भारत की तलाश

 

Sunday, May 4, 2008

शारीरिक अपंगता, नेत्रहीनता? वो क्या होती है !?

दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा और जुनून हो, तो तमाम मुश्किलों को घुटने टेकने पड़ते हैं। भले ही यह मुश्किल शारीरिक अपंगता के रूप में ही क्यों न हो! नेत्रहीनता जैसी एक ऐसी ही मुश्किल अहमदाबाद के गगनबीर सिंह छाबड़ा की ताल पर भांगडा करती नजर आई, जब उन्होंने CAT के गले में घंटी बांध दी। गगनबीर देख नहीं सकते, इसके बावजूद 2007-08 की 'कैट' परीक्षा में उन्होंने 94 परसेंटाइल हासिल किया। उन्हें 5 आईआईएम से कॉल आईं। IIM बेंगलुरु और IIM कोलकाता ने गगन की हिम्मत को सलाम करते हुए उन्हें एडमिशन का ऑफर भी कर दिया है।

आईआईएम की डिग्री को आमतौर पर मोटी तनख्वाह की गारंटी माना जाता है, लेकिन गगन की निगाहें कहीं और हैं। अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद गगन कॉरपोरेट जगत का हिस्सा नहीं बनना चाहते, बल्कि सरकारी और अर्द्धसरकारी संस्थानों में रहकर कुछ अनुभव हासिल करना चाहते हैं। उनके लक्ष्य भी बेहद साफ हैं। वह साफ शब्दों में कहते हैं कि आज से 10 साल बाद मैं भारत का बेस्ट मानव संसाधक प्रबंधक बनना चाहता हूं।

नवभारत टाइम्स की ख़बर है कि जन्म से ही नेत्रहीनता (लगभग १५ से २० प्रतिशत की दृष्टि), Retinitis Pigmentosa की समस्या से जूझ रहे २२ वर्षीय गगनबीर का आईआईएम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। नेत्रहीनता के चलते आने वाली समस्याओं और लोगों के कमेंट्स ने गगनबीर के उत्साह को कदम-कदम पर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन अपनी मां की प्रेरणा से आईआईएम का ख्वाब संजोने वाले इस शख्स ने आखिर में अपने सभी आलोचकों को गलत साबित कर दिया। गौरतलब है कि Human Resource Management की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने टॉप रैंक हासिल की थी। कामयाबी का पूरा श्रेय मां स्वर्गीय हरिंदर कौर को देने वाले गगनबीर को किसी से कोई शिकायत नहीं है, बस एक दुख जरूर है। वह यह कि शानदार कामयाबी के इन लम्हों में काश! आज उनकी मां उनके साथ होतीं।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

गगनबीर सिंह छाबड़ा जी को हमारा अशीर्वाद ओर सलाम भी , ऎसॆ होनहार वीर पर भारत को मान होना चाहिये. ओर आप का भी धन्यवाद आप ने हमे इन से मिलाया.

Anonymous said...

khabar humne bhi padhi thi times of india mein.salaam hai bande ke jazbe aur himmat ko!!