उनकी परीक्षा कब हुई। पैसों की लालच में विद्यालय प्रबंधन और नकलमाफिया विद्यार्थियों को उस जानकारी से वंचित कर रहे हैं जो आगे एक कदम चलने के लिए जरूरी है।

विद्यालयों की स्थिति की जांच के लिए शासन ने फरवरी में वरिष्ठ शिक्षाधिकारियों की नौ कमेटियां बनाई थीं। कमेटियों को विद्यालय भवन, संसाधन, शिक्षक, विद्यार्थी सभी के बारे में ब्योरा जुटाना था। प्रयोगशाला सुविधा और प्रैक्टिकल परीक्षा के बारे में समिति ने 22 मार्च को रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 529 विद्यालयों में तो प्रयोगशाला है ही नहीं। पूछताछ में ज्यादातर प्रधानाचार्यों ने स्टोर रूम को ही प्रयोगशाला बताया जिसमें ताला लगा रहा। शेष विद्यालयों में प्रयोगशाला बनी है लेकिन वहां साल भर ताला लगा रहा। विद्यालयों में प्रयोग कराने के लिए कोई सहायक तैनात नहीं है। सभी विद्यालयों में दसवीं और बारहवीं के 20-20 विद्यार्थियों से पूछताछ की गई। सभी ने कहा कि कोई प्रयोग नहीं कराया गया।

अमर उजाला लिखता है कि समिति ने उन विद्यालयों में प्रैक्टिकल परीक्षा के लिए नियुक्त परीक्षकों के नाम का भी रिपोर्ट में जिक्र किया है। कई परीक्षक तो स्कूल तक पहुंचे ही नहीं और एवार्ड ब्लैंक तैयार होकर बोर्ड को चला गया। समिति ने 104 परीक्षकों से भी पूछताछ की। उनमें से 78 उस स्कूल की सही लोकेशन नहीं बता सके जहां उन्हें परीक्षक के रूप में जाना था। शिक्षाधिकारियों ने रिपोर्ट में लिखा है कि प्रधानाचार्य, विद्यालय प्रबंधन और नकल माफियाओं से मिलकर परीक्षकों ने जो किया है, उसने परीक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। यूपी बोर्ड की परीक्षा के बारे में यह धारणा और मजबूत हो गई है कि कोई भी जुगाड़ से डिग्री हथिया सकता है।

रिपोर्ट शासन को दी गई इसलिए बोर्ड के अधिकारी अभी कुछ बोलने को राजी नहीं हैं। अलबत्ता प्रैक्टिकल परीक्षा लेने गए परीक्षकों से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया है और सम्बंधित प्रधानाचार्यों से पूछताछ की जा रही है। जिला विद्यालय निरीक्षकों से भी जवाब तलब किया गया है। एक और बात पर ध्यान दीजियेगा, माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र का कहना है कि जांच में जो दोषी पाया जाएंगे उनका पारिश्रमिक तो रुकेगा ही, हमेशा के लिए परीक्षा कार्य से हटा दिए जाएंगे, अनुशासनात्मक कार्रवाई भी होगी।

Saturday, March 29, 2008

हार गया अजगर, माँ की ममता से

मां की ममता से अजगर हार गया। बच्चे को बचाने के लिए शुक्रवार को एक मां ने अजगर से जमकर मुकाबला किया। मां का नाम कुसुम लामा (30) बताया गया है। जानकारी के अनुसार, अपनी संतान को अजगर के मुंह से बचाने के लिए मां कुसुम लामा खुद ही अजगर के सामने चली गयीं। दस फीट लंबे अजगर ने कुसुम लामा को पूरी तरह से जकड़ लिया था। करीब पंद्रह मिनट तक अजगर ने कुसुम लामा को अपनी गिरफ्त में जकड़े रखा। आसपास के लोग घटना की जानकारी मिलने के साथ ही घटनास्थल पर पहुंचे और कुसुम को अजगर के चंगुल से मुक्त कराया। अजगर ने कुसुम को काटा भी है। उसे अलीपुरद्वार महकमा अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

