भारत की तलाश

 

Friday, May 16, 2008

लखपति वृद्धा की मौत का इन्तजार कर रहे घरवाले

इस मां का भरा-पूरा परिवार है, बावजूद इसके उसे दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हुए हैं। जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी इस मां से बेटे-बहू और पोतों ने मुंह मोड़ लिया है। वे इसकी कोई सुध नहीं लेते, खाना देना तो दूर की बात है। पड़ोसियों की कृपा दृष्टि के सहारे वह अपने दिन काट रही है। यह हालत तब है जब यह महिला लाखों की संपत्ति की मालकिन है। थक-हार कर महिला ने पिछले महीने पुलिस को लिखित शिकायत भी दी थी लेकिन जनता की ‘हमदर्द’ पुलिस ने भी उसकी कोई सुध नहीं ली।

यह दर्दभरी व्यथा है नांगलोई स्थित जनता मार्केट के वाई ब्लॉक में रहने वाली 75 वर्षीय लीला देवी की। लाखों की संपत्ति की वारिस इस वृद्धा का एक बेटा है, जो अपनी पत्नी के साथ पास ही के एक अन्य मकान में रहता है। जबकि दो शादीशुदा पोते हैं। इनमें अचल नामक पोता अपनी पत्नी के साथ बुजुर्ग महिला के दो मंजिला मकान में रहता है, वहीं दूसरा अपने मां-बाप के साथ। वृद्धा के बेटे व पोतों का अपना बिजनेस है। 26 साल पहले वृद्धा के पति ने पचास हजार कीमत का एक प्लाट यहां खरीदा था। बाद में अपनी खून-पसीने की कमाई लगा उस प्लॉट को एक आशियाने का रूप दिया। करीब आठ माह पूर्व इनके पति प्रभु दयाल(80) का देहान्त हो गया और तब से ही इस अभागी मां का जीवन बद से बदतर होता चला गया। अब उसे यही डर सताता है कि जिस तरह उसके पति का देहान्त तड़प-तड़प कर हुआ, कहीं उसे भी वह दिन न देखना पड़ जाए।

जब ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने जब लीलादेवी से बातचीत की तो उन्होंने ‘बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रूपैया’ वाली कहावत को दोहरा कर अपना हाल बयां किया। उन्होंने बताया कि मुझे कई महीनों से सिर्फ एक वक्त का खाना दिया जा रहा है। वो भी मिला तो ठीक वरना दूध-ब्रेड ही सहारा है। पड़ोसी ही मेरा हालचाल पूछते हैं और मुझे खाना देते हैं। मेरे परिवार वाले मेरी संपत्ति को हड़पने के लिए लालयित है। विशेषकर मेरा इकलौता बेटा व बड़ा पोता। मेरे परिवार के लोग सिर्फ अब मेरी अर्थी के उठने की बाट जोह रहे हैं। यही कारण है कि आए दिन किसी न किसी बात को लेकर बेटे-बहू के साथ पोता तक ताने मारता है। बकौल लीला देवी, पोते की बहू तो ठीक है लेकिन उसकी ज्यादा चलती नहीं है। अंत में अभागी वृद्धा ने यही कहा कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। जैसा मेरे साथ व्यवहार हो रहा है, उन्हें भी यह दिन देखने को जरूर मिलेंगे।

1 comment:

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक. सच कह रही हैं वो कि ये सब भी भुगतेंगे अपनी करनी का नतीजा/