भारत की तलाश

 

Sunday, June 29, 2008

१ अरब की रिश्वत, तय बज़ट से अधिक

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के रहन-सहन के स्तर को सुधारने के लिए सरकार जितना बजट तय करती है, उससे कहीं अधिक, ये गरीब उन सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए रिश्वत के रूप में खर्च कर देते हैं। भारत में भ्रष्टाचार के स्तर पर अध्ययन करने वाली एक संस्था द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों की मानी जाए तो, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों ने गत एक वर्ष में सरकारी सेवा प्रदान करने वाले विभागों को 900 करोड़ रूपए सिर्फ रिश्वत के रूप में दे दिए। मजे की बात तो यह है कि गरीबों ने गरीबी का प्रमाण लेने के लिए ही बाबुओं को करोड़ों रूपए का चाय-पान करा दिया।

स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा भारत को भ्रष्टतम देशों की सूची में दो पायदान आगे बढ़ने की खबर जारी करने के दूसरे ही दिन संस्था की भारतीय शाखा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने अपने चौंकाने वाले आंकड़ों में यह खुलासा किया है। अकेले गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों ने वर्ष 2007-08 में शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, बैंकिंग सहित तमाम सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए नौ सौ करोड़ रूपए अधिकारियों की जेब गर्म करने में खर्च कर दिए। सरकारी सेवा प्रदान करने वाले विभागों में प्रतिवर्ष की भांति पुलिस महकमा सबसे भ्रष्ट विभाग साबित हुआ है। संस्था द्वारा विभागों को आधारभूत सेवा व आवश्यकता आधारित सेवा के आधार पर बांट कर राष्ट्रीय स्तर पर किए गए अध्ययन के अनुसार गत वर्ष बीपीएल के 5.6 करोड़ लोगों का वास्ता पुलिस से पड़ा जिसमें से ढाई करोड़ लोगों को विभिन्न कामों को कराने के लिए 215 करोड़ रूपए बतौर रिश्वत खर्च करने पड़े। अध्ययन में शामिल लोगों में से 90 प्रतिशत लोगों ने चिकित्सा संबंधी कामकाज के लिए अस्पताल के कर्मचारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की है। दस लाख लोगों को चिकित्सा सेवा से इसलिए मरहूम होना पड़ा क्योंकि उनके पास कर्मचारियों को चाय पानी कराने के लिए पैसे नहीं थे। गरीबों ने भूमि रिकार्ड व पंजीकरण सेवाओं के लिए 122.4 करोड़ रूपए बतौर ‘सेवा-कर’ बाबुओं को चुकाए।

देश
में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी जम चुकी हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चाहे बिजली का कनेक्शन लेना हो या खराब मीटर ठीक कराना हो उपभोक्ताओं को विघुत विभाग के अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। विद्यालय की सुविधा प्राप्त करने के लिए गरीब परिवारों को 1.20 करोड़ रूपए की रिश्वत देनी पड़ी। राजधानी में एक सादे समारोह में उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ‘भारत में भ्रष्टाचार अध्ययन-2007’ के अनुसार देश के एक तिहाई गरीब परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बिजली एवं पानी आपूर्ति, रोजगार गारंटी योजना, जमीन रिकार्ड, पंजीकरण, वन, आवास, बैंक एवं पॉलिसी सेवा जैसे 11 सरकारी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी।

1 comment:

Rajesh R. Singh said...

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के महान आचार्य चाणक्य नें आज से लगभग ढाई हजार साल पहले लिखा था कि शासकीय कर्मी राजकोष का कितना धन हड़प जाते है, इसका पता लगाना उसी तरह कठिन है जैसे यह पता लगाना कि तालाब में मछली कितना पानी पी जाती है । आचार्य चाणक्य का यह आकलन आज भी सही है लेकिन एक सुधार के साथ । वह यह कि उनके समय में तालाब में मछलियाँ इतना ही पानी पीती होंगी कि उसके जल स्तर पर कोई असर नहीं पड़ता होगा, लेकिन अब तो आजादी के बाद हमारी प्रशासनिक एवं राजनैतिक मछलियों नें इतना पानी पी डाला है कि तालाब सूख गए है । आज के समय में केन्द्र सहित शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा, जिसे कामकाज चलाने के लिए कर्ज का सहारा न लेना पड़ रहा हो और शायद ही कोई ऐसी 'मछली' होगी जिसकी सम्पन्नता का अपना तालाब न हो ।