भारत की तलाश

 

Saturday, September 4, 2010

पुलिस कर्मियों ने महिला एसपी को सड़क पर घसीट कर पीटा!

उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों की एक बेहद चौंका देने वाली कारस्तानी सामने आई है | उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में 3 पुलिसकर्मियों ने एसपी (ट्रैफिक)कल्पना सक्सेना पर हमला कर न केवल हमला कर दिया बल्कि गाड़ी से सड़क पर घसीटते चले गए। एसपी ने इन पुलिसकर्मियों को ट्रक चालकों से वसूली करते पकड़ा था।


पुलिसकर्मियों के हमले में घायल होकर अस्पताल में भर्ती एसपी कल्पना सक्सेना के अनुसार उन्हें सेना के एक जवान से यह शिकायत मिली थी कि यातायात ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी जाट रेजीमेन्टल सेंटर के पास ट्रक वालों से नाजायज वसूली कर रहे हैं। शिकायत पाकर वह खुद मौके पर पहुंचीं। जब पुलिसकर्मियों ने शिकायत को गलत बताया तो सक्सेना ने अपने स्टाफ से तीनों पुलिसकर्मियों की तलाशी लेने को कहा। पकड़े जाने की आशंका को देखते हुए तीनों पुलिसकर्मियों ने उनपर हमला कर दिया और कार से भाग निकलने का प्रयास किया।

सक्सेना ने एक पुलिस वाले का कॉलर पकड़ लिया तो वे उन्हें 20 मीटर से अधिक दूरी तक घसीट ले गए और फिर सड़क पर छोड़ दिया। तीनों पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। आरोपियों में से एक मनोज कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया है तथा अन्य दो को गिरफ्तार करने के लिए दबिश दी जा रही है।

Monday, August 16, 2010

मूर्तियाँ लगवाने के लिए सरकार ने 34 करोड़ की इमारतें विस्फोट से गिरा दीं!

उत्तरप्रदेश विधानसभा में पिछले दिनों पेश की गई कैग की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि दलित महापुरुषों की प्रतिमाएं खड़ी करने एक स्टेडियम और उससे लगे हुए रिसर्च सेंटर और म्यूजियम की इमारत, जो बमुश्किल सिर्फ 10 साल पुरानी थी, को डायनामाईट लगा ध्वस्त कर दिया गया जो कि पूरी तरह गैरकानूनी था।

रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार ने 1998 में लखनऊ के गोमती नगर में 15 एकड़ के प्लॉट पर 6.47 करोड़ रुपये की लागत से स्टेडियम बनवाया था। इसके चार साल बाद 2002 में एक रिसर्च सेंटर और म्यूजियम का निर्माण सात एकड़ के प्लॉट पर 26 करोड़ की लागत से किया गया। कैग की रिपोर्ट में स्टेडियम गिराने के लिए तकनीकी कमिटी की सिफारिश पर भी सवाल उठाए गए। यह साफ प्रतीत होता है कि इमारतें गिराने के लिए तकनीकी कमिटी की मंजूरी सिर्फ आंखों में धूल झोंकने के लिए थी। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि तकनीकी कमिटी का गठन और इमारतों को ध्वस्त करने की मंजूरी एक ही दिन दी गई।

कैग के अनुसार स्टेडियम और रिसर्च सेंटर के मलबे पर दलित महापुरुषों की प्रतिमाएं खड़ी करने का सरकार का फैसला बिल्कुल गलत था।

Monday, August 9, 2010

भारत की तेजस्विनी सावंत ने इतिहास रच दिया

भारत की तेजस्विनी सावंत ने इतिहास रच दिया है. वह वर्ल्ड शूटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं. और यह कारनामा उन्होंने विश्व रिकोर्ड की बराबरी करते हुए करके दिखाया है। जर्मनी के म्यूनिख में 50 मीटर राइफल इवेंट में तेजस्विनी ने स्वर्ण पदक जीता है. सावंत ने कुल 597 (100, 100, 100, 99, 99, 99) का स्कोर बनाया। 1998 में रूस की मरीना बोबकोवा ने यही स्कोर बनाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ा था.

तेजस्विनी कहती हैं कि वह एक छोटे शहर से आती हैं जहां शूटिंग जैसे खेल में आगे बढ़ पाना आसान नहीं है, लेकिन उनके माता पिता के समर्थन की वजह से वह आगे बढ़ने में कामयाब रहीं. "मुश्किलें तो हैं, लेकिन शिकायत करने से बेहतर है कि उन्हें प्रेरणा के तौर पर इस्तेमाल किया जाए और मेहनत की जाए. मेरे सपनों का साथ देते हुए मेरे माता पिता ने मुझे यही सिखाया."

उनसे पहले अब तक भारत में चार लोगों ने ही शूटिंग में विश्व रिकॉर्ड बनाया है. गगन नारंग, सुमा शिरूर, रोंजन सिंह सोढी और आशेर नोरिया के बाद वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाली सावंत सिर्फ पांचवीं भारतीय हैं।

देश के लिए वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली तेजस्विनी पहली महिला हैं और यह देश के लिए गौरव का पल है।

Sunday, July 25, 2010

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से नाश्ते पर खर्च राशि, प्रधानमंत्री कार्यालय की राशि से आठ गुणा अधिक

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में मंत्रियों और अधिकारियों के नाश्ते पर हुए भारी खर्चो का खुलासा हुआ है। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से स्त्रैक्स और पानी की बोतल पर खर्च की गई यह राशि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में खर्च की गई राशि से तकरीब आठ गुणा अधिक है।


2008-09 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने नाश्ते पर 11.77 लाख रूपए खर्च किए जबकि 2009-10 में पीएमओ में इस बाबत खर्च का आंकडा करीब दस लाख रूपए रहा लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इस मामले में ज्यादा दरियादिली और आवभगत देखने में मिली।

