भारत की तलाश

 

Friday, October 31, 2008

राज्यसभा के सभापति की कुर्सी टूट गयी और कई घंटों तक 'जुगाड़' से चली

कुर्सी जुगाड़ से चलती है। यह तो सभी सुनते और जानते हैं। कुर्सी जितनी ही बड़ी हो, उसे चलाने के लिए जुगाड़ भी उतना ही बड़ा करना पड़ता है। ऐसा ही वाकया पिछले दिनों राज्यसभा में देखने को मिला। राज्यसभा के सभापति की कुर्सी कई घंटे तक जुगाड़ से चलती रही और मजे की बात यह कि इस जुगाड़ के बारे में क्या मंत्री और क्या संतरी, सभी को पता था।

दरअसल हुआ यह कि राज्यसभा में सभापति की कुर्सी का पेंच निकल गया और आसन पर बैठे उपसभापति गिरते-गिरते बचे। आनन-फानन में सदन की कार्यवाही रोक कुर्सी को सीधा रखने के लिए पहले जुगाड़ किया गया। बाद में जांच शुरू की गयी। राष्ट्रीय सहारा में कुणाल लिखते हैं कि आमतौर पर कुर्सी का टूटना बड़ी बात नहीं है। लेकिन संसद में उसमें भी सभापति के कुर्सी का पाया टूटना कोई छोटी बात भी नहीं है। कुर्सी का पाया टूटने के कारण उपसभापति के रहमान खान गिरते-गिरते बचे। भले ही उपसभापति ने इस घटना को हंस कर टाल दिया।

कहने को भले ही कुर्सी का पाया टूटने की बात छोटी कहें पर जिस तरह से लाखों रूपए संसद और उसके रखरखाव पर खर्च किए जाते हैं, ऐसे में निश्चित रूप से यह एक बड़ी घटना है। सभापति की कुर्सी में गड़बड़ी का पता उस समय चला जब सदन में 23 अक्टूबर को शून्यकाल के दौरान मालेगांव और मोडसा में विस्फोट की घटनाओं में कुछ हिन्दू संगठनों के कथित रूप से शामिल होने के बारे में सत्ता पक्ष और विपक्षी सदस्यों के बीच तीखी बहस हो रही थी। इसी दौरान आसन पर विराजमान उपसभापति बार-बार कुर्सी पर आगे पीछे होकर सदस्यों को शांत कर रहे थे। वे कभी खड़े होकर प्लीज-प्लीज कह रहे थे तो कभी कुर्सी पर बैठकर कुर्सी को आगे-पीछे खिसका कर सदस्यों को शांत रहने और अपनी सीट पर बैठने को कह रहे थे।

इसी दौरान रहमान को अहसास हुआ कि उनकी कुर्सी का पुर्जा या तो हिल गया है या फिर टूट चुका है। कुर्सी को बार-बार हिलते देख हंसी-मजाक के लिए मशहूर रेल मंत्री लालू प्रसाद यह कहते सुने गए कि कुर्सी को टिकाने के लिए दो ईंट क्यों नहीं लगा देते। रहमान खान को कुर्सी में खराबी के चलते सदन की कार्यवाही दस मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी। इस दौरान कुर्सी की मरम्मत नहीं हो सकी। उसी कुर्सी के ऊपर दूसरी कुर्सी रखकर कार्यवाही का संचालन किया गया।

पूरे संसद परिसर में सभी तरह के रखरखाव का जिम्मा सीपीडब्ल्यूडी का है।

Thursday, October 30, 2008

बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे आईआईटी के छात्रों को बाहर का दरवाजा देखना पड़ा

आर्थिक संकट के कारण हर जगह तबाही का मंजर देखा जा सकता है। अगर आपको लगता है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं रोजगार बाजार की उठापटक से बचे रह सकते हैं, वह भी मौजूदा आर्थिक मंदी के दौर में, तो एक बार फिर सोचिए। दुनिया भर को अपने आगोश में लेने वाले आर्थिक संकट की वजह से भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे आईआईटी के पूर्व छात्रों को बाहर का दरवाजा देखना पड़ा है। 24 साल के सिद्धार्थ अरोड़ा (बदला हुआ नाम) ऐसे ही लोगों में से एक हैं। अमेरिका की एक लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनी के साथ काम करने वाले अरोड़ा को पिछले हफ्ते नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

11 महीने पहले जब उन्हें इस नौकरी के लिए पत्र मिला था तो वह सातवें आसमान पर थे। श्रेया बिस्वास नवभारत टाइम्स में लिखतीं हैं कि आकर्षक तनख्वाह और बौद्धिक संपदा क्षेत्र में दिलचस्प जॉब-प्रोफाइल, इससे ज्यादा और वह उम्मीद भी क्या कर सकते थे। अप्रैल में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई पूरी करने वाले सिद्धार्थ आज नौकरी की तलाश में हैं। आईआईटी कैंपस से बाहर निकलने पर 7 लाख रुपए की तनख्वाह देने वाली कंपनी में नौकरी पाने वाला यह युवक आज उससे कहीं कम 4-5 लाख रुपए के वेतन पर भी काम करने को तैयार है।

