भारत की तलाश

 

Wednesday, December 31, 2008

नववर्ष की शुभकामनाएं


आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं

Sunday, December 14, 2008

संसद हमले में श्रद्धांजलि अर्पित करने सिर्फ 10 सांसद ही पहुंचे

आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में एकजुटता दिखाने के दो दिन बाद ही संसद हमले में शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए 13 दिसम्बर को आयोजित समारोह में सिर्फ 10 सांसद ही शरीक हुए। लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह, विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता जसवंतसिंह एवं संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने मुठभेड़ स्थल पर लगी स्मृति पट्टिका पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्रद्धांजलि देने वालों में राज्यसभा सदस्य एसएस अहलुवालिया (भाजपा), मनोहर जोशी (शिवसेना), डी. राजा (भाकपा), पीजे कुरियन एवं कर्णसिंह (दोनों कांग्रेस) शामिल थे। समारोह में केंद्रीय मंत्री पीके बंसल एवं पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल भी मौजूद थे।

दोनों सदनों ने गुरुवार को सर्वसम्मति से आतंकवाद से लड़ने का प्रस्ताव पारित किया था। सांसदों की उपस्थिति पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा इतनी कम उपस्थिति सिर्फ निराश करने वाली ही नहीं है, बल्कि पूरी तरह अक्षम्य है। कोलकाता में मौजूद भाजपा सांसद प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि अधिकतर सांसद अपने क्षेत्रों में हैं, जहाँ वे शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे। उन्होंने कहा शनिवार या रविवार को आप सभी लोगों को दिल्ली में होने की उम्मीद नहीं कर सकते। सांसदों को अपने क्षेत्रों में जाना पड़ता है।

Friday, December 12, 2008

हमारे कमांडो ने द्वितीय विश्व युद्ध के हेलमेट, 1965 के भारत-पाक युद्ध के बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए थे

मुंबई के आतंकी हमले में आतंकवादियों से भिड़ने वाले कमांडो ने द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने के हेलमेट और 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान के बुलेट प्रूफ जैकेट पहने थे। यह जानकारी कांग्रेस के राजीव शुक्ला ने 11 दिसम्बर को राज्यसभा में दी। आतंकवाद पर चर्चा में भाग लेते हुए शुक्ला ने कहा कि 'उनके' पास अत्याधुनिक हथियार थे, जबकि हमारे कमांडो के हेलमेट द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने के थे और बुलेट प्रूफ जैकेट 1965 के, जबकि पाक आतंकियों के पास रात में देखने वाले कैमरे भी हेलमेट में लगे थे।

उन्होंने कहा कि मुंबई हमले के बाद तीन नेताओं के इस्तीफे हुए, लेकिन अफसरों की भी जिम्मेदारी बनती है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के चार सेंटर खुलने वाले थे, आखिर वे क्यों नहीं खुले, किसने फाइल दबा रखी थी। रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय इसे आगे बढ़ाएँ। उन्होंने कहा कि हम युद्ध नहीं चाहते। हमें जनता की भावना को समझना होगा और कोई कड़ी कार्रवाई करना होगी। पाकिस्तान तो युद्ध में बर्बाद हो जाएगा। उसके पास 30 लाख डॉलर की विदेशी मुद्रा है, जबकि भारत के पास 25 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है

Tuesday, December 9, 2008

नर्सरी के फार्म बेचकर दिल्ली के पब्लिक स्कूलों ने 5000 करोड़ रुपए कमाये: ASSOCHAM

दस दस स्कूलों का चक्कर लगाकर हजार दो हजार में फार्म खरीदने वाले तमाम अभिभावकों को यह जानकर हैरत होगी कि केवल नर्सरी कक्षा के फार्म बेचकर ही पब्लिक स्कूलों ने अरबों रुपए की कमाई कर डाली है। व्यावसायिक और औद्योगिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले उद्योग चैंबर (ASSOCHAM) के सामाजिक विकास न्यास ने पाया कि नर्सरी कक्षा के दाखिला फार्म बेचकर ही दिल्ली के पब्लिक स्कूलों ने 5000 करोड़ रुपए की कमाई की है। ASSOCHAM अध्ययन के मुताबिक पिछले आठ सालों में नर्सरी और केजी के दाखिला फार्म की बिक्री में कम से कम 300 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। अपने नौनिहालों को अच्छे से अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने के लिये आमतौर पर प्रत्येक अभिभावक फार्म खरीदने में ही 5000 रुपए तक खर्च कर डालते हैं।

वर्ष 2000 में जहां दिल्ली के बडे स्क़ूल दाखिले से संबंधित फार्म और दस्तावेज मात्र 300 रुपए में बेच रहे थे, वहीं 2008 में यही स्कूल कम से कम 1000 रुपए में फार्म बेच रहे हैं। एसोचैम महासचिव डी.एस. रावत का कहना है कि दो बच्चों के दाखिले की बात हो तो फिर खर्च और भी बढ़ जाता है। रावत का कहना है कि नर्सरी और केजी में दाखिले के फार्म तो अब बडे-बडे प्रबंधन संस्थानों, इंजीनियरिंग कालेजों और चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थानों के दाखिला फार्म से भी महंगे हो गये हैं। एसोचैम रिपोर्ट के मुताबिक अकेले दिल्ली के ही पब्लिक स्कूलों ने नर्सरी के दाखिला फार्म बेचकर 5000 करोड़ रुपए की कमाई कर डाली है।

अध्ययन में कहा गया है कि आमतौर पर अभिभावक दखिला फार्म के साथ मिलने वाली पुस्तिका को लेने से इंकार नहीं करते हैं क्योंकि इसमें स्कूल के बारे में पूरी जानकारी होती है, लेकिन अब ज़्यादातर स्कूलों ने इसके दाम काफी बढ़ाचढ़ाकर रखना शुरू कर दिया है, जिससे अभिभावकों को मजबूरी में अधिक दाम चुकाकर भी इन्हें खरीदना पड़ता है। ऊपर से यह भी गारंटी नहीं होती कि उस स्कूल में उनके बच्चे को दाखिला मिल ही जाएगा। इसलिए अभिभावकों को कम से कम तीन चार स्कूलों में फार्म भरने पड़ जाते हैं। एसोचैम का कहना है कि ऐसे समय जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का दबाव है। उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में कामकाज धीमा पड़ रहा है। कई उद्योगों से कर्मचारियों की छंटनी हो रही है और ऊंचे वेतन भत्तों में कटौती की जा रही है निजी पब्लिक स्कूलों की बढ़ती लागत पर अंकुश लगना चाहिए।

दाखिला फार्म की कीमत में भारी वृध्दि न्यायालय के उस आदेश का भी उल्लंघन है, जिसमें उन्हें सालाना वृध्दि 40 प्रतिशत के दायरे में रखने को कहा गया है। रावत कहते हैं कि आमतौर पर सभी पब्लिक स्कूल फीस वृध्दि के लिए छठे वेतन आयोग की वेतन वृध्दि का हवाला देते हैं, जो कि पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है, ज़्यादातर स्कूलों में काम करने वाले कर्मचारियां को असंगठित क्षेत्र के रूप में काम दिया जाता है जिन्हें वेतन वृध्दि को कोई लाभ नहीं मिलता।

इस सम्बन्ध में ASSOCHAM की प्रेस विज्ञप्ति यहाँ देखी जा सकती है

Monday, December 1, 2008

अफसरों को दी जाने वाली बुलेटप्रूफ जैकेट कुटीर उद्योग में तैयार हुयी थी!?

