भारत की तलाश

 

Monday, May 12, 2008

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को भूली सरकार

विदेशियों के शासन के खिलाफ 1857 में शुरू हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को 150 साल खामोशी के साथ पूरे हो गए। 1857 में भड़की आजादी की पहली लड़ाई के 150 वें वर्ष की शुरूआत में तो कई कार्यक्रमों का आयोजन हुआ था साथ ही पूरे वर्ष कार्यक्रमों का सिलसिला चलने का एलान हुआ था। सरकारी स्तर पर १० मई के दिन किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन नहीं हुआ। आज जब 150 वर्ष पूरे हुए तो किसी को आजादी के उन परवानों की याद नहीं आई जिन्होंने पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को झकझोर कर रख दिया था। ब्रिटिश हुकूमत ने इसी संग्राम की दहशत में कंपनी शासन का अंत कर सम्राट का सिक्का चलाना शुरू किया था। उत्तर प्रदेश प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बहुत बड़ा केंद्र रहा था लेकिन वहां की सरकार ने भी १० मई के दिन कुछ खास नहीं किया।

उत्तर प्रदेश जो कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बहुत बड़ा केंद्र रहा था और आज के दिन अवध में इस लड़ाई का बिगुल बजा था और सबसे भयंकर संग्राम चला था। जिसकी मूक गवाह रेजीडेंसी आज भी है जहां एक हजार से अधिक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। लखनऊ ही वह शहर है जहां गली गली मोर्चे बने थे और ब्रिटिश फौजों को आलमबाग से रेजीडेंसी तक का सफर तय करने में कई दिन लग गये थे और वहां पर उन्हें पराजय हाथ लगी थी। 10 मई की तारीख स्वाधीनता संग्राम के इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तारीख है क्योंकि आज ही के दिन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से लड़ाई शुरू होनी थी। हालांकि मंगल पांडे और ईश्वरी प्रसाद ने इस तय तारीख से काफी पहले ही मार्च और अप्रैल महीने में आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था लेकिन लखनऊ योजनाबद्ध संग्राम की शुरूआत की तारीख 10 मई को ही तोपों को दागकर की गई थी।

आज हमें आजाद हुए 60 साल पूरे हो चुके हैं इतने कम समय में हम तरक्की के नये कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं लेकिन जरा सोचिए जब देश आजाद हुआ तब हमारे पास क्या था सिर्फ आजादी को छोड़कर। देश का निर्माण तो बाद में हुआ। लेकिन यदि हमें प्रगति की निरन्तरता को बनाए रखना है तो हमें अपने इतिहास को संजो कर रखना होगा ताकि हमें खुशी देने के लिए कफन आ॓ढ़ लेने वालों के प्रति हम अपने कर्तव्य को निभा सकें उन्हें नमन कर सकें।

इतिहासकार मालती मलिक का कहना है कि 10 मई की तारीख स्वाधीनता संग्राम के इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तारीख है, क्योंकि आज ही के दिन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से लड़ाई शुरू हुई थी। मंगल पांडे और ईश्वरी प्रसाद ने हालांकि 1857 के मार्च और अप्रैल महीने में ही आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था लेकिन योजनाबद्ध संग्राम की शुरुआत की तारीख 10 मई मानी जाती है। मेरठ, झांसी, लखनऊ और कानपुर इस संग्राम के बहुत बड़े केंद्र थे लेकिन आज के दिन उत्तरप्रदेश सरकार ने भी कोई खास आयोजन नहीं किया। मलिक ने कहा कि 10 मई की तारीख देश के गौरव का दिन है लेकिन इसे भुला देना शर्म की बात है। 10 मई को भड़की चिनगारी दिल्ली तक पहुंची थी और आजादी के मतवालों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे, लेकिन अंग्रेजों की कुटिल नीति और अपनों की ही दगाबाजी से यह आंदोलन सफल नहीं हो पाया।

3 comments:

Udan Tashtari said...

क्या किया जाये!!!! दुख प्रकट कर सकते हैं.

Anonymous said...

इन चिरकुतो के पास ये याद करने का समय कहा है, किसी का इतिहास एक खानदान से शुरू होता है और वही खत्म हो जाता है, कोई प्रतिमा लगाने और पार्क बनवाने मे व्यस्त है, कुछ लोगो के पास कोई इतिहास ही नही है और बाकी जो बचे उनको लाल रंग की क्रांति के सिवा कुछ दिखता ही नही है. और सबसे अंत मे जनता वो क्रिकेट के नए तमाशे मे व्यस्त है, एक सर्वे करवा लीजिये देश के बड़े (!) शहरों मे देखिये कितने प्रतिशत लोगो को याद है की १९५७ मे देश मे क्या हुआ था (तारीख की बात भूल ही जाइए)

Anonymous said...

kripya 1957 ko 1857 padhiye galati ke chhama prarthi hu.