सन 2004 की मई में वरुणा नदी में चार बच्चों को डूबने से बचाने पर 2008 में राष्ट्रपति का 'उत्तम जीवन रक्षा पदक' पाने वाली मंजुमा इकबाल पुरस्कार राशि लौटाने जा रही हैं। मंजुमा और उसके परिवार का कहना है कि बिना किसी पदक अथवा सम्मान समारोह के पुरस्कार राशि दिया जाना ''सम्मान, नहीं अपमान '' है।
उल्लेखनीय है कि उस घटना के दौरान मंजुमा को अपने बेटे शाहिद की जान से हाथ धोना पड़ा था। मंजुमा ने आईएएनएस को बताया, ''उस घटना के चार वर्ष बाद जब मुझे पता चला कि मुझे यह पुरस्कार मिलने वाला है, तो कुछ सांत्वना मिली थी। लेकिन जिस तरीके से यह पुरस्कार दिया गया, उससे मुझे बहुत दुख हुआ ।'' उन्होंने बताया कि उन्हें जिला न्यायाधीश के कार्यालय में बुलाकर 45 हजार रुपए का ड्राफ्ट पकड़ा दिया गया था।
मंजुमा के पति इकबाल के अनुसार, ''मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। अपने बच्चे की जान की कीमत पर चार अन्य बच्चों को बचाने वाली औरत की बहादुरी का इस तरीके से सम्मान किया जाना बहुत शर्मनाक है।''
मंजुमा और उनके पति के अनुसार 24 फरवरी को पुरस्कार मिलने के बाद से वह अपना विरोध दर्ज कराने के लिए जगह-जगह भटक रहे हैं।
उन्होंने बताया कि वह राष्ट्रपति को भी दो बार याचिका भी दे चुके हैं, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। अपने बेटे को याद करती हुई मंजुमा रूंधे गले से कहती हैं, ''मैं उसे न बचा पाने के कारण उससे कई बार माफी मांग चुकी हूं।''
भारत की तलाश
Wednesday, May 7, 2008
नहीं चाहिए ऐसा पुरस्कार
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1 comment:
यह कोई बहादुरी का पुरस्कार नहीं,
बल्कि नितांत खानापूर्ति होती है ।
इनाम न हो गया, ख़ैरात हो गयी ।
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