वह करीब 50 कंपनियों को आवेदन भेज चुके हैं। अब उन्हें कंपनियों के जवाब का इंतजार है। बदकिस्मती यह है कि सिद्धार्थ अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं। यह कंपनी आईआईटी कानपुर, खड़गपुर, बॉम्बे और मदास से सिद्धार्थ के 13 दूसरे सहयोगियों को निकाल चुकी है। सिद्धार्थ और उनके दूसरे दुर्भाग्यशाली सहयोगियों के लिए यह घोषणा अचानक टूटी आफत जैसी थी। बर्खास्त किए गए सिद्धार्थ के एक और सहयोगी अरुण भाटिया (बदला हुआ नाम) ने कहा, 'उन्हें कुछ पेशेवर रवैया जरूर दिखाना चाहिए था और हमें एक महीने पहले जानकारी दी जानी चाहिए थी ताकि हमें दूसरी नौकरी तलाशने का वक्त मिल जाता।'

कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईटी खड़गपुर के लिए 15 छात्रों को उन कंपनियों से इनकार की चिट्ठियां मिल चुकी हैं जिन्होंने पहले जॉब ऑफर भेजे थे। श्रेया बिस्वास आगे लिखतीं हैं, आईआईटी खड़गपुर में प्लेसमेंट सेल के चेयरपर्सन प्रोफेसर बी. के. माथुर ने कहा, 'किसी भी छात्र ने ऐसा कुछ होने के बारे में अभी तक हमें कोई जानकारी नहीं दी है।' उनके अनुसार इनकार करने से जुड़ी खबरों के बाद कुछ कंपनियों ने संस्थान से संपर्क साधा और उन छात्रों को जॉब ऑफर करने की बात कही गई है जिन्हें नौकरी देने से इनकार किया गया है।

टॉप आईआईटी में प्लेसमेंट के इंचार्ज एक फैकल्टी सदस्य ने इकोनोमिक टाइम्स के सामने इस बात की पुष्टि की कि अप्रैल 2008 में पास हुए अंतिम बैच के 5 छात्रों को पिंक स्लिप थमाई गई है। सूत्रों के मुताबिक इसी बैच के तीन-चौथाई छात्रों के साथ भी ऐसा हो सकता है।

Saturday, October 25, 2008

मोबाइल कंपनियां कमाई के लालच में खिलवाड़ कर रही

इन दिनों मोबाइल उपभोक्ताओं को रोजाना कॉल ड्राप्स होने की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। इस मामले में मोबाइल कंपनियों का कहना है कि स्पेक्ट्रम कम होने की वजह से ऐसा हो रहा है। वहीं, टेलिकॉम विशेषज्ञों का कहना है कि असल में मोबाइल कंपनियां कमाई के लालच में ग्राहकों को दी जाने वाली सेवा से खिलवाड़ कर रही हैं। ऐसा कहा जाता है कि देशभर में मोबाइल ग्राहकों की संख्या 31 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है और इस समय करीब 25 फीसदी की दर से नए उपभोक्ता जुड़ रहे हैं। ऐसे में उपभोक्तायों को सेवा देने के लिए मोबाइल कंपनियों को दूरसंचार मंत्रालय से मिले स्पेक्ट्रम कम पड़ते जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप मोबाइल फोन पर सिग्नल कमजोर होने, न होने और सिग्नल पूरे होने के बावजूद कॉल ड्राप्स होने की समस्याएं बढ़ रही हैं।

स्पेक्ट्रम कम होने की बात को जानते हुए भी कमाई के लालच में रोजाना नए उपभोक्ता जोड़ने में लगी हैं। इस बात का पता कंपनियों को भी है कि मंत्रालय की ओर से जनवरी में 3-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी पूरी होने वाली है। इसके बावजूद वे ग्राहकों को अच्छी सुविधा मुहैया कराने के लिए थोड़ा इंतजार करने को तैयार नहीं है। इसके अलावा जब से एक कंपनी के मोबाइल टावरों को दूसरी कंपनी द्वारा इस्तेमाल किए जाने की छूट मिली है तब से भी समस्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इससे कंपनियां उन स्थानों पर नए टावर लगाने पर कम ध्यान दे रही हैं जहां नेटवर्क कमजोर रहते हैं। इस कारण अधिकतर मोबाइल कंपनियों के नेटवर्क में समस्या होने लगी है।
(विभिन्न माध्यमों से संकलित)