२८ मार्च की सुबह पश्चिम बंगाल, जलपाईगुड़ी जिले के कालचीनी चाय बागान में, कुसुम अपनी डेढ़ वर्षीय बच्ची को लेकर मैदान में गाय चराने गयी हुई थी। इस दौरान अचानक चाय बागान के नाले से एक अजगर मैदान में आया। एक छोटे से पेड़ की दो डालियों के बीच से अजगर तेजी से कुसुम के पास आ गया और वह बच्ची को मां की गोद से छीनने की कोशिश करने लगा। बच्ची को बचाने के लिए मां ने उसे दूर जमीन पर फेंक दिया। इस पर गुस्साये अजगर ने कुसुम पर पलटवार कर अपनी गिरफ्त में ले लिया। कुसुम भी अपने बचाव में किसी पेड़ की एक डाली से अजगर पर हमला कर दिया। इसी दौरान घटनास्थल पर आये लोगों ने लाठी से अजगर पर प्रहार किया। अजगर महिला को छोड़कर अपनी जान बचा भाग निकला। इस प्रकार कुसुम की जान बची। लोगों ने तत्काल कुसुम को महकमा अस्प्ताल में भर्ती कराया।

बस में ब्लू फिल्म चली, यात्रियों में हड़कम्प

होशियारपुर से फिरोजपुर जा रही निजी कंपनी की बस में २७ मार्च की सुबह आदमपुर के पास ब्लू फिल्म चलने से सवारियां दंग रह गईं। फिल्म करीब 2 मिनट तक चलती रही। सवारियों के शोर मचाने के बाद उसे बंद किया गया। कंडक्टर ने बस में पड़ी सभी सीडीज बाहर फैंक दीं। सवारियों ने कंडक्टर की जमकर धुनाई की। बस चालक ने सवारियों को जालंधर उतार कर जान छुड़ाना ही बेहतर समझा। चौकी बस स्टैंड इंचार्ज जतिंदर सिंह ने कहा कि उनके पास कोई शिकायत नहीं आई है।

बस में कुल 30 सवारियां थी, जिनमें 10 महिलाएं, 6 बच्चे और 14 पुरुष थे। आदमपुर बस अड्डा से करीब साढ़े बारह बजे बस चली तो उसमें पंजाबी फिल्म चल रही थी। सवारियों के कहने पर पंजाबी फिल्म की जगह हिंदी फिल्म लगाई गई थी, लेकिन सवारियों में उस समय हड़कंप मच गया जब हिंदी फिल्म की जगह ब्लू फिल्म चलने लगी। करीब 2 मिनट तक ब्लू फिल्म का प्रसारण होता रहा। महिलाओं ने तो आंखें ही बंद कर लीं। सवारियों के शोर मचाने पर ड्राइवर के पास बैठे कंडक्टर ने फिल्म बंद की और चालक ने ब्लू सीडी बस से बाहर फैंक दी। गुस्साए यात्रियों ने कंडक्टर की बस में ही जमकर धुनाई कर दी।

सूचना मिलते ही रामामंडी चौक में पुलिस की टीमों ने नाका लगा दिया। पुलिस को चौक पर देखते ही बस चालक के होश गुम हो गए और वह गांव की तरफ से बस भगा ले गया। जालंधर बस अड्डे पर ड्राइवर ने बस की ब्रेक खराब होने का बहाना लगाकर सवारियां उतार दीं और बस लेकर फरार हो गया।

Friday, March 28, 2008

मां ने हवस में बाधक बेटे को मार डाला

हवस में अंधी एक कलयुगी मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को ही मार डाला। मां-बेटे के पवित्र रिश्ते को तार-तार करते हुए उसने क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ कर वर्षीय पुत्र की पीट-पीट कर हत्या कर दी। नरकटियागंज, बिहार के देवीस्थान मोहल्ले में हवस की भूख में बाधक इकलौते बेटे को बुधवार, २६ मार्च की रात एक मां ने पीट-पीट कर मार डाला। फिर देर रात बच्चे को अस्तपाल ले गई और वहां छोड़ खुद भाग निकली। कलयुगी मां मीना देवी को बेटे गोलू की हत्या के आरोप में नामजद किया गया है। प्रथम दृष्टया मामला महिला के बदचलन होने की वजह से बेटे को रास्ते से हटाना प्रतीत होता है।

