भारत की तलाश

 

Thursday, June 5, 2008

एक मानव ने अकेले ३ करोड़ १५ लाख पेड़ लगाए, ५ करोड़ की इच्छा

84 साल की उम्र में दामोदर राठौर कुछ और पेड़ लगा पाने के लिए कुछ साल अधिक जीने की ख्वाहिश रखते हैं। वह अब तक 3 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं। उनका लक्ष्य 5 करोड़ पेड़ लगाने का है। कुछ साल पहले उन्हें वृक्ष मित्र के अवॉर्ड से नवाजा गया, लेकिन इसके अलावा उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वह बस इस बात से खुश हैं कि कम से कम अब लोग उनकी बात सुनने लगे हैं और उसे मानकर पेड़ काटने से बचते हैं।

नवभारत टाइम्स में पूनम पाण्डे की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में सीमांत जिले पिथौरागढ़ से लेकर राजधानी देहरादून तक दामोदर राठौर पेड़ लगा चुके हैं। फिर चाहे वह दूर-दराज के पहाड़ हों या मैदानी। इंटर तक पढ़े दामोदर राठौर ने 1950 में ग्रामसेवक के तौर पर काम करना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों के आदेश पर वह पेड़ लगाते और उनकी देखभाल करते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पेड़ लगाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। क्योंकि लगाने के लिए जो पौधे आते हैं वे आधे सूखे होते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद सिर्फ कागजों पर ही उस ओर ध्यान दिया जाता है। सरकार की तरफ से इस मद में आए धन का पूरा दुरुपयोग हो रहा है। दामोदर कहते हैं, 'यह सब बातें मुझे बहुत परेशान करती थीं। मैंने फैसला किया कि अब अपने बूते पेड़ लगाकर दिखाऊंगा और साबित करूंगा कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ मुमकिन है।' उन्होंने ग्राम सेवक का काम छोड़ दिया।

1952 से पेड़ लगाने की यह तपस्या अब तक अनवरत जारी है। वह कुल 3 करोड़ 15 लाख 10 हजार 705 पेड़ लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में ज्यादातर पेड़ सिलिंग, उतीश और बाज के लगाए हैं। अब वह चिकित्सीय पेड़-पौधे भी लगा रहे हैं। ज्यादातर पेड़ ग्राम पंचायत की जमीन पर और कुछ व्यक्तिगत जमीन पर भी लगाए हैं। उनके अनुसार, पेड़ लगाने के लिए इजाजत लेना बड़ा पेचीदगी भरा काम हैं। पौधों के लिए उन्होंने एक नर्सरी बनाई है। बागवानी की किसी डिग्री के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मैंने प्रकृति से सीखा है। प्रकृति ही मेरी पाठशाला है। परिवार में उनकी बीबी और 17 साल की एक बेटी है। लेकिन दामोदर कहते हैं कि उनके 3 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। लगाए गए पेड़ों को वह अपने बच्चे ही मानते हैं और उसी तरह उनकी देखभाल भी करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उनकी तबीयत खराब ही रहती है, लेकिन 5 करोड़ पेड़ लगाने का जुनून उनमें नया जोश भरता है। वह डीडीहाट के पास 6900 फुट की ऊंचाई पर जंगलों के बीच कुटिया बना कर रहते हैं। घर का खर्च जुटाने के लिए उनकी पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती हैं। वह प्रार्थना भी करते हैं तो यही मांगते हैं कि उनका लक्ष्य पूरा होने से पहले भगवान उन्हें अपने पास न बुलाए।

4 comments:

Udan Tashtari said...

साधुवाद उनको एवं शुभकामनायें.

Anonymous said...

मैंने बचपन में एक यूरोपियन कहानी पढी थी 'द मैन हू प्लान्टेड ट्रीज़' (मूल कथा 'L'homme qui plantait des arbres'). लगता है उसी कहानी का वह बूढा चरवाहा भारत के पहाडों में अवतरित हो गया है.

Anonymous said...

यह प्रेरक रचना हिन्दी के पाठकों तक भी अवश्य पहुँचनी चाहिए. 7-june-2008 से 'The Man Who Planted Trees' का हिन्दी अनुवाद (धारावाहिक रूप से) मेरे ब्लॉग पर आप इसे पढ़ सकते हैं.
hindithoughts.blogspot.com/

अनुनाद सिंह said...

ऐसे मानव ही आधुनिक महामानव हैं। इनका अनुसरण ही इनकी सच्ची पूजा है।