Friday, October 24, 2008

करोड़ों की जर्मन तकनीक काम नहीं कर सकी: देसी इंजीनियरों ने धेले भर में कर दिखाया

करोड़ों की जर्मन तकनीक भी जो काम नहीं कर सकी, उसे देसी इंजीनियरों ने धेले भर में कर दिखाया है। भारतीय रेलवे के डेढ़ सौ साल के इतिहास में पहली बार मल-मूत्र मुक्त स्टेशन का सपना साकार हो सकता है। देसी इंजीनियरों ने ऐसी युक्ति तैयार की है, जो खड़ी ट्रेनों में टायलेट पाइप के मुंह बंद रखेगी। ये तभी खुलेंगे, जब ट्रेन गतिमान होगी। यह यांत्रिक युक्ति बरेली के इंजीनियर एसी भारती की टीम ने तैयार की है। प्रयोग के तौर पर इसे बरेली-दिल्ली इंटरसिटी एक्सप्रेस के कुछ कोचों में लगाते हुए पूरा प्रोजेक्ट बड़ौदा हाउस को सौंप दिया गया है। शुरुआती प्रयोग सफल रहे हैं।

वैसे तो राजधानी और शताब्दी जैसी हाई-फाई ट्रेनों के जर्मन कोचों से खड़ी स्थिति में मल-मूत्र नहीं गिरने पाता है, लेकिन यहां यह कंप्यूटर तकनीक भी नाकाम हो गई है। मेंटिनेंस न होने के कारण अधिकतर कोचों के टायलेट खराब हो चुके हैं और चलती ट्रेन में भी नहीं खुलते हैं। एक तो इन्हें ठीक करना काफी खर्चीला है और चलती स्थिति में तो यह भी संभव नहीं है। ऐसे में लगातार गंधाने के कारण इनका इस्तेमाल यात्री भी नहीं कर पाते हैं। नई युक्ति शुध्द यांत्रिक नियमों पर आधारित है। इसमें टायलेट पाइप के नीचे एक प्लेट फिट कर उसके नीचे एक निश्चित भार लटका दिया जाता है। खड़ी स्थिति में यह प्लेट टायलेट पाइप को खुलने नहीं देती है मगर 40 किमी से अधिक की रफ्तार में हवा के विपरीत दबाव से यह प्लेट सरक जाती है और टायलेट पाइप खुल जाता है।

इस आसान सी लगने वाले विचार के जनक इंजीनियर एसी भारती है, जो इससे पहले पहियों के धुरे को गरम होने से बचाने की युक्ति 'हॉट बाक्स डिटेक्टर' बनाकर दिल्ली से लेकर लंदन तक में अपना नाम रोशन कर चुके हैं। जर्मन तकनीक कारगर न होने पर ही हमें सस्ती और टिकाऊ यांत्रिक युक्ति बनाने की सूझी, इंजीनियर भारती बताते हैं। नए विचार को उन्होंने अपने सहयोगी अभियंताओं पीएन भटनागर और पंकज साहू की मदद से अमली जामा पहनाया है।
(समाचार , दैनिक देशबंधु से साभार)

Wednesday, October 22, 2008

बरतन धोने-झाड़ू पोंछा करने वाली महिला, ताक़तवर बहुराष्ट्रीय कंपनी के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व कर रही

घरों में बरतन धोने और झाड़ू पोंछा करने वाली एक महिला दयामणि बरला, झारखंड में खरबपति लक्ष्मी मित्तल की कंपनी आर्सेलर मित्तल के ख़िलाफ़ चल रहे आदिवासियों के आंदोलन का नेतृत्व कर रही है। इस आंदोलन में उनकी भागीदारी और नेतृत्वकारी भूमिका को देखते हुए हाल ही में उन्हें स्वीडन में यूरोपीय सामाजिक मंच की एक कार्यशाला में आमंत्रित किया गया। इस कार्यशाला में दुनिया भर में आदिवासी समाज के अधिकारों पर बातचीत की जाएगी। इस सम्मेलन में दुनिया के अलग अलग कोनों से आ रहे तेईस वक्ताओं में दयामणि बरला शामिल हैं जो मूल निवासियों के संघर्षों के बारे में जानकारी देंगे।

बीबीसी में दयामणि बरला ने अपने संघर्षों के दौरान मेहनत मज़दूरी करते हुए कई बार रेलवे स्टेशनों पर सो कर रातें काटी हैं। मेहनत की कमाई से पैसे बचा बचाकर उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी की। इन्हीं हालात में उन्होंने एमए की परीक्षा पास की और फिर पत्रकारिता शुरू की। दयामणि झारखंड की पहली महिला पत्रकार हैं और उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। लेकिन आज भी वो राँची शहर में एक चाय की दुकान चलाती हैं और ये दुकान ही उनकी आय का प्रमुख साधन हैदयामणि कहती हैं किजनता की आवाज़ सुनने के लिए इससे बेहतर कोई जगह नहीं है.