जानकारों के अनुसार मीना की शादी बैरगनिया हुई थी जिसे दस वर्ष पूर्व उसके पति ने छोड़ दिया। लोगों का कहना है कि प्राय: वह इकलौते बेटे गोलू (9 वर्ष) को पीटती रहती थी। गोलू काफी चंचल स्वभाव का था। घर में किसी को आने-जाने में वह बाधक बन जाता था। इस बाधा को दूर करने के लिए मां मीना ने ही क्रूरता की सीमा पार करते हुए पैना व फट्ठा आदि से पीट-पीट कर उसे अधमरा कर दिया। फिर वह गोलू को साढ़े दस बजे रात में अस्पताल ले गयी। जब चिकित्सा प्रभारी डा. अरुण कुमार और डा. चन्द्रभूषण बच्चे के पास पहुंचे तो वह भाग निकली और बच्चे ने दम तोड़ दिया। खबर पाकर थानाध्यक्ष एक पदाधिकारी के साथ अस्पताल पहुंचे। पुलिस ने बच्चे की शिनाख्त कर ली और मां द्वारा बेरहमी से पीट कर इकलौते बेटे को मार डालने का खुलासा हो गया।

दैनिक जागरण के अनुसार उसने कुकर्म में बाधक बन रहे बेटे को रास्ते से हटाने के लिए उसकी हत्या कर दी। शिकारपुर थानाध्यक्ष सत्येन्द्र प्रसाद सिंह ने बताया कि बच्चे के शरीर पर जख्म के अनगिनत लाल और काले निशान हैं। पुलिस इस करतूत में शामिल हत्यारी मा के अन्य सहयोगी की शिनाख्त में लगी है।

मरीज ला रही एंबुलेंस में आग

कभी-कभी फिल्मों में ऐसा सीन दिख जाता है, लेकिन यहाँ गाजियाबाद से मरीज को दिल्ली लेकर रही एंबुलेंस में २७ मार्च की रात करीब 10.30 बजे गाजीपुर लालबत्ती के पास अचानक आग लग गई। आग लगने के कुछ देर बाद ही एंबुलेंस में रखा ऑक्सीजन सिलेंडर भी फट गया। सिलेंडर फटते ही वैन के परखचे उड़ गए। हालांकि आग लगने का एहसास होते ही एंबुलेंस के चालक अटेंडेंट ने तत्परता दिखाते हुए मरीज को बाहर निकाल लिया था, लिहाजा तीनों सुरक्षित हैं। अलबत्ता हादसे के कारण एनएच-24 सहित आसपास के मार्गो पर जाम लग गया। मौके पर पहुंची दमकल विभाग की एक ही गाड़ी ने आग पर काबू पा लिया। यह अलग बात है कि दमकल गाड़ी के आने तक एंबुलेंस राख हो चुकी थी। एंबुलेंस के शीशे वगैरह के छितरा जाने से एक- दो राहगीरों को हल्की चोटें भी आई। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

दैनिक जागरण के मुताबिक गाजियाबाद के एक निजी अस्पताल की एंबुलेंस एक मरीज एवं एक अटेंडेंट के साथ दिल्ली आ रही थी। गाजीपुर लालबत्ती के पास पहुंचते-पहुंचते गाड़ी गर्म होने लगी एवं उससे धुआं उठने लगा। इस पर चालक ने मौके की नजाकत भांप तुरंत अटेंडेंट व मरीज को बाहर निकाल लिया। उसके कुछ ही देर बाद एंबुलेंस में आग लग गई। आग लगने के कुछ देर बाद ही एंबुलेंस में रखा ऑक्सीजन सिलेंडर भी फट गया।

ढाई माह के बच्चे को गोद में लेकर मां दे रही परीक्षा

बूली बर्मन ने ढाई माह के गोद के बच्चे को लेकर उच्च माध्यमिक परीक्षा दे कर सबको हैरत में डाल दिया है। पश्चिम बंगाल में गोसानीमारी उच्च विद्यालय से परीक्षा दे रही दिनहाटा (कूचबिहार) महकमा के गोसानीमारी की निवासीबूली बर्मन बुधवार को गोपाल नगर एमएसएस हाईस्कूल में राजनीति विज्ञान की परीक्षा देने के लिए अपने नन्हे बच्चे को साथ लेकर परीक्षा केंद्र आयी थी।