मुम्बई हमलों में जान गवांने वाले ATS अधिकारी विजय सालस्कर कभी बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहनते थे। आतंकी हमले के दौरान बुलेटप्रूफ जैकेट पहनना ही उनकी जान जाने का कारण बना। कड़वी हकीकत तो यह है कि अफसरों को जैकेट पर पहले से भरोसा नहीं था। क्योंकि, जो जैकेट उन्हें मुहैया कराई गई थी, वह AK 56 व AK 47 की गोलियाँ झेलने में सक्षम नहीं थी। वर्ष 2004 में स्टेट रिजर्व पुलिस फोर्स ने फायरिंग रेंज में इन जैकेटों का परीक्षण किया था। उसी दौरान यह साबित हो गया था कि ये जैकेटें AK 47 और SLR नहीं झेल पा रही हैं। इसीलिए जैकेट पर किए गए फायर के दौरान एक भी गोली छिटक कर दूर नहीं गई, वरन पुलिस अफसरों को शरीर में पैबस्त हो गई।

विभिन्न माध्यमों में आयी ख़बर में बताया गया है कि इसके पहले जैकेट के मानक की जांच के बाद गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट भेजी गई थी। मांग की गई थी कि अगली सप्लाई में इसे मानक के अनुरूप बेहतर बनाया जाए। जनहित याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें पूछा गया था कि इन जैकेटों को पुलिसवाले पहनें या नहीं। मुंबई पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से ही IPS अफसर वाई.पी. सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। अब वह वकील बन गए। उन्होंने उस दौरान आरोप लगाया था कि भ्रष्टाचार दो तीन एजेंटों की वजह से बढ़ रहा है, जो सरकार में दखल रखते हैं। ये एजेंट कुटीर उद्योग में तैयार होने वाले सामान को सुरक्षा के लिहाज से थोपने की कोशिश में रहते हैं। बुलेट प्रूफ जैकेट से संबंधित जांच ACB के पास भी लंबित है।

मुंबई पुलिस जो आर्मर पहनती है वह 42 इंच लंबी होती है। यह खास कपडों की सहायता से पूरी तरह ढकी होती है और इसके अंदर कुछ वायर होते हैं। स्टील की कुछ प्लेटें होती हैं। वायर किसी भी स्थिति में 10 गेज से कम का नहीं होता है। लेकिन, जैकेट में जो वायर लगा है वह 12 गेज का है।

Saturday, November 29, 2008

भारत की राष्ट्रपति स्मिता पाटिल है

जिन स्कूलों के शिक्षक ही देश के प्रथम नागरिक का नाम सही से ना बता पाएं, वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों के ज्ञान की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। बुलंदशहर मुख्य विकास अधिकारी के निरीक्षण में पूछे गए अनेक आसान सवालों का जवाब प्रधानाध्यापक और शिक्षक तक नहीं दे सके। वहाँ हरीशचंद्र नगर स्कूल के एक शिक्षक ने देश की राष्ट्रपति का नाम 'स्मिता पाटिल' बताया। मुख्य विकास अधिकारी ने ऐसे स्कूल के प्रधानाध्यापक सहित तीन शिक्षकों के वेतन रोकने के निर्देश दिए हैं। साथ ही नगर शिक्षाधिकारी को प्रतिकूल प्रविष्टि दी। इससे शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा हुआ है।

28 नवम्बर को मुख्य विकास अधिकारी संध्या तिवारी और एमडीएम के जिला समन्वयक आदित्य आर्य ने प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हरीशचंद्र नगर की चेकिंग की। अमर उजाला में आयी ख़बर के मुताबिक सबसे पहले एमडीएम का रजिस्टर चेक किया, लेकिन रजिस्टर पूर्ण नहीं पाया गया। मुख्य विकास अधिकारी ने सातवीं कक्षा की एक छात्रा से प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम पूछा, लेकिन वह नहीं बता पाई। इस पर सभी छात्रों से प्रदेश की मुख्यमंत्री का नाम पूछा गया। कोई भी बच्चा नाम नहीं बता सका। इस पर मुख्य विकास अधिकारी ने उच्च प्राथमिक विद्यालय हरिशचंद्र नगर के प्रधानाचार्य से राष्ट्रपति का नाम पूछा, लेकिन वे भी राष्ट्रपति का सही नाम नहीं बता पाए। इसके बाद स्कूल में मौजूद तीन शिक्षिका से राष्ट्रपति का नाम पूछा गया। वे भी राष्ट्रपति का सही नाम नहीं बता पाईं। इस पर मुख्य विकास अधिकारी ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए प्रधानाचार्य सहित तीन शिक्षिकाओं के वेतन रोकने के आदेश दिए। इसके अलावा नगर शिक्षाधिकारी को प्रतिकूल प्रविष्टि देने के निर्देश दिए।

Tuesday, November 25, 2008

टाटा स्टील्स के प्रबंध निदेशक पुरूष नहीं बल्कि एक महिला है !

एक ऐसा अनूठा नमूना सामने आया है, जिसने दुनिया की छठी सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनी ‘टाटा स्टील्स’ के प्रबंध निदेशक बी. मुत्थुरमण जैसे अतिविशिष्ट व्यक्ति को पुरूष की बजाय, महिला और उनकी पत्नी श्रीमती सुमति मुत्थुरमण को महिला से पुरूष बना दिया। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का बेहद महत्वपूर्ण चुनावी दस्तावेज तथा आधार कही जाने वाली मतदाता सूचियों में गड़बड़ी का यह वाकया झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में पेश आया है जिसके जिला मुख्यालय जमशेदपुर में टाटा स्टील समेत टाटा समूह की अनेक कंपनियों का गढ़ है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के लिए हाल में तैयार मतदाता सूची में जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के भाग संख्या-193 के क्रम संख्या-462 पर बाजाप्ता तौर पर मुत्थुरमण की तस्वीर लगी है, लेकिन उनका नाम विमला देवी बताया गया है और लिंग महिला। इसी सूची के क्रम संख्या-474 में श्रीमती सुमति मुत्थुरमण की तस्वीर लगी है पर उनका नाम दुधनाथ साह (पुरूष) बताया गया है।

पूर्वी सिंहभूम के उपजिला निर्वाचन पदाधिकारी विपिन बिहारी ने फोटो में हुई गड़बड़ी की बात स्वीकार करते हुए कहा कि इसका कारण फोटो पहचान-पत्र बनाने के दौरान हुई चूक है। उन्होंने बताया कि दरअसल मतदाता सूची में फोटो लगाने का काम वर्ष 2004 के बाद शुरू हुआ है पर फोटो पहचान-पत्र इससे पहले के बने हुए हैं। उस दौरान मुत्थुरमण और विमला देवी को एक ही कार्ड संख्या जेवीएन-1545873 मिल जाने के कारण मतदाता सूची में गलत फोटो लग गया। ऐसा ही उनकी पत्नी की तस्वीर के साथ भी हुआ है। उन्होंने इस भूल को सुधारने की भी बात कही।