स्वीडन में हुए सम्मेलन में उन्होंने उन चालीस गाँव के लोगों की दास्तान सुनाई जिनकी ज़मीन इस्पात कारख़ाना लगाने के लिए आर्सेलर मित्तल कंपनी को दी जा रही है। लक्ष्मी मित्तल इस इलाक़े में क़रीब नौ अरब डॉलर की लागत से दुनिया का सबसे बड़ा इस्पात कारख़ाना लगाना चाहते हैं इसका नाम ग्रीनफ़ील्ड इस्पात परियोजना है और इसके लिए बारह हज़ार एकड़ ज़मीन चाहिए। ये ज़मीन आदिवासियों से ली जानी है।

लेकिन दयामणि बरला के संगठन आदिवासी, मूलवासी अस्तित्त्व रक्षा मंच का कहना है कि इस परियोजना से भारी संख्या में लोग बेघर हो जाएँगे। आंदोलन चला रहे लोगों का ये भी कहना है कि इस परियोजना से पानी और दूसरे प्राकृ़तिक संसाधन बरबाद हो जाएँगे जिसका सीधा असर आदिवासियों पर पड़ेगा जो परंपरागत रूप से प्रकृति पर आश्रित रहते हैं। दयामणि बरला का कहना है कि “आदिवासी अपनी ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे।”

उन्होंने कहा, “हम अपनी ज़िंदगी क़ुरबान कर देंगे लेकिन अपने पुरखों की ज़मीन का एक इंच भी नहीं देंगे। मित्तल को हम अपनी धरती पर क़ब्ज़ा नहीं करने देंगे।”

धरतीमित्र नाम के संगठन से जुड़े विले वेइको हिरवेला ने कहा कि आदिवासियों के लिए ज़मीन ख़रीदने बेचने वाला माल नहीं होता। वो ख़ुद को ज़मीन का मालिक नहीं बल्कि संरक्षक मानते हैं. ये ज़मीन आने वाली पीढ़ी के लिए हिफ़ाज़त से रखी जाती है। दयामणि बरला का कहना है, “औद्योगिक घराने आदिवासी समाज के आर्थिक व्यवहार से अनजान हैं. वो नहीं जानते ही आदिवासी खेती और जंगल की उपज पर निर्भर रहते हैं” उन्होंने कहा अगर आदिवासियों को उनके प्राकृतिक स्रोतों से अलग कर दिया जाएगा तो वो जीवित नहीं बच पाएँगे।

दयामणि बरला के बारे में कुछ जानकारी 4MB की pdf में यहाँ पायी जा सकती है।

(समाचारांश, बीबीसी से साभार)

Monday, October 20, 2008

श्रद्धांजलि के लिए मौन रखे जाने के समय भी बोलते रहे संसद सदस्य

संसद के दोनों सदनों में 17 अक्तूबर को अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला जब दिवंगत सदस्यों और देश में हुई विभिन्न घटनाओं में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मौन रखा जा रहा था तब कुछ सदस्यों ने कुछ अन्य घटनाओं के शिकार लोगों का उल्लेख नहीं किये जाने के विरोध में आवाज उठायी। राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने जब विभिन्न घटनाओं में मारे गये लोगों और सदन के दिवंगत पूर्व सदस्यों के सम्मान में सदस्यों से कुछ क्षणों का मौन रखने को कहा तब माकपा ने हाल के साम्प्रदायिक दंगों में मारे गये लोगों को भी इसमें शामिल करने की मांग को लेकर विरोध करना शुरू कर दिया जिस पर विपक्षी राजग ने आपत्ति जतायी।

इस पर सभापति ने कहा कि ऐसे मौकों पर इस तरह का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए लेकिन जब विरोध जारी रहा तो उन्होंने कहा कि सभी तरह की हिंसा में मारे गये निर्दोष लोगों के प्रति सदन शोक प्रकट करता है।

लोकसभा में भी इसी तरह का अभूतपूर्व नजारा देखने को मिला जब दिवंगत सदस्यों और पूर्व सदस्यों के अलावा आतंकवादी और कुछ अन्य घटनाओं में मारे गये लोगों के सम्मान में मौन रखने के लिए सदस्यों के खड़े होने पर असम के निर्दलीय सदस्य एस के विश्वमुतियारी ने अपने राज्य में हुई हिंसा का उल्लेख नहीं किये जाने का विरोध किया। सदन में मौन रखे जाने की पूरी अवधि के दौरान वह अपनी बात कहते रहे। इस तरह की घटना सदन में संभवत: पहली बार हुई।

Sunday, October 19, 2008

एक बहादुर माँ को सलाम, जो वक्त का सामना नहीं कर सकी

व्यक्तिगत रूप में जब मैंने यह ख़बर पढ़ी तो मन भर आया या कहूं तो आंसू निकल पड़े। हुया यह कि पिछले तीन महीने से आईसीआईसीआई बैंक से एक भी लोन नहीं दिलवा पाने के कारण दो दिन तक भूखी रहने के बाद नीलम तिवारी उर्फ बीनू (35) ने फांसी लगाकर जान दी। अब इस परिवार में न तो कोई पुरुष है और न ही कोई कमाने वाला। दुनिया भर में जारी आर्थिक मंदी की राजधानी में पहली शिकार बनी मां की मौत के बाद 13 साल की बेटी नेहा अब गुमसुम है। 10 साल पहले आगरा में हुए ट्रेन हादसे में पिता को खोने के बाद अब उसकी मां नीलम भी नहीं रही। मौके से पुलिस को तीन स्यूसाइड नोट मिले थे।