करीब चार साल पहले पेटला की मूल निवासी बूली की शादी गोसानीमारी के निताई राय के साथ हुयी थी। सिर्फ ढाई माह पहले ही उसने पुत्र संतान को जन्म दिया है। अपने अबोध बच्चे को संभालते हुए बूली ने परीक्षा की तैयारी भी बखूबी कर ली थी। इसमें उसके पति ने भी उसका भरपूर साथ दिया। परीक्षा केंद्र में उसके साथ उसकी मां आती है जो बाहर बच्चे को संभालती है। परीक्षा के बीच में बच्चे के रोने पर उसे अक्सर परीक्षा हाल से बाहर आना पड़ता है। गोपालनगर एमएसएस हाईस्कूल के प्रधान शिक्षक नारायण देव ने बताया कि बूली के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था की गयी थी लेकिन वह उस पर राजी नहीं हुई।

अपनी तमाम मुश्किलों के बीच परीक्षा देने का हौसला रखने वाली बूली सचमुच तारीफ के काबिल है। उसका यह साहसिक प्रयास अन्य गृहिणियों के लिए मिसाल बन सकता है। गौरतलब है कि अक्सर गृहिणियां अपने घर के काम व बच्चों के बोझ का हवाला देकर पढ़ाई नहीं करना चाहती हैं। इनके लिए बूली प्रेरणा का स्रोत साबित हो सकती हैं।

Wednesday, March 26, 2008

जापान भी कूदा, इस देश की दीवानगी में

57 साल के अबि हीरोयुकी को पिछले साल नवंबर में उनकी कंपनी निकॉन के शीर्ष अधिकारियों ने आदेश दिया कि तुरंत भारत जाओ। पता लगाकर आओ कि आखिर वहां क्रिकेट का कितना बड़ा रोल है! कंपनी के कारपोरेट कम्यूनिकेशंस डिपार्टमेंट का यह अहम अधिकारी कुछ दिन बाद टोक्यो से दिल्ली में था। भारत पहुंच पाकिस्तान और भारत के बीच सीरीज का बुखार देखकर हीरायुकी चकित रह गए। चार महीने बाद कंपनी ने बोर्ड के साथ करोड़ों का करार किया। अब वह भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीन मैचों की सीरीज की सहायक प्रायोजक कंपनी है।

यह बात अलग है कि जापान में इस कंपनी के किसी भी अधिकारी को क्रिकेट का 'क-ख-ग' भी नहीं मालूम। लेकिन उसने तुरंत ही करोड़ों रुपये दांव पर लगाने का फैसला कर लिया। चेन्नई में कंपनी की पूरी टीम मौजूद है जो भारत में क्रिकेट के जुनून का अध्ययन कर रही है। कंपनी की इस रुचि से साफ जाहिर है कि विश्व भर के उद्योग समूहों की निगाहें भारतीय क्रिकेट पर लगी हैं और आने वाले दिनों में अरबों रुपये ऐसे देशों से आएंगे जहां इस खेल का कोई अस्तित्व नहीं है।

अमर उजाला ने समाचार दिया है कि कम्पनी जानना चाहती थी - क्या क्रिकेट के बिना भारत में कारोबार करना संभव होगा? पर उन्होंने जवाब दिया, नहीं। बल्कि इस बोल की मदद से कंपनी को पैर जमाने में अधिक देर नहीं लगेगी। हीरोयुकी के अनुसार उन्होंने पहली बार जब क्रिकेट मैच के दौरान एक संवाददाता सम्मेलन देखा तो वे हैरान रह गए थे। करीब साठ कैमरे और तीन सौ पत्रकार। उन्होंने तुरंत अपने बॉस को फोन मिलाया और कहा कि क्रिकेट के बिना शायद यहां काम करना मुश्किल हो। कंपनी ने तुरंत ही जापान की सबसे बड़ी कंपनी डेंस्तू इंक के साथ करार किया।

डेंस्तू ने वर्ल्ड स्पोर्ट्स के माध्यम से भारतीय बोर्ड से संपर्क किया और इस तरह कंपनी क्रिकेट का प्रयोजन करने वाली पहली जापानी कंपनी बन गई। भारतीय जमीं पर बतौर सहायक प्रायोजक कंपनी का चेन्नई में पहला मैच होगा। उन्होंने स्वीकार किया कि बेशक जापान में कंपनी के किसी भी अधिकारी को इसके बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन फिलहाल उन्हें इसे सीखने का आदेश दिया गया है। बोर्ड ने हीरोयुकी और उनकी टीम को विशेष पास जारी किए हैं।