सूचना का अधिकार कानून के तहत हिसार के आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने स्वास्थ्य मंत्रालय से इस संबंध में जानकारी मांगी। लेकिन जो आंकडे सामने आए उससे स्वास्थ्य मंत्रालय को थोडी शर्मिदगी झेलनी पड सकती है। 2008-09 में उसने खाने पीने और बोतलबंद पानी के लिए 49.45 लाख रूपए खर्च किए जबकि 2009-10 में इस मद में 44.62 लाख रूपए खर्च हुए। दोनों वर्षो में खर्च का जोड करीब 94 लाख रूपए बैठता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने करीब 41 लाख रूपए खर्च किए है जबकि जल संसाधन मंत्रालय की ओर से 20.73 लाख रूपए का खर्चा हुआ, पेट्रोलियम मंत्रालय ने जेब ढीली कर 19.5 लाख रूपए का खर्चा किया। वहीं उपभोक्ता मामालों, खाद्य और वितरण मंत्रालय ने बोतलबंद पानी पर 35 हजार रूपए और खाने पीने पर दो सालों में 14 लाख रूपए खर्च किए है। खाने पीने और बोतलबंद पानी पर यह खर्चा आमतौर पर मंत्रालय में होने वाली बैठकों में होता है।

Saturday, June 12, 2010

पुलिस वालों ने चोरी कबूलवाने के लिए 73 वर्षीय वृद्ध की पेड़ से लटका कर बेदम पिटाई की

एक लोमहर्षक घटनाक्रम में राजस्थान की सैंपऊ पुलिस ने चोरी का राज उगलवाने के लिए एक वृद्ध को दिल दहला देने वाली यातनाएं दीं। वृद्ध के हाथ पीछे से बांधकर रस्से से पेड़ पर लटका दिया। 75 वर्षीय जयदेव की दर्दनाक चीखों के बावजूद पुलिसकर्मियों को रहम नहीं आया। थाना प्रभारी और अन्य पुलिसकर्मी उसके रस्से को बार-बार खींचते रहे।

वृद्ध पत्नी ने गुहार लगाई तो उसे भी पेड़ से लटकाने की धमकी मिली। पुलिस की थर्ड डिग्री से वृद्ध बार-बार निढाल होता रहा। इस बीच, मौके पर पहुंचे भास्कर के फोटो जर्नलिस्ट को देखकर पुलिस ने आनन-फानन में वृद्ध को पेड़ से उतार लिया। बाद में मामले की सूचना एसपी सुरेंद्र कुमार तक पहुंची तो उन्होंने थानेदार को तत्काल निलंबित कर दिया।

वृद्ध को पेड़ से लटकाकर यातना देने के संबंध में जब थाना प्रभारी राजेंद्र कविया से पूछा गया तो उन्होंने कहा-चोरों से सख्ती तो करनी पड़ती है, लेकिन पेड़ पर लटकाकर यातना देने की जानकारी मेरे पास नहीं है। मैं बाहर हूं। हालांकि, थाना प्रभारी इस पूरे प्रकरण के दौरान वहीं मौजूद थे और वृद्ध की रस्सी बार-बार खींच रहे थे। फोटो में भी वे पेड़ के बिल्कुल बगल में पहले नंबर पर खड़े दिखाई दे रहे हैं।

सैंपऊ की एक मोटर पार्ट्स की दुकान से 27 मार्च की रात को करीब डेढ़ लाख रुपए का सामान चोरी हो गया था। इस मामले में पुलिस करीब दर्जनभर लोगों को पूछताछ के लिए पकड़ कर लाई। पुलिसवालों ने इनमें से 75 वर्षीय जयदेव तथा एक अन्य व्यक्ति को हिरासत में रखा और बाकी को छोड़ दिया।

पुलिस का कहना है कि चोर सामान के साथ एक मोबाइल भी ले गए थे। इस मोबाइल के आईईएमआई नंबर से पुलिस जयदेव तक पहुंची थी। पुलिस ने जयदेव को बावरिया गिरोह का बताया है।
(चित्र समाचार: भास्कर से साभार)

Friday, May 21, 2010

पुलिस अधीक्षक ने छेड़खानी कर रहे युवकों को रोका तो उन पर गोली चला दी गई, अंगरक्षक मारा गया

अमृतसर के लारेंस रोड स्थित एक रेस्त्रां में लड़कियों के साथ छेड़खानी कर रहे दो बदमाशों ने रोकने पर तरनतारन के एसपी (डी) मलविंदर सिंह पर गोली चला दी, जिसमें उनका एक अंगरक्षक मारा गया। दूसरे अंगरक्षक ने सतर्कता बरतते हुए एक बदमाश को घायल कर दबोच लिया। दूसरा बदमाश भागने में कामयाब हो गया। घायल बदमाश की पहचान मनमिंदर उर्फ सोनू निवासी उत्तराखंड के शहीद उधम सिंह नगर के रूप में की गई है।

मनमिंदर ने पूछताछ में बताया कि फरार बदमाश रनदीप सिंह उर्फ विजय टोपी अंतरराज्यीय वाहन चोर गिरोह का सरगना है। रनदीप पर पंजाब में दो दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनकी गाड़ी से जम्मू-कश्मीर की दो नंबर प्लेट और सोने के जेवर बरामद हुए हैं।

पुलिस अधीक्षक मलविंदर सिंह ने बताया कि 19 मई को उनकी पत्नी का जन्मदिन था। वह अपनी पत्नी और बेटी के साथ शाम 4.15 बजे लारेंस रोड स्थित एक रेस्त्रां में गए थे। वहां खाना खा रही युवतियों के साथ दो युवकों को छेड़छाड़ करते देख उन्होंने रोकने की कोशिश की। रोकने पर बदमाशों ने गाली—गलौच शुरू कर दिया। एसपी ने जब उनमें से एक को थप्पड़ मारा तो उसने पिस्तौल से गोली चला दी। गड़बड़ी देख एसपी के गनमैन रेस्त्रां के अंदर आए तो बदमाश वहां से भागने लगे। उन्होंने पीछा कर रहे गनमैन पर गोलियां चलाईं जिससे गनमैन बलविंदर सिंह की मौके पर ही मौत हो गई। इसी बीच दूसरे गनमैन ने सतर्कता बरतते हुए गोली मार कर युवकों की गाड़ी के टायर पंक्चर कर दिए और एक बदमाश को घायल कर दिया।

