भारत की तलाश

 

Friday, August 8, 2008

शहीदों की चितायों पर लगेंगे मेले और उनके पोते रिक्शा खींचेंगे

पश्चिम चंपारण में बेतिया नगर के बड़ा रमना मैदान में गणेश राव ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 अगस्त 1942 को अपने सीने पर फिरंगियों की गोली खायी और अपने सात साथियों के साथ शहीद हो गए। आज उनके पोते उसी शहर में रिक्शा खींच और राजमिस्त्री का काम कर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। पुरानी गुदरी मोहल्ले के छोटे से खपरैल मकान में पूरे परिवार की जिंदगी की गाड़ी जिस हाल में चल रही है, उसे देखकर किसी का भी हृदय द्रवित हो उठेगा।

सरकारी आश्वासन के सहारे शहीद की विधवा, बेटे और बहू गुजर गए। अभी परिवार में उनके तीन पोते शंभु राव, प्यारे लाल राव व ओम प्रकाश राव हैं। प्यारे लाल रिक्शा चलाते हैं तो ओमप्रकाश व शंभु राज मिस्त्री का काम कर रहे हैं। जब इस संवाददाता ने उनसे उनके दादा की शहादत के किस्से सुनाने की गुजारिश की तो उनके मुंह से कुछ निकलता, इसके पहले ही उनकी आंखें बरसने लगीं। प्यारेलाल कह रहे थे, '1970 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय ने बेतिया में शहीद स्मारक का शिलान्यास किया तथा शहीदों के आश्रितों को सम्मान पत्र दिया। उस दिन उन्होंने पक्का मकान और जमीन देने का भरोसा दिया। तब से लेकर आज तक कई सीएम और डीएम आए, पर उनसे मिलने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। प्रधानमंत्रियों में एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी और अब मनमोहन सिंह तक पत्राचार कर थक चुका हूं। अब तमन्ना है, एक बार राष्ट्रपति से मिल लूं। मगर, आर्थिक विपन्नता के कारण दिल्ली दूर लगती है। क्या करूं, समझ नहीं पा रहा हूं।'

जागरण में विजय सिंग की रिपोर्ट कहती है कि संपत्ति के नाम पर इस परिवार के पास महज आठ धूर जमीन और जीर्ण-शीर्ण खपरैल मकान है। इसी मकान में भेड़-बकरियों की तरह रहने की मजबूरी है। सरकार की बात तो दूर, किसी जन प्रतिनिधि तक ने इनकी सुधि नहीं ली। प्रेरणा की बात यह है कि सरकारी सहायता की आस में पथरा चुकीं इस परिवार की आंखों में आज भी देशभक्ति का जज्बा देखा जा सकता है।

3 comments:

बालकिशन said...

बहुत ही दुखद और अफसोसजनक.
क्या हम चिठ्ठा जगत के लोग कोई सार्थक पहल की शुरुआत कर सकते हैं?

Manvinder said...

bahut hi dukhad hai esse hona....
iske liye sarthak pahal ki baat per b dhiaan dena haoga

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक.