भारत की तलाश

 

Wednesday, May 7, 2008

गंगा की गोद में जीवन बिताना चाहती है कैलिफोर्निया की शिवानी

लगता है कि आधुनिकता की चकाचौंध और भाग दौड़ की जिंदगी से पाश्चात्य देशों के लोग अब उबने लगे हैं। तभी तो वाराणसी घूमने आने वाले कई देशों के लोग न सिर्फ यहीं पर शान्ति की तलाश में जीवन गुजार रहे हैं, बल्कि कई तो साधू के भेष में गंगा और शिव की पूजा भी कर रहे हैं। वैसे वाराणसी के गंगा घाट तो हमेशा से देश ही नहीं बल्कि विदेशी लोगों के आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। लेकिन आजकल यह आकर्षण शान्ति और भक्ति की तलाश में कुछ ज्यादा ही दिख रहा है।

माथे पर लाल चंदन और शरीर पर गेरुआ वस्त्र पहने शिवानी कैलिफोर्निया से तीन साल पहले वाराणसी आई तो थी घूमने, लेकिन काशी नगरी उसे इतनी भायी कि वह अब यहीं की होकर रह गई है। शिवानी सुबह चार बजे उठती है, गंगा स्नान करती है, उसके बाद बाबा विश्वनाथ का दर्शन करके अपने शिव मंदिर में पूजा करती है। शिवानी कहती हैं कि मैं यहीं पर गंगा और शिव की पूजा करते हुए मर जाना चाहती हूं। शिवानी अपना असली नाम बताने से मना करती है। वह नहीं चाहती है कि उसे शिवानी के अलावा किसी नाम से कोई पुकारे। अस्सी घाट के किनारे का ही घर अब उसका आशियाना है जहां खर्च के लिए वह छोटा सा रेस्तरां भी चलाती है। लेकिन ध्यान हर वक्त उस शिव में लगा रहता है, जिसके लिए वो शिवानी बन चुकी हैं।

शिवानी अकेली ऐसी विदेशी नहीं है, जो इस शिव की नगरी में शान्ति की तलाश कर रही है। जर्मनी का क्रिस्टोफर जो अब केदार बन चुका है, को तो वनारस ऐसा भाया कि उसने यहां न सिर्फ संस्कृत भाषा सीखी, बल्कि हिंदू रीति रिवाज से इटली की जुली से शादी कर यहीं घर भी बसा लिया है। आज केदार धोती कुर्ता पहनता है और उसकी पत्नी साड़ी। प्रतिदिन सुबह पति पत्नी दोनों गंगा स्नान करते हैं और चंदन टीका लगाकर शिव की पूजा करते हैं। केदार (क्रिस्टोफर) संस्कृत में बताते हैं कि कश्यान मरडान मुक्ति (काशी में मरने से मुक्ति मिलती है) इसलिए मैंने काशी को चुना है। अमेरिका के योगानंद तो लोगों को अब संस्कृत में प्रवचन भी देने लगे हैं। उनका दावा है है कि काशी जैसा शहर विश्व में दूसरा नहीं है, क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि काशी शंकर के त्रिशूल पर बसी है जिसका कभी विनाश नहीं होता है, इसलिए यहां जो ऊर्जा मिलती है वहीं कहीं नहीं मिलेगी।

वाराणसी के घाटों पर गंगा की गोद से निकलने वाली धर्म और संस्कृति की धारा में गोता लगाने से हम भारतीय भले ही कतराने लगे हों, लेकिन इन विदेशियों को तो इसी में अब शांति दिखाई देने लगी है लिए वे सात समुन्दर पार से खींचे चले आते हैं।
(सौजन्य: इंडो-एशियन न्यूज सर्विस)

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