इस दौरान गोलियां चलाते हुए दूसरा बदमाश मौके से 50 मीटर दूर एक कोठी में छिप गया। पुलिस कंट्रोल रूम के जवानों के पहुंचने पर कोठी की तलाशी ली गई, लेकिन तब तक वह वहां से भाग चुका था।

Monday, May 10, 2010

चित्तूर की भार्गवी ने एक अनोखे कंप्यूटर के विकास में सफलता हासिल की

अपने पति के डेस्कटॉप कंप्यूटर में लगे अनगिनत तारों के कारण घर को ठीक से साफ न कर पाने से परेशान आंध्रप्रदेश में चित्तूर की भार्गवी ने एक अनोखे कंप्यूटर के विकास में सफलता हासिल की है। भार्गवी ने एक ऐसे सिंगल यूनिट पर्सनल कंप्यूटर का निर्माण किया है, जिसमें सामान्य पीसी के सारे गुण मौजूद हैं। लेकिन तारों की संख्या घटकर केवल एक रह गई है।

दिलचस्प यह है कि भार्गवी कोई कंप्यूटर इंजीनियर नहीं हैं। उन्होंने केवल 12वीं तक की पढ़ाई की है, और वह भी तेलुगु माध्यम में। भार्गवी के इस कंप्यूटर को कैबटॉप (कैबिनेट टॉप) कहा जा रहा है। यानी सामान्य पीसी का ही बदला हुआ एक रूप है। इसके सारे कल-पुर्जे सामान्य पीसी के ही हैं, लेकिन इनको एक साथ एक खास तरीके के बनाए हुए अकेले कैबिनेट में फिट किया गया है।

भार्गवी ने बताया कि शुरू में उनके पति और परिवार वालों को उनके विचार पर काफी हैरानी हुई। लेकिन जब उन्हें लगा कि इस विचार में दम है तो उन्होंने भार्गवी की काफी मदद की। एक साधारण कंप्यूटर की तरह ही कैबटॉप में कोर टू डुओ का प्रोसेसर, 2 जीबी रैम और 320 जीबी हार्ड डिस्क लगा है। इसे एक टीवी के तौर पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है और सिस्टम को चालू किए बिना ही इस पर फोटोग्राफ भी देखे जा सकते हैं।

कैबटॉप के लिए तकनीकी सपोर्ट देने वाले भार्गवी के पति रंगा रेड्डी बताते हैं कि यह पूरा सिस्टम रिमोट कंट्रोल से भी चलाया जा सकता है और इसमें एक बिल्ट इन मल्टी मीडिया सिस्टम, टीवी तकनीक, स्पीकर और ऑटोमेटिक लॉक सिस्टम भी है। कैबटॉप बिजली की भी कम खपत करता और गर्म भी कम होता है। सबसे बड़ी बात है कि यह लैपटॉप की तरह पोर्टेबल है, लेकिन इसे लैपटॉप की तरह बैग की जरूरत नहीं होती।

यह नया पीसी केंद्रीय विज्ञान और तकनीक विभाग की देखरेख में टेक्नोप्रेनियर प्रोमोशन प्रोग्राम के तहत बनाया गया है। आंध्र प्रदेश के आचार्य नागाजरुन विश्वविद्यालय ने इसके प्रोटोटाइप के निर्माण के लिए शुरुआती पैसे दिए थे। इसे पेटेंट कराने के लिए रजिस्टर्ड करा लिया गया है। सेंट्रल मेकैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, दुर्गापुर में हुए परीक्षणों में इसे कारगर पाया गया है। साधारण पीसी को कैबटॉप में बदलने के लिए दो हजार से सात हजार तक का खर्च आ सकता है।
(समाचारांश दैनिक भास्कर में अनुषा रवि की रिपोर्ट से साभार)

Sunday, May 2, 2010

भारत के 115 व्यक्तियों ने एक साथ मर्सिडीज कारों की बुकिंग कराई: मर्सिडीज निर्माता हैरान

महाराष्ट्र के सीएम अशोक चौहान और पूर्व सीएम विलासराव देशमुख के इलाके वाले औरंगाबाद जिले ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। यहां के करीब 115 प्रभावशाली लोगों ने सबको चौंकाते हुए एक साथ 115 मार्सिडीज बेंज कारों का ऑर्डर दिया है। भारत में एक साथ मर्सिडीज खरीदने वाले लोगों का सबसे बड़ा समूह है।


इस समूह में शुरुआत उद्योगपति, मीडियाकर्मी, निर्यातक, मकान-निर्माता, डॉक्टर्स और वकील मिलाकर 115 लोग हैं। इस 'औरंगाबाद ग्रुप' ने विलासिता वालीं कई कारें देखीं लेकिन अंत में सब मर्सिडीज़ कारें खरीदने पर सहमत हो गए।

पुणे में मर्सिडीज कारों के डीलर चंद्रबदन भंडारी ने कहा है कि इन सभी लोगों को अक्टूबर में दशहरा के पहले कारें दे दी जाएंगी। उन्होंने कहा कि यह एक साथ मर्सिडीज खरीदने वाला देश का सबसे बड़ा समूह है और हमने इन लोगों को बेहतरीन ऑफर भी दिया है। खरीदारों ने सात लोगों की एक टीम बनाई जिसने कंपनी से बेहतरीन डील के लिए मोलभाव भी किया।

अभी मर्सिडीज बेंज के 5 मॉडल बाजार में उपलब्ध हैं। ये हैं सी, ई, एम, एस और जीएल क्लास। इनकी कीमत 25 से 95 लाख के बीच है। मजे की बात यह है कि मर्सिडीज खरीदने वालों लोगों के समूह में पहले सिर्फ 15 लोग ही थे। लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या 115 हो गई।

