आर्थिक संकट के कारण हर जगह तबाही का मंजर देखा जा सकता है। अगर आपको लगता है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं रोजगार बाजार की उठापटक से बचे रह सकते हैं, वह भी मौजूदा आर्थिक मंदी के दौर में, तो एक बार फिर सोचिए। दुनिया भर को अपने आगोश में लेने वाले आर्थिक संकट की वजह से भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे आईआईटी के पूर्व छात्रों को बाहर का दरवाजा देखना पड़ा है। 24 साल के सिद्धार्थ अरोड़ा (बदला हुआ नाम) ऐसे ही लोगों में से एक हैं। अमेरिका की एक लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनी के साथ काम करने वाले अरोड़ा को पिछले हफ्ते नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
11 महीने पहले जब उन्हें इस नौकरी के लिए पत्र मिला था तो वह सातवें आसमान पर थे। श्रेया बिस्वास नवभारत टाइम्स में लिखतीं हैं कि आकर्षक तनख्वाह और बौद्धिक संपदा क्षेत्र में दिलचस्प जॉब-प्रोफाइल, इससे ज्यादा और वह उम्मीद भी क्या कर सकते थे। अप्रैल में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई पूरी करने वाले सिद्धार्थ आज नौकरी की तलाश में हैं। आईआईटी कैंपस से बाहर निकलने पर 7 लाख रुपए की तनख्वाह देने वाली कंपनी में नौकरी पाने वाला यह युवक आज उससे कहीं कम 4-5 लाख रुपए के वेतन पर भी काम करने को तैयार है।
वह करीब 50 कंपनियों को आवेदन भेज चुके हैं। अब उन्हें कंपनियों के जवाब का इंतजार है। बदकिस्मती यह है कि सिद्धार्थ अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं। यह कंपनी आईआईटी कानपुर, खड़गपुर, बॉम्बे और मदास से सिद्धार्थ के 13 दूसरे सहयोगियों को निकाल चुकी है। सिद्धार्थ और उनके दूसरे दुर्भाग्यशाली सहयोगियों के लिए यह घोषणा अचानक टूटी आफत जैसी थी। बर्खास्त किए गए सिद्धार्थ के एक और सहयोगी अरुण भाटिया (बदला हुआ नाम) ने कहा, 'उन्हें कुछ पेशेवर रवैया जरूर दिखाना चाहिए था और हमें एक महीने पहले जानकारी दी जानी चाहिए थी ताकि हमें दूसरी नौकरी तलाशने का वक्त मिल जाता।'
कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईटी खड़गपुर के लिए 15 छात्रों को उन कंपनियों से इनकार की चिट्ठियां मिल चुकी हैं जिन्होंने पहले जॉब ऑफर भेजे थे। श्रेया बिस्वास आगे लिखतीं हैं, आईआईटी खड़गपुर में प्लेसमेंट सेल के चेयरपर्सन प्रोफेसर बी. के. माथुर ने कहा, 'किसी भी छात्र ने ऐसा कुछ होने के बारे में अभी तक हमें कोई जानकारी नहीं दी है।' उनके अनुसार इनकार करने से जुड़ी खबरों के बाद कुछ कंपनियों ने संस्थान से संपर्क साधा और उन छात्रों को जॉब ऑफर करने की बात कही गई है जिन्हें नौकरी देने से इनकार किया गया है।
टॉप आईआईटी में प्लेसमेंट के इंचार्ज एक फैकल्टी सदस्य ने इकोनोमिक टाइम्स के सामने इस बात की पुष्टि की कि अप्रैल 2008 में पास हुए अंतिम बैच के 5 छात्रों को पिंक स्लिप थमाई गई है। सूत्रों के मुताबिक इसी बैच के तीन-चौथाई छात्रों के साथ भी ऐसा हो सकता है।
भारत की तलाश
Thursday, October 30, 2008
बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर रहे आईआईटी के छात्रों को बाहर का दरवाजा देखना पड़ा
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4 comments:
बाजार छप्पर फाड़ कर देता है तो अंतड़ियाँ उधेड़ भी लेता है।
मंदी में ये तो होना ही था।
बाजार के जो हाल हैं-रोज सुनेंगे ऐसी खबरें.
अजी इन नबाबो के कुछ बचाया भी है, इन बेचारो का तो लेंटर ही फ़ाड दिया ( लेंटर सीमेंट की छत)
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