भारत की तलाश

 

Tuesday, May 27, 2008

दो लाख से ज़्यादा परीक्षार्थी हिंदी में फेल हो गए, उत्तरप्रदेश में!

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की इंटरमीडिएट परीक्षा में मातृभाषा हिंदी में ही सवा दो लाख परीक्षार्थी फेल हो गये। 2008 की इंटरमीडिएट परीक्षा में सूबे में 17 लाख 4 हजार 660 परीक्षार्थी शामिल हुये थे। इनमें 11 लाख 68 हजार 889 उत्तीर्ण हुये। इस प्रकार 5 लाख 71 हजार 771 परीक्षार्थी फेल हो गये।

इंटरमीडिएट में हिंदी दो विषयों 'हिंदी' व 'सामान्य हिंदी' के रूप में पढ़ाई जाती है। सामान्य हिंदी विज्ञान व वाणिज्यिक वर्ग में तथा अन्य वर्गो में हिंदी का पर्चा होता है। इस वर्ष हिंदी में 3 लाख 98 हजार 877 छात्र शामिल हुए थे। इनमें से 3 लाख 4895 सफल रहे। 5 लाख 76 हजार 713 छात्राओं ने परीक्षा दी जिनमें 5 लाख 11 हजार 311 सफल रहीं। छात्राओं का पास प्रतिशत 91. 07 रहा तो छात्र उनसे पीछे रहे। दोनों को मिलाकर 9 लाख 60 हजार 290 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी। इनमें 8 लाख 16 हजार 