भारत की तलाश

 

Monday, March 22, 2010

ग़रीबों की सही संख्या क्या? यह तो सरकार भी नहीं जानती: 1973 के मानदंडों पर ग़रीबी तय होती है!

भारत मे ग़रीबों की सही संख्या क्या है, और ग़रीबी तय करने के मापदंड क्या हैं, इन सवालों के जवाब अगर आप भारत सरकार से चाहते हैं तो उसका जवाब है कि देश मे फ़िलहाल कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं इसका फ़िलहाल उसके पास कोई आंकड़ा मौजूद नही है। इतना ज़रूर बताया गया है कि वर्ष 2005 में 31 करोड़ 17 लाख लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रहते थे. जहां तक सवाल है यह तय करने का कि कौन ग़रीब है, ये एक पेचीदा और तकनीकी विषय है।

ये जवाब केंद्र सरकार के योजना राज्यमंत्री वी नारायणस्वामी ने प्रश्नकाल के दौरान ग़रीबी तय करने मापदंड पर हो रही बहस पर दिए थे। सरकार की तरफ से बताया गया कि ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की पहचान करने और उसके मानदंड तय करने के लिए रमेश तेंदुलकर समिति का गठन किया गया है। इस कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही केंद्र सरकार देश में ग़रीबों की नई संख्या तय कर पाएगी

हालांकि सरकार की तरफ से उन सवालों के कोई जवाब नही दिए गए जिनमे पूछा गया कि जब तक नए आंकड़े नही आ जाते, ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वालों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने की क्या व्यवस्था है। भारत में ग़रीबों की संख्या को लेकर भ्रम की स्थिति कोई नई नहीं है. पिछले दिनों सरकार की तरफ से नियुक्त अर्जुन सेनगुप्ता समिति ने कहा था कि भारत में 70 प्रतिशत लोग 20 रुपए रोज़ से भी कम कमा पाते हैं।

ग़रीबी तय करने के मापदंड भी लगातार बदलते रहे हैं पिछली तीन पंचवर्षीय योजनाओं को देखें तो वर्ष 1992 में आमदनी ग़रीबी मापने का तरीका था तो 1997 में ख़ुराक को इसका आधार बनाया गया। इसके बाद 10वीं योजना में 13 सवाल तय किए गए जिनके आधार पर घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर ग़रीबों की संख्या तय करने का फ़ैसला किया गया।

सरकार की ग़रीबी तय करने के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि एक किसी ग़रीब की बेटी स्कूल पढ़ने जाती है, सिर्फ़ इस आधार पर कैसे तय किया जा सकता है कि वो परिवार ग़रीबी के दायरे से बाहर है।

सरकार ग़रीबी मिटाने के मामले मे कितनी गंभीर है इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि फ़िलहाल सरकार 1973 के मानदंडों पर ग़रीबी तय करती है

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