बेटी नेहा को लिखे नोट में नीलम ने लिखा 'मैंने अब तक बहुत संघर्ष किया है। अब हिम्मत हार रही हूं। बेटा, आगे का सफर तुम्हें खुद तय करना होगा'।

मां को लिखे नोट में उसने माफी मांगते हुए लिखा कि 'दूर-दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा। आपकी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि कोई मदद कर सकें। मेरे पास न तो किराया देने के पैसे हैं और न खाने के। मेरे घर का सामान बेचकर मेरी बेटी की पढ़ाई का कम से कम यह साल जरूर पूरा करा देना'।

पुलिस को लिखे नोट में नीलम ने अपनी मौत का जिम्मेदार आर्थिक तंगी को बताया।

नवभारत टाइम्स में पंकज त्यागी द्वारा समाचार है कि द्वारका इलाके के सेवक पार्क में रहने वाली माया शर्मा के घर की स्थिति देखकर किसी भी संवेदनशील इंसान का दिल पिघल सकता है। घर में माया, उनकी अविवाहित बेटी और नेहा ही हैं। घर में कोई कमाने वाला इंसान नहीं है। नेहा विकासपुरी के कोलंबिया स्कूल में 9 वीं क्लास की छात्रा है। माया ने बताया कि नेहा पढ़ाई में बहुत होशियार है। आठवीं क्लास में उसके 95 फीसदी नंबर आए थे। अब वह इस स्थिति में नहीं हैं कि उसकी पढ़ाई जारी रखवा सकें। उन्हें उम्मीद है कि कोई गैर सरकारी संगठन नेहा की मदद करने आगे आएगा। नेहा ने बताया कि दो-तीन दिन से मां बहुत परेशान थी। उसने अपनी मां को फांसी पर लटके हुए देखा था। माया ने बताया कि नेहा के दिल पर उस मंजर का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। दो दिन से उसने कुछ नहीं खाया है।

नेहा की नानी, माया ने बताया कि नीलम इन दिनों खुद तंगी में होते हुए भी अपनी एकमात्र संतान नेहा की पढ़ाई जारी रखने की कोशिश में लगी हुई थी। मंदी में बैंकों से लोन दिलवा पाने में वह कामयाब नहीं हो पा रही थी। इस वजह से उसका कमीशन भी बंद हो गया था। माया शर्मा के मुताबिक लोन के कमीशन के अलावा नीलम की कोई कमाई नहीं थी। कुछ दिन तक तो वह अपनी माँ माया से रुपये लेती रही। लेकिन माँ की आर्थिक हालत खुद ही ठीक नहीं थी। उन्होंने बताया कि तीन महीने से नीलम बहुत परेशान थी। उसकी हालत पागलों जैसी हो गई थी। घर की हालत ऐसी थी कि कई बार तो नेहा को भी भूखा सोना पड़ता था।

कानपुर की रहने वाली नीलम की शादी 1994 में आगरा के रहने वाले दिलीप तिवारी से हुई थी। 1998 में आगरा में हुए ट्रेन हादसे में दिलीप की मौत हो गई। नीलम ने दूसरी शादी नहीं की और एक साल की बेटी को साथ लेकर मां और बहन के साथ दिल्ली आ गई। माया ने बताया कि उन्होंने नीलम से कई बार शादी करने के लिए कहा था, लेकिन वह तैयार नहीं होती थी। एक साल से उसने आईसीआईसीआई बैंक से लोन दिलवाने का काम शुरू किया था। लेकिन आर्थिक मंदी ने रोजी-रोटी का यह आसरा भी खत्म कर दिया।

ब्लॉग की दुनिया में हूँ, इसलिए ख़बर पढ़ते वक्त जिज्ञासा हुयी कि नारियों के ब्लॉग पता नहीं क्या प्रतिक्रिया दे रहे होंगे! लेकिन पाया कि उनकी आँख की किरकिरी तो मन्दिर और पब बने हुए हैं और एक महिला के संत होने को नमन कर रहें हैं या फिर नारियों के पहुँचने की छमाई ट्रैफिक रिपोर्ट दे रहे हैं और स्त्री के वस्त्रों के अनुपात से उसके चरित्र की पैमाईश पर बहस कर रहे। एक आशा भरी उम्मीद लेकर गया था, पर निराशा हाथ लगी।

भरे मन से सोच रहा था कि कितनी टूट चुकी होगी ये बच्ची? कैसे उसकी मदद के लिए हम आगे आएं। तभी एक अपडेट मिला कि अगर आप इस बच्ची नेहा की मदद करना चाहते हैं तो उनकी नानी से इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं: 09811544027

