भारत की तलाश

 

Friday, September 5, 2008

बूढ़ी माँ को जंगल में छोड़ दिया बेटे ने, पहचानने से भी किया इंकार

अपने समय में रेडियो स्टेशन पर गीत गाने वाली यह 75 वर्षीय वृद्धा अब अपने बेटों की याद में रोती रहती हैं। अमेरिका और दुबई की सैर कर चुकी यह महिला आज दो जून की रोटी के लिए दूसरों की मोहताज़ हो गई है। बुढ़ापे ने भले ही उनकी आंखों की रोशनी और कानों के सुनने की ताकत कम कर दी हो, लेकिन उनकी आंखें सिर्फ अपने बेटों का ही इंतज़ार करती रहती हैं। अपने पति को बरसों पहले खो चुकी जिस मां ने बेटों को ऊंची तालीम दिलाने के साथ पाल-पोस कर इस काबिल बनाया कि वे बेहतर जीवन जी सकें, उन्हीं बेटों ने बूढ़ी होने पर मां का साथ छोड़ दिया।

मूल रूप से रोहिणी की रहने वाली इस वृद्धा को उसका छोटा बेटा यह कहकर घर से लेकर चला था कि वह उन्हें हरिद्वार ले जाएगा। लेकिन वह उन्हें मोदीनगर के जंगल में छोड़ कर चला गया। कई दिनों तक भूखी प्यासी भटकने के बाद जब उस पर एक राहगीर की नज़र पड़ी, तो उसने उन्हें गाजियाबाद छोड़ दिया। अब यह महिला पिछले एक सप्ताह से गाजियाबाद के एक गुरुद्वारे में रह रही हैं। दिल्ली के रोहिणी इलाके की रहने वाली शारदा रानी ने बताया कि उनका बड़ा बेटा हरियाणा के करनाल में रहता है, जबकि छोटा बेटा रोहिणी में ही रहता है। पति की मौत के बाद उन्होंने ही दोनों की परवरिश की थी। दिल्ली के एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखने वाली इस 75 वर्षीय वृद्धा ने बताया कि वह अपने ज़माने में रेडियो स्टेशन पर फिल्मी गीत गाती थीं और परिवार के साथ अमेरिका, दुबई की सैर भी कर चुकी हैं। लेकिन बुढ़ापे ने उनसे सारी खुशियां छीन लीं। जिन बच्चों को उन्होंने पाल-पोस कर बड़ा किया, उन बच्चों को ही अब वह बोझ लगने लगी है। करनाल में रहने वाले बड़े बेटे ने तो ऐसा मुंह मोड़ा कि कई बरसों तक शक्ल ही नहीं दिखाई और जिस छोटे बेटे के पास दिल्ली में वह रह रहीं थी, वह काफी दिन पहले वह उन्हें देर रात को अपनी कार में यह कहकर लेकर चला था कि वह उन्हें हरिद्वार लेकर जा रहा है। लेकिन मोदीनगर आते ही बहाना बनाकर नीचे उतारा और कार लेकर चला गया। कई दिनों तक वह भूखी-प्यासी जंगल में भटकती रहीं। कुछ दिन बाद सड़क से गुज़र रहे एक स्कूटर सवार व्यक्ति ने उन्हें बेसुध अवस्था में पड़े देखा। वह उन्हें गाज़ियाबाद में छोड़कर चला गया। यहां एक रिक्शा चालक उन्हें बजरिया स्थित संतपुरा गुरुद्वारे के बाहर छोड़कर चला गया। तब से वह यहीं रह रही हैं।

स्थानीय निवासियों द्वारा महिला के बताए गए एक नंबर पर फोन किया गया, तो उस पर वही व्यक्ति मिला, जिसका उन्होंने नाम लिया था। लेकिन जब उन्होंने उस व्यक्ति से वृद्धा को ले जाने का आग्रह किया, तो उन्होंने आने की बात कहकर फोन काट दिया। इसके कुछ दिन बाद जब उन्होंने उसी नंबर पर फिर से फोन किया, तो उस व्यक्ति ने शारदा को पहचानने तक से इनकार कर दिया।
(नवभारत टाइम्स से साभार)

5 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

बहुत अच्छा और भाव पूर्ण लिखा है
जारी रखें

संगीता पुरी said...

आज बहुत ही दुखद स्थिति वृद्धों की है। पता नहीं हमारा संस्कार कहां चला गया।

Unknown said...

कहते हैं मां के क़दमों में जन्नत होती है. पर इन अभागे बेटों ने मां के जीवन को ही जहन्नुम बना दिया. इस दुनिया में चाहे जितना खुश रह लें यह कपूत, मरने के बाद तो इन्हें जहन्नुम में ही जाना है.

Udan Tashtari said...

हद है. दुखद!

राज भाटिय़ा said...

मां केसी भी हो लेकिन मां मां ही होती हे, फ़िर यह काम तो कोई वेगानो से भी ना करे जो इन सपुतो ने किया...
्यह सपूत इस नयी पीढी के नही हमारी ओर आप की ही उम्र के होगे लानत हे ऎसी ओलाद पर