भारत की तलाश

 

Sunday, June 1, 2008

सात वर्ष की शीलू चलाती है सिलाई सेंटर

कहते हैं कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती है। तभी तो मिर्जापुर जिले की शीलू मिश्रा (उम्र 7 वर्ष) न सिर्फ अपने से पांच गुनी बड़ी लड़कियों को सिलाई सिखाती है, बल्कि अपनी बीमार मां की आर्थिक रूप से मदद भी कर रही है। शीलू मिश्रा की यह प्रतिभा पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है।

नाम शीलू मिश्रा, उम्र सात वर्ष, पता मिर्जापुर जिले के अनंत राम पट्टी गांव, क्लास वन। लेकिन प्रतिभा ऐसी कि हर कोई दांतों तले ऊंगलियां दबा ले। जी हां, शीलू मिश्रा जो कि न तो अपने हाथ से अभी खाना खा पाती है और न ही खुद से तैयार होकर स्कूल जाती है, लेकिन कपड़े पर कैंची इस तरह चलाती है जैसे बड़ा टेलर मास्टर। यही नहीं अपनी मां की बीमारी के बाद उसने न सिर्फ उसका सिलाई सेंटर संभाला, बल्कि पूरे घर का खर्च भी अपने हुनर से निकालती है। सात वर्ष की शीलू यह सब कुछ अपनी मां से सीखकर पिछले एक वर्ष से कर रही है।

शीलू की मां आशा मिश्रा अपने घर के खर्च के लिए यह सिलाई सेंटर पिछले पांच साल से चला रही थीं। इसमें अनंत राम पट्टी गांव की महिलाओं को वह सिलाई, कढ़ाई सिखाती थीं। लेकिन अचानक आई बीमारी ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया। घर की गिरती माली हालत ने शीलू मिश्रा के अंदर हौसला भर और उसने अपनी मां के कामों में हाथ बटाने का निश्चय किया और आज पूरा सिलाई सेंटर शीलू न सिर्फ चलाती है बल्कि इससे कमाए पैसे से घर का खर्च भी चलाती है। शीलू के सिलाई सेंटर में एडमिशन फीस 65 रुपये है तथा 50 रुपये महीने की फीस देनी पड़ती है। शीलू की मां बैठे-बैठे दिशा निर्देश देती है और शीलू सिलाई सेंटर चलाती है। शीलू की मां आशा मिश्रा बताती हैं कि जब हमें अपनी बीमारी का पता चला तब हमने सोचा कि अब हमारे घर का खर्चा कैसे चलेगा, लेकिन शीलू ने सब संभाल लिया।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस के अनुसार शीलू के इस सिलाई सेंटर में वर्तमान समय में कुल 24 लड़कियां हैं जिनकी उम्र 18 से लेकर 42 साल तक की है। शीलू हाथ में कैंची और इंच टेप लेकर मास्टर की तरह घूम-घूम कर सबको सिखाती है। बड़ी लड़कियों को भी इस छोटी सी लड़की से सीखने में कोई गुरेज नहीं होता है। गांव की ही एक लड़की सुमन पाण्डेय जो यहां सिलाई सीखने आती है, कहती है कि जब हमने सुना की सात साल की लड़की सिलाई सिखाती है, तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन जब यहां आए तब शीलू के रूप में मुझे एक अच्छी टीचर मिली। शीलू से सिलाई सीख चुकी रेखा यादव कहती हैं कि गुण सीखने के लिए उम्र नहीं देखनी चाहिए, शीलू से सीखने में मजा भी आता है।

बेटी के इस हुनर को देखकर उसके पिता राम जी मिश्रा फूले नहीं समा रहे हैं, क्योंकि चार बेटी और एक बेटा वाले परिवार का खर्च अब शीलू के इस हुनर की वजह से आसानी से चल रहा है। मिश्रा जी बड़े गर्व से कहते हैं कि शीलू बेटी नहीं हमारा बेटा है। अपने पांचों भाई-बहनों में सबसे छोटी शीलू अपने सिलाई सेंटर की जिम्मेदारी पिछले एक साल से संभाले हुए है। आज वह न सिर्फ सब कुछ सिल लेती है, बल्कि गांव की लड़कियों को भी सिखा भी रही है। शीलू की इस प्रतिभा और हौसले को देखकर गांव की अन्य लड़कियां भी काफी उत्साहित हैं।

1 comment:

Udan Tashtari said...

शीलू को सलाम.