अब यह अलग बात है कि औरंगाबाद महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके के पिछड़े जिलों में से एक है! यहां पानी की कमी है। औद्योगिक विकास न के बराबर है। साथ ही गरीबी तो है।

Monday, March 22, 2010

देश की सुरक्षा दांव पर लगा मोबाइल कम्पनियों ने फर्जी नाम और पतों पर पांच करोड़ मोबाइल सिम जारी कर दिए

संचार क्रांति के नाम पर पैसा बटोरने में जुटीं सरकारी और गैर सरकारी मोबाइल कम्पनियों ने देश की सुरक्षा को भी दांव पर लगा दिया है। पैसा कमाने की होड़ तथा गला काट प्रतिस्पर्धा ने सारे नियम और कानून को ताक पर रख कर मोबाइल कम्पनियों ने देशभर में फर्जी नाम और पतों पर पांच करोड़ मोबाइल सिम जारी कर दिए हैं। फर्जी सिमकार्डो के दुरुपयोग पर दूर संचार नियामक आयोग (ट्राई) तब हरकत में आया जब इन सिमकार्डो का आतंकवादी गतिविधियों में प्रयोग होने की शिकायतें जोर पकड़ने लगीं।

दूर संचार मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक फर्जी नाम और पते से सिमकार्ड बांटने वाली कम्पनी

  • एमटीएनएल पर 147.2 लाख,
  • बीएसएनएल 1388.53 लाख,
  • एयरटेल पर 1851.04 लाख,
  • रिलायंस कम्यूनिकेशन लिमिटेड पर 1341.46 लाख,
  • रिलायंस टेलीकम्यूनिकेशन लिमिटेड पर 63.03 लाख,
  • आइडिया पर 419.64 लाख,
  • डिसनेट पर 289.4 लाख,
  • वोडाफोन पर 909.15 लाख,
  • स्पाइस पर 78.31 लाख,
  • टाटा पर 518.२७ लाख,
  • एचएफसीएल पर 7.35 लाख,
  • लूप मोबाइल इंडिया लिमिटेड पर 38.43 लाख
  • सिस्टेमा श्याम टेलीसर्विसेज लिमिटेड पर 8.61 लाख
समेत कुल 7060.42 लाख रुपए का जुर्माना ठोंका है।

दूर संचार मंत्रालय के आडिट रिपोर्ट के अनुसार यह पता चला था कि देश के 25 करोड़ मोबाइल धारकों में 20 प्रतिशत यानि पांच करोड़ मोबाइल सिम फर्जी पतों पर जारी कर दिए गए। ट्राई ने मोबाइल कम्पनियों को बकायदा यह निर्देश जारी कर रखा था कि ग्राहकों को तभी कनेक्शन उपलब्ध कराया जाय जब उनके नाम और पतों का सत्यापन हो जाय। उसने जांच में फर्जी पाए गए प्रति कनेक्शन पर एक हजार रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक के जुर्माने की व्यवस्था की थी। दूरसंचार मंत्रालय व ट्राई की लापरवाही की ही वजह से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कम्पनियों ने पैसे कमाने की होड़ में देश की सुरक्षा को भी दांव पर लगा दिया।

डेली न्यूज़ में श्रीप्रकाश तिवारी की रिपोर्ट है कि लखनऊ निवासी एसपी मिश्र ने फर्जी सिमकार्डो का दुरुपयोग आतंकवादी गतिविधियों व अन्य कारणों से प्रयोग में लाने के मद्देनजर ही सूचना के कानून के तहत दूर संचार मंत्रालय से मोबाइल कम्पनियों पर की जाने वाली दंडात्मक कार्रवाई समेत अन्य विन्दुओं पर जानकारी मांगी थी। उन्होंने बताया कि देशभर में तकरीबन पांच करोड़ से अधिक फर्जी कनेक्शन दूर संचार मंत्रालय की आडिट रिपोर्ट में सामने आई थी। मगर दूर संचार मंत्रालय के अधिकारी बलविन्दर सिंह ने ऐसी किसी आडिट रिपोर्ट में फर्जी कनेक्शन से साफ इंकार किया है।

ग़रीबों की सही संख्या क्या? यह तो सरकार भी नहीं जानती: 1973 के मानदंडों पर ग़रीबी तय होती है!

भारत मे ग़रीबों की सही संख्या क्या है, और ग़रीबी तय करने के मापदंड क्या हैं, इन सवालों के जवाब अगर आप भारत सरकार से चाहते हैं तो उसका जवाब है कि देश मे फ़िलहाल कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं इसका फ़िलहाल उसके पास कोई आंकड़ा मौजूद नही है। इतना ज़रूर बताया गया है कि वर्ष 2005 में 31 करोड़ 17 लाख लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रहते थे. जहां तक सवाल है यह तय करने का कि कौन ग़रीब है, ये एक पेचीदा और तकनीकी विषय है।

ये जवाब केंद्र सरकार के योजना राज्यमंत्री वी नारायणस्वामी ने प्रश्नकाल के दौरान ग़रीबी तय करने मापदंड पर हो रही बहस पर दिए थे। सरकार की तरफ से बताया गया कि ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की पहचान करने और उसके मानदंड तय करने के लिए रमेश तेंदुलकर समिति का गठन किया गया है। इस कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही केंद्र सरकार देश में ग़रीबों की नई संख्या तय कर पाएगी

हालांकि सरकार की तरफ से उन सवालों के कोई जवाब नही दिए गए जिनमे पूछा गया कि जब तक नए आंकड़े नही आ जाते, ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वालों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने की क्या व्यवस्था है। भारत में ग़रीबों की संख्या को लेकर भ्रम की स्थिति कोई नई नहीं है. पिछले दिनों सरकार की तरफ से नियुक्त अर्जुन सेनगुप्ता समिति ने कहा था कि भारत में 70 प्रतिशत लोग 20 रुपए रोज़ से भी कम कमा पाते हैं।

