जब मानसून ने दस्तक दे ही दी है तो लोगों के चेहरों में खुशी आना लाजमी है। मौसम का मिजाज भांपने का अपना नुस्खा है। हजारों साल से तमाम जाति, नस्ल और प्रांतों के लोग इस लौकिक ज्ञान को अपनी आने वाली पीढ़ियों में पहुंचाते रहे है। यह ज्ञान कितना पुख्ता है इसका उदाहरण इसी से मिल जाएगा कि जब मौसम विज्ञानी बुंदेलखंड में सन 2002 का मानसून ठीक ठाक बता रहे थे तो वहां दे देशी मौसम विज्ञानियों ने मानसून के धोखा देने की घोषणा कर दी थी। हुआ भी वही। यहां मान्यता है कि जब सूखा पड़ता है तब झड़बेरी और महुआ की फसल बहुत अच्छी होती है और उस साल इन पेड़ों में खूब फल हुए थे। दुनियाभर के लोक साहित्यों में मानसून के पूर्वानुमान पर तमाम नुस्खे हैं।
- कुत्ता घास खाना शुरू कर देता है
- चीटियां अपने अण्डें नीचे से ऊपर रखना शुरू कर देती हैं।
- चिड़िया धूल में नहाती है।
- बतख तैरते समय पीछे पंख मिलाकर फड़फड़ाने लगे
- मच्छर जमीन के बहुत नजदीक उड़ने लगें।
- शाम से मुर्गा दरवाजे पर बांग दें।
- गिलहरी चीखने लगे तो 24 घंटे के अंदर भयंकर बरसात होगी।
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