भारत की तलाश

 

Sunday, June 29, 2008

भारत में निकाल लिया ब्रिटेन के ग्रामीणों का पैसा

ब्रिटेन के वर्सेस्टरशायर के एक गांव के आधे से ज्यादा लोग क्रेडिट कार्ड की अंतरराष्ट्रीय जालसाजी का शिकार हुए हैं। इनके खातों से भारत में पैसा निकाला जा रहा है। शिकायतों के बाद जांच में पता चला कि ब्रिटेन के उपभोक्तायों के खातों से चेन्नै और मुंबई सहित भारत के कई शहरों पैसा निकाला गया है। वर्सेस्टरशायर के ग्राम वीचबोल्ड में 700 घर हैं और इनमें से 400 परिवारों के खातों से धन विदेशों में निकाला गया है।

लोकल पुलिस का मानना है कि ई मेल की जानकारी के अनुसार विदेशों में उनके खातों से 50 से 100 पौंड निकाले गए हैं। मई में बोर्नमाउथ के ' डेली इको ' के एक पत्रकार ने पाया कि उनके खाते से चेन्नै में पैसा निकाला गया है। उनके इलाके के 500 और लोग भी इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं। ब्रिटेन के सुरक्षा अधिकारी कार्ड की नकल पर काबू करने की कोशिश कर रहे हैं। चेन्नै में रहने वाले बी. कॉम थर्ड ईयर के एक स्टूडेंट को कई देशों के लोगों के क्रेडिट कार्ड्स की डिटेल्स हासिल कर उससे इलेक्ट्रॉनिक सामानों की ऑनलाइन खरीदारी करने के लिए गिरफ्तार किया गया है। इससे साइबरस्पेस में धोखाधड़ी की अंधेरी दुनिया का सच सामने आया है।

हैकरों की कम्यूनिटी के एक सदस्य टी. भारथ्वाज पुरोहित (20) पर आरोप है कि उसने इस अप्रैल महीने से अब तक लोगों के क्रेडिट कार्ड्स का ऑनलाइन इस्तेमाल कर ढेर सारे इलेक्ट्रॉनिक आइटमों की खरीदारी की। पुलिस ने पुरोहित के पास से इलेक्ट्रॉनिक गिटार, पिंटर, एलसीडी टीवी, डिजिटल कैमरा, भार मापने का स्केल, मोबाइल, लैपटॉप (जिन सभी की कीमत तीन लाख रुपये बैठती है) और 38,000 रुपये कैश बरामद किए। बताया जाता है कि पुरोहित का मुंबई के मुलुंड निवासी अजय और अहमदाबाद निवासी संजय से ऑनलाइन संपर्क हुआ। अजय और संजय ने पुरोहित का हैकर्स कम्यूनिटी के सदस्यों से परिचय करवाया और खरीदारी के लिए क्रेडिट कार्ड के डिटेल्स दिए। अजय और संजय की सलाह पर पुरोहित ने उनके द्वारा मुहैया कराए गए डेटा का इस्तेमाल कर एक महंगा मोबाइल सेट और आईपॉड बुक कराने की कोशिश की।

पुरोहित के आश्चर्य का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा, जब उसे ये आइटम ऑर्डर देने के महज एक हफ्ते के अंदर मिल गए। उसने कुरियर के मार्फत कुछ कीमती आइटम अजय और संजय को गिफ्ट कर दिए। पुरोहित ने इसके बाद एक ऑक्शन वेबसाइट से और सामानों की खरीदारी शुरू की। डीसीपी बी. विजया कुमारी ने यह जानकारी दी। पुलिस सूत्रों का कहना है कि अमेरिका स्थित चार वेबसाइटें लोगों के क्रेडिट कार्ड्स से जुड़ी डिटेल बेचने का काम करती रही हैं। ये वेबसाइटें अमेरिका, कनाडा और रूस के लाखों क्रेडिट कार्ड्स यूजर के क्रेडिट वैल्यू वेरिफिकेशन नंबर बेहद कम कीमत पर उपलब्ध करा देती हैं। पुरोहित के ऑनलाइन क्राइम पार्टनर अजय और संजय ने इन वेबसाइटों से लोगों के क्रेडिट कार्डों से जुड़ी सूचनाएं इकट्ठा कर रखी थीं।

सीसीबी के एक अधिकारी ने बताया कि पुरोहित ने हमें इन वेबसाइटों के बारे में बताया है और हम इसकी पुष्टि करने की कोशिश कर रहे हैं। पुरोहित ने केवल मनोरंजन के लिए अजय और संजय से ऑनलाइन चैटिंग शुरू की थी लेकिन वह साइबर क्राइम की दलदल में जा फंसा। अजय-संजय ने, जिनकी उम्र 16 साल के करीब है, पुरोहित को अपने पास पैसे भेजने को कहा था और इसके बदले मुफ्त खरीदारी के लिए दूसरों के क्रेडिट कार्ड डिटेल्स देने की पेशकश की। पुरोहित शुरू में तो झिझका पर बाद में लालच में पड़ गया।

१ अरब की रिश्वत, तय बज़ट से अधिक

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के रहन-सहन के स्तर को सुधारने के लिए सरकार जितना बजट तय करती है, उससे कहीं अधिक, ये गरीब उन सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए रिश्वत के रूप में खर्च कर देते हैं। भारत में भ्रष्टाचार के स्तर पर अध्ययन करने वाली एक संस्था द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों की मानी जाए तो, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों ने गत एक वर्ष में सरकारी सेवा प्रदान करने वाले विभागों को 900 करोड़ रूपए सिर्फ रिश्वत के रूप में दे दिए। मजे की बात तो यह है कि गरीबों ने गरीबी का प्रमाण लेने के लिए ही बाबुओं को करोड़ों रूपए का चाय-पान करा दिया।

स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा भारत को भ्रष्टतम देशों की सूची में दो पायदान आगे बढ़ने की खबर जारी करने के दूसरे ही दिन संस्था की भारतीय शाखा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने अपने चौंकाने वाले आंकड़ों में यह खुलासा किया है। अकेले गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों ने वर्ष 2007-08 में शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, बैंकिंग सहित तमाम सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए नौ सौ करोड़ रूपए अधिकारियों की जेब गर्म करने में खर्च कर दिए। सरकारी सेवा प्रदान करने वाले विभागों में प्रतिवर्ष की भांति पुलिस महकमा सबसे भ्रष्ट विभाग साबित हुआ है। संस्था द्वारा विभागों को आधारभूत सेवा व आवश्यकता आधारित सेवा के आधार पर बांट कर राष्ट्रीय स्तर पर किए गए अध्ययन के अनुसार गत वर्ष बीपीएल के 5.6 करोड़ लोगों का वास्ता पुलिस से पड़ा जिसमें से ढाई करोड़ लोगों को विभिन्न कामों को कराने के लिए 215 करोड़ रूपए बतौर रिश्वत खर्च करने पड़े। अध्ययन में शामिल लोगों में से 90 प्रतिशत लोगों ने चिकित्सा संबंधी कामकाज के लिए अस्पताल के कर्मचारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की है। दस लाख लोगों को चिकित्सा सेवा से इसलिए मरहूम होना पड़ा क्योंकि उनके पास कर्मचारियों को चाय पानी कराने के लिए पैसे नहीं थे। गरीबों ने भूमि रिकार्ड व पंजीकरण सेवाओं के लिए 122.4 करोड़ रूपए बतौर ‘सेवा-कर’ बाबुओं को चुकाए।

देश
में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी जम चुकी हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चाहे बिजली का कनेक्शन लेना हो या खराब मीटर ठीक कराना हो उपभोक्ताओं को विघुत विभाग के अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। विद्यालय की सुविधा प्राप्त करने के लिए गरीब परिवारों को 1.20 करोड़ रूपए की रिश्वत देनी पड़ी। राजधानी में एक सादे समारोह में उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ‘भारत में भ्रष्टाचार अध्ययन-2007’ के अनुसार देश के एक तिहाई गरीब परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बिजली एवं पानी आपूर्ति, रोजगार गारंटी योजना, जमीन रिकार्ड, पंजीकरण, वन, आवास, बैंक एवं पॉलिसी सेवा जैसे 11 सरकारी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी।

मांगी जानकारी भ्रष्टाचार की तो, करगिल कर दिया ट्रांसफर

केन्द्रीय विद्यालय, देवास में एक शिक्षक को भ्रष्टाचार के मामले में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेना उस समय मंहगा पड़ गया जब विघालय प्रशासन ने उसका स्थानांतरण करगिल (कश्मीर) कर दिया। अपने स्थानांतरण के विरोध में शिक्षक मांगीलाल कजोडिया ने बैंक नोट प्रेस देवास, जिसके परिसर में केन्द्रीय विद्यालय लगता है, के सामने सत्याग्रह शुरू कर दिया है। कजोडिया ने सत्याग्रह स्थल पर संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने विद्यालय में किताब खरीदी में अनियमितताएं, खेल मैदान के निर्माण में भ्रष्टाचार तथा अवैध रूप से वृक्षों की कटाई आदि मामलों में जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां चाही तो विद्यालय प्रबंधन द्वारा न केवल उनका स्थानांतरण करगिल कर दिया गया बल्कि उनको उसी दिन मुक्त भी कर दिया गया जिस दिन उनको स्थानांतरण आदेश दिया गया था।