ग़रीबी तय करने के मापदंड भी लगातार बदलते रहे हैं पिछली तीन पंचवर्षीय योजनाओं को देखें तो वर्ष 1992 में आमदनी ग़रीबी मापने का तरीका था तो 1997 में ख़ुराक को इसका आधार बनाया गया। इसके बाद 10वीं योजना में 13 सवाल तय किए गए जिनके आधार पर घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर ग़रीबों की संख्या तय करने का फ़ैसला किया गया।

सरकार की ग़रीबी तय करने के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि एक किसी ग़रीब की बेटी स्कूल पढ़ने जाती है, सिर्फ़ इस आधार पर कैसे तय किया जा सकता है कि वो परिवार ग़रीबी के दायरे से बाहर है।

सरकार ग़रीबी मिटाने के मामले मे कितनी गंभीर है इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि फ़िलहाल सरकार 1973 के मानदंडों पर ग़रीबी तय करती है

Sunday, March 21, 2010

चलती ट्रेन से टीटी ने एक दम्पति को बाहर फ़ेंक दिया

एक लोमहर्षक घटनाक्रम में पूर्व मध्य रेलवे के मुगलसराय रेलमंडल में सासाराम-सय्यद राजा स्टेशन के बीच चलती ट्रेन से टीटी ने एक दम्पति को बाहर फ़ेंक दिया जिससे पति की मौके पर ही मौत हो गयी। पुलिस सूत्रों के अनुसार उत्तरप्रदेश के चंदौली जिला के धीना थाना क्षेत्र के शिव शंकर और उसकी पत्नी संध्या देवी ने उत्तर प्रदेश के चंदौली जाने के लिए साधारण टिकट लेकर सासाराम रेलवे स्टेशन से हावड़ा-देहरादून एक्सप्रेस पकड़ा था। दोनों साधारण डिब्बे में की बजाय आरक्षित डिब्बे में चढ़ गए।

जब टीटीई ने उन्हें पकड़ा तो आरक्षित टिकट बनाने के लिए अतिरिक्त रुपये की मांग की लेकिन दंपति ने और रुपये देने से इंकार कर दिया। इससे नाराज होकर टीटीई ने उन्हें लालपुर रेलवे गुमटी के पास चलती ट्रेन से बाहर फ़ेंक दियाश्री बारी की मौके पर ही मौत हो गयी जबकि उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गयी

दिल्ली पाकिस्तान में! कोलकाता बंगाल की खाडी में!!

सरकारी कामकाज किस तरह होते हैं, एक नमूना देखिए। पूर्वी रेलवे ने 20 मार्च को कोलकाता तथा दिल्ली के बीच चलने वाली लग्जरी गाड़ी महाराजा एक्सप्रेस के उद्घाटन समारोह के बारे में प्रमुख समाचार पत्रों में एक विज्ञापन दिया। विज्ञापन में एक नक्शे के जरिए रेलगाडी का मार्ग समझाते हुए दिल्ली को पाकिस्तान में तथा कोलकाता को बंगाल की खाडी में बताया गया। गाडी कोलकाता से नई दिल्ली जाएगी तथा इसमें गया, वाराणसी, खजुराहो, ग्वालियर के राज्य ही बदल दिए गए हैं।

विज्ञापन एजेंसी को विज्ञापन देने वाली पूर्वी रेलवे ने हालांकि इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है तथा दोष विज्ञापन तैयार करने वाली निजी एजेंसी के मत्थे मढ़ दिया है। पूर्वी रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी ने बताया कि जब यह विज्ञापन एजेंसी ने रेलवे को दिखाया था तो उसमें भारत का नक्शा ठीक था लेकिन बाद में कैसे उलट-पुलट गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि फिर भी उत्तर रेलवे इस गलती के लिए क्षमा प्रार्थी है। एडोनिक 76 विज्ञापन एजेंसी ने यह विज्ञापन बनाया था तथा भारत के नक्शे में शहरों के स्थान गलत दिखाना उनकी भारी गलती थी। इस विज्ञापन एजेंसी को काली सूची में डाल दिया गया है तथा उसे अब रेलवे का कोई काम नहीं सौंपा जाएगा।

गौरतलब है कि इस वर्ष जनवरी में महिला तथा बाल कल्याण मंत्रालय ने एक विज्ञापन छापा था जिसमें विभाग के विज्ञापन में पाकिस्तान के पूर्व वायुसेना प्रमुख तनवीर अहमद का चित्र भारत के विशिष्ट सपूतों वीरेन्द्र सहवाग, कपिल देव व अमजद अली के साथ दिखाए गए थे।

Saturday, March 20, 2010

मोबाईल के सहारे, सड़क या खेतों में बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर चलेंगे

अब सड़क या खेतों में बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर दौड़ता हुआ दिखाई दे तो चौंकियेगा नहीं, तकनीकी के इस दौर में यह संभव कर दिखाया है मोगा, पंजाब के लाला लाजपत राय पॉलीटेक्निक कॉलेज अजितवाल के दो छात्रों ने। उन्होंने एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जो मोबाइल फोन के माध्यम से ट्रैक्टर को नियंत्रित करता है। मोबाइल फोन से ही ट्रैक्टर को स्टार्ट और बंद किया जा सकेगा और इसे सड़क या खेतों में दौड़ाया जा सकता है। 19 मार्च को कॉलेज परिसर में पवित्र सिंह और गुरदित्त सिंह ने तैयार किए गए उपकरण का प्रदर्शन कर सबको हैरान कर दिया।

दैनिक भास्कर में दीपक सिंगला की दिलचस्प रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रैक्टर को इन दोनों छात्रों ने मोबाइल की थ्री जी सेवा के साथ जोडा़ है। एक मोबाइल उपकरण ट्रैक्टर पर लगाया है जिसके कैमरे से ट्रैक्टर आगे की दिशा निर्धारित कर आगे बढ़ता है। ट्रैक्टर में भी गीयर और रेस, ब्रेक भी अपने आप ही लगते हैं।

मोबाइल फोन के माध्यम से ट्रैक्टर की पल-पल की स्थिति का भी पता लग सकेगा। दूसरे मोबाइल फोन से इस ट्रैक्टर को दुनिया के किसी भी स्थान पर बैठकर चलाया जा सकता है। इस प्रणाली को तैयार करने पर 95000 रुपये का खर्च आया है। दिलचस्प बात यह है कि अगर चलते हुए ट्रैक्टर के आगे कुछ दूरी तक कोई भी वस्तु आ जाती है तो वह वहीं रुक जाएगा। यह सेंसर के माध्यम से संभव हुआ है। सेंसर ट्रैक्टर के अगले हिस्से में फिट किए गए हैं।

इसे तैयार करने में तीन माह का समय लगा है। अभी 3 जी नेटर्वक सभी देश में सभी जगह उपलब्ध न होने के कारण कुछ मुश्किलें आ रही हैं लेकिन आने वाले समय में इसका लाभ कोई भी उठा सकेगा।

Tuesday, March 9, 2010

क्या इस युवती के लिए शाबासी और तालियाँ ही बहुत हैं?

खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है? शायद यह पंक्तियां कल्पना सरोज जैसी महिला के लिए ही लिखी गई हैं, जो उस बीमार कंपनी को नया जीवन देने का प्रयास कर रही हैं जिसे हाथ लगाने से बड़े-बड़े उद्योगपति भी डर रहे थे।


महाराष्ट्र के अकोला जिले में एक दलित परिवार में जन्मी कल्पना सरोज के पिता पुलिस विभाग में हवलदार थे। पांच भाई-बहनों सहित सात सदस्यों के परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुट पाना भी मुश्किल था। शिक्षा बीच में ही छुड़वाकर परिवार की परंपराओं के मुताबिक 12 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया। ससुराल मुंबई में थी। झोपड़पट्टी में छोटा सा घर और संयुक्त परिवार। गांव के खुले माहौल से आई बच्ची को यह रहन-सहन बिल्कुल रास नहीं आया और साल भर के अंदर ही विवाह टूट गया।

पिता के घर वापस जाने पर फिर से पढ़ाई शुरू हुई। साथ ही जीवनयापन की योजना के तहत सिलाई का काम भी सीखना शुरू कर दिया। लेकिन ससुराल छोड़कर आई किशोरी को कैसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ा होगा, इसका अनुमान उस त्रासद घटना से ही लगाया जा सकता है, जिसके तहत कल्पना ने एक दिन जहर की तीन शीशियां एक साथ गले के नीचे उतार ली। अस्पताल ले जाया गया। जान बच गई। लेकिन देखने आनेवाले हर शख्स की जुबान पर एक ही बात थी कि अगर मर जाती तो लोग यही कहते कि महादेव की बेटी ने कुछ गलत किया होगा, तभी जान दे दी।

दक्षिण मुंबई के बेलार्ड पियर्स स्थित कमानी चैंबर्स के अपने कार्यालय में बैठी कल्पना सरोज के कानों में लोगों के ये ताने आज भी गूंजते रहते हैं। वह कहती हैं कि किसी ने भी उस समय यह पूछने की कोशिश नहीं की कि किन तकलीफों से तंग आकर मैंने आत्महत्या की कोशिश कर डाली। कल्पना ने तभी तय कर लिया कि अब जीना है तो अपनी शर्तो पर, वह भी कुछ करके दिखाने के लिए।

लोगों से सुना था कि मुंबई में नौकरी आसानी से मिल जाती है। इसलिए पिता से मुंबई भेजने की जिद की। ससुराल तो छूट ही चुकी थी, इसलिए पिता ने मुंबई में रह रहे एक चाचा के पास रहने की व्यवस्था करवा दी। सिलाई सीख रखी थी, इसलिए दो रुपये रोज की मजदूरी पर एक होजरी के कारखाने में हेल्पर की नौकरी मिल गई । कुछ अच्छे लोगों की संगत में थोड़ी-बहुत पढ़ाई-लिखाई भी हुई, लेकिन दसवीं पास करने का मौका फिर भी नहीं मिला।

संयोग से दुबारा विवाह हुआ मुंबई के निकट कल्याण शहर में। पति स्टील की सस्ती अलमारियां एवं अन्य वस्तुएं बनाने का व्यवसाय करते थे। उनसे दो बच्चे हुए और पति के निधन से यह साथ भी छूट गया। कम पढ़ी लिखी बेसहारा औरत एवं दो छोटे बच्चे। रोजगार का कोई अनुभव नहीं। इसके बावजूद पति का व्यवसाय ही आगे बढ़ाकर जीविका चलाने की ठान ली। काम चल निकला। पति के समय से भी ज्यादा बचत भी होने लगी । कुछ पैसे जुटाकर एक ऐसी जमीन का टुकड़ा खरीद लिया, जिस पर तमाम अवैध कब्जे थे। किसी तरह कब्जे हटवाकर बैंक से ऋण लेकर एक रिहायशी इमारत बनाकर भवन निर्माण के व्यवसाय में कदम रख दिया। लाभ हुआ तो एक और इमारत बनाई । साथ ही क्षेत्र के बेरोजगार युवकों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाकर रोजगार शुरू करने में भी मदद की।

धीरे-धीरे छवि ऐसी बनती गई कि जब आजादी के दौर के एक प्रसिद्ध व्यावसायिक घराने की कंपनी कमानी टयूब्स लिमिटेड डूबने लगी और बीआईएफआर (बोर्ड फारइंडस्ट्रियल एवं फाइनेंशियल रिकंसट्रक्शन) ने इसे संभालने के लिए किसी को आगे आने का प्रस्ताव रखा तो कल्पना के पड़ोस में रहने वालेकंपनी के कुछ कर्मचारी उनके पास इस उम्मीद से जा पहुंचे कि वही इस कंपनी को संभाल सकती हैं।

