सिर्फ 72 घंटे के लिए गए एक अधिकारी ने 18 लोगों को नौकरी दे दी और 18 लोगों का निलम्बन समाप्त कर दिया। अपने इस निर्णय को यह अफसर यह कहकर सही ठहरा रहे हैं कि उन्होंने जो कुछ किया न्याय संगत किया। इसमें गलत कुछ भी नहीं है। लेकिन अभ्यर्थियों का आरोप है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है। नियुक्तियां इतनी हड़बड़ी में की गईं कि जाति और शिक्षा प्रमाण पत्रों का सत्यापन तक नहीं हो सका। अब कुछ अभ्यर्थी इधर-उधर भाग रहे हैं और उनकी सुनवाई भी नहीं हो रही है।
हिन्दुस्तान टाइम्स की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तरप्रदेश महिला कल्याण, बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में निदेशक पद पर बीते चार मार्च को आवास विभाग के विशेष सचिव राम बहादुर का तबादला किया गया। उन्होंने पांच मार्च से काम शुरू किया। छह मार्च को शिवरात्रि की छुट्टी पड़ गई और सात मार्च को उनका तबादला लखनऊ विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष पद पर हो गया। लेकिन रामबहादुर इन दोनों पदों पर एक साथ 13 मार्च तक काम करते रहे। ऐसी परम्परा है कि तबादला होने के बाद अधिकारी बड़े निर्णय नहीं लेते। लेकिन इस विभाग में नए अफसर के आने का इंतजार नहीं किया गया।
विभाग में विभिन्न पदों पर बैकलॉग की भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी। कार्मिक नियमावली के मुताबिक प्रमाणपत्रों के बिना सत्यापन कराए नियुक्ति नहीं की जा सकती। लेकिन न तो अभ्यर्थियों की जाति प्रमाणपत्रों की जांच पड़ताल कराई गई और न ही उनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों का सत्यापन कराया गया। प्रमाणपत्रों की जांच के निर्णय को नजरंदाज करते हुए विभिन्न पदों पर 18 कर्मचारियों की नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए गए। इसी दौरान 18 निलम्बित कर्मचारियों को बहाल करने के आदेश भी जारी किए गए। इनमें किसी पर पुष्टाहार बेचने का आरोप था तो किसी को रिश्वत लेते पकड़ा गया था। कुछ को जिलाधिकारी स्तर पर निलम्बित किया गया था।
इन कर्मचारियों को विभाग ने आरोप पत्र जारी किया और पर्याप्त उत्तर न मिल पाने के कारण मामले विचाराधीन थे। लेकिन रामबहादुर ने निलम्बित कर्मचारियों को बहाल कर दिया। दलील थी कि किसी भी कर्मचारी को लम्बे समय तक निलम्बित नहीं रखा जा सकता, या तो कर्मचारी को बहाल किया जाए अथवा उसे सेवा मुक्त किया जाए।
भारत की तलाश
Monday, March 31, 2008
७२ घंटे: ३६ कर्मचारी
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