कजोडिया ने घोषणा की है कि वे 30 जून तक सत्याग्रह करने के बाद एक से 15 जुलाई तक एक दिन उपवास कर भूख हड़ताल करेंगे और उसके बाद वे आमरण अनशन शुरू कर देंगे। स्थानीय नेता तथा अनेक संगठन केन्द्रीय विघालय में कथित भ्रष्टाचार के मामले को लेकर कजोडिया के समर्थन में आ गये हैं। उधर विद्यालय प्रबंधन का कहना है कि उच्च अधिकारियों द्वारा किये गये स्थानांतरण का आदेश प्राप्त होने के बाद उन्होंने तो केवल आदेश का पालन किया है लेकिन प्रबंधन ने कजोडिया द्वारा उठाए गए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किसी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

हिंदी में, सूचना का अधिकार अधिनियम (pdf, 1.6MB, २६ पृष्ठ) यहाँ देखा जा सकता है।

Sunday, June 22, 2008

रिटायर्ड इंजीनियर ने पाले हैं 35,000 कोबरा

झारखंड में सरायकेला-खरसावन जिले के कचाई में सांपों का एक फार्म लोगों के लिए कौतूहल का सबब है। इस इको-फ्रेंडली फार्म को चलाते हैं- 78 वर्षीय एन. के. सिंह, जो मूल रूप से बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले हैं व Tata Iron and Steel Company (टिस्को) से रिटायर हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। इंजीनियर सिंह अपने गले में दर्जन भर मोबाइल फोन लटकाए रहते हैं। जहां एक आम व्यक्ति अपने मोटरसाइकिल की डिग्गी में कागजात, सब्जियां या अन्य सामान रखते हैं, सिंह अपने दो-पहिया वाहन के बक्से में कोबरा रखना पसंद करते हैं। उनका कहना है कि जब भी मैं कोई सांप देखता हूं तो उत्साह से भर उठता हूं। उसे पकड़ने में मुझे अद्भुत खुशी और संतोष हासिल होता है। उन्होंने जो 12 मोबाइल फोन कनेक्शन ले रखे हैं उस पर अलग-अलग इलाकों में रहने वाले लोगों के कॉल आते रहते हैं जो अपने घर या आसपास सांप देखकर सिंह को तुरंत इसकी सूचना देते हैं।

सिंह सांप पकड़ने के लिए महज 2 छड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। कोबरा को पकड़ने के बाद वह इसे अपने फार्म ले जाते हैं जहां उन्होंने पहले से ही 35,000 विषधर पाल रखे हैं। हालांकि सिंह यह काम धर्मार्थ नहीं करते, बल्कि इसकी पूरी कीमत वसूलते हैं। वह इन सांपों का जहर वेलौर स्थित Christian Medical College (सीएमसी) को बेचते हैं जिसके लिए उन्हें 11 लाख रुपये प्रति औंस (लगभग 30 ग्राम) की मोटी रकम मिलती है। 800 कोबरा मिल कर 30 मिलीलीटर जहर पैदा कर सकते हैं। सिंह ने जो 35,000 कोबरा पाल रखे हैं वे हर साल 30 से 32 औंस (लगभग 1 किलोग्राम ) जहर पैदा करते हैं। तो इस हिसाब से उनकी कमाई का अंदाजा आप लगा सकते हैं। वह यह काम कानूनी तौर पर कर रहे हैं। उनके पास जंगली सांपों को पकड़ने के लिए बाकायदा लाइसेंस भी है जो वन विभाग ने जारी किया है।

सिंह का दावा है कि वह कभी भी किसी के निजी मकान या प्रतिष्ठान में घुस कर सांप नहीं पकड़ते, जब तक कि वह किसी के घर में न घुस जाए। उन्होंने दावा किया है कि हाल ही में क्लोरीन गैस के रिसाव के बाद टेल्को की रेजिडेंशल कॉलोनी में 145 कोबरा पाए गए हैं। लेकिन कंपनी के अधिकारियों ने सिंह के दावे को गलत बताते हुए कहा है कि यह उनका अपने फार्म के लिए सांप पकड़ने का हथकंडा है। जो भी हो 35,000 कोबरा पालना मजाक नहीं है। सिंह ने इन सांपों की देखभाल के लिए 45 लड़कों को काम पर रखा है जिनमें से ज्यादातर उड़ीसा के रहने वाले हैं और इस काम में माहिर हैं। अगर सिंह की बात पर यकीन किया जाए तो वह इन कोबरा के खाने पर हर साल 2.5 लाख रुपये खर्च करते हैं। उनके फार्म में सिंगापुर, ब्राजील और साउथ अफ्रीका से लाए गए गोल्डन कोबरा भी हैं। दिलचस्प यह है कि सिंह को इस नायाब काम के लिए अपने परिवार का समर्थन हासिल नहीं है।

सही सूचना नहीं दी: राष्ट्रपति सचिवालय को फटकार

तीन साल से इंतजार कर रही नूर सबा को राष्ट्रपति से मुलाकात के लिए समय नहीं दिया गया। सूचना के अधिकार के तहत उसने अपने आवेदन की बाबत जानकारी चाही तो राष्ट्रपति सचिवालय ने उसे स्पष्ट जवाब देने के बजाय गुमराह किया। अंतत: उत्तर प्रदेश के रामपुर की इस अध्यापिका केंद्रीय सूचना आयोग की शरण ली। आयोग ने राष्ट्रपति सचिवालय को न केवल फटकार लगाई वरन दस दिन के भीतर मामला निपटाने के निर्देश भी दिए हैं।

नूर सबा महिला अध्यापिका हैं जिन्होंने अपनी निजी समस्या के चलते 9 जून 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा। एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात का समय मांगा था। नूर सबा अपने आवेदन की स्थिति के बारे में बार-बार राष्ट्रपति सचिवालय से पूछती रही। आजिज सबा ने सूचना का अधिकार कानून के तहत राष्ट्रपति सचिवालय से जानकारी मांगी कि उनके आवेदन की क्या स्थिति है? लंबित है, प्रक्रिया में है या फिर ठुकरा दिया गया है। इन सवालों के जवाब देने के बजाय सचिवालय ने नूर सबा को पत्र के जरिये अवगत कराया कि मुलाकात की वजह और उसके महत्व को देखने के साथ-साथ अपनी सहूलियत के आधार पर ही किसी को मिलने का समय देते हैं।

राष्ट्रीय सहारा के अनुसार, सही जबाब नहीं मिलने पर नूर सबा ने सचिवालय में अपीलेट अधिकारी के जरिये कहा मुझे सही जबाब दिया जाय। फिर भी सही सूचना नहीं मिली। नूर सबा ने आखिरकार केन्द्रीय सूचना आयोग में अपनी गुहार लगायी। मामले की सुनवाई स्वयं मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने की। उन्होंने राष्ट्रपति सचिवालय के सभी तर्र्कों को खारिज करते नूर सबा को सही जानकारी देने की बजाय गुमराह करने के लिए फटकार लगायी। किससे मिलना है और किससे नहीं, यह अधिकार राष्ट्रपति का जरूर है, पर नूर सबा ने जो जानकारी मांगी उस बारे में उसे सही और सटीक क्यों नहीं बताया गया। सुनवाई के दौरान अधिकारियों ने सूचना का अधिकार कानून की धारा 2 (एफ) का हवाला देते हुए अपने को बचाना चाहा पर हबीबुल्लाह ने अधिकारियों को लताड़ा।

नूर सबा को सूचना देने में गुमराह किए जाने के लिए हबीबुल्लाह ने कड़ी फटकार लगाते हुए राष्ट्रपति सचिवालय में अपीलेट अधिकारी सुश्री रसिका चौबे को दस दिनों के भीतर इस मामले में सही जानकारी देकर निस्तारण करने का भी निर्देश दिया। मुलाकातियों द्वारा समय मांगे जाने की बाबत पूछे गए रिकार्ड के बारे में राष्ट्रपति सचिवालय ने कहा कि उसके पास सिर्फ राष्ट्रपति से हुई मुलाकात वाले लोगों का ब्यौरा रहता है। कितने लोगों ने मुलाकात का समय मांगा है इसका कोई ब्यौरा सचिवालय के पास नहीं है। गौरतलब है कि नूर सबा का राष्ट्रपति से मिलने के लिए आवेदन 9 जून 2005 से सचिवालय में पड़ा है।

Saturday, June 21, 2008

आईएएस अफसरों से विभागीय परीक्षा में पास कराने के लिए रिश्वत मांगी गयी!

