भारत की तलाश

 

Thursday, June 12, 2008

इस बच्चे ने जो कुछ सहा है वह वयस्कों को भी सहमा सकता है।

गुरुवार, १२ जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस है। भारत में यह दिन सलीम जैसे बच्चों के लिए बेमानी है और सारे कानून कायदे लगभग बेमतलब क्योंकि यहां महज आठ साल के सलीम को सवेरे छह बजे से रात 12 बजे तक अपनी मर्जी के विरुद्ध न सिर्फ काम करना पड़ता है बल्कि वक्त-बेवक्त उस पर शारीरिक शोषण का कहर भी टूटता है।

दैनिक जागरण में आशुतोष झा की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के जरी कारखाने से मुक्त कराया गया सलीम आज सीधे खड़े होने में भी कराहता है। इस बच्चे को जब एक मनोवैज्ञानिक ने पेंसिल और सादा कागज दिया तो उसने एक नग्न व्यक्ति की तस्वीर बनाई। सलीम चुप था लेकिन इस तस्वीर ने वह सब कुछ बोल दिया जो सलीम पर बीतता रहा है। कोई साल भर पहले सलीम को बिहार के सीतामढ़ी जिले से एक मौलाना ने दिल्ली का रास्ता दिखाया था। रोज धर्म का पाठ पढ़ाने वाले इस मौलाना ने सलीम के मां बाप को बच्चे के सुनहरे भविष्य और कमाई का सपना दिखाया था। लेकिन दिल्ली आते ही मौलाना ने सलीम को जरी व्यवसाय में झोंक दिया।

दरअसल, दिल्ली में खुद मौलाना का जरी व्यवसाय है। यहां सलीम का दिन छह बजे से पहले ही शुरू हो जाता था जहां उसे 15 लोगों के लिए नाश्ता तैयार करना पड़ता था। उसके साथ उसकी उम्र के ही तीन बच्चों के लिए भी यही दिन की शुरूआत थी। कभी जलना तो कभी हाथ कटना आम बात थी। दो घंटे की आग झेलने के बाद असली काम शुरू होता था। यानी जरी और कढ़ाई का। चार घंटे लगातार काम फिर खाने के लिए आधे घंटे की छुंट्टी। फिर चार पांच घंटे काम और फिर रात का खाना तैयार कर बर्तन साफ करना ताकि सुबह नाश्ता बनाने में देर न हो।

एक सुबह सलीम की जिंदगी में रोशनी आई। पास ही रहने वाली एक औरत के अंदर की मां जागी और उसने बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं को इसकी जानकारी दी। तत्काल कार्रवाई हुई और सलीम सहित दूसरे बच्चे गुलामी से मुक्त हो गए। अब सलीम आजाद है और बचपना समझने और पहचानने की कोशिश कर रहा है

2 comments:

anuradha srivastav said...

बाल-मजदूरों के साथ निहायत ही बर्बर सलूक होता है ।जरुरत है सख्त कदम की ताकि दोबारा कोई हिम्मत ना करे ऐसे सलूक की।

Udan Tashtari said...

दुखद.