बंद पड़ चुकी कमानी टयूब्स लिमिटेड। उस पर 116 करोड़ रुपयों का कर्ज120 से ज्यादा मुकदमे। 500 से ज्यादा कर्मचारियों के बकाया देय। और दो यूनियनें। इनमें से एक कर्मचारी संगठन एक बार बीआईएफआर से कंपनी की कमान संभालकर असफल भी हो चुका था। दूसरी ओर कल्पना को कंपनी चलाने का कोई अनुभव नहीं। इसके बावजूद हिम्मत बांध ली। क्योंकि सवाल खुद के लिए पैसा कमाने का नहीं, बल्कि कंपनी बंद होने से बदहाल हो रहे कर्मचारियों के भविष्य का था

10 लोगों का एक समूह बनाकर कंपनी चलाने की रूपरेखा तैयार की और बीआईएफआर के सामने हाजिर हो गई । बीआईएफआर ने वर्ष 2000 में उनके कंपनी चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। उन्हें छह साल लगे कंपनी के वित्तीय पचड़ों को सुलझाने में। ऋणदाता बैंकों से कई दौर की बातचीत करके ऋण की राशि 116 करोड़ से घटाकर 40 करोड़ तक लाने में कामयाब रहीं। कंपनी छोड़कर जानेवाले 566 कर्मचारियों को कुल 8.5 करोड़ रुपयों की एकमुश्त अदायगी की।

21 मई, 2006 को कमानी टयूब्स लिमिटेड की चेयरपर्सन का दायित्व संभालनेवाली कल्पना सरोज अब बेलार्ड पियर्स स्थित अपने जिस कार्यालय में बैठती हैं, वह अनिल अंबानी के स्वामित्ववाले रिलायंस सेंटर से चंद कदमों की दूरी पर वाडिया हाउस के ठीक सामने स्थित है। इस मार्ग का नाम ही कमानी रोड है।

कल्पना के विश्वस्त सहयोगी एवं कंपनी के प्रबंध निदेशक एमके गोरे बताते हैं कि नए प्रबंधन में आने के बाद अपने पहले उत्पादन वर्ष में ही कंपनी ने 375 से 500 करोड़ रुपयों के बीच व्यवसाय का लक्ष्य निर्धारित किया है। यदि कल्पना सरोज की यह कल्पना सफल हो सकी तो यह न सिर्फ उनके जीवन की, बल्कि बीआईएफआर के अब तक के इतिहास की भी अजूबी घटना साबित होगी।

(मूलत: जागरण में प्रकाशित ओमप्रकाश तिवारी की एक रिपोर्ट के अंश, आभार सहित)

Friday, March 5, 2010

केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय का दफ़्तर एक ड्राईवर चला रहा!!

मैं तो इसे अनूठा मामला नहीं मानता। ऐसा देश के कई हिस्सों में हो रहा होगा। बात हो रही है केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय के अमृतसर स्थित कार्यालय की जिसे विभाग का एक ड्राइवर संभाल रहा है। यह ड्राइवर 'साहिब' गाड़ी ही नहीं दफ्तर भी चला रहे हैं। 1960 में आरंभ हुए कार्यालय में इस समय न स्टाफ है और न ही पर्याप्त सुविधाएं। एक मेज व चार कुर्सियों के सहारे ही मंत्रालय का कार्यालय चल रहा है। दो गाड़िया तो हैं, लेकिन दोनों बेकार। वर्षो से इमारत का रंग रोगन तक नहीं हुआ है।


दैनिक जागरण में रमेश शुक्ला सफर की एक दिलचस्प रिपोर्ट आई है कि इस कार्यालय का एडिशनल चार्ज गगनदीप कौर के पास है, लेकिन जालंधर के साथ कई और शहरों की जिम्मेवारी होने के चलते वह अमृतसर कार्यालय में कम ही मिलती हैं। कार्यालय का दायित्व केंद्र सरकार की रोजगार, ग्रामीण विकास, बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गो के लिए नई योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाना है। लेकिन आजकल यह कार्यालय खुद परिचय का मोहताज हो गया है। आम लोगों को शायद ही पता हो कि रानी बाग के पास केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय का क्षेत्रीय कार्यालय भी है।

दैनिक जागरण के संवाददाता ने जब उक्त कार्यालय का दौरा किया तो देखा कि कार्यालय में बैठे ड्राइवर बलदेव शर्मा रजिस्टर में कुछ लिख पढ़ रहे थे। उनसे जब पूछा गया कि आफिस का स्टाफ क्या छुट्टी पर है तो वह कहने लगे, काहे का स्टाफ। यहा न तो क्लर्क हैं और न स्थायी अधिकारी। पानी पिलाने के लिए एक स्टाफ था वह भी रिटायर हो चुका है। मैं तो ड्राइवर हूं। सुबह नौ बजे कार्यालय खोलता हूं, शाम पाच बजे बंद करता हूं। हालाकि एफपीओ [फील्ड पब्लिसिटी अफसर] गगनदीप कौर हैं, लेकिन उनके पास इस कार्यालय का एडिशनल चार्ज है वह जालंधर कार्यालय भी देखती हैं। कार्यालय में लोगों के लिए पूछताछ के लिए एक फोन है, लेकिन कोई फोन आता ही नहीं।

इस बाबत गगनदीप कौर ने जागरण को बताया कि फिलहाल वह अमृतसर में ही होती हैं, जालंधर का भी चार्ज है ऐसे में एक-एक सप्ताह वह दोनों स्टेशनों को कवर करती हैं। चूंकि उनका अधिकाश काम ग्रामीण क्षेत्रों में होता है इसलिए आफिस में बैठने की फुर्सत नहीं मिलती!