छत्तीसगढ़ में युवा आईएएस अफसरों से विभागीय परीक्षा में पास कराने के लिए रिश्वत माँगने का मामला सामने आया है। बताया जाता है कि रिश्वत न देने पर चार अफसरों को तीन बार फेल कर दिया गया। इसस नाराज होकर 2004 बैच के आईएएस अफसर अमित कटारिया ने वेतन लेना बंद कर दिया है। बाकी तीन अफसरों ने मुख्य सचिव शिवराज सिंह से इसकी शिकायत की है। इस बार में मुख्य सचिव का कहना है कि उन्होंने विधि विभाग को उत्तर पुस्तिका की जांच कराने का निर्दश दिया है।

आईआईटी जैसी संस्थाओं में पढ़े और यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा देकर आईएएस बने 2004 बैच के अमित कटारिया, अविनाश चंपावत और 2005 बैच के मुकेश बंसल एवं रजत कुमार ने सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि औपचारिकता समझी जाने वाली परीक्षा में रिश्वत मांगी जाएगी। दैनिक हिन्दुस्तान में संजय दीक्षित की ख़बर है कि क्रिमिनल प्रासिजर कोर्स में चारों को बार-बार फेल कर दिया जा रहा है। अफसरों ने जब आला अधिकारियों से फरियाद की तो उन्हें मुंह बंद रखने को कहा गया।

Friday, June 20, 2008

पानी के लिए काटा पहाड़: बिना बिज़ली के सात सौ एकड़ खेतों में पूरे साल सिंचाई

उन्होंने जल आपूर्ति का ऐसा सिस्टम बनाया है कि अच्छे से अच्छा विशेषज्ञ भी देखकर अचरज में पड़ जाए। कैलोद करताल के किसान गुलाब सिंह पटेल ने ऐसा भगीरथी प्रयास किया है कि बारिश के बाद पूरे गांव की तस्वीर ही बदल जाएगी। खास बात यह है कि यह काम उन्होंने बगैर किसी सरकारी मदद के खुद के बूते पर किया। उन्होंने दो लाख रुपए खर्च कर ऐसा तालाब बनाया है जो पहाड़ी पर से बह जाने वाले पानी से भरेगा और केवल गर्मी में गांव वालों की प्यास बुझाएगा बल्कि खेतों को भी तृप्त कर हरा-भरा कर देगा। गांव के कुछ अन्य लोगों ने दो लाख और खर्च कर अपने खेत भी हरे-भरे करने की व्यवस्था कर ली।

गांव में इस समय पानी का स्तर छह सौ फीट नीचे है। इतनी गहराई तक बोरिंग कराने के बाद भी ज्यादा पानी नहीं मिलता। बकौल गुलाब पटेल, एक दिन खेत में लेटे-लेटे सती टेकरी से पानी उतारने और पाइप लाइन खेत तक लाने का ख्याल आया। अगले ही दिन गांव के कुछ साथियों को योजना बताने के बाद 25 मई से काम शुरू कर दिया। 23 दिन में तालाब बन गया और पाइप लाइन बिछ गई। सात दिन का काम और बाकी है। एक महीने की मशक्कत के बाद सिस्टम आकाश से बरसने वाले अमृत को समेटने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएगा।

गुलाबसिंह की पूरी योजना में बिजली का कोई काम नहीं है। सालभर सिंचाई कुआं भरने का काम बिना बिजली के ही होगा। केवल कुएं से पानी खींचने में कुछ बिजली लगेगी लेकिन यह भी सामान्य रूप से लगने वाली बिजली की तुलना में 10 फीसदी भी नहीं होगी। तालाब से प्रत्येक खेत में भी पाइप लाइन का एक कनेक्शन दिया गया है। जब भी सिंचाई की जरूरत होगी, पानी मिल सकेगा। यही नहीं, गांव से चार किमी दूर पर भी कुछ खेत हैं। गांव वालों ने मिलकर करीब दो लाख रु. में एक पाइप लाइन वहाँ तक बिछवा ली। यानी इसी तालाब से चार किलोमीटर दूर तक के खेतों में भी सिंचाई हो सकेगी। दो-तीन जोरदार बारिश में ही गुलाब सिंह का तालाब व कुआं लबालब हो जाएगा और गांव वालों के सात सौ एकड़ खेतों में वर्षभर भरपूर पानी मिलेगा। अभी गांव वाले साल में दो फसल भी ठीक से नहीं ले पाते लेकिन इसके बाद कैलोद करताल के खेत साल में तीन बार लहलहाते नजर आएंगे।

Wednesday, June 18, 2008

गरीब युवक को पढ़ा रही है इंदौर पुलिस

पुलिस ने एक बेरोजगार की जिन्दगी बदलने की ठानी है। इंदौर पुलिस ने भेरू को पहले दुकान और अब पढ़ाई का इंतजाम करके यह बता दिया है कि वह भी जरूरतमंदों की मदद के लिए किसी से पीछे नहीं हैं। पुलिस का जिक्र आते ही अपराध, अपराधी और प्रताड़ना की तस्वीर उभर आती है। मगर इंदौर की पुलिस इस तस्वीर को झुठला देने वाली हैं।

मूसा खेड़ी इलाके में रहने वाले 17 वर्षीय भेरू यादव की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वह रोजगार की तलाश में था। इसी दौरान उसकी मुलाकात संयोगिता गंज क्षेत्र की नगर पुलिस अधीक्षक इरबिन शाह से हुई। शाह ने भेरू की तकदीर ही बदलने की ठान ली। उन्होंने लगभग एक माह पहले संयोगिता गंज थाना परिसर में संजीवनी संस्था के माध्यम से भेरू के लिए चाय की दुकान खुलवाई। भेरू को जगह तो थाने में मिल गई मगर जरूरी वस्तुओं के लिए उसके पास रकम नहीं थी। पुलिस ने ही पैसे जुटाकर उसकी चाय की दुकान शुरू कराई।

आज वह दिन भर में 100 से 150 रुपए तक कमा लेता है। उसने कुछ पैसा जमा करना भी शुरू कर दिया है। भेरू की बीते दिनों पढ़ने की इच्छा जागी। उसने इसके लिए इरबिन शाह से मदद मांगी। शाह ने थाना परिसर में ही चलने वाले स्कूल की पांचवी कक्षा में दाखिला दिला दिया और पुस्तकें भी उपलब्ध करा दी। भेरू दिन में दो घंटे स्कूल में जाकर पढ़ता हैं और शेष वक्त में पुलिस को चाय पिलाने का काम करता है। इरबिन शाह बताती हैं कि पिछले दिनों अतिक्रमण हटाया गया था उसमें कुछ गुमटियां भी थाने तक पहुंची थी, उन्हीं में से एक गुमटी को सुधार कर भेरू के लिए तैयार किया गया।

Tuesday, June 17, 2008

जनता ने, जनप्रतिनिधियों को कुर्सी से उतार कर, इतिहास रच दिया

निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की एक अर्से से देश में चल रही बहस के बीच छत्तीसगढ़ के तीन नगर पंचायतों के अध्यक्षों को वापस बुलाकर मतदाताओं ने आज इतिहास रच दिया। इन परिणामों ने राज्य के स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के उन सभी जनप्रतिनिधियों के लिये खतरे की घंटी बजा दी है जो निर्वाचित होने के बाद जनआकांक्षाओं को पूरा करने में उदासीन रहे हैं।

राज्य के इतिहास में पहली बार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के लिए हुए मतदान की आज हुई गणना में ‘खाली कुर्सी’ के पक्ष में 50 प्रतिशत से अधिक मतदान होने के कारण तीनों ही नगर पंचायत गुन्डरदेही, नवागढ़ एवं राजपुर के अध्यक्ष पद से हट गए। तीनों नगर पंचायतों में एक जैसे परिणाम से राजनीतिक हलके में भी इसके आने वाले दिनों में पड़ने वाले असर पर चर्चा शुरू हो गई है। वापस बुलाने के लिए हुए मतदान से लेकर परिणाम तक राजनीतिक दलों एवं प्रेक्षकों ने इन चुनावों पर काफी नजदीक से इस पर नजर रखी थी। जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के लिए पहली बार हुए मतदान में तीनों ही स्थानों पर आधे से अधिक लोगों ने उन्हें नापसन्द किया और वापस बुलाने के पक्ष में मतदान किया। इन परिणामों से जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के मामले राज्य में तेजी से बढ़ सकते हैं।

