भारत की तलाश

 

Wednesday, July 9, 2008

भीख में मिले पैसों को गिनते-गिनते बैंक स्टाफ को पूरा दिन लग गया

कोलकाता के एक बैंक के कर्मचारियों का पूरा सोमवार एक भिखारिन के पैसे गिनते-गिनते निकल गया। किस्सा यह है कि लक्ष्मी 16 साल की उम्र से ही उत्तरी कोलकाता के व्यस्त हतीबागान इलाक़े में भीख माँगती है। उसने भीख में मिले अपने सारे सिक्के श्यामबाज़ार चौराहे के पास अपनी खोली में जमा किए थे। इसके लिए उसने लोहे की टोकरियों का इस्तेमाल किया और एक बोरे से अच्छी तरह ढक कर रखा। मिलीजुली रेज़गारी की अब तक उसके पास चार भरी हुई टोकरियां हैं। इनमे से कुछ सिक्के तो 1961 के बने हुए हैं और अब चलन में भी नही हैं।

बैंक खाता खुलने का सिलसिला उस समय शुरू हुआ जब पिछले सप्ताह कुछ बच्चे खेलते हुए उसकी खोली में घुस गए और उनकी एक टोकरी पर ठोकर मार दी जिससे लक्ष्मी सचेत हुई। मामला पुलिस की जानकारी में आया तो लक्ष्मी की मदद करने के लिए वो उसके सिक्कों को अपने साथ ले गए। बाद में इन सिक्कों को सैंट्रल बैंक की मानिकतला शाखा में खाता खुलवाने के लिए ले जाया गया। 50 साल की लक्ष्मी देवी के जीवन भर की बचत तीन बाल्टियों में आई। बाल्टियों में 10, 20 और 25 पैसे के सिक्के भरे थे। बैंक का करीब सारा स्टाफ सुबह 10 बजे जो लगा तो शाम 5 बजे बैंक के बंद होने के कुछ मिनट पहले ही यह काम ख़त्म हो सका।

सैंट्रल बैंक के शांतनु नियोगी का कहना “चूँकि वो ग़रीब है और उन्हे हमारी मदद चाहिए इसलिए हम पुराने सिक्कों को भी स्वीकार करेंगे।” रिज़र्व बैंक के निर्देशानुसार चलन से बाहर हो चुके सिक्कों के बदले जमाकर्ता को उनके बराबर रक़म का भुगतान किया जाना चाहिए।

2 comments:

Anil Kumar said...

अगर धुन लगा ली जाए तो कोई भी काम मुश्किल नही है. हर एक आदमी को इस बूढी औरत से कुछ सीखना चाहिए.

ghughutibasuti said...

यह समाचार कल बी बी सी में भी दिखाया गया था। सिक्के इकट्ठा करने वालों को यदि ये मिल जाते तो वे कितना खुश होते ।
घुघूती बासूती