इटली की पुलिस तलाश रही है एक भारतीय को

इटली की पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति की तस्वीरें जारी की हैं जिस पर उसे सुपर बाज़ार की एक कर्मचारी को सम्मोहित करने का शक है। सम्मोहित होने के बाद कर्मचारी ने अपने पास रखी सारी धनराशि उसके हवाले कर दी। ऐसे हर मामले में कैश बॉक्स के खाली होने से पहले अंतिम बात जो शिकार हुए कर्मचारी को याद है, वह है कि उस चोर ने उसकी ओर झुककर कहा, “मेरी आँखों में देखो.”

एक ताज़ा मामले में इस चोर ने दक्षिण इटली के अंकोना में एक बैंक को निशाना बनाया और चुपचाप बाहर निकल गया। बैंक के सीसीटीवी की तस्वीरों के अनुसार बैंक की महिला क्लर्क ने उसे क़रीब 800 यूरो सौंप दिए.

इटली की मीडिया के अनुसार इस वीडियो फ़िल्म में दिखाई गई कैशियर को इस घटना के बारे में कुछ भी याद नहीं है। उसे इस घटना का अहसास तब हुआ जब उसने सारी धनराशि गायब देखी.

मिली जानकारी के अनुसार बैंक के सीसीटीवी ने स्पष्ट रूप से उसे उस व्यक्ति से सम्मोहित होते हुए दिखाया। इटली की पुलिस का मानना है कि यह चोर भारतीय मूल का हो सकता है.

Saturday, March 22, 2008

होली पर्व की शुभकामनाएं

ये मेरा इंडिया के सभी पाठकों, हिंदी चिट्ठाकारी के क्षितिज पर छाये सभी चिट्ठाकारों तथा उनके परिवार सहित वरिष्ठजनों को होली पर्व की हार्दिक, रंग भरी शुभकामनाएं।

Thursday, March 20, 2008

हमें नहीं चाहिए सरबजीत की रिहाई

पाकिस्तान की जेल में मौत की सजा का इंतजार कर रहे सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर ने कहा है कि मैं नहीं चाहती कि मेरे पति की रिहाई के बदले भारत सरकार खूंखार आतंकवादियों को रिहा करे। उन्होंने कहा कि इस कीमत पर पति की रिहाई मंजूर नहीं है।

संसद पर हमले के आरोपी मोहम्मद अफजल गुरु की रिहाई के बदले सरबजीत को आजाद करने की संभावना के बारे में जब सुखप्रीत से पूछा गया तो उन्होंने कहा , ' हम अपने हित के लिए अपनी मातृभूमि के खिलाफ नहीं जा सकते। मेरे देश को मेरे पति के लिए किसी भी खूंखार आतंकवादी को रिहा नहीं करना चाहिए। '

सरबजीत की बेटियों को भी यह बात मंजूर नहीं कि उनके पिता को किसी आतंकवादी के बदले छोड़ा जाए। सरबजीत की बेटी पूनम ने कहा , ' मेरे पापा बेकसूर हैं , इसलिए हम रहम की भीख मांग रहे हैं। लेकिन भारतीय जेलों में बंद किसी भी आतंकवादी के बदले पापा नहीं चाहिए। '

पूनम ने कहा , ' मैं भारत की बेटी हूं और देश पहले है। इसलिए सरकार से प्रार्थना करती हूं कि वह पापा के बदले में किसी भी आतंकवादी को छोड़े। '

डा. कलाम ट्रैफिक जाम में फँसे, पैदल चले

बुधवार, १९ मार्च की शाम करीब छह बजे दिल्ली के सीरीफोर्ट सभागार में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की पुस्तक 'माई कंट्री माई लाइफ' का विमोचन समारोह आयोजित किया गया था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति डा। कलाम थे। समारोह में दर्जनों वीवीआईपी भी आमंत्रित थे। अनुमान है कि करीब 2000 कारों से लोग यहां आए। समारोह स्थल पर आने के लिए शाम चार बजे के बाद से ही सीरीफोर्ट जाने वाला अगस्त क्रांति मार्ग वाहनों से अट गया।