मतदान के लिए मतपत्र में केवल दो चिन्ह बनाए गए थे जिसमें एक खाली कुर्सी का तथा दूसरा चिन्ह भरी कुर्सी का था। भरी कुर्सी के चिन्ह का आशय अध्यक्ष के पक्ष में तथा खाली कुर्सी का उसे हटाये जाने का था। तीनों स्थानों पर भरी हुई कुर्सी के पक्ष में कुल पड़े वोटों में से 50 प्रतिशत से कम मत पड़े।

निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का कानून बहुत पुराना है पर इसका पालन आमतौर पर नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ नगरपालिका अधिनियम 1961 की धारा- 47 में प्रावधान है कि गठन के दो वर्ष बाद सम्बधित नगरपालिका या नगर पंचायत के तीन चौथाई पार्षद अगर कलेक्टर को अध्यक्ष के विश्वास खो देने का लिखकर देते हैं, तो उसको वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इन प्रकरणों में भी कलेक्टरों के पास पार्षदों ने लिखित शिकायत की थी जिसका पहले उन्होंने परीक्षण करवाया फिर राज्य सरकार को इस बारे में रिपोर्ट भेज दी। राज्य सरकार ने उस पर विचार करने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव करवाने के लिए सूचित किया, जिसके बाद ये चुनाव करवाए गये।

परिवहन मंत्री को लिफ्ट दी, ट्रैफिक पुलिस ने क़ानून तोड़ने का आरोप चालक पर लगाया

पंजाब के परिवहन मंत्री मास्टर मोहन लाल को भले ही एक स्कूटर चालक ने घर तक लिफ्ट दे दी हो, लेकिन चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस उन्हें लिफ्ट नहीं दे रही है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ हाल ही मास्टर जी ने अपने सरकारी घर से राज्य सिविल सचिवालय तक 10 किमी. साइकिल पर यात्रा की थी। घर वापस आते समय उन्होंने एक स्कूटर सवार से लिफ्ट ले ली, पर गलती यह हो गई कि वे बिना हैलमेट पहने स्कूटर पर बैठ गए।

दैनिक भास्कर के अनुसार, मास्टर मोहन लाल जब सेक्टर 9-10 से गुजर रहे थे, इसी दौरान खींची गई उनकी फोटो अगले दिन अखबारों में छप गई। इसी आधार पर ट्रैफिक पुलिस ने Traffic Violation Information Slip (टीवीआईएस) जारी कर दी। वे जिस स्कूटर (पीबी-65 एस 3726) पर बैठे थे, वह मोहाली में रजिस्टर्ड है। ट्रैफिक पुलिस सोमवार को मोहाली में लाइसेंसिंग अथॉरिटी से स्कूटर चालक के घर का पता लगाएगी और फिर उन्हें स्लिप थमा कर स्कूटर के डाक्यूमेंट के साथ सेक्टर-29 स्थित ट्रैफिक पुलिस लाइन बुलाएगी। स्कूटर चालक का चालान तो होगा ही, अगर उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस और पॉल्यूशन फ्री सर्टिफिकेट नहीं मिला तो उसे मास्टर जी को लिफ्ट देने के एवज में फाइन भी भरना होगा।

मंत्री जी ने झूठा शपथ पत्र दिया

मध्य प्रदेश के गृह राज्य मंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री - पशुपालन मंत्री द्वय के बाद अब तक खुद को बीए पास बताने वाले भाजपा विधायक व उडीसा के वाणिज्य व परिवहन मंत्री जयनारायण मिश्र का कारनामा सामने आया हैउपजिलाधीश कैलाश साहू की जांच रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि उन्होंने वर्ष 1984 में न तो बीए परीक्षा दी थी और न ही पास हुए थे। डीएम पीके पटनायक ने इस रिपोर्ट को राज्य चुनाव आयोग के पास भेज दिया है। अब मंत्री का भविष्य चुनाव आयोग के फैसले पर टिका है। इस आरोप में उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है।

मंत्री जयनारायण मिश्र की योग्यता पर संबलपुर विकास मंच ने सवालिया निशान लगाते हुए सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी थी। मंच ने आरोप लगाया था कि विधानसभा चुनाव के दौरान दाखिला अपने नामांकन पत्र में जयनारायण मिश्र ने गलत जानकारी दी थी। वर्ष 1984 में बीए पास नहीं करने के बावजूद उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता बीए बताई थी। मंच की ओर से जयनारायण मिश्र के शिक्षा योग्यता के बारे में जानकारी लिए बुर्ला नगर निकाय कालेज से भी सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी गई थी, लेकिन वहां से मिली जानकारी अधूरी थी।

इसके बाद संबलपुर विश्वविद्यालय से इस आशय की जानकारी मागी गई थी। विश्वविद्यालय की ओर से यह सब जानकारी इस मामले की जांच कर रहे उपजिलाधीश को दी गई है, जिसमें साफ बताया गया है कि वर्ष 1984 में बुर्ला नगर निकाय कालेज से जयनारायण मिश्र नाम से किसी परीक्षार्थी ने परीक्षा नहीं दी थी। उधर, इस मामले पर मंत्री जयनारायण मिश्र का रवैया अब भी पूर्ववत बना हुआ है। इतनी चर्चा के बाद भी जयनारायण मिश्र ने अब तक अपनी डिग्री प्रस्तुत नहीं की है। उन्होंने फिर से दोहराया है कि समय आने पर ही वह अपना पत्ता खोलेंगे।

Monday, June 16, 2008

अमेरिकी विश्वविद्यालय को भारतीय का दान

अमेरिका में भारतीय मूल के एक उद्योगपति ने न्यूयार्क के एक विश्वविद्यालय को 1.1 करोड़ डॉलर (लगभग 47 करोड़ रुपए) की राशि दान में दी है। मूल रूप से अमृतसर के रहने वाले औषधि उद्योगपति जॉन पी. कपूर ने बफेलो स्थित State University of New York को यह राशि दान में दी है। कपूर इस विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं। वर्ष 1960 में इसी विश्वविद्यालय ने कपूर कोस्नातक फेलोशिपप्रदान की थी। उस समय कपूर के पास आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे।

कपूर द्वारा दान में दी गई राशि से विश्वविद्यालय परिसर में औषधि विद्यालय की स्थापना की जाएगी और साथ ही छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। कपूर ने इंडो-एशियन न्यूज सर्विस से कहा, “इस विश्वविद्यालय ने मुझे काफी कुछ दिया है। आज मैं किसी की भी सहायता करने में सक्षम हूं और मैं सबसे पहले इस विश्वविद्यालय में योगदान दूंगा।” कपूर ने इस विश्वविद्यालय से वर्ष 1972 में चिकित्सा रसायन शास्त्र विषय में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। इसके बाद वे औषधि उद्योग में कूद पड़े। काफी कम समय में एक सफल उद्योगपति का दर्जा प्राप्त करने वाले कपूर अपने जीवन में इस विश्वविद्यालय के योगदान कभी नहीं भूलते हैं। कपूर ने वर्ष 2000 में भी इस विश्वविद्यालय को 50 लाख डॉलर की राशि दान में दी थी।

Sunday, June 15, 2008

हम किसी से कम हैं क्या !?

लगता है आजकल मध्यप्रदेश को ख़बरों के मध्य रखा जाना भा रहा है! आईपीएल के दौरान चीयर गर्ल्स का मुखर विरोध करने वाली सरकार के दो मंत्री शुक्रवार, १३ जून को बालाघाट में लगे एक सर्कस में पहुँचे, जहाँ कला के नाम पर महिलाओं का अश्लील नृत्य चल रहा था। वे यहाँ लोक कल्याण शिविर में हिस्सा लेने पहुँचे थे। इतना बता दें कि यह ख़बर और विवरण पीटीआई-भाषा द्वारा जारी की गयी है।

मंत्रीजी के अलावा पार्टी के कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस आयोजन में शामिल हुए थे। मौका था वन विभाग द्वारा लोक वानिकी योजना के हितग्राहियों को राशि के वितरण का। इसके बाद वन विभाग ने सर्कस के एक मुफ्त शो का आयोजन किया था। इस आयोजन में राज्य के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री चौधरी चंद्रभानसिंह और पशुपालन मंत्री रमाकांत तिवारी स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मौजूद थे। सर्कस में विभिन्न कलाबाजियों के अलावा महिलाओं का एक ऐसा भौंडा और अश्लील नृत्य का आयोजन किया गया था, जिसे आमतौर पर परिवार के साथ कोई भी बैठकर देखना पसंद न करे, लेकिन संस्कृति बचाने की वकालत करने वाले सरकार के ये दो मंत्री शायद इस आयोजन में इतने मशगूल हो गए थे कि यहाँ कला के नाम पर चल रही अश्लीलता उन्हें दिखाई नहीं दी।

