अब भारत के कुंवारों में नसबंदी कराने का चलन शुरू हो चुका है। कुंवारों द्वारा नसबंदी कराने के मामले प्रकाश में आने के बाद अब सख्ती का फैसला हुआ है। नसबंदी अब तभी होगी जबकि पति-पत्नी साथ आएंगे या लड़के के साथ मां या पिता होंगे। पता चलने पर कुंवारों को भगा दिया जाता है, लेकिन कोई झूठ ही बोले तो कुछ नहीं हो सकता। चूंकि नसबंदी खुल जाती है, इसलिए लोग डरते नहीं। डाक्टरों के अनुसार पुरुष नसबंदी में 15 मिनट का समय लगता है, जबकि खुलवाने में 3 घंटे लगते हैं। नसबंदी खुलवाने के लिए परिवार की रजामंदी जरूरी है।
संजय गांधी अस्पताल में पिछले ही महीने 20 वर्षीय प्रदीप कुमार ने आपरेशन करा लिया था। घर वालों को पता चला तो अस्पताल भागे और मां के कहने पर डाक्टरों को नसबंदी खोलनी पड़ी। जागरण में सुनील पाण्डेय लिखते हैं कि अस्पतालों में नसबंदी कराने आने वालों का चूंकि घरेलू रिकार्ड नहीं मांगा जाता, इसलिए कुंवारे इसका फायदा उठा लेते हैं।
कुछ प्रतिक्रियांयें भी देखिये:
प्रोफेसर प्रो. एनके चड्ढा, मनोविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय: नसबंदी करवाने वाले कुंवारे 'साइकोपैथ' हैं।
समाजशास्त्री विजय लक्ष्मी दीवान, कमला नेहरू कालेज: महिला दोस्त के कहने पर नसबंदी कराने की बात नई है। यह हमारी ढहती सामाजिक व्यवस्था का नमूना है।
केटीएस तुलसी, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट: जो बालिग है, वह स्वतंत्र है। वह नसबंदी करा रहा है, कोई अपराध नहीं। इस पर आपत्ति क्यों?
डा. राजेश सागर, मनोवैज्ञानिक, एम्स: युवा पीढ़ी शादी को बंधन मानती है। इसीलिए शादी और बच्चा पैदा करने का चलन घट रहा है।
3 comments:
चलिए इमरजेंसी के दौरान विधुरों-विधवाओं और बड्ढों का हो गया था, अब कुंवारों का भी हो जाएगा. एक यही बाक़ी था वह भी हो गया. अच्छी ही बात है.
भाई यदि जनसंख्या में स्त्री पुरुष अनुपात गिरता रहा तो यह तो उस का अवश्यंभावी परिणाम है।
अजब गजब खबर है.
Post a Comment