Monday, November 24, 2008

उम्र, पांच वर्ष में बढ़ने की बजाये दो वर्ष कम हुई

राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने प्रस्तुत नामांकन पत्र के साथ दिये शपथ पत्र में अपनी उम्र दो वर्ष कम दर्शाई हैं। वर्ष 2003 से लेकर वर्तमान समय का यदि लेखा किया जाये तो उनकी उम्र पांच वर्ष में बढ़ने की बजाये दो वर्ष की कम हुई हैं।

इसका प्रमाण गत 2003 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में उनके द्वारा प्रस्तुत नामांकन पत्र के साथ दिये गये शपथ पत्र में देखा जा सकता हैं।

12 नवम्बर 2003 को उनके द्वारा जो शपथ पत्र जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया, उसमें कटारिया ने अपनी उम्र 61 वर्ष दर्शाई हैं जबकि मंगलवार 11 नवम्बर 08 को जो शपथपत्र प्रस्तुत किया हैं उसमें उन्होंने उनकी उम्र 64 वर्ष दर्शाई हैं। गणीतीय दृष्टि से उनकी उम्र 64 की बजाये 66 वर्ष होनी चाहिये थी।

वादे हैं वादों का क्या

आंध्रप्रदेश के वनमंत्री एस. विजयरामाराजू का कहना है कि अगले वर्ष राज्य विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में नहीं लौटी, तो वे खुद को गोली मार लेंगे।

विजयरामाराजू ने कहा, “कांग्रेस सत्ता में दोबारा लौटेगी और वाईएस. राजशेखर रेड्डी फिर राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो मैं अपनी रिवॉल्वर से खुद को गोली मार लूंगा”।

वह श्रीकाकुलम जिले में किसानों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे। 

Tuesday, November 18, 2008

स्त्री और पुरूष के बीच मौजूद सामाजिक अंतर के मामले में भारत का 113 वां स्थान

विश्व आर्थिक मंच की ताजा रिपोर्ट के अनुसार स्त्री और पुरूष के बीच मौजूद सामाजिक अंतर के मामले में 130 राष्ट्रों की सूची में भारत का 113 वां स्थान है। रिपोर्ट के मुताबिक नार्वे ने जहां इस सूची में सर्वोच्च स्थान हासिल किया है, वहीं फिनलैंड, स्वीडन और आइसलैंड क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर रहे हैं। दक्षिण एशिआई देशों में सबसे अच्छा प्रदर्शन श्रीलंका का है जो इसमें 12 वें पायदान पर है जबकि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका 27वें स्थान पर और चीन 57वें स्थान पर काबिज है।

महिला सशक्तिकरण तथा स्त्रियों के लिए विशेष उपाय करने जैसे कार्यक्रमों के बावजूद भारत इसमें पहले सौ में भी स्थान नहीं बना सका पड़ोसी देश जैसे ईरान 116, नेपाल 120, पाकिस्तान 127 भी पिछड़ गये देशों में शामिल है जबकि जर्मनी 11, युनाइटेड किंगडम 13, स्पेन 17, ने पहले की अपेक्षा अपने स्तर से नीचे आ गए लेकिन शुरूआती बीस देशों की सूची में आने में कामयाब रहे। नीदरलैंड 09, लाटाविया 10, श्रीलंका 12 और फ्रांस 15 ने अपनी पहले की पोजिशन में सुधार किया है।

यह वैश्विक जेंडर गैप या स्त्री पुरूष के बीच सामाजिक अंतरों वाला सूचकांक इस आधार पर बनाया जाता है कि दोनों के बीच सामाजिक दूरी को कितना कम किया गया है। इसमें महिलाओं की उच्च स्तर पर राजनीतिक और सरकार में भागीदारी तथा देश की वित्तीय संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका और शिक्षा आदि के स्तर को आधार बनाया जाता है। इस सूचकांक में उच्च स्थान पाने का अभिप्राय यही है कि उक्त देश ने इन स्तरों पर पुरूष और महिला के बीच की दूरी कम रह गयी है जबकि निचले स्थान पर आने का मतलब यह निकलता है कि सामाजिक मामलों में जो अधिकार पुरूष को हासिल है स्त्री उससे वंचित है।

इस हिसाब से देखा जाए तो पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आए देशों ने स्त्री और पुरूष के बीच सामाजिक अंतरों को 80 प्रतिशत तक पाट दिया है जबकि निचले स्थान पर रहे देशों ने 45 फीसदी तक ही इस मुकाम को हासिल किया है। ऊंचे स्थान पर काबिज देशों में व्यापार, राजनीति, अकादमिक, मीडिया और नागरिक समाज में कई जगह पर पचास प्रतिशत पुरूषों की भूमिका है तो इतनी ही भूमिका स्त्री की भी है। इस तरह से इन देशों में योग्यता का बेहतरीन इस्तेमाल हो रहा है और उसमें लिंग के आधार पर भेद न्यूनतम है।

Monday, November 10, 2008

भिखारियों के इस कार्य पर GRP ने भी मुहर लगा दी है

गाजियाबाद स्टेशन से 450 से अधिक ट्रेनों के जरिए रोजाना एक लाख से अधिक यात्री सफर करते हैं। कुछ बदनसीब ट्रेन हादसे का शिकार हो जाते हैं। ऐसे क्षत-विक्षिप्त शवों से हर कोई अपना मुंह मोड़ लेता है। ऐसे में स्टेशन पर मौजूद भिखारी ही इन लावारिस शवों के अपने हो जाते हैं। कटी हुई लाश सामने आते ही सरकारी रेलवे पुलिस (GRP) को काले और भरतू की याद आ जाती है। दैनिक हिन्दुस्तान में संजीव वर्मा लिखते हैं कि काले के पिता ने करीब पचास साल पहले पटरी पर कटी लाशों को उठाने का काम शुरू किया था और अब वह इस काम को अंजाम देते हैं। लाशों को उठाकर उनका अंतिम संस्कार करना इनका पेशा बन चुका है। इस काम के लिए पैसा शनिवार को स्टेशन पर शनिदेव की तस्वीर लगाकर कमाया जाता है। परिवार के सभी लोग स्टेशन पर भीख मांगते हैं। उसी से पूरे परिवार का भरण-पोषण होता है।

इस काम में शामिल भरतू का परिवार भी इनके साथ ही मिलकर काम करता है। रेलवे लाइन के किनारे एक झुग्गी में उनका परिवार लंबे समय से रह रहा है। वह कहता है कि शनिवार को तीन सौ से चार सौ रुपये की कमाई हो जाती है। इस पैसे से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। स्टेशन पर इस तरह का काम करने वाले भिखारियों ने इसे सामाजिक सेवा से जोड़ते हुए दूसरी तस्वीर पेश की है। भिखारियों के इस कार्य पर GRP ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी है।

दैनिक हिन्दुस्तान में संजीव वर्मा आगे लिखते हैं कि यह काम भिखारियों के कुछ परिवारों तक सीमित है। यह लोग अपने कार्य के प्रति इतने सजग हैं कि सूचना मिलते ही पहुंच जाते हैं। GRP के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2005 में 87, वर्ष 2006 में 98, 2007 में 107 व वर्ष 2008 में अब तक 80 शवों का अंतिम संस्कार हो चुका है। शव उठाने के बदले स्टेशन पर भीख मांग कर करीब दो दर्जन लोगों का पेट पल रहा है।

Friday, November 7, 2008

झाड़ू लगाकर वोट मांगता है उम्मीदवार

भारतीय लोकतंत्र,  चुनावों के करीब आते ही मतदाताओं की हैसियत बदल देता है, नेताओं के लिए मतदाता भगवान हो जाते हैं,  वे उनका वोट पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के अंबाह विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है। जहां समाजवादी पार्टी (सपा) का उम्मीवार पहले सड़क पर झाडू लगाता है और फिर लोगों से वोट मांगता है।  मुरैना जिले के अंबाह विधानसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सुरेन्द्र बाल्मीकि का नाता दलित परिवार से है। उनका परिवार सड़क पर झाडू लगाकर अपना पेट पालता है। सुरेन्द्र जिस भी इलाके का दौरा करते हैं उनके आगे-आगे 10 लोगों का हुजूम चलता है, जिनके हाथों में झाडू होती है। झाडू वालों को देखते ही क्षेत्रवासियो को पता चल जाता है कि सुरेन्द्र बाल्मीकि उनके क्षेत्र में आया हुआ है। ये लोग पहले उस मुहल्ले और गली में झाडू लगाते हैं उसके बाद सुरेन्द्र मतदाताओं के पैर छूकर वोट मांगते हैं। उनकी मतदाता से एक ही गुहार होती है कि उन्हें सेवा करने का अवसर देते रहिए।


सुरेन्द्र कहते हैं कि वे और उनका परिवार जनता की वर्षों से सेवा करता आ रहा है। वे विधायक बनकर जनता की तकलीफों का हरण करना चाहते हैं। सेवा उनका धर्म है इसलिए वे जनता को यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि जो उन्होंने अभी तक किया है उसमें कोई बदलाव नहीं होगा। सुरेन्द्र विधान सभा पहुंचकर गरीब जनता की तकलीफों का खात्मा करना चाहते हैं। उनका कहना है कि चुनाव आते ही उन्होंने इस तरह का अभियान शुरू नहीं किया है बल्कि वे कई वर्षो से इस क्रम को जारी रखे हुए हैं। वे जहां भी जाते हैं उनके साथी पहले उस इलाके में झाडू लगाते हैं। ऐसा करने के पीछे सेवा भाव के साथ यह संदेश भी छुपा हुआ है कि वे सेवक है राजा नहीं। 

Saturday, November 1, 2008

फर्जी क्रेडिट कार्ड का कारखाना और ग्राहकों तक पंहुचाने के लिये कूरियर

ब्रिटेन में हजारों क्रेडिट कार्ड के गुप्त पिन कोड नंबर का पता लगाने में माहिर भारतीय मूल के कंप्यूटर जानकार को लाखों पांउड की हेराफेरी के आरोप में छह साल के कारावास की सजा सुनायी गयी है। लंदन स्थित अदालत ने कंप्यूटर के महारथी अनूप पटेल पर ब्रिटेन के 19 हजार से अधिक Credit Card धारकों के कार्ड में तकनीकी हेराफेरी कर PIN नंबर पता कर 20 लाख पांउड की चपत लगाने का दोषी ठहराते हुये यह सजा सुनाई। इतना ही नहीं पटेल ने फर्जी क्रेडिट कार्ड बनाने वाला कारखाना और इन्हें ग्राहकों तक पंहुचाने के लिये कूरियर सेवा भी शुरू कर दी थी।

इस कारखाने में बिना इलेक्ट्रानिक चिप वाले क्रेडिट कार्ड बनाकर विदेशी ग्राहकों को कूरियर सेवा के जरिये भी भेजा जाता था। इस मामले में Credit Card को कूरियर सेवा से ग्राहकों तक भेजने वाले आरोपी एंथनी थामस को भी अदालत ने दो साल के कारावास की सजा सुनायी गयी है। ब्रिटेन में क्रेडिट कार्ड में हेराफेरी करने और फर्जी कार्ड बनाने का यह अब तक का सबसे बडा मामला है।

गौरतलब है कि अक्टूबर 2006 में लंदन पुलिस ने इनके कारखाने पर छापा मार कर इस मामले का भांडाफोड किया था। छापेमारी के दौरान पुलिस ने इस कारखाने से Credit Card में इस्तेमाल होने वाली हजारों इलेक्ट्रानिक चिप, प्लास्टिक के खाली कार्ड और 19 हजार फर्जी कार्ड का भंडार, होलोग्राम, PIN संबन्धी जानकारियां, Card Printer और 20 हजार पांउड नगद बरामद किए।

Friday, October 31, 2008

राज्यसभा के सभापति की कुर्सी टूट गयी और कई घंटों तक 'जुगाड़' से चली

कुर्सी जुगाड़ से चलती है। यह तो सभी सुनते और जानते हैं। कुर्सी जितनी ही बड़ी हो, उसे चलाने के लिए जुगाड़ भी उतना ही बड़ा करना पड़ता है। ऐसा ही वाकया पिछले दिनों राज्यसभा में देखने को मिला। राज्यसभा के सभापति की कुर्सी कई घंटे तक जुगाड़ से चलती रही और मजे की बात यह कि इस जुगाड़ के बारे में क्या मंत्री और क्या संतरी, सभी को पता था।

दरअसल हुआ यह कि राज्यसभा में सभापति की कुर्सी का पेंच निकल गया और आसन पर बैठे उपसभापति गिरते-गिरते बचे। आनन-फानन में सदन की कार्यवाही रोक कुर्सी को सीधा रखने के लिए पहले जुगाड़ किया गया। बाद में जांच शुरू की गयी। राष्ट्रीय सहारा में कुणाल लिखते हैं कि आमतौर पर कुर्सी का टूटना बड़ी बात नहीं है। लेकिन संसद में उसमें भी सभापति के कुर्सी का पाया टूटना कोई छोटी बात भी नहीं है। कुर्सी का पाया टूटने के कारण उपसभापति के रहमान खान गिरते-गिरते बचे। भले ही उपसभापति ने इस घटना को हंस कर टाल दिया।

कहने को भले ही कुर्सी का पाया टूटने की बात छोटी कहें पर जिस तरह से लाखों रूपए संसद और उसके रखरखाव पर खर्च किए जाते हैं, ऐसे में निश्चित रूप से यह एक बड़ी घटना है। सभापति की कुर्सी में गड़बड़ी का पता उस समय चला जब सदन में 23 अक्टूबर को शून्यकाल के दौरान मालेगांव और मोडसा में विस्फोट की घटनाओं में कुछ हिन्दू संगठनों के कथित रूप से शामिल होने के बारे में सत्ता पक्ष और विपक्षी सदस्यों के बीच तीखी बहस हो रही थी। इसी दौरान आसन पर विराजमान उपसभापति बार-बार कुर्सी पर आगे पीछे होकर सदस्यों को शांत कर रहे थे। वे कभी खड़े होकर प्लीज-प्लीज कह रहे थे तो कभी कुर्सी पर बैठकर कुर्सी को आगे-पीछे खिसका कर सदस्यों को शांत रहने और अपनी सीट पर बैठने को कह रहे थे।

इसी दौरान रहमान को अहसास हुआ कि उनकी कुर्सी का पुर्जा या तो हिल गया है या फिर टूट चुका है। कुर्सी को बार-बार हिलते देख हंसी-मजाक के लिए मशहूर रेल मंत्री लालू प्रसाद यह कहते सुने गए कि कुर्सी को टिकाने के लिए दो ईंट क्यों नहीं लगा देते। रहमान खान को कुर्सी में खराबी के चलते सदन की कार्यवाही दस मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी। इस दौरान कुर्सी की मरम्मत नहीं हो सकी। उसी कुर्सी के ऊपर दूसरी कुर्सी रखकर कार्यवाही का संचालन किया गया।

पूरे संसद परिसर में सभी तरह के रखरखाव का जिम्मा सीपीडब्ल्यूडी का है।

Thursday, October 30, 2008

बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे आईआईटी के छात्रों को बाहर का दरवाजा देखना पड़ा

आर्थिक संकट के कारण हर जगह तबाही का मंजर देखा जा सकता है। अगर आपको लगता है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं रोजगार बाजार की उठापटक से बचे रह सकते हैं, वह भी मौजूदा आर्थिक मंदी के दौर में, तो एक बार फिर सोचिए। दुनिया भर को अपने आगोश में लेने वाले आर्थिक संकट की वजह से भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे आईआईटी के पूर्व छात्रों को बाहर का दरवाजा देखना पड़ा है। 24 साल के सिद्धार्थ अरोड़ा (बदला हुआ नाम) ऐसे ही लोगों में से एक हैं। अमेरिका की एक लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनी के साथ काम करने वाले अरोड़ा को पिछले हफ्ते नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

11 महीने पहले जब उन्हें इस नौकरी के लिए पत्र मिला था तो वह सातवें आसमान पर थे। श्रेया बिस्वास नवभारत टाइम्स में लिखतीं हैं कि आकर्षक तनख्वाह और बौद्धिक संपदा क्षेत्र में दिलचस्प जॉब-प्रोफाइल, इससे ज्यादा और वह उम्मीद भी क्या कर सकते थे। अप्रैल में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई पूरी करने वाले सिद्धार्थ आज नौकरी की तलाश में हैं। आईआईटी कैंपस से बाहर निकलने पर 7 लाख रुपए की तनख्वाह देने वाली कंपनी में नौकरी पाने वाला यह युवक आज उससे कहीं कम 4-5 लाख रुपए के वेतन पर भी काम करने को तैयार है।

वह करीब 50 कंपनियों को आवेदन भेज चुके हैं। अब उन्हें कंपनियों के जवाब का इंतजार है। बदकिस्मती यह है कि सिद्धार्थ अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं। यह कंपनी आईआईटी कानपुर, खड़गपुर, बॉम्बे और मदास से सिद्धार्थ के 13 दूसरे सहयोगियों को निकाल चुकी है। सिद्धार्थ और उनके दूसरे दुर्भाग्यशाली सहयोगियों के लिए यह घोषणा अचानक टूटी आफत जैसी थी। बर्खास्त किए गए सिद्धार्थ के एक और सहयोगी अरुण भाटिया (बदला हुआ नाम) ने कहा, 'उन्हें कुछ पेशेवर रवैया जरूर दिखाना चाहिए था और हमें एक महीने पहले जानकारी दी जानी चाहिए थी ताकि हमें दूसरी नौकरी तलाशने का वक्त मिल जाता।'

कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईटी खड़गपुर के लिए 15 छात्रों को उन कंपनियों से इनकार की चिट्ठियां मिल चुकी हैं जिन्होंने पहले जॉब ऑफर भेजे थे। श्रेया बिस्वास आगे लिखतीं हैं, आईआईटी खड़गपुर में प्लेसमेंट सेल के चेयरपर्सन प्रोफेसर बी. के. माथुर ने कहा, 'किसी भी छात्र ने ऐसा कुछ होने के बारे में अभी तक हमें कोई जानकारी नहीं दी है।' उनके अनुसार इनकार करने से जुड़ी खबरों के बाद कुछ कंपनियों ने संस्थान से संपर्क साधा और उन छात्रों को जॉब ऑफर करने की बात कही गई है जिन्हें नौकरी देने से इनकार किया गया है।

टॉप आईआईटी में प्लेसमेंट के इंचार्ज एक फैकल्टी सदस्य ने इकोनोमिक टाइम्स के सामने इस बात की पुष्टि की कि अप्रैल 2008 में पास हुए अंतिम बैच के 5 छात्रों को पिंक स्लिप थमाई गई है। सूत्रों के मुताबिक इसी बैच के तीन-चौथाई छात्रों के साथ भी ऐसा हो सकता है।

Saturday, October 25, 2008

मोबाइल कंपनियां कमाई के लालच में खिलवाड़ कर रही

इन दिनों मोबाइल उपभोक्ताओं को रोजाना कॉल ड्राप्स होने की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। इस मामले में मोबाइल कंपनियों का कहना है कि स्पेक्ट्रम कम होने की वजह से ऐसा हो रहा है। वहीं, टेलिकॉम विशेषज्ञों का कहना है कि असल में मोबाइल कंपनियां कमाई के लालच में ग्राहकों को दी जाने वाली सेवा से खिलवाड़ कर रही हैं। ऐसा कहा जाता है कि देशभर में मोबाइल ग्राहकों की संख्या 31 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है और इस समय करीब 25 फीसदी की दर से नए उपभोक्ता जुड़ रहे हैं। ऐसे में उपभोक्तायों को सेवा देने के लिए मोबाइल कंपनियों को दूरसंचार मंत्रालय से मिले स्पेक्ट्रम कम पड़ते जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप मोबाइल फोन पर सिग्नल कमजोर होने, न होने और सिग्नल पूरे होने के बावजूद कॉल ड्राप्स होने की समस्याएं बढ़ रही हैं।

स्पेक्ट्रम कम होने की बात को जानते हुए भी कमाई के लालच में रोजाना नए उपभोक्ता जोड़ने में लगी हैं। इस बात का पता कंपनियों को भी है कि मंत्रालय की ओर से जनवरी में 3-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी पूरी होने वाली है। इसके बावजूद वे ग्राहकों को अच्छी सुविधा मुहैया कराने के लिए थोड़ा इंतजार करने को तैयार नहीं है। इसके अलावा जब से एक कंपनी के मोबाइल टावरों को दूसरी कंपनी द्वारा इस्तेमाल किए जाने की छूट मिली है तब से भी समस्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इससे कंपनियां उन स्थानों पर नए टावर लगाने पर कम ध्यान दे रही हैं जहां नेटवर्क कमजोर रहते हैं। इस कारण अधिकतर मोबाइल कंपनियों के नेटवर्क में समस्या होने लगी है।
(विभिन्न माध्यमों से संकलित)

Friday, October 24, 2008

करोड़ों की जर्मन तकनीक काम नहीं कर सकी: देसी इंजीनियरों ने धेले भर में कर दिखाया

करोड़ों की जर्मन तकनीक भी जो काम नहीं कर सकी, उसे देसी इंजीनियरों ने धेले भर में कर दिखाया है। भारतीय रेलवे के डेढ़ सौ साल के इतिहास में पहली बार मल-मूत्र मुक्त स्टेशन का सपना साकार हो सकता है। देसी इंजीनियरों ने ऐसी युक्ति तैयार की है, जो खड़ी ट्रेनों में टायलेट पाइप के मुंह बंद रखेगी। ये तभी खुलेंगे, जब ट्रेन गतिमान होगी। यह यांत्रिक युक्ति बरेली के इंजीनियर एसी भारती की टीम ने तैयार की है। प्रयोग के तौर पर इसे बरेली-दिल्ली इंटरसिटी एक्सप्रेस के कुछ कोचों में लगाते हुए पूरा प्रोजेक्ट बड़ौदा हाउस को सौंप दिया गया है। शुरुआती प्रयोग सफल रहे हैं।

वैसे तो राजधानी और शताब्दी जैसी हाई-फाई ट्रेनों के जर्मन कोचों से खड़ी स्थिति में मल-मूत्र नहीं गिरने पाता है, लेकिन यहां यह कंप्यूटर तकनीक भी नाकाम हो गई है। मेंटिनेंस न होने के कारण अधिकतर कोचों के टायलेट खराब हो चुके हैं और चलती ट्रेन में भी नहीं खुलते हैं। एक तो इन्हें ठीक करना काफी खर्चीला है और चलती स्थिति में तो यह भी संभव नहीं है। ऐसे में लगातार गंधाने के कारण इनका इस्तेमाल यात्री भी नहीं कर पाते हैं। नई युक्ति शुध्द यांत्रिक नियमों पर आधारित है। इसमें टायलेट पाइप के नीचे एक प्लेट फिट कर उसके नीचे एक निश्चित भार लटका दिया जाता है। खड़ी स्थिति में यह प्लेट टायलेट पाइप को खुलने नहीं देती है मगर 40 किमी से अधिक की रफ्तार में हवा के विपरीत दबाव से यह प्लेट सरक जाती है और टायलेट पाइप खुल जाता है।

इस आसान सी लगने वाले विचार के जनक इंजीनियर एसी भारती है, जो इससे पहले पहियों के धुरे को गरम होने से बचाने की युक्ति 'हॉट बाक्स डिटेक्टर' बनाकर दिल्ली से लेकर लंदन तक में अपना नाम रोशन कर चुके हैं। जर्मन तकनीक कारगर न होने पर ही हमें सस्ती और टिकाऊ यांत्रिक युक्ति बनाने की सूझी, इंजीनियर भारती बताते हैं। नए विचार को उन्होंने अपने सहयोगी अभियंताओं पीएन भटनागर और पंकज साहू की मदद से अमली जामा पहनाया है।
(समाचार , दैनिक देशबंधु से साभार)

Wednesday, October 22, 2008

बरतन धोने-झाड़ू पोंछा करने वाली महिला, ताक़तवर बहुराष्ट्रीय कंपनी के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व कर रही

घरों में बरतन धोने और झाड़ू पोंछा करने वाली एक महिला दयामणि बरला, झारखंड में खरबपति लक्ष्मी मित्तल की कंपनी आर्सेलर मित्तल के ख़िलाफ़ चल रहे आदिवासियों के आंदोलन का नेतृत्व कर रही है। इस आंदोलन में उनकी भागीदारी और नेतृत्वकारी भूमिका को देखते हुए हाल ही में उन्हें स्वीडन में यूरोपीय सामाजिक मंच की एक कार्यशाला में आमंत्रित किया गया। इस कार्यशाला में दुनिया भर में आदिवासी समाज के अधिकारों पर बातचीत की जाएगी। इस सम्मेलन में दुनिया के अलग अलग कोनों से आ रहे तेईस वक्ताओं में दयामणि बरला शामिल हैं जो मूल निवासियों के संघर्षों के बारे में जानकारी देंगे।

बीबीसी में दयामणि बरला ने अपने संघर्षों के दौरान मेहनत मज़दूरी करते हुए कई बार रेलवे स्टेशनों पर सो कर रातें काटी हैं। मेहनत की कमाई से पैसे बचा बचाकर उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी की। इन्हीं हालात में उन्होंने एमए की परीक्षा पास की और फिर पत्रकारिता शुरू की। दयामणि झारखंड की पहली महिला पत्रकार हैं और उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। लेकिन आज भी वो राँची शहर में एक चाय की दुकान चलाती हैं और ये दुकान ही उनकी आय का प्रमुख साधन हैदयामणि कहती हैं किजनता की आवाज़ सुनने के लिए इससे बेहतर कोई जगह नहीं है.

स्वीडन में हुए सम्मेलन में उन्होंने उन चालीस गाँव के लोगों की दास्तान सुनाई जिनकी ज़मीन इस्पात कारख़ाना लगाने के लिए आर्सेलर मित्तल कंपनी को दी जा रही है। लक्ष्मी मित्तल इस इलाक़े में क़रीब नौ अरब डॉलर की लागत से दुनिया का सबसे बड़ा इस्पात कारख़ाना लगाना चाहते हैं इसका नाम ग्रीनफ़ील्ड इस्पात परियोजना है और इसके लिए बारह हज़ार एकड़ ज़मीन चाहिए। ये ज़मीन आदिवासियों से ली जानी है।

लेकिन दयामणि बरला के संगठन आदिवासी, मूलवासी अस्तित्त्व रक्षा मंच का कहना है कि इस परियोजना से भारी संख्या में लोग बेघर हो जाएँगे। आंदोलन चला रहे लोगों का ये भी कहना है कि इस परियोजना से पानी और दूसरे प्राकृ़तिक संसाधन बरबाद हो जाएँगे जिसका सीधा असर आदिवासियों पर पड़ेगा जो परंपरागत रूप से प्रकृति पर आश्रित रहते हैं। दयामणि बरला का कहना है कि “आदिवासी अपनी ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे।”

उन्होंने कहा, “हम अपनी ज़िंदगी क़ुरबान कर देंगे लेकिन अपने पुरखों की ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे। मित्तल को हम अपनी धरती पर क़ब्ज़ा नहीं करने देंगे।”

धरतीमित्र नाम के संगठन से जुड़े विले वेइको हिरवेला ने कहा कि आदिवासियों के लिए ज़मीन ख़रीदने बेचने वाला माल नहीं होता। वो ख़ुद को ज़मीन का मालिक नहीं बल्कि संरक्षक मानते हैं. ये ज़मीन आने वाली पीढ़ी के लिए हिफ़ाज़त से रखी जाती है। दयामणि बरला का कहना है, “औद्योगिक घराने आदिवासी समाज के आर्थिक व्यवहार से अनजान हैं. वो नहीं जानते ही आदिवासी खेती और जंगल की उपज पर निर्भर रहते हैं” उन्होंने कहा अगर आदिवासियों को उनके प्राकृतिक स्रोतों से अलग कर दिया जाएगा तो वो जीवित नहीं बच पाएँगे।

दयामणि बरला के बारे में कुछ जानकारी 4MB की pdf में यहाँ पायी जा सकती है।

(समाचारांश, बीबीसी से साभार)

Monday, October 20, 2008

श्रद्धांजलि के लिए मौन रखे जाने के समय भी बोलते रहे संसद सदस्य

संसद के दोनों सदनों में 17 अक्तूबर को अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला जब दिवंगत सदस्यों और देश में हुई विभिन्न घटनाओं में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मौन रखा जा रहा था तब कुछ सदस्यों ने कुछ अन्य घटनाओं के शिकार लोगों का उल्लेख नहीं किये जाने के विरोध में आवाज उठायी। राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने जब विभिन्न घटनाओं में मारे गये लोगों और सदन के दिवंगत पूर्व सदस्यों के सम्मान में सदस्यों से कुछ क्षणों का मौन रखने को कहा तब माकपा ने हाल के साम्प्रदायिक दंगों में मारे गये लोगों को भी इसमें शामिल करने की मांग को लेकर विरोध करना शुरू कर दिया जिस पर विपक्षी राजग ने आपत्ति जतायी।