बाद में संवाददाताओं द्वारा पूछे जाने पर बालाघाट के प्रभारी मंत्री चन्द्रभानसिंह ने स्वीकार किया कि उन्हें सर्कस में नहीं आना चाहिए था, लेकिन उनका कहना था कि जैसे ही अश्लील नृत्य होते देखा तो वे उठकर चले आए थे। उन्होंने माना कि परिवार और छोटे बच्चों की उपस्थिति में होने वाले आयोजन में ऐसा भौंडा प्रदर्शन सही नहीं है। दूसरी तरफ पशुपालन मंत्री रमाकांत तिवारी ने इस मामले में पूछे जाने पर कहा कि यह तो कला प्रदर्शन है। कला में प्रतिबंध लगाना सर्वथा अनुचित है और लगाया भी नहीं जा सकता है।

वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह

वैसे तो यह मात्र एक ख़बर है लेकिन यदि इसे गृह राज्य मंत्री के ताजा प्रकरण से जोड़कर पढा जाए तो बहुत कुछ साफ हो जाता है। ख़बर दैनिक भास्कर में आयी है कि मध्य प्रदेश सरकार किसानों के बिजली चोरी के प्रकरण माफ करेगी। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने यह घोषणा करते हुए कहा कि वे गरीबों और किसानों को अदालतों के चक्कर लगाने से बचाना चाहते हैं। मुख्यमंत्री उज्जैन से 16 किमी दूर ग्राम बांदका स्थित औद्योगिक क्षेत्र में 88 करोड़ रुपए की लागत के स्टील प्रोसेसिंग कारखाने के शिलान्यास समारोह में बोल रहे थे। इसमें मुख्य अतिथि केंद्रीय इस्पात व रसायन मंत्री रामविलास पासवान थे।

यह भी ख़बर आयी है कि बिजली चोरी के मामले में नेता ही नहीं अफसर भी पीछे नहीं है। होशंगाबाद की नवीन जेल में स्थित जेलर के शासकीय आवास में भी बिना कनेक्शन लिए बिजली का उपयोग किया जा रहा है। विद्युत वितरण कंपनी तीन बार कनेक्शन काट चुका है। पुलिस लाइन और नवीन जिला जेल क्षेत्र में सीधे तार डालकर बिजली जलाई जा रही है। विद्युत वितरण कंपनी के कार्यपालन यंत्री पीके वर्मा ने मीडिया को बताया कि जेलर के शासकीय आवास की सर्विस लाइन तीन बार काटी जा चुकी है। इसके बाद भी अभी तक कनेक्शन नहीं लिया गया। जेल परिसर के अन्य शासकीय आवासों और पुलिस लाइन के क्वार्टरों की भी यही स्थिति है। एसपी और आरआई को बताने के बाद भी सहयोग नहीं मिल रहा है। इधर जेलर बीके कुड़ापे अपनी सफाई में कहते हैं कि वे जेल के मीटर से लाइन डालकर बिजली जला रहे हैं। विद्युत वितरण कंपनी से कई बार कहा गया लेकिन कनेक्शन नहीं दिया गया। आरआई सुधीर तिवारी का कहना है कि उन्हें पुलिस लाइन में बिजली चोरी होने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

सीहोर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएम एचओ) के कार्यालय में भी बिजली चोरी पकड़ी गई है। यहां सीएमएचओ आफिस किराए के भवन में चलता है। पिछले दिनों बिजली वितरण कंपनी की विजिलेंस टीम ने इस दफ्तर में छापा मारा तो बिना मीटर के बिजली जलाई जा रही थी। कंपनी ने करीब एक लाख 22 हजार रुपए जमा करने का नोटिस भी दिया है। इस संबंध में सीएमएचओ डा. एएल मरावी ने बताया कि तीन मीटरों में से एक खराब हो गया था। इस मीटर को बदलने के लिए वितरण कंपनी के अधिकारियों से कहा गया। इस पर उन्होंने खराब मीटर तो निकाल लिया लेकिन नया मीटर नहीं लगाया और खंबे से डायरेक्ट कनेक्शन कर दिया।

Friday, June 13, 2008

क्या मध्यपदेश के गृहराज्य मंत्री बिजली चोर हैं?

मध्यप्रदेश के नवनियुक्त गृह एवं परिवहन राज्य मंत्री रामदयाल अहिरवार के पुत्र द्वारा थानेदार के साथ अभद्र व्यवहार का मामला शांत भी नहीं हो पाया था, कि उनके निजी मकान में कथित तौर पर बिजली चोरी के मामले ने एक नयी मुसीबत और खडी कर दी है।

छतरपुर जिले में स्थित गृह नगर महाराजपुर में श्री अहिरवार के मकान में लगभग सात वर्षों से बिजली का उपभोग किया जा रहा है, लेकिन उनके या परिवार के किसी सदस्य के नाम से बिजली कनेक्शन नहीं हैं। इतना ही नहीं, घर में एयरकंडीशनर भी लगा हुआ है। मामला खबरों में आने के बाद विद्युत मंडल के अधिकारी इस संबंध में बात करने तक तैयार नहीं हैं।

उधर प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता ने आज इस संबंध में राज्यपाल डा बलराम जाखड को पत्र लिखकर श्री अहिरवार को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य मंत्रिमंडल में हाल में शामिल किये गये श्री अहिरवार के निजी आवास में बिजली चोरी का मामला साबित हो गया है। श्री अग्रवाल ने आरोप लगाते हुये कहा कि श्री अहिरवार अवैध तरीके से बिजली कनेक्शन लेकर पिछले सात- आठ वर्षों से इसका उपभोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मंत्री पुत्र के हाल में हुये विवाह समारोह में भी बिजली चोरी की गयी।

पांच जून को मंत्री पद की शपथ लेने वाले श्री अहिरवार के पुत्र लक्ष्मी ने महाराजपुर के थाना प्रभारी के घर में घुसकर उनके साथ कथित तौर पर मारपीट की थी और घर और परिसर में खडे वाहनों में तोडफोड की थी। इससे संबंधित मामला दर्ज होने पर लक्ष्मी अहिरवार और उनके साथियों को गिरफ्तार कर जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

Thursday, June 12, 2008

रेलवे के यात्रा कूपन लेते हैं, जेल में बंद विधायक

विधायक महोदय जेल में बंद हैं तो क्या हुआ, उन्हें यात्रा कूपन तो चाहिए! बात सुनने में अटपटी लगती है लेकिन यह सच है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के दो सदस्य जेल में बंद होने के बावजूद रेलवे के यात्रा कूपन लेते हैं। चर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में अमरमणि त्रिपाठी चार साल से जेल में बंद हैं। जेल में रहते हुए वे महाराजगंज जिले की लक्ष्मीपुर सीट से 2007 का विधानसभा चुनाव जीते हैं। जब विधानसभा का सत्र चलता है तो वे इसमें भाग लेने के लिए पुलिस हिरासत में जेल से विधानसभा आते हैं। उधर मुख्तार अंसारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में लगभग डेढ़ साल से जेल में हैं। वे भी मऊ जिले की मऊ सदर सीट से जेल में रहते हुए विधानसभा के लिए चुनकर आए हैं।

विधानसभा का पिछला सत्र 11 फरवरी से 17 मार्च के बीच आहूत हुआ था। इसमें मुख्तार अंसारी और अमरमणि त्रिपाठी दोनों भाग लेने आए थे। इस दौरान दोनों ने पटल कार्यालय जाकर दस-दस हजार रूपये के रेलवे यात्रा कूपन लिए। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस द्वारा इस बारे में पूछे जाने पर विधानसभा के प्रमुख सचिव राजेन्द्र प्रसाद पांडेय ने बताया कि जेल में हो या कहीं और, विधायक को सभी सुविधाएं अनुमन्य हैं। जेल में है तो फिर यात्रा कहां और कैसे होगी, यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह एक अलग मुद्दा है, फिर भी नियम के तहत विधायक कूपन ले सकता है।

उत्तर प्रदेश राज्य विधान मंडल (सदस्यों की उपलब्धियां और पेंशन) अधिनियम 1980 एवं तध्दीन बनाई गई नियमावली के तहत विधायक प्रदेश के भीतर अथवा बाहर रेल यात्रा के लिए प्रतिवर्ष बीस हजार रुपये के कूपन ले सकते हैं। बहरहाल विधानसभा के माननीय सदस्य जेल में बंद होने के बावजूद इस सुविधा का लाभ उठाने से चूकना नहीं चाहते।

इस बच्चे ने जो कुछ सहा है वह वयस्कों को भी सहमा सकता है।

गुरुवार, १२ जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस है। भारत में यह दिन सलीम जैसे बच्चों के लिए बेमानी है और सारे कानून कायदे लगभग बेमतलब क्योंकि यहां महज आठ साल के सलीम को सवेरे छह बजे से रात 12 बजे तक अपनी मर्जी के विरुद्ध न सिर्फ काम करना पड़ता है बल्कि वक्त-बेवक्त उस पर शारीरिक शोषण का कहर भी टूटता है।