Saturday, October 18, 2008

महिला ने अपने साथ छेड़खानी करने वाले कामुक युवक का सिर ही काट डाला

उत्तर प्रदेश में एक महिला ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए एक दबंग किस्म के कामुक युवक का सिर क़लम कर अपने को पुलिस के हवाले कर दिया। मगर पुलिस ने इस महिला को पीड़ित मानते हुए उसे सम्मानपूर्वक घर भेज दिया क्योंकि पुलिस के अनुसार उसने आत्म रक्षा में पलटवार किया था। घटना नेपाल सीमा से सटे लखीमपुर ज़िले के इसानगर थाने की है। ग्राम हसनपुर कटौली के मजरा मक्कापुरवा में दलित राजकुमार और मनचले किस्म के जुलाहे अन्नू के घर अगल-बगल हैं। अन्नू राजकुमार की पत्नी फूलकुमारी को अक्सर छेड़ता था। मगर कमजोर वर्ग का राजकुमार उसके विरोध का साहस नहीं कर पाता।

फूलकुमारी जानवरों के लिए चारा लाने गयी थी। वह एक गन्ने के खेत में पत्ते तोड़ रही थी। तभी अन्नू वहाँ पहुँच गया और उसके साथ ज़बर्दस्ती करने लगा। बीबीसी से फोन पर बातचीत में फूलकुमारी ने कहा कि वह चारा काटने गई थी और उसने अपनी इज्ज़त और जान बचाने के लिए हमलावर पर वार किया था। महिला का कहना था, ''हमने मार दिया। हम गए थे गन्ने की पत्ती लेने। तभी वह ज़बर्दस्ती लिपट गया। हमने किसी तरह उसका बांका छीन लिया और उसी से उसकी गर्दन उड़ा दी।''

स्थानीय अख़बारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा कि फूलकुमारी खून से लथपथ अन्नू का कटा हुआ सिर लिए हसनपुर कटौली पहुँची और वहाँ अपने को पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस वाले उसे थाने ले गए और उसने पूरा मामला बयान किया। हालांकि फूलकुमारी ने इस बात से इनकार किया कि वह अन्नू का कटा हुआ सिर लेकर बाज़ार में गई। पुलिस का कहना है कि उसने अन्नू का कटा सिर धान के एक खेत से बरामद किया।

पुलिस ने फूलकुमारी की चिकित्सा जांच कराई और चौबीस घंटों की तहकीकात के बाद उसके घर वालों के हवाले कर दिया। ज़िले के पुलिस कप्तान राम भरोसे ने बीबीसी से बातचीत में कहा, वह तो पीड़ित है और उसने अपने बचाव में ऐसा किया। उसने कोई ज़ुर्म नहीं किया। पुलिस ने फूलकुमारी की रपट के आधार पर मृत युवक के ख़िलाफ़ बलात्कार, हत्या के प्रयास और उत्पीड़न का मामला दर्ज कर लिया। पुलिस का कहना है कि मृत युवक के परिवार वालों ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं कराया है। एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि मृत युवक का चाल चलन अच्छा नहीं था।
(समाचारांश, बीबीसी से साभार)

Friday, October 17, 2008

मुझे मेरी पत्नी से बचाओ

उत्तराखंड राज्य में पुरोला उत्तरकाशी विधानसभा क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी विधायक राजेश जुवाठां ने पुलिस को पत्र लिखकर उससे अपनी पत्नी से बचाने की गुहार की है। वे विधायक आवास पर पत्नी द्वारा जबर्दस्ती कब्जा कर लेने से कहीं और चले गए हैं। विधायक की पत्नी के खिलाफ स्थानीय नेहरू कॉलोनी थाने में दर्ज रिपोर्ट पर विधायक के बयान का रास्ता देख रही पुलिस, अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। जुवाठां ने पुलिस को लिखे पत्र में कहा है कि उन्हें अपनी पत्नी और ससुराल वालों से जान का खतरा है।

उनका आरोप है कि उनकी पत्नी उन्हें गत चार साल से आत्महत्या करने और उनके घरवालों को जेल भेजने की धमकी देकर उनका मानसिक उत्पीड़न कर रही है। यदि उनकी पत्नी के खिलाफ जल्दी ही कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो वह उनके साथ कोई अनहोनी भी कर सकती है।

15 अक्टूबर की शाम को, विधायक की पत्नी अपने बच्चों के साथ, देहरादून के रेस कोर्स स्थित विधायक ट्रांसिट होस्टल में विधायक के आवास का जबर्दस्ती ताला तोड़कर रहने लगी थी। जिसके खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया गया है, लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

Thursday, October 16, 2008

खेतों में काम करने के मामले में पुरुष महिलाओं से पीछे, लेकिन पैसों पर नियंत्रण ज्यादा

