झारखंड में सरायकेला-खरसावन जिले के कचाई में सांपों का एक फार्म लोगों के लिए कौतूहल का सबब है। इस इको-फ्रेंडली फार्म को चलाते हैं- 78 वर्षीय एन. के. सिंह, जो मूल रूप से बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले हैं व Tata Iron and Steel Company (टिस्को) से रिटायर हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। इंजीनियर सिंह अपने गले में दर्जन भर मोबाइल फोन लटकाए रहते हैं। जहां एक आम व्यक्ति अपने मोटरसाइकिल की डिग्गी में कागजात, सब्जियां या अन्य सामान रखते हैं, सिंह अपने दो-पहिया वाहन के बक्से में कोबरा रखना पसंद करते हैं। उनका कहना है कि जब भी मैं कोई सांप देखता हूं तो उत्साह से भर उठता हूं। उसे पकड़ने में मुझे अद्भुत खुशी और संतोष हासिल होता है। उन्होंने जो 12 मोबाइल फोन कनेक्शन ले रखे हैं उस पर अलग-अलग इलाकों में रहने वाले लोगों के कॉल आते रहते हैं जो अपने घर या आसपास सांप देखकर सिंह को तुरंत इसकी सूचना देते हैं।
सिंह सांप पकड़ने के लिए महज 2 छड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। कोबरा को पकड़ने के बाद वह इसे अपने फार्म ले जाते हैं जहां उन्होंने पहले से ही 35,000 विषधर पाल रखे हैं। हालांकि सिंह यह काम धर्मार्थ नहीं करते, बल्कि इसकी पूरी कीमत वसूलते हैं। वह इन सांपों का जहर वेलौर स्थित Christian Medical College (सीएमसी) को बेचते हैं जिसके लिए उन्हें 11 लाख रुपये प्रति औंस (लगभग 30 ग्राम) की मोटी रकम मिलती है। 800 कोबरा मिल कर 30 मिलीलीटर जहर पैदा कर सकते हैं। सिंह ने जो 35,000 कोबरा पाल रखे हैं वे हर साल 30 से 32 औंस (लगभग 1 किलोग्राम ) जहर पैदा करते हैं। तो इस हिसाब से उनकी कमाई का अंदाजा आप लगा सकते हैं। वह यह काम कानूनी तौर पर कर रहे हैं। उनके पास जंगली सांपों को पकड़ने के लिए बाकायदा लाइसेंस भी है जो वन विभाग ने जारी किया है।
सिंह का दावा है कि वह कभी भी किसी के निजी मकान या प्रतिष्ठान में घुस कर सांप नहीं पकड़ते, जब तक कि वह किसी के घर में न घुस जाए। उन्होंने दावा किया है कि हाल ही में क्लोरीन गैस के रिसाव के बाद टेल्को की रेजिडेंशल कॉलोनी में 145 कोबरा पाए गए हैं। लेकिन कंपनी के अधिकारियों ने सिंह के दावे को गलत बताते हुए कहा है कि यह उनका अपने फार्म के लिए सांप पकड़ने का हथकंडा है। जो भी हो 35,000 कोबरा पालना मजाक नहीं है। सिंह ने इन सांपों की देखभाल के लिए 45 लड़कों को काम पर रखा है जिनमें से ज्यादातर उड़ीसा के रहने वाले हैं और इस काम में माहिर हैं। अगर सिंह की बात पर यकीन किया जाए तो वह इन कोबरा के खाने पर हर साल 2.5 लाख रुपये खर्च करते हैं। उनके फार्म में सिंगापुर, ब्राजील और साउथ अफ्रीका से लाए गए गोल्डन कोबरा भी हैं। दिलचस्प यह है कि सिंह को इस नायाब काम के लिए अपने परिवार का समर्थन हासिल नहीं है।
भारत की तलाश
Sunday, June 22, 2008
रिटायर्ड इंजीनियर ने पाले हैं 35,000 कोबरा
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4 comments:
कितनी भी कमाई हो-है तो दिलेरी का काम.
dilchasp jankari..
itne cobre paalna badi himmat ka kaam hai...
रोचक जानकारी।
३५००० कोबरा सुनकर ही डर लग रहा है।
कैसे रखते होंगे इतने सारे सांपों को।
मेरे मन में एक सहज कौतूहल है,
कि श्रीमान जी इनको टैग कैसे करते होंगे ?
कैसे इनकी देखभाल और खानपान की व्यवस्था होती होगी, यह आश्चर्य का विषय है ।
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