दैनिक जागरण में आशुतोष झा की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के जरी कारखाने से मुक्त कराया गया सलीम आज सीधे खड़े होने में भी कराहता है। इस बच्चे को जब एक मनोवैज्ञानिक ने पेंसिल और सादा कागज दिया तो उसने एक नग्न व्यक्ति की तस्वीर बनाई। सलीम चुप था लेकिन इस तस्वीर ने वह सब कुछ बोल दिया जो सलीम पर बीतता रहा है। कोई साल भर पहले सलीम को बिहार के सीतामढ़ी जिले से एक मौलाना ने दिल्ली का रास्ता दिखाया था। रोज धर्म का पाठ पढ़ाने वाले इस मौलाना ने सलीम के मां बाप को बच्चे के सुनहरे भविष्य और कमाई का सपना दिखाया था। लेकिन दिल्ली आते ही मौलाना ने सलीम को जरी व्यवसाय में झोंक दिया।

दरअसल, दिल्ली में खुद मौलाना का जरी व्यवसाय है। यहां सलीम का दिन छह बजे से पहले ही शुरू हो जाता था जहां उसे 15 लोगों के लिए नाश्ता तैयार करना पड़ता था। उसके साथ उसकी उम्र के ही तीन बच्चों के लिए भी यही दिन की शुरूआत थी। कभी जलना तो कभी हाथ कटना आम बात थी। दो घंटे की आग झेलने के बाद असली काम शुरू होता था। यानी जरी और कढ़ाई का। चार घंटे लगातार काम फिर खाने के लिए आधे घंटे की छुंट्टी। फिर चार पांच घंटे काम और फिर रात का खाना तैयार कर बर्तन साफ करना ताकि सुबह नाश्ता बनाने में देर न हो।

एक सुबह सलीम की जिंदगी में रोशनी आई। पास ही रहने वाली एक औरत के अंदर की मां जागी और उसने बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं को इसकी जानकारी दी। तत्काल कार्रवाई हुई और सलीम सहित दूसरे बच्चे गुलामी से मुक्त हो गए। अब सलीम आजाद है और बचपना समझने और पहचानने की कोशिश कर रहा है

क्या इन्हें आप अबला नारी कहेंगे!?

राजधानी के मयूर विहार इलाके में दो बहनों ने अपनी जान की बाजी लगाकर दो चेन स्नैचरों का मुकाबला किया और एक को धर दबोचा। झपटमार ने उन पर गोली चलाई। जख्मी होने के बावजूद दोनों ने दबोचे गए बदमाश को नहीं छोड़ा। इतने में भीड़ जमा हो गई, जिसने इस लुटेरे को जमकर पीटा और फिर पुलिस के हवाले कर दिया। दूसरा लुटेरा भाग निकलने में कामयाब रहा।

बड़ी बहन को पुलिस ने अस्पताल में भर्ती कराया है, जहां उसकी हालत स्थिर है। मयूर विहार इलाके के चिल्ला गांव में संतोष (35) छोटी बहन सुदेश (20) के साथ घर से थोड़ी दूर स्थित रोड के किनारे उपले थापने गई थी। सुबह करीब 6:30 बजे दोनों घर से सौ कदम की दूरी पर स्थित बिजली घर के पास ही पहुंची थी कि पल्सर मोटरसाइकिल सवार दो युवक वहां आए।। संतोष को काफी गहने पहने देख कर युवक वहां रूक गए। एक युवक ने संतोष के गले से सोने की चेन झपट ली तथा अन्य गहने भी झपटने लगा। इस पर दोनों बहनें बदमाश से भिड़ गईं।

काफी कोशिशों के बाद भी बदमाश जब खुद को उनके चंगुल से नहीं छुड़ा सका तो उसने अपने साथी से गोली चलाने के लिए कहा। बदमाश ने लड़कियों को डराने के लिए दो गोलियां जमीन की तरफ चलाईं, लेकिन दोनों ने उसके साथी को नहीं छोड़ा। इस पर उसने संतोष की तरफ निशाना साधते हुए गोली चला दी। गोली संतोष के कंधे के पास लगी। गोली के छर्रे छोटी बहन के हाथ और मुंह पर लगे। दोनों बहनों का शोर सुनकर लड़की के चाचा विनोद और संजय अन्य लोगों के साथ घटनास्थल की तरफ दौड़े। लोगों को आते देख एक बदमाश अपनी बाइक से भाग निकला।

बताते हैं कि एक रिक्शे वाले ने अपना रिक्शा अड़ाकर उसे रोकने की कोशिश भी की। दूसरे को लोगों ने दबोच लिया और जमकर धुनाई की। सूचना मिलते ही मयूर विहार थाने के एसएचओ राजेंद्र गौतम और इंस्पेक्टर अनिल कुमार शर्मा अन्य स्टाफ के साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने बदमाश को हिरासत में लेकर तलाशी ली तो उसके पास से तीन कारतूस और मोबाइल फोन बरामद हुए। उसका नाम उमेश बताया गया है। संतोष को इलाज के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से उसे होली फैमिली अस्पताल रेफर कर दिया गया। पुलिस का कहना है कि उमेश से दूसरे साथी के बारे में पूछताछ की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि संतोष शादीशुदा है और उसके पति गजराज सेना में कार्यरत हैं। इस समय अपने तीन बच्चों के साथ मायके आई हुई है। सुदेश ने बताया कि सुबह-सुबह अचानक हुई इस घटना से एक पल के लिए तो मैं सहम गई थी लेकिन मैंने फौरन होश संभाला और बदमाश से भिड़ गई। इलाके की महिलाओं का कहना है कि चेन झपटने की घटनाएं यहां पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन अब शायद कोई बदमाश यहां इतनी हिम्मत शायद ही जुटा सके। पूरा गांव दोनों बहनों की इस बहादुरी पर नाज कर रहा है और हर एक की जुबान पर यही बात है कि जान की परवाह किए बगैर दोनों ने बदमाश को धर दबोचा।

पुलिस भी संतोष और सुदेश की बहादुरी की दाद दे रही है।

Tuesday, June 10, 2008

नकल का दोषी IPS अधिकारी फेल घोषित

एलएलबी प्रथम वर्ष की परीक्षा में नकल करने के दोषी पाए गए एक आईपीएस अधिकारी को गुजरात यूनिवर्सिटी ने शैक्षणिक सत्र 2007-08 की परीक्षा में फेल घोषित कर दिया है। 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी रजनीश राय को फेल करने का फैसला गुजरात विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने किया। यह सिफारिश विश्वविद्यालय सुधार समिति ने की थी।

गुजरात विश्वविद्यालय सुधार समिति ने राय को गांधीनगर स्थित सिद्धार्थ कालेज में एलएलबी प्रथम वर्ष की परीक्षा में नकल का दोषी पाया था। हालांकि, राय को फेल करने के फैसले पर अधिकारी बंटे हुए हैं। कार्यकारी परिषद के सदस्य सुधीर नानावती ने कहा कि 17 अधिकारियों में से सात ने इस निर्णय का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इस मामले में सुधार समिति ने जो प्रक्रिया अपनाई, वह विश्वविद्यालय के नियमों के अनुरूप नहीं है। कार्यकारी परिषद के एक अन्य सदस्य मनीष दोषी का भी यही कहना है। उन्होंने कहा कि हम इस मामले में अपनाई गई प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं।

विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि नकल के मामले की जांच खुद कुलपति ने की। दोषी ने कहा कि हम सजा के खिलाफ नहीं हैं लेकिन किसी भी प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए। इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। राय ने सुधार समिति के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले पर 24 जून को सुनवाई होनी है।

Monday, June 9, 2008

छात्र-छात्राएं जाते हैं हथियार लेकर स्कूल

स्कूलों में हिंसा का खौफ बाल मानस पर इस कदर हावी है कि करीब 12 फीसदी छात्र अपने साथ कभी न कभी चाकू जैसे हथियार लेकर स्कूल गए हैं। सफदरजंग अस्पताल एवं वर्धमान महावीर मेडिकल कालेज नई दिल्ली के Community Medicine के डाक्टर राहुल शर्मा के नेतृत्व में MIMS अंबाला और UCMS & GTB अस्पताल दिल्ली के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि स्कूल जाने वाला हर दूसरा छात्र पिछले एक साल में किसी किसी शारीरिक झगड़े में लिप्त रहा है।