दैनिक जागरण के सौजन्य से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के एग्रो इकोनोमिक रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक अध्ययन पर नज़र पड़ी, जिसके मुताबिक प्रदेश में पशुपालन में महिलाओं का योगदान लगभग 86.2 प्रतिशत, फल उत्पादन में 37.2, सब्जी उत्पादन में 45.2 और अनाज उत्पादन में 51.8 प्रतिशत है। इससे साफ है कि महिलाएं खेतीबाड़ी और पशुपालन के मामले में पुरुषों से ज्यादा काम कर रही हैं। वहीं, बात निर्णय लेने की हो तो स्थिति एकदम उलट हो जाती है। फसलों के मामले में कौन से बीज बीजे जाने चाहिए, इसमें सिर्फ 11.4 प्रतिशत महिलाओं की चलती है। फसलों को कीटों व फफूंद से बचाने के लिए कौन सी दवाइयों का इस्तेमाल किया जाए, इसमें सिर्फ 5.4 प्रतिशत महिलाओं की सलाह ली जाती है। कौन सी रासायनिक खादें इस्तेमाल की जाएं, इस मामले में सिर्फ 3.7 प्रतिशत महिलाएं निर्णय लेती हैं। जमीन की खरीद-फरोख्त के मामले में सिर्फ 7.1 फीसदी महिलाओं की सलाह ली जाती है। खेती के लिए औजारों और उपकरणों की खरीद में 4.3 प्रतिशत महिलाओं की ही चलती है।

कृषि ऋण के मामलों में लिए जाने वाले 96.6 फीसदी निर्णय पुरुष ही लेते है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि और बागवानी उपज की मार्केटिंग में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 3.4 प्रतिशत है। जाहिर है कि दूध, कृषि और बागवानी उत्पादों को बेचने से आना वाला पैसा पुरुषों के नियंत्रण में रहता है। पशुपालन में महिलाओं का योगदान 86.2 प्रतिशत है, लेकिन दूध की मार्केटिंग सिर्फ 3.4 फीसदी महिलाएं करती है। अध्ययन से साफ है कि पैसों पर पुरुषों का नियंत्रण ज्यादा है, जबकि खेतों में काम करने के मामले में वह महिलाओं से पीछे है।

विश्वविद्यालय के एईआरसी के अध्ययन के मुताबिक अन्य मामलों में निर्णय लेने की बात करे तो बच्चों की पढ़ाई में 16.2, स्वास्थ्य में 12.5, गृह खर्च में 10.5, बचत में 8.5, ऋण और निवेश में 4.8, शादी और दहेज में 6.8 और गृह निर्माण या मरम्मत में मामलों में सिर्फ 11.6 महिलाएं ही निर्णय लेती हैं। महिला सशक्तिकरण से जुड़ी संस्था राज्य संसाधन केंद्र के निदेशक डा. ओम प्रकाश भूरेटा के मुताबिक नारी सशक्तिकरण तब तक संभव नहीं है, जब तक महिलाओं को धन से संबंधित निर्णय लेने के अधिकार मिलें हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में ज्यादातर काम महिलाएं करती हैं, जबकि मार्केटिंग पुरुष करते हैं।

Sunday, October 12, 2008

बॉयफ्रेंड के लिए करवा चौथ का व्रत

वक्त तेजी से बदला है। अब कई गैरशादीशुदा लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड के लिए व्रत रखती हैं। वे दिन चले गए जब केवल सुहागिनें ही करवा चौथ का व्रत रखती थीं। अब लड़कियों का कहना है कि जो मन को पसंद हो उसकी लंबी उम्र के लिए व्रत रखा जा सकता है। शादी का बंधन इसमें कहां से आड़े आता है। फरीदाबाद के प्रख्यात पंडित मुनिराज महाराज का कहना है कि शास्त्रों में किसी की भी लंबी उम्र के लिए व्रत करने का विधान है। इसके अलावा करवा चौथ कथा के आधार पर अपने मंगेतर या बॉयफ्रेंड के लिए व्रत रखा जा सकता है।

अब जमाने का रूख बदल रहा है। इसके चलते जहां वैलंटाइन डे को लेकर जवान दिलों में उत्साह रहता है, वहीं अब करवा चौथ के व्रत को लेकर भी युवा वर्ग रोमांचित है। आज की पीढ़ी की सोच बदलने के कारण ही अब लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड लिए व्रत रखने लगी हैं। सामाजिक दीवार आड़े न आए, इसके चलते ये जोड़े मोबाइल क्लिपिंग के जरिए अपने साथी का दीदार करेंगे।

दीपशिखा कौशिक नवभारत टाईम्स में लिखतीं हैं कि सैनिक कॉलोनी में रहने वाली व विमिन कॉलेज की श्वेता (बदला नाम) इस बार वह दूसरी बार अपने बॉयफ्रेंड के लिए व्रत रखेंगी। उन्होंने बताया कि वह सुबह 4 बजे सरगी खाती हैं, जिसमें नारियल, थेमियां और मीठी मट्ठी होती है और रात में चांद निकलने पर अपनी आंखें बंद करके अपने बॉयफ्रेंड का चेहरा देखकर अपना व्रत खोलती हैं। लड़कियां करवा चौथ की कथा को भी पढ़ती हैं और रात को चांद देखकर अरग देती हैं, जब आंख खोलती हैं, तो मोबाइल पर बॉयफ्रेंड की फोटो देख लेती हैं। डीयू विद्यार्थी कनिका (बदला नाम) का कहना है कि वह पहली बार व्रत लेंगी। उसके अनुसार यदि आपको कोई अच्छा लगता है, तो उसकी लंबी उम्र के लिए एक व्रत करने में क्या हर्ज है? हालांकि वह भी कहती हैं कि सामाजिक अड़चनों के चलते वह छुपकर ही व्रत रखेंगी।

