भारत की तलाश

 

Thursday, May 8, 2008

25 साल बाद भी नहीं हटी घर के आगे से दीवार

कोई जरूरी नहीं कि परदे पर दिखायी जाने वाली घटनाएँ काल्पनिक हों, वह भी समाज से ली गयी रहतीं हैं. धारावाहिक 'आफिस-आफिस' में आपने देखा होगा कि किसी भी कार्य की फाइल कई वर्षो तक इधर से उधर घूमती रहती है, लेकिन निर्णय कुछ नहीं निकल पाता। जवानी में किसी समस्या के निस्तारण की मांग करने वाला व्यक्ति सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाते-लगाते बूढ़ा हो जाता है। कुछ ऐसा ही मामला हो रहा है दिल्ली से सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य बीएन गुप्ता के साथ। श्री गुप्ता ने अपने आवास के सामने दीवार हटवाने के लिए 25 साल पहले जीडीए में प्रार्थना पत्र दिया था। उस समय उनकी उम्र 44 साल थी। लेकिन अब तक दीवार नहीं टूटी और इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते उनकी उम्र लगभग 70 साल हो चुकी है। इस दौरान दीवार तोड़ने के संबंध में वे प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं।

दैनिक जागरण में आए समाचार के अनुसार श्री गुप्ता ने राजनगर में 1/13 भूखंड रीसेल में खरीदा था। वर्ष 1983 में उन्होंने इस भूखंड पर भवन बना लिया। लेकिन भवन बनने के बाद पता चला कि उनके मकान के सामने वाली रोड जो आरडीसी को जानने वाली थी, उसे जल निगम ने बीच में रोक दिया और उनके घर के सामने दीवार खड़ी कर दी। जिससे उनके आवास की न केवल लुक खराब हो गई, बल्कि उन्हें सड़क की मिलने वाली सुविधा से भी महरूम होना पड़ा। उन्होंने इसकी शिकायत जीडीए में की। उनका कहना है कि जीडीए द्वारा तैयार ले आउट प्लान में उनके आवास के सामने 60 फिट चौड़ी सड़क थी, जो ग्रीन बेल्ट में होते हुए आरडीसी कालोनी तक होनी चाहिए। लेकिन इस बीच जल निगम ने ग्रीन बेल्ट में न केवल कालोनी बना दी, बल्कि दीवार भी खड़ी कर दी। श्री गुप्ता की शिकायत पर जीडीए के तत्कालीन अधिकारियों ने दीवार को हटाने के निर्देश दिए, लेकिन दीवार नहीं हटाई गई। इसके बाद श्री गुप्ता समय-समय पर इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री, जीडीए, जल निगम में विभिन्न माध्यमों से शिकायत करते रहे, लेकिन अब तक उनकी समस्या का निराकरण नहीं हो सका है। उनके पास विभिन्न मंत्रालयों, विभागों के आदेश की मोटी फाइल बन चुकी है। इस दौरान श्री गुप्ता के आवास के बाहर नाला और बना दिया गया, जिससे उनके आवास के आस-पास बदबू फैली रहती है। इससे श्री गुप्ता बेहद परेशान हैं। उनका कहना है कि वह उस घड़ी को पछता रहे हैं, जब उन्होंने यह भूखंड खरीदा था। उनका कहना है कि वह अपनी शिकायत प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जा चुके हैं। जीडीए के चक्कर लगाते-लगाते थक गए है लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हो सका। अब वह आखिर कहां जाएं?

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सरकार के दफ्तर काम नहीं करते इसीलिए लोग अदालत जाते हैं। वहाँ भी भीड़ है मुकदमों की। लेकिन देर सबेर फैसला तो होता है। मेरी राय में उन्हें अब भी अदालत चले जाना चाहिए।