अध्ययन के मुताबिक छात्र-छात्राओं से पूछा गया कि क्या वे चाकू, छड़ी, चाबुक और तलवार लेकर स्कूल गए हैं। इस पर करीब 12 फीसदी छात्र-छात्राओं ने जवाब दिया कि वे पिछले 30 दिन में कोई न कोई हथियार लेकर स्कूल गए। हथियार लेकर जाने वालों में छात्रों का 15.7 का प्रतिशत छात्राओं से 3.9 से ज्यादा था। शर्मा ने बताया कि इसकी वजह सिख समुदाय के छात्र-छात्राओं द्वारा धार्मिक वजहों के चलते कृपाण धारण करना हो सकता है, लेकिन अध्ययन में सिर्फ दो प्रतिशत ही सिख विद्यार्थी शामिल थे, इसलिए इस कारण का महत्व नजर नहीं आता।

Indian Journal of Community Medicine के ताजा अंक में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार 13 फीसदी छात्रों ने बताया कि उन्होंने पिछले 12 महीने में किसी न किसी हथियार से लोगों को घायल किया है या फिर उन्हें धमकाया है। इनमें भी अधिकांश तादाद छात्रों की है। अध्ययन में पाया गया है कि हर दूसरा लड़का पिछले एक साल में शारीरिक झगड़े में लिप्त रहा। जबकि हर पांच में से एक छात्रा भी किसी किसी रूप से समान अवधि में शारीरिक झगड़े में शामिल थी। शर्मा ने बताया कि अध्ययन में शामिल छात्र- छात्राओं में से लगभग 18 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें शारीरिक झगड़े में ऐसी चोट आई जिसके लिए चिकित्सा सुविधा देने की जरूरत थी।

यह अध्ययन दक्षिण दिल्ली के तीन स्कूल और दो कालेजों के 550 छात्रों पर किया गया है। इनमें 67.1 प्रतिशत छात्र और 32.9 प्रतिशत छात्राएं थी। इन छात्र-छात्राओं की उम्र 14 से 19 वर्ष के बीच है। अध्ययन में शामिल 62.4 प्रतिशत विद्यार्थियों ने अपना निवास निजी कालोनी या एक अलग बंगले में बताया। अध्ययन में शामिल तीन-चौथाई छात्र-छात्राएं एकल परिवार तथा बाकी संयुक्त परिवार के थे। बच्चों के व्यवहार के बारे में किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि कैसे बच्चे अपने माता-पिता, दोस्तों, भाई-बहनों, शिक्षकों या सेलिब्रिटी को धूम्रपान या मदिरापान करते देख उनसे प्रभावित हो जाते हैं।

Sunday, June 8, 2008

ये हमारा आज है, कल हम भी ऐसे ही होंगें

बात सिर्फ राजधानी की ही नहीं है। बेशक अपवाद मिलेंगे लेकिन कमोबेश यह स्थिति हर जगह है। एक राष्ट्रीय समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के 52 प्रतिशत बुजुर्गों के साथ उनके बच्चे व बहुएं गाली गलौज व मारपीट तक करते हैं। वे बुजुर्गों को संपत्ति अपने नाम करवाने के लिए उन पर दबाव डालते हैं। यही नहीं, जब किसी बिल्डर या कंस्ट्रक्शन कंपनी की नजर बुजुर्गों की जायदाद पर पड़ती है, तो अक्सर कई मामलों में ये लोग नए हथकंडे अपनाकर उन्हें अपनी जायदाद कम कीमत पर बेचने के मजबूर करते हैं। पुलिस या तो तमाशबीन बनी रहती है या अक्सर इनसे मिलकर बुजुर्गों को मामला निपटाने के लिए कहती है।

जैसा कि दैनिक हिन्दुस्तान लिखता है, Help Age India द्वारा किए गए सर्वे से यह भी सामने आया है कि संपत्ति के मामले में सबसे ज्यादा बुजुर्गों का उत्पीड़न राजधानी के बसंत विहार, ग्रेटर कैलाश, गुलमोहर पार्क, चित्तरंजन पार्क, फ्रैन्ड्स कालोनी, हौजखास, ग्रीन पार्क, लाजपत नगर, डिफेंस कालोनी जैसे पॉश इलाकों में होता है। दक्षिण दिल्ली के इलाकों में करीब 42 प्रतिशत बुजुर्ग उत्पीड़न के शिकार हैं। इन इलाकों के बेटे व बेटियां अपनी शानदार लाइफ स्टाइल के लिए बुजुर्गों से लगातार पैसों की मांग करती हैं। बुढ़ापे में बच्चों पर निर्भर होने के कारण लोग उनकी मांगों को ठुकारने में असमर्थ रहते हैं। उत्पीड़न के शिकार बुजुर्गों में 49 प्रतिशत पुरुष तथा 28 प्रतिशत महिलाएं हैं।

सर्वे के अनुसार उत्पीड़न के शिकार 44 प्रतिशत बुजुर्गों ने अपने उत्पीड़न की शिकायत पुलिस से की। शेष बुजुर्गों ने पुलिस व कानून पद्धति पर विश्वास न होने, बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव व परिवार की इज्जत आदि के कारण शिकायत नहीं की। मारपीट के अलावा बुजुर्गों के उत्पीड़न में और भी कई तरीके अपनाए जाते हैं। मसलन, उन्हें मित्रों, रिश्तेदारों से अलग-थलग कर दिया जाता है। अगर उनसे मिलना चाहें तो कह दिया जाता है कि वे बोल नहीं सकते। बुजुर्गों को पोते-पोतियों से मिलने नहीं दिया जाता। बुजुर्गों को बाहर निकल कर उनकी आयु के लोगों से मिलने-जुलने या घूमने नहीं दिया जाता।

आईये, आईये, आईये, हाईस्कूल परीक्षा के रिजल्ट में ६०% की गारंटी

उत्तर प्रदेश के एक निजी विद्यालय ने, हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट में कम से कम साठ प्रतिशत अंक दिलाने की गारंटी के साथ अपने यहां दाखिले की प्रक्रिया शुरू की है। 'गारंटी' शब्द ने ही उस विद्यालय में प्रवेशार्थियों की लम्बी कतार लगा दी। खुद विद्यालय प्रबंधतंत्र स्वीकार कर रहा है कि उसके यहां कई राज्यों के छात्र दाखिले के लिए आ रहे हैं।

पूरे प्रदेश में ज्यादातर निजी विद्यालयों द्वारा इसी तरह के विज्ञापन देकर छात्रों को प्रवेश के लिए अभी से बुलाया जाना शुरू कर दिया गया है। कोई और नहीं, प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों के प्रधानाचार्यो की जो एसोसिएशन है, वह तक मान रही है कि यह नकल की खुलेआम 'बुकिंग' हैं। उप्र प्रधानाचार्य परिषद के उपाध्यक्ष जेपी मिश्र कहते हैं, 'कोई विद्यालय इस बात की गारंटी कैसे ले सकता है कि इतने प्रतिशत अंक आयेंगे ही। यह तभी सम्भव है, जब वहां छात्रों की कॉपियां निर्धारित लक्ष्य को ध्यान में रख कर लिखवायी जाएं।'

जिन विद्यालयों द्वारा इस तरह के विज्ञापन प्रकाशित किये गये हैं, उनके यहां बाकायदा अभी से छात्रों को यह बताया जा रहा है कि उन्हें हर महीने कितने रुपये देने होंगे और परीक्षा से पूर्व एकमुश्त कितनी रकम जमा करनी होगी। पूर्व प्रधानाचार्य और वर्तमान में विधान परिषद में शिक्षक दल के सदस्य जगवीर किशोर जैन का सवाल है कि यह सब इतने खुले तौर पर हो रहा है, फिर भी इसका कोई संज्ञान नहीं ले रहा। सरकार को इस तरह के विज्ञापन देनेवाले विद्यालयों को नोटिस जारी करके पूछना चाहिये कि वे किस आधार पर कम से कम साठ प्रतिशत अंक दिलाने की गारंटी दे रहे हैं।

दैनिक जागरण के अनुसार, शिक्षा विभाग के आला अफसर भी दाखिले के समय ही न्यूनतम साठ प्रतिशत अंक गारंटी से इत्तेफाक नहीं रखते। कहते हैं कि कोई इस तरह की गारंटी कैसे ले सकता है लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि फिर इस तरह के विद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही। वैसे माध्यमिक शिक्षामंत्री रंगनाथ मिश्र का कहना है कि बोर्ड परीक्षा से पूर्व ही वह इस तरह की व्यवस्था करने जा रहे हैं कि गोरखधंधा करनेवाले किसी व्यक्ति की दाल नहीं गलेगी।

Thursday, June 5, 2008

एक मानव ने अकेले ३ करोड़ १५ लाख पेड़ लगाए, ५ करोड़ की इच्छा

84 साल की उम्र में दामोदर राठौर कुछ और पेड़ लगा पाने के लिए कुछ साल अधिक जीने की ख्वाहिश रखते हैं। वह अब तक 3 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं। उनका लक्ष्य 5 करोड़ पेड़ लगाने का है। कुछ साल पहले उन्हें वृक्ष मित्र के अवॉर्ड से नवाजा गया, लेकिन इसके अलावा उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वह बस इस बात से खुश हैं कि कम से कम अब लोग उनकी बात सुनने लगे हैं और उसे मानकर पेड़ काटने से बचते हैं।

