भारत की तलाश

 

Sunday, July 27, 2008

एक बेटा बटाला में, दूसरा अमेरिका में, पोता CID इंसपेक्टर: माँ गुरूद्वारे में, अधमरी, बेसहारा

उसने दोनों बेटों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों बेटों को नौ-नौ महीने कोख में रखा, जन्म दिया, उंगली पकड़कर चलना सिखाया। लेकिन उन्हीं बेटों ने उसे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए बेघर कर दिया। आज ये माँ खुद को भी ठीक से नहीं संभाल सकती। वक्त और उम्र की मार ने तो केवल उसके शरीर को कमजोर किया, लेकिन उसका कलेजा छलनी किया उसके दोनों बेटों के व्यवहार ने। आजकल ये माँ, फीनो, तख्त श्री केसगढ़ साहिब में सेवादारों के रहमोकरम पर जी रही है।

फीनो के नाम अमृतसर में कई एकड़ जमीन थी, लेकिन बेटों ने सारी जमीन अपने नाम करवाकर फीनो को घर से निकाल दिया। फीनो का एक बेटा बटाला में और दूसरा अमेरिका में रहता है। फीनो का एक पोता तरसेम सिंह अजनाला में सीआईडी इंस्पेक्टर है। घर से निकाले जाने के बाद फीनो इधर-उधर भटकती रही। कई माह पहले जालंधर रेलवे स्टेशन पर अधमरी हालत में पड़ी फीनो पर एक दिन हेल्प लाइन संस्था की नजर पड़ी। इस संस्था की सदस्य बीबी राजिंदर कौर ने बताया कि हेल्प लाइन संस्था ने फीनो की सेवा की व उसे अस्पताल में भर्ती करवाया। उसका पूरी तरह इलाज करवाया। जब समाचार पत्रों में फीनो के बारे में खबर छपी तो उसका पोता उसे अपने घर ले गया। लेकिन कुछ समय बाद ही उसे फिर घर से निकाल दिया गया।

जागरण में आयी ख़बर के मुताबिक, हाल ही में तख्त श्री केसगढ़ साहिब माथा टेकने आई बीबी राजिंदर कौर ने जब फीनो को यहां देखा तो वह हैरान रह गई। उन्हें पता चला कि फीनो यहां कई सप्ताह से रह रही है। तख्त श्री केसगढ़ साहिब के मैनेजर ने बताया कि यह औरत अपने आप को भी नहीं संभाल पाती है और जगह-जगह गंदगी फैला देती है। औरत होने के नाते सेवादारों को भी उसकी देखभाल करने में मुश्किलें पेश आती हैं। हालांकि सेवादार अपने तरफ से उसका पूरा खयाल रखते हैं, लेकिन फीनो को अपनों का साथ नहीं मिला और उम्र के इस पड़ाव पर वह अपनी जिंदगी इसी बदहाली में गुजारने पर मजबूर है। तख्त श्री केसगढ़ साहिब के जत्थेदार ज्ञानी त्रिलोचन सिंह ,समेत अनेक गणमान्यों ने कहा कि जन्म देने वाली मां के साथ इस तरह का बर्ताव करने वाले कुपुत्रों का सामाजिक बायकाट कर देना चाहिए।

5 comments:

Prabhakar Pandey said...

हृदय-विदारक घटना। माँ के साथ ऐसा वर्ताव।.. शर्म आती है ऐसे पुत्रों पर। जिस भारत की इतनी महिमा उसका पुत्र इतना कमीना। बस अब तो एही कहना है- ये है मेरा इंडिया-
भाईसाहब, इंडिया से मेरा मतलब आज की पढ़ी-लिखी जनता है जो पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम हैं उनका परिवार बीबी और बच्चों तक ही सिमित है-ये हैं हृदयहीन इंडिया के लाल।

Anonymous said...

इसीलिये नारी सशक्तिकरण की बहुत आवश्यकता हैं , नारी सशक्तिकरण फेमिनिस्म नहीं हैं बल्कि वो नारी को आर्थिक रूप से स्वंतंत्र बनाने का अभियान हैं .
लेकिन इस तरह की विपदा तो किसी भी पुरूष पर भी आ सकती हैं . इसके लिये बहुत जरुरी हैं की सब अपने बुरे वक्त के लिये सविंग्स रखे और सरकार की तरफ़ से ओल्ड आगे होम्स चलाये जाए , जहाँ अपना पैसा देकर अकेले बुजुर्ग रह सके . द्रवित हूँ पढ़ कर

Anil Pusadkar said...

bahut hi kadua sach saamne la diya praajee aapne.maine bhi is tarah ka bartav dekha hai aur use apne blog par likha zaroor magar utni himmat se nahi jitni aapne dikhayi.fursat mile to mere blog par zaroor ayeiga.main bhi chhattisgarh se hun

तरूश्री शर्मा said...

दुख की बात है, हमारे देश में दूसरी जाति में शादी कर लेने या और तथाकथित प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाने पर सामाजिक बहिष्कार किया जाता है। अब कहां हैं वे समाज के ठेकेदार.... माता पिता की सेवा करने की परम्परा तोड़ना क्या समाज की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाना नहीं है? अब नजर नहीं आएंगे वे लोग। खैर वैसे देखा जाए तो जिस संस्कृति में फीनो के बेटे जिंदगी बसर कर रहे हैं... वहां सामाजिक बहिष्कार जैसे शब्द भी निरथॆक होते होंगे। लेकिन ऊपर वाला सब देख रहा है.... जिस पोते ने दादी को निकाल फेंका...वो अपने माता पिता के साथ भी कुछ ऐसा ही करेंगा, यह तो जाहिर है। अब उन लोगों को भी फीनो की तरह सिर छिपाने का कोई आसरा खोज निकालना चाहिए।

राज भाटिय़ा said...

फ़ीनो जेसी कई मांये होगी इस भारत मे, लेकिन कसुर किस का हे फ़ीनो का, बेटो का, या फ़िर इस समाज का, कही ना कही तो कुछ गलती हुई हे हम से, इस बात का जबाब प्रभाकर पाण्डेय जी की टिपण्णी मे मिल जाता हे,फ़ीनो ने बेटो के झुठे प्यार मे अपना सब कुछ अपने कपूतो के नाम कर दिया, बेटे अपनी बीबीयो के पलु से बंध गये यानि एक नारी के पीछे दुसरी को बेसहारा छोड दिया,लानत हे ऎसी नालायक ओलाद पर, कभी बेटे यह करते हे तो कभी बेटी पुरा खानदान ही तबहा कर देती हे,हम जेसे जेसे अपने संस्कारो से दुर हो रहे हे वेसे वेसे यह बिमारियां हमारे समाज मे ज्यादा बढ रही हे,