Wednesday, October 8, 2008

सिख नेता का नाम टाइम की सूची में

पंजाब की प्रदूषित काली बीन नदी को साफ करने का अभियान चलाने वाले बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल को अमेरिका की टाइम पत्रिका ने "हीरोज ऑफ एन्वायरनमेंट" में जगह दी है। इनका चुनाव दुनिया भर से चुने गए उन 30 लोगों में किया गया है जो पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिकी पत्रिका ने सीचेवाल की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने एक आंदोलन छेड़ा जिसमें लोगों को सिखाया गया कि उन्हें क्यों काली बीन नदी की सफाई करनी चाहिए।

सीचेवाल ने टाइम से कहा हमने साबित कर दिया कि अगर हम एक साथ आ जाएं तो अपनी नदियों का पुराना स्वरूप बहाल करना संभव है। उन्होंने कहा यह समय है कि हम इसे बड़े पैमाने पर अंजाम दें। काली बीन होशियारपुर जिले में बहने वाली 160 किलोमीटर लंबी नदी है। छह से ज्यादा नगरों और 40 गांव के लोग इसमें अपना कूड़ा डालते रहे हैं। इससे यह एक गंदे नाले में बदल गई थी। नतीजतन आस-पास के खेतों को पानी नहीं मिल पाता था। सीचेवाल और उनके अनुयाइयों ने इसकी सफाई के लिए अभियान छेड़ा। उन्होंने इसके लिए कोष संग्रह किए।

कैबिनेट मंत्री भी भ्रष्टाचार से परेशान

आम जनता ही नहीं, केबिनेट मंत्री तक भ्रष्टाचार से परेशान हैं। ऐसा ही एक मामला सामने आया है। अपने विभाग में भ्रष्टाचार से परेशान मध्य प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री अखंड प्रताप सिंह यादव ने उपलोकायुक्त से गुहार लगाई है। मंत्री जी इस मामले में राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो के अफसरों से भी समय मांग चुके हैं। श्री सिंह मंगलवार दोपहर दो बजे लोकायुक्त कार्यालय पहुंचे। वे चुपचाप पहले लोकायुक्त कार्यालय के सचिव से मिले और फिर उपलोकायुक्त चंद्रेश भूषण के पास जा पहुंचे। वहां उन्होंने करीब बीस मिनट उपलोकायुक्त से बंद कमरे में बात की। इसके बाद बाहर निकले और मीडिया से मुखातिब हुए।

मंत्री अखंड प्रताप सिंह की सफाई भी काबिले गौर थी। 'मेरे विभाग में अन्नपूर्णा योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के राशन और खाद्यान्नों के उपार्जन में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ किस प्रकार कार्रवाई की जा सकती है, इसी के लिए सलाह लेने में उपलोकायुक्त महोदय के पास आया हूं।' एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, हां मैं केबिनेट मंत्री हूं, कार्रवाई करने में सक्षम हूं, इसी कारण सलाह लेने आया हूं। उनका कहना था कि इस मामले में उन्होंने ईओडब्ल्यू के वरिष्ठ अफसरों से भी समय मांगा है। संभंवत: वे बुधवार को ब्यूरो के अफसरों से मिल सकते हैं। इस मुलाकात में भी वे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में विचार करेंगे।
(साभार: जागरण)

Friday, October 3, 2008

कम्प्यूटर इंजीनियर और सेना के जवानों ने भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को समाप्त करने के लिए बैंक में डकैती की

नोएडा के सेक्टर-12 स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा से 10.8 लाख रुपये लूटने के आरोप में पुलिस ने सेना के दो जवानों और एक कंप्यूटर इंजीनियर को गिरफ्तार किया है। इन तीनों ने भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को समाप्त करने के लिए हथियार खरीदने के उद्देश्य से बैंक में डकैती की थी।

नोएडा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आर।के।चतुर्वेदी ने मीडिया को बताया कि मंगलवार रात को सेक्टर-24 में वाहन तलाशी के दौरान पुलिस ने मोटरसाइकिल सवारों को रुकने के लिए कहा। उन्होंने पुलिस के ऊपर फायर किया। पुलिस ने भी जवाबी फायर करके उनको पकड़ लिया। पूछताछ के दौरान तीनों ने भ्रष्ट नेताओं के सफाए और सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के अपने मंतव्य के बारे में पुलिस को बताया। गिरफ्तार तीन लोगों में विजय सिंह चौहान सेना का जवान है और अमृतसर में तैनात है। सेना का ही जवान विवेकानंद वर्मा नासिक में तैनात है और राजनारायण एक कम्प्यूटर इंजीनियर है। पुलिस ने इन लोगों के पास से 900,000 रुपये, दो पिस्तौल, 20 जिंदा कारतूस और एक मोबाइल फोन बरामद किया है।