नवभारत टाइम्स में पूनम पाण्डे की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में सीमांत जिले पिथौरागढ़ से लेकर राजधानी देहरादून तक दामोदर राठौर पेड़ लगा चुके हैं। फिर चाहे वह दूर-दराज के पहाड़ हों या मैदानी। इंटर तक पढ़े दामोदर राठौर ने 1950 में ग्रामसेवक के तौर पर काम करना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों के आदेश पर वह पेड़ लगाते और उनकी देखभाल करते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पेड़ लगाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। क्योंकि लगाने के लिए जो पौधे आते हैं वे आधे सूखे होते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद सिर्फ कागजों पर ही उस ओर ध्यान दिया जाता है। सरकार की तरफ से इस मद में आए धन का पूरा दुरुपयोग हो रहा है। दामोदर कहते हैं, 'यह सब बातें मुझे बहुत परेशान करती थीं। मैंने फैसला किया कि अब अपने बूते पेड़ लगाकर दिखाऊंगा और साबित करूंगा कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ मुमकिन है।' उन्होंने ग्राम सेवक का काम छोड़ दिया।

1952 से पेड़ लगाने की यह तपस्या अब तक अनवरत जारी है। वह कुल 3 करोड़ 15 लाख 10 हजार 705 पेड़ लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में ज्यादातर पेड़ सिलिंग, उतीश और बाज के लगाए हैं। अब वह चिकित्सीय पेड़-पौधे भी लगा रहे हैं। ज्यादातर पेड़ ग्राम पंचायत की जमीन पर और कुछ व्यक्तिगत जमीन पर भी लगाए हैं। उनके अनुसार, पेड़ लगाने के लिए इजाजत लेना बड़ा पेचीदगी भरा काम हैं। पौधों के लिए उन्होंने एक नर्सरी बनाई है। बागवानी की किसी डिग्री के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मैंने प्रकृति से सीखा है। प्रकृति ही मेरी पाठशाला है। परिवार में उनकी बीबी और 17 साल की एक बेटी है। लेकिन दामोदर कहते हैं कि उनके 3 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। लगाए गए पेड़ों को वह अपने बच्चे ही मानते हैं और उसी तरह उनकी देखभाल भी करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उनकी तबीयत खराब ही रहती है, लेकिन 5 करोड़ पेड़ लगाने का जुनून उनमें नया जोश भरता है। वह डीडीहाट के पास 6900 फुट की ऊंचाई पर जंगलों के बीच कुटिया बना कर रहते हैं। घर का खर्च जुटाने के लिए उनकी पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती हैं। वह प्रार्थना भी करते हैं तो यही मांगते हैं कि उनका लक्ष्य पूरा होने से पहले भगवान उन्हें अपने पास न बुलाए।

Wednesday, June 4, 2008

15 साल की उम्र में ५० शादियां

आजकल इंदौर के एक पंडित जी की बड़ी चर्चा है। इस पंडित को धार्मिक अनुष्ठान कराने में गजब की महारत हासिल है। इस पंडित जी ने महज 15 साल की उम्र में 50 जोड़ों को शादी के बंधन में बंधवा दिया है।

इंदौर का राहुल इंगले स्थानीय बौद्ध समुदाय के बीच 'नन्हे पंडित' के नाम से मशहूर है। यह प्यार भरी पदवी उसे तीन साल की छोटी-सी उम्र में ही मिल गई थी। उसके पिता साहिब राव इंगले शहर के अन्नपूर्णा क्षेत्र में एक छोटा-सा आटो गैरेज चलाते हैं। इंगले बताते हैं कि बचपन में जब राहुल परिवार के साथ विवाह समारोहों में जाता था तो मंत्रोच्चार को बेहद ध्यान से सुनकर उन्हें पहाड़े की तरह दोहराया भी करता था। नतीजतन विवाह विधान के सभी मंत्र उसे कंठस्थ हो गए। साहिबराव बताते हैं कि राहुल का उत्साह देखकर उसके लिए एक गुरू तलाशा गया। धार्मिक शिविरों में भाग लेकर राहुल ने अनुष्ठान संपन्न करवाने के लिए आवश्यक दीक्षा भी ली है। राहुल का दावा है कि वह जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार विधिवत संपन्न करवा सकता है। नवीं कक्षा के छात्र राहुल ने हाल ही में पचासवां विवाह करवाया है। राहुल का कहना है कि वह जीवनभर इस सिलसिले को कायम रखेगा क्योंकि यह एक शुभ काम है और उसे यह काम पसंद भी है। राहुल के यजमान पूरे मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में भी फैले हैं। विशेष बात यह है कि नन्हे पंडितजी दक्षिणा के रूप में एक पैसा भी नहीं लेते हैं।

बाहरी गुंडों से अपने साथ पढ़ने वालों को पिटवाया, बच्चों ने

महरौली के सतबड़ी इलाके में स्थित एक प्राइवेट स्कूल में रविवार की शाम एक चौंकाने वाला मामला सामने आया। स्कूल में पढ़ने वाले कुछ बच्चों ने आपसी झगड़े का बदला लेने के लिए बाहर से कुछ बदमाशों को बुलवाकर अपने क्लासमेट्स की पिटाई करवा दी।

नवभारत टाइम्स के मुताबिक सतबड़ी के इस रेजिडेंशल स्कूल में 12 सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं और इनमें से कम से कम साठ प्रतिशत बच्चे स्कूल परिसर में बने हॉस्टल में रहते हैं। इन दिनों छुट्टी होने की वजह से यहां रहने वाले ज्यादातर बच्चे अपने घर गए हुए हैं, लेकिन समर कैंप चलने की वजह से 10वीं और 12वीं के बच्चे अभी भी स्कूल में ही रह रहे हैं। रविवार की शाम लाठियों और चाकुओं से लैस करीब आधा दर्जन गुंडे स्कूल की दीवार फांदकर अंदर घुस गए और मैदान में खेल रहे तीन बच्चों को जमकर पीटने लगे। जब चौकीदार की नजर उन पर पड़ी, तो उसने शोर मचाया। उस वक्त काफी सारे बच्चे स्कूल के डोम में मौजूद थे। उन्हें बचाने के लिए चौकीदार ने डोम का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। जब तक अन्य चौकीदार व स्कूल के टीचर्स वहां पहुंचे, बदमाश भाग खड़े हुए।

इस बीच डोम में बंद एक बच्चे ने अपने पिता को फोन करके उन्हें मदद के लिए बुलाया। उसके पिता ने पुलिस को सूचना दी और अपने कुछ परिचितों को लेकर स्कूल पहुंचे। जख्मी हुए तीन बच्चों को ऑर्थोनोवा हॉस्पिटल ले जाया गया। स्कूल प्रशासन मामले को दबाना चाहता था, लेकिन जब बच्चों के परिजनों ने दबाव बनाया, तो उन्होंने पुलिस को लिखित में घटना की सूचना दी। सोमवार को पुलिस ने आईपीसी की धारा 323 और 452 के तहत मामला दर्ज कर लिया। एफआईआर में दो लड़कों को नामजद किया गया है। ये दोनों इसी स्कूल के छात्र हैं। इन दोनों पर आरोप है कि इन्होंने बाहर से बदमाशों को बुलवाकर अपने साथियों की पिटाई करवाई।

Monday, June 2, 2008

पांच कक्षाओं वाले विद्यालय में पढ़ता है मात्र एक छात्र!

हिमाचल प्रदेश के एक गांव में एक ऐसा भी विद्यालय है जहां केवल एक विद्यार्थी है और शिक्षक दो हैं। किसी भी दिन विद्यालय के शुरू और बंद होने का पूरा दारोमदार पांचवीं कक्षा के उसी एक विद्यार्थी पर रहता है। राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर दूर स्थित हमीरपुर जिले के राजकीय धरियाना प्राथमिक विद्यालय के इस एकमात्र विद्यार्थी के आने पर शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को विद्यालय में ताला लगाना पड़ता है।

गांव के लोगों का कहना है कि 15 वर्ष पहले खुले इस विद्यालय में एक समय काफी विद्यार्थी थे। बाद में लोगों ने अपने बच्चों को आस-पास के निजी विद्यालयों में भेजना शुरू कर दिया। अभिभावकों का मत है कि वहां बेहतर शिक्षा दी जाती है। इस विद्यालय में कक्षा एक से लेकर कक्षा चार तक में एक भी बच्चे नहीं हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस के अनुसार चौंकाने वाली बात यह है कि यह विद्यालय राज्य के शिक्षा मंत्री आई.डी. धीमान के निर्वाचन क्षेत्र मेवा के अधीन आता है।