Saturday, February 27, 2010

दिल्ली के बदरपुर साई बाबा मंदिर में वेश्यावृत्ति: प्रमुख एयरलाईंस की दो एयरहोस्टेस पकड़ाईं

दिल्ली पुलिस ने मंदिर में वेश्यावृत्ति कराने का एक रैकेट पकड़ा है। इस मामले में दो एयरहॉस्टेस समेत छह लड़कियों और एक कथित स्वामी को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के मुताबिक गिरफ्तार किए गए दो कथित दलालों में एक शिवमूरत द्विवेदी (39)उर्फ इच्छाधारी संत स्वामी भीमानंदजी महाराज चित्रकूटवाले ने साउथ दिल्ली के खानपुर इलाके में एक मंदिर बनवाया था। जो छह लड़कियां गिरफ्तार हुई हैं उनमें दो एयरहॉस्टेस और एक एमबीए स्टूडेंट है।

यह रैकेट पकड़ में तब आया जब 25 फरवरी को पुलिस को जानकारी मिली कि कुछ कॉलगर्ल और दलाल पीवीआर साकेत आने वाले हैं। पुलिस ने जाल बिछाया और फर्जी ग्राहक बन कर पुलिस अधिकारियों ने इनसे संपर्क किया। फर्जी सौदा हुआ और पूरी गैंग पुलिस की गिरफ्त में आ गया। दोनों एयर हॉस्टेस प्रमुख एयरलाइंस में काम करती हैं और साउथ दिल्ली के पॉश इलाकों में बड़े अपार्टमेंट्स में रहती हैं।

डीसीपी (साउथ)एच.जी.एस. धालीवाल ने बताया कि अपनी करतूतों को छिपाने के लिए द्विवेदी ने अपना नाम बदल लिया और खुद को साई बाबा का शिष्य घोषित कर दिया। उसने बदरपुर में साई बाबा मंदिर शुरू किया और मंदिर के अहाते में ही वेश्यावृत्ति का धंधा शुरू कर दिया। उसने खानपुर में भी एक मंदिर बनवाया। वह सतसंग आयोजित करता था और प्रवचन भी देता था। उसने चित्रकूट में 200 बिस्तरों वाला एक अस्पताल भी बनवाया

पुलिस के मुताबिक द्विवेदी चित्रकूट का है और 1988 में दिल्ली आया। वह पहले नेहरू प्लेस के एक 5 स्टार होटल में वाचमैन था, फिर उसने लाजपतनगर के एक मसाज पार्लर में भी काम किया। वह वेश्यावृत्ति के मामले में 1997 में और चोरी की संपत्ति रखने के मामले में 1998 में गिरफ्तार हो चुका है।


Saturday, January 9, 2010

गुंडों ने सब-इंस्पेक्टर की टाँग काट दी: 70 कारों वाले काफिले में दो मंत्री देखते रहे, मदद किसी ने नहीं की

तमिलनाडु के तिरुनलवली में बदमाशों ने एक पुलिस सब इंस्पेक्टर की बेरहमी से हत्या कर दी। बदमाशों ने न सिर्फ सब इंस्पेक्टर को बुरी तरह मारा-पीटा बल्कि उसकी एक टांग भी काट दी। हैरत की बात ये है कि दिल को दहला देने वाली ये घटना तमिलनाडु के दो मंत्रियों के सामने हुई। दोनों मंत्री पनीरसेल्वम और मोहिदीन खान तमाशबीन बने रहे और किसी ने भी उसे बचाने की कोशिश नहीं की। इन दोनों मंत्रियों के साथ करीब 70 कारों का काफिला था। उनमें से भी कोई शख्स सब इंस्पेक्टर की मदद के लिए सामने नहीं आया।


हुआ यूँ कि कुछ गुंडों ने तमिलनाडु पुलिस के एक इंस्पेक्टर आर. वेट्रीवेल (44) के पैर काट कर उसे तड़पते हुए सड़क पर छोड़ दिया। उसी सड़क से राज्य के दो मंत्री- स्वास्थ्य मंत्री एमआरके पनीरसेल्वम तथा पर्यावरण एवं खेल मंत्री थिरु टीपीएम मोहिद्दीन खान गुजर रहे थे। उनके साथ नौकरशाही का काफिला भी था। काफिला रुका। लेकिन मंत्रियों ने अपनी कार से उतरना मुनासिब नहीं माना। हाँ, वे मदद के लिए तड़पते पुलिसकर्मी को घूरते अवश्य रहे।

आखिरकार काफिले के साथ चल रहे एक कलेक्टर एम. जयरामन झिझकते हुए करीब आठ मिनट बाद कार से उतरे। साथ में स्वास्थ्य सचिव भी थे। लेकिन किसी ने भी पैर कटे इंस्पेक्टर को तत्काल अस्पताल पहुँचाने की जहमत नहीं उठाई। फिर जयरामन ने ही एम्बुलेंस के लिए फोन किया, जो समय पर नहीं आई। करीब 20 मिनट बाद काफिले की एक कार में उसे लाया गया। फिर भी मंत्रीजी का दिल नहीं पिघला और उन्होंने अपनी कार नहीं छोड़ी। अंततः तड़पते पुलिसकर्मी की पुकार मौत ने ही सुनी और अस्पताल ले जाने के रास्ते में ही वह चल बसा।

चश्मदीदों के मुताबिक अगर वक्त पर मदद मिल जाती और सब इंस्पेक्टर को अस्पताल पहुंचा दिया जाता तो उसकी जान बच सकती थी। मारे गए सब इंस्पेक्टर का नाम आर वेत्रिवेल था। बताया जा रहा है बदमाशों का ये गैंग किसी और पुलिसवाले को मारने आया था लेकिन उसका शिकार बन गए सब इंस्पेक्टर आर वेत्रिवेल। इस घटना से पूरे तमिलनाडु में सनसनी फैल गई है।

सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा किया जा रहा है कि दो मंत्री मौके पर मौजूद थे। पूरा प्रशासनिक अमला मौके पर मौजूद था लेकिन कोई तड़प रहे एसआई के पास नहीं गया। सब उसे दूर से देखते रहे और एंबुलेंस के आने का इंतजार करते रहे। नतीजा यह हुआ कि ज्यादा खून बह जाने से उनकी मौत हो गई

देखिए