भारत की तलाश

 

Wednesday, March 26, 2008

जापान भी कूदा, इस देश की दीवानगी में

57 साल के अबि हीरोयुकी को पिछले साल नवंबर में उनकी कंपनी निकॉन के शीर्ष अधिकारियों ने आदेश दिया कि तुरंत भारत जाओ। पता लगाकर आओ कि आखिर वहां क्रिकेट का कितना बड़ा रोल है! कंपनी के कारपोरेट कम्यूनिकेशंस डिपार्टमेंट का यह अहम अधिकारी कुछ दिन बाद टोक्यो से दिल्ली में था। भारत पहुंच पाकिस्तान और भारत के बीच सीरीज का बुखार देखकर हीरायुकी चकित रह गए। चार महीने बाद कंपनी ने बोर्ड के साथ करोड़ों का करार किया। अब वह भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीन मैचों की सीरीज की सहायक प्रायोजक कंपनी है।

यह बात अलग है कि जापान में इस कंपनी के किसी भी अधिकारी को क्रिकेट का 'क-ख-ग' भी नहीं मालूम। लेकिन उसने तुरंत ही करोड़ों रुपये दांव पर लगाने का फैसला कर लिया। चेन्नई में कंपनी की पूरी टीम मौजूद है जो भारत में क्रिकेट के जुनून का अध्ययन कर रही है। कंपनी की इस रुचि से साफ जाहिर है कि विश्व भर के उद्योग समूहों की निगाहें भारतीय क्रिकेट पर लगी हैं और आने वाले दिनों में अरबों रुपये ऐसे देशों से आएंगे जहां इस खेल का कोई अस्तित्व नहीं है।

अमर उजाला ने समाचार दिया है कि कम्पनी जानना चाहती थी - क्या क्रिकेट के बिना भारत में कारोबार करना संभव होगा? पर उन्होंने जवाब दिया, नहीं। बल्कि इस बोल की मदद से कंपनी को पैर जमाने में अधिक देर नहीं लगेगी। हीरोयुकी के अनुसार उन्होंने पहली बार जब क्रिकेट मैच के दौरान एक संवाददाता सम्मेलन देखा तो वे हैरान रह गए थे। करीब साठ कैमरे और तीन सौ पत्रकार। उन्होंने तुरंत अपने बॉस को फोन मिलाया और कहा कि क्रिकेट के बिना शायद यहां काम करना मुश्किल हो। कंपनी ने तुरंत ही जापान की सबसे बड़ी कंपनी डेंस्तू इंक के साथ करार किया।

डेंस्तू ने वर्ल्ड स्पोर्ट्स के माध्यम से भारतीय बोर्ड से संपर्क किया और इस तरह कंपनी क्रिकेट का प्रयोजन करने वाली पहली जापानी कंपनी बन गई। भारतीय जमीं पर बतौर सहायक प्रायोजक कंपनी का चेन्नई में पहला मैच होगा। उन्होंने स्वीकार किया कि बेशक जापान में कंपनी के किसी भी अधिकारी को इसके बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन फिलहाल उन्हें इसे सीखने का आदेश दिया गया है। बोर्ड ने हीरोयुकी और उनकी टीम को विशेष पास जारी किए हैं।

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