साढ़े पांच बजे के बाद यहां से वीवीआईपी काफिला गुजरने लगा। यातायात पुलिस इन लोगों को रास्ता ही मुहैया नहीं करा पा रही थी। इसी दौरान पूर्व राष्ट्रपति डा। एपीजे अब्दुल कलाम भी अगस्त क्रांति मार्ग पर जाम में फंस गए। पूर्व राष्ट्रपति ने करीब 25 मिनट तक जाम खुलने का इंतजार किया। जब घड़ी की सुई शाम छह बजे को पार करने लगी तो वे कार से उतर पड़े। यह देख कमांडो दस्ते ने उन्हें घेर लिया। उनसे आग्रह किया कि वह गाड़ी में ही बैठे रहें, लेकिन पहले से काफी विलंब हो चुके डा. कलाम ने प्रोटोकॉल को दरकिनार कर पैदल ही चलना शुरू कर दिया। करीब आधा किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद वे कार्यक्रम स्थल पहुंचे।

जब इसकी जानकारी पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को मिली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और वे लगभग भागते हुए सभागार से बाहर निकले। कुछ दूर पैदल चलने के बाद वे डा. कलाम के पास पहुंचे और उन्हें साथ लेकर सभागार में आए।

Sunday, March 16, 2008

रिवार्ड देने से कतरा रही सरकार: खुफियागिरी से वसूले करोडों!

एक महिला की खुफियागिरी पर सरकार ने एक शैक्षणिक संस्थान से आयकर के रूप में करोड़ों रूपए वसूले मगर महिला को सम्मान के तौर एक कौड़ी भी देने को तैयार नहीं है। महिला ने सरकार के इनकार के बाद रिवार्ड के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर एवं न्यायमूर्ति एसएल भ्याना की दो सदस्यीय खंडपीठ ने संगीता वैद्य की मांग पर केंद्र सरकार व आयकर विभाग को नोटिस जारी किया है और 6 सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है। याचिकाकर्ता संगीता वैद्य, जो कि अरविंद गुप्ता डीएवी स्कूल ऑट्रम लाइन की पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन की उपाध्यक्ष हैं, ने याचिका में कहा है कि उसने सरकार के कई विभागों को पत्र लिखकर डीएवी कॉलेज ट्रस्ट एवं मैनेजिंग कमेटी में वित्तीय अनियमितता एवं आयकर छुपाने की जानकारी दी। डीएवी कॉलेज ट्रस्ट एवं मैनेजिंग कमेटी के देश भर में सैकड़ों स्कूल व कॉलेज चल रहे हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा कि इस बाबत उसने सरकारी अधिकारियों से निजी रूप से भी मिली और उपरोक्त संस्थान की वित्तीय अनियमितता एवं आयकर छुपाने की जांच की मांग की। उनके वकील अरूण अरोड़ा ने कोर्ट को बताया कि उनके मुवक्किल की शिकायत पर आयकर विभाग ने डीएवी सोसाइटी के खातों का आकलन किया तो पाया कि एक साल में मुनाफा करोड़ों में है, जबकि सोसाइटी ने अपना मुनाफा शून्य कर दिया। आयकर विभाग के सहायक आयुक्त (ई) ने डीएवी सोसाइटी के खाता का आकलन किया तो 21 करोड़ 77 लाख 37 हजार एक सौ रूपए इनकम पाई गई, जबकि सोसाइटी ने अपने रिटर्न में मुनाफा शून्य दिखाया था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने सरकार को संस्थान के छुपे हुए आयकर का खुलासा करने में मदद की है और इससे सरकार ने सोसाइटी से करोड़ों रूपए वसूले। लिहाजा सरकार को चाहिए कि सोसाइटी पर जो जुर्माना लगाया है उनमें से दस फीसद रकम उनको रिवार्ड के तौर पर दे। साथ ही कहा है कि सरकार ने कानून में ऐसा प्रावधान कर रखा है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि रिवार्ड के लिए उसने संबंधित अधिकारी को पत्र भी लिखा, मगर उनको रिवार्ड देने से इनकार कर दिया। सरकार का यह रवैया एक नागरिक के प्रति सम्मानजनक नहीं है। कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 9 अप्रैल को करेगी।