फूड एंड सप्लाई विभाग जमाखोरी के खिलाफ कार्रवाई कर नहीं सकता, क्योंकि निश्चित सीमा तक स्टॉक से अधिक माल रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन तो फरवरी में ही खत्म हो गया था। इसके बाद नया नोटिफिकेशन जारी ही नहीं किया गया। जमाखोरी के मामले में सजा की सम्भावना अधिक रहती है जबकि आवश्यक वस्तु अधिनियम में छानबीन में अक्सर कमियां रह जाती हैं और आरोपी सजा से बच जाते हैं। जमाखोरी के खिलाफ दिल्ली सरकार के फूड एंड सप्लाई विभाग के अभियान में विभाग ने 165 गोदामों पर छापे मारकर बरामदगी का दावा किया, लेकिन पुलिस के पास केवल 37 एफआईआर ही दर्ज हैं।
विभाग ने नरेला, दिल्ली के एक फूड गोदाम में छापा मारकर जो करीब ढाई लाख क्विंटल चावल बरामद करने का दावा किया था उसकी तो अभी तक एफआईआर ही दर्ज नहीं हुई है। दरअसल वह चावल एक्सपोर्ट के लिए रखा था और उस होलसेलर ने गोदाम के बाहर कीमत और कितना स्टॉक है, यह डिस्प्ले नहीं किया था। इसी तरह लॉरेंस रोड पर करीब साढे छह हजार क्विंटल दाल जब्त की गई जबकि वह दाल मिलिट्री को सप्लाई की जानी थी।
फरवरी में जिस नोटिफिकेशन की सीमा खत्म हो गई है, उसके तहत एक व्यापारी एक बार में एक हजार क्विंटल गेहूं और दो क्विंटल दालों का स्टॉक कर सकता है। खाने के तेल पर यह नियम लागू नहीं होता। नया नोटिफिकेशन न होने से व्यापारी स्टॉक रखने के लिए स्वतंत्र हो गए।
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के कमिश्नर का कहना है कि महंगाई के दौर में यदि कोई व्यापारी स्टॉक किए गए माल को नहीं निकालता, तो वह गलत है। यह सही है कि केंद्र सरकार वाला नोटिफिकेशन फरवरी में खत्म हो गया था, लेकिन हमने इन जमाखोरों के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 के तहत कार्रवाई की है।
इसके तहत व्यापारी को अपने गोदाम में जमा किए हुए माल का विवरण बाहर डिस्प्ले करना होता है, जिसमें यह लिखा जाना चाहिए कि उसके पास कितना स्टॉक है और उसकी कीमत कितनी है। इसके अलावा स्टॉक करने वाले प्रत्येक व्यापारी को विभाग से लाइसेंस लेना होता है जोकि इन होलसेलर ने नहीं किया।
भारत की तलाश
Friday, April 18, 2008
जमाखोरी के खिलाफ तो कानून ही नहीं है!
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