तीनों सेनाओं की सर्वोच्च सेनापति भले ही एक महिला हों, लेकिन उनके मातहत काम कर रही भारतीय रक्षा सेनाओं में महिलाएं समान हक के लिए अब भी छटपटा रही हैं। रक्षा मंत्रालय की नाकाम नीतियों के कारण अल्प सेवा कमीशन की महिला अधिकारी सेवा छोड़ने को मजबूर हैं। दैनिक जागरण में प्रणव उपाध्याय की एक दिलचस्प रिपोर्ट है कि अपने ही संगठन की बेरुखी के चलते तीनों सेनाओं की करीब ढाई हजार महिला अधिकारियों को अब इंतजार है दिल्ली हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई का। जहां सरकार को यह बताना है कि तीन सेवा विस्तार और 14 साल की सेवा के बावजूद इन अधिकारियों को सेना क्यों न तो स्थायी कमीशन दे रही है और न ही सेवानिवृत्ति के लाभ। सुनवाई पर भी यदि सालीसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम सरकार की नीति साफ करने में नाकाम रहे तो शायद नौ और महिला अधिकारी 25 अगस्त को सेना से खाली हाथ रुखसत हो जाएंगी।
दो फीसदी विधवा कोटे से सेना में शामिल हुई महिला अधिकारियों की मुसीबत दोहरी है। अपना पति खोकर सेना के सहारे पारिवारिक जिम्मेदारियां निभा रही इन अधिकारियों के पास तो अधेड़ उम्र की बेरोजगारी से निपटने के लिए जीवनसाथी का संबल भी नहीं है। न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाली सेना और वायुसेना की 58 अधिकारी भारतीय रक्षा सेनाओं पर सीधे लिंगभेद का आरोप लगाती हैं। चंद दिनों पहले सेवामुक्त हुई पूर्व विंग कमांडर स्मृति शर्मा कहती हैं कि 'महिलाओं के लिए ना तो सेवा शर्तो में कोई छूट है और ना ही सेवा स्थितियों में रियायत। लेकिन, जब बारी सेवा लाभ देने की आती है तो हमें हर बार पीछे धकेला जाता है। यह सब तब जब रक्षा सेनाओं में अफसरों के 24 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। एक सेवारत महिला अधिकारी कहती हैं कि 'इस बारे में रक्षामंत्री, रक्षा राज्यमंत्री, यूपीए अध्यक्ष और राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाया जा चुका है। हर कोई मामले से सहानुभूति तो जताता है लेकिन अब तक कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है।' महिला अफसरों के मुताबिक उनके स्थायी कमीशन की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रक्षा बलों के मुखियाओं का रुख है।
1 comment:
हमने जिस फौज को भारत मां की हिफ़ाज़त का जिम्मा सौंप रखा है वो किसी की मां-बहन के साथ इस तरह सलूक कैसे कर सकती है। फौज अगर महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकती तो उसे महिलाओं को नौकरी देना बंद कर देना चाहिये।
Post a Comment