इस पर सभापति ने कहा कि ऐसे मौकों पर इस तरह का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए लेकिन जब विरोध जारी रहा तो उन्होंने कहा कि सभी तरह की हिंसा में मारे गये निर्दोष लोगों के प्रति सदन शोक प्रकट करता है।

लोकसभा में भी इसी तरह का अभूतपूर्व नजारा देखने को मिला जब दिवंगत सदस्यों और पूर्व सदस्यों के अलावा आतंकवादी और कुछ अन्य घटनाओं में मारे गये लोगों के सम्मान में मौन रखने के लिए सदस्यों के खड़े होने पर असम के निर्दलीय सदस्य एस के विश्वमुतियारी ने अपने राज्य में हुई हिंसा का उल्लेख नहीं किये जाने का विरोध किया। सदन में मौन रखे जाने की पूरी अवधि के दौरान वह अपनी बात कहते रहे। इस तरह की घटना सदन में संभवत: पहली बार हुई।

Sunday, October 19, 2008

एक बहादुर माँ को सलाम, जो वक्त का सामना नहीं कर सकी

व्यक्तिगत रूप में जब मैंने यह ख़बर पढ़ी तो मन भर आया या कहूं तो आंसू निकल पड़े। हुया यह कि पिछले तीन महीने से आईसीआईसीआई बैंक से एक भी लोन नहीं दिलवा पाने के कारण दो दिन तक भूखी रहने के बाद नीलम तिवारी उर्फ बीनू (35) ने फांसी लगाकर जान दी। अब इस परिवार में न तो कोई पुरुष है और न ही कोई कमाने वाला। दुनिया भर में जारी आर्थिक मंदी की राजधानी में पहली शिकार बनी मां की मौत के बाद 13 साल की बेटी नेहा अब गुमसुम है। 10 साल पहले आगरा में हुए ट्रेन हादसे में पिता को खोने के बाद अब उसकी मां नीलम भी नहीं रही। मौके से पुलिस को तीन स्यूसाइड नोट मिले थे।

बेटी नेहा को लिखे नोट में नीलम ने लिखा 'मैंने अब तक बहुत संघर्ष किया है। अब हिम्मत हार रही हूं। बेटा, आगे का सफर तुम्हें खुद तय करना होगा'।

मां को लिखे नोट में उसने माफी मांगते हुए लिखा कि 'दूर-दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा। आपकी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि कोई मदद कर सकें। मेरे पास न तो किराया देने के पैसे हैं और न खाने के। मेरे घर का सामान बेचकर मेरी बेटी की पढ़ाई का कम से कम यह साल जरूर पूरा करा देना'।

पुलिस को लिखे नोट में नीलम ने अपनी मौत का जिम्मेदार आर्थिक तंगी को बताया।

नवभारत टाइम्स में पंकज त्यागी द्वारा समाचार है कि द्वारका इलाके के सेवक पार्क में रहने वाली माया शर्मा के घर की स्थिति देखकर किसी भी संवेदनशील इंसान का दिल पिघल सकता है। घर में माया, उनकी अविवाहित बेटी और नेहा ही हैं। घर में कोई कमाने वाला इंसान नहीं है। नेहा विकासपुरी के कोलंबिया स्कूल में 9 वीं क्लास की छात्रा है। माया ने बताया कि नेहा पढ़ाई में बहुत होशियार है। आठवीं क्लास में उसके 95 फीसदी नंबर आए थे। अब वह इस स्थिति में नहीं हैं कि उसकी पढ़ाई जारी रखवा सकें। उन्हें उम्मीद है कि कोई गैर सरकारी संगठन नेहा की मदद करने आगे आएगा। नेहा ने बताया कि दो-तीन दिन से मां बहुत परेशान थी। उसने अपनी मां को फांसी पर लटके हुए देखा था। माया ने बताया कि नेहा के दिल पर उस मंजर का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। दो दिन से उसने कुछ नहीं खाया है।

नेहा की नानी, माया ने बताया कि नीलम इन दिनों खुद तंगी में होते हुए भी अपनी एकमात्र संतान नेहा की पढ़ाई जारी रखने की कोशिश में लगी हुई थी। मंदी में बैंकों से लोन दिलवा पाने में वह कामयाब नहीं हो पा रही थी। इस वजह से उसका कमीशन भी बंद हो गया था। माया शर्मा के मुताबिक लोन के कमीशन के अलावा नीलम की कोई कमाई नहीं थी। कुछ दिन तक तो वह अपनी माँ माया से रुपये लेती रही। लेकिन माँ की आर्थिक हालत खुद ही ठीक नहीं थी। उन्होंने बताया कि तीन महीने से नीलम बहुत परेशान थी। उसकी हालत पागलों जैसी हो गई थी। घर की हालत ऐसी थी कि कई बार तो नेहा को भी भूखा सोना पड़ता था।

कानपुर की रहने वाली नीलम की शादी 1994 में आगरा के रहने वाले दिलीप तिवारी से हुई थी। 1998 में आगरा में हुए ट्रेन हादसे में दिलीप की मौत हो गई। नीलम ने दूसरी शादी नहीं की और एक साल की बेटी को साथ लेकर मां और बहन के साथ दिल्ली आ गई। माया ने बताया कि उन्होंने नीलम से कई बार शादी करने के लिए कहा था, लेकिन वह तैयार नहीं होती थी। एक साल से उसने आईसीआईसीआई बैंक से लोन दिलवाने का काम शुरू किया था। लेकिन आर्थिक मंदी ने रोजी-रोटी का यह आसरा भी खत्म कर दिया।

ब्लॉग की दुनिया में हूँ, इसलिए ख़बर पढ़ते वक्त जिज्ञासा हुयी कि नारियों के ब्लॉग पता नहीं क्या प्रतिक्रिया दे रहे होंगे! लेकिन पाया कि उनकी आँख की किरकिरी तो मन्दिर और पब बने हुए हैं और एक महिला के संत होने को नमन कर रहें हैं या फिर नारियों के पहुँचने की छमाई ट्रैफिक रिपोर्ट दे रहे हैं और स्त्री के वस्त्रों के अनुपात से उसके चरित्र की पैमाईश पर बहस कर रहे। एक आशा भरी उम्मीद लेकर गया था, पर निराशा हाथ लगी।

भरे मन से सोच रहा था कि कितनी टूट चुकी होगी ये बच्ची? कैसे उसकी मदद के लिए हम आगे आएं। तभी एक अपडेट मिला कि अगर आप इस बच्ची नेहा की मदद करना चाहते हैं तो उनकी नानी से इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं: 09811544027

Saturday, October 18, 2008

महिला ने अपने साथ छेड़खानी करने वाले कामुक युवक का सिर ही काट डाला

उत्तर प्रदेश में एक महिला ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए एक दबंग किस्म के कामुक युवक का सिर क़लम कर अपने को पुलिस के हवाले कर दिया। मगर पुलिस ने इस महिला को पीड़ित मानते हुए उसे सम्मानपूर्वक घर भेज दिया क्योंकि पुलिस के अनुसार उसने आत्म रक्षा में पलटवार किया था। घटना नेपाल सीमा से सटे लखीमपुर ज़िले के इसानगर थाने की है। ग्राम हसनपुर कटौली के मजरा मक्कापुरवा में दलित राजकुमार और मनचले किस्म के जुलाहे अन्नू के घर अगल-बगल हैं। अन्नू राजकुमार की पत्नी फूलकुमारी को अक्सर छेड़ता था। मगर कमजोर वर्ग का राजकुमार उसके विरोध का साहस नहीं कर पाता।

फूलकुमारी जानवरों के लिए चारा लाने गयी थी। वह एक गन्ने के खेत में पत्ते तोड़ रही थी। तभी अन्नू वहाँ पहुँच गया और उसके साथ ज़बर्दस्ती करने लगा। बीबीसी से फोन पर बातचीत में फूलकुमारी ने कहा कि वह चारा काटने गई थी और उसने अपनी इज्ज़त और जान बचाने के लिए हमलावर पर वार किया था। महिला का कहना था, ''हमने मार दिया। हम गए थे गन्ने की पत्ती लेने। तभी वह ज़बर्दस्ती लिपट गया। हमने किसी तरह उसका बांका छीन लिया और उसी से उसकी गर्दन उड़ा दी।''

स्थानीय अख़बारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा कि फूलकुमारी खून से लथपथ अन्नू का कटा हुआ सिर लिए हसनपुर कटौली पहुँची और वहाँ अपने को पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस वाले उसे थाने ले गए और उसने पूरा मामला बयान किया। हालांकि फूलकुमारी ने इस बात से इनकार किया कि वह अन्नू का कटा हुआ सिर लेकर बाज़ार में गई। पुलिस का कहना है कि उसने अन्नू का कटा सिर धान के एक खेत से बरामद किया।

पुलिस ने फूलकुमारी की चिकित्सा जांच कराई और चौबीस घंटों की तहकीकात के बाद उसके घर वालों के हवाले कर दिया। ज़िले के पुलिस कप्तान राम भरोसे ने बीबीसी से बातचीत में कहा, वह तो पीड़ित है और उसने अपने बचाव में ऐसा किया। उसने कोई ज़ुर्म नहीं किया। पुलिस ने फूलकुमारी की रपट के आधार पर मृत युवक के ख़िलाफ़ बलात्कार, हत्या के प्रयास और उत्पीड़न का मामला दर्ज कर लिया। पुलिस का कहना है कि मृत युवक के परिवार वालों ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं कराया है। एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि मृत युवक का चाल चलन अच्छा नहीं था।
(समाचारांश, बीबीसी से साभार)

Friday, October 17, 2008

मुझे मेरी पत्नी से बचाओ

उत्तराखंड राज्य में पुरोला उत्तरकाशी विधानसभा क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी विधायक राजेश जुवाठां ने पुलिस को पत्र लिखकर उससे अपनी पत्नी से बचाने की गुहार की है। वे विधायक आवास पर पत्नी द्वारा जबर्दस्ती कब्जा कर लेने से कहीं और चले गए हैं। विधायक की पत्नी के खिलाफ स्थानीय नेहरू कॉलोनी थाने में दर्ज रिपोर्ट पर विधायक के बयान का रास्ता देख रही पुलिस, अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। जुवाठां ने पुलिस को लिखे पत्र में कहा है कि उन्हें अपनी पत्नी और ससुराल वालों से जान का खतरा है।

उनका आरोप है कि उनकी पत्नी उन्हें गत चार साल से आत्महत्या करने और उनके घरवालों को जेल भेजने की धमकी देकर उनका मानसिक उत्पीड़न कर रही है। यदि उनकी पत्नी के खिलाफ जल्दी ही कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो वह उनके साथ कोई अनहोनी भी कर सकती है।

15 अक्टूबर की शाम को, विधायक की पत्नी अपने बच्चों के साथ, देहरादून के रेस कोर्स स्थित विधायक ट्रांसिट होस्टल में विधायक के आवास का जबर्दस्ती ताला तोड़कर रहने लगी थी। जिसके खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया गया है, लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

Thursday, October 16, 2008

खेतों में काम करने के मामले में पुरुष महिलाओं से पीछे, लेकिन पैसों पर नियंत्रण ज्यादा

दैनिक जागरण के सौजन्य से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के एग्रो इकोनोमिक रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक अध्ययन पर नज़र पड़ी, जिसके मुताबिक प्रदेश में पशुपालन में महिलाओं का योगदान लगभग 86.2 प्रतिशत, फल उत्पादन में 37.2, सब्जी उत्पादन में 45.2 और अनाज उत्पादन में 51.8 प्रतिशत है। इससे साफ है कि महिलाएं खेतीबाड़ी और पशुपालन के मामले में पुरुषों से ज्यादा काम कर रही हैं। वहीं, बात निर्णय लेने की हो तो स्थिति एकदम उलट हो जाती है। फसलों के मामले में कौन से बीज बीजे जाने चाहिए, इसमें सिर्फ 11.4 प्रतिशत महिलाओं की चलती है। फसलों को कीटों व फफूंद से बचाने के लिए कौन सी दवाइयों का इस्तेमाल किया जाए, इसमें सिर्फ 5.4 प्रतिशत महिलाओं की सलाह ली जाती है। कौन सी रासायनिक खादें इस्तेमाल की जाएं, इस मामले में सिर्फ 3.7 प्रतिशत महिलाएं निर्णय लेती हैं। जमीन की खरीद-फरोख्त के मामले में सिर्फ 7.1 फीसदी महिलाओं की सलाह ली जाती है। खेती के लिए औजारों और उपकरणों की खरीद में 4.3 प्रतिशत महिलाओं की ही चलती है।

कृषि ऋण के मामलों में लिए जाने वाले 96.6 फीसदी निर्णय पुरुष ही लेते है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि और बागवानी उपज की मार्केटिंग में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 3.4 प्रतिशत है। जाहिर है कि दूध, कृषि और बागवानी उत्पादों को बेचने से आना वाला पैसा पुरुषों के नियंत्रण में रहता है। पशुपालन में महिलाओं का योगदान 86.2 प्रतिशत है, लेकिन दूध की मार्केटिंग सिर्फ 3.4 फीसदी महिलाएं करती है। अध्ययन से साफ है कि पैसों पर पुरुषों का नियंत्रण ज्यादा है, जबकि खेतों में काम करने के मामले में वह महिलाओं से पीछे है।

विश्वविद्यालय के एईआरसी के अध्ययन के मुताबिक अन्य मामलों में निर्णय लेने की बात करे तो बच्चों की पढ़ाई में 16.2, स्वास्थ्य में 12.5, गृह खर्च में 10.5, बचत में 8.5, ऋण और निवेश में 4.8, शादी और दहेज में 6.8 और गृह निर्माण या मरम्मत में मामलों में सिर्फ 11.6 महिलाएं ही निर्णय लेती हैं। महिला सशक्तिकरण से जुड़ी संस्था राज्य संसाधन केंद्र के निदेशक डा. ओम प्रकाश भूरेटा के मुताबिक नारी सशक्तिकरण तब तक संभव नहीं है, जब तक महिलाओं को धन से संबंधित निर्णय लेने के अधिकार मिलें हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में ज्यादातर काम महिलाएं करती हैं, जबकि मार्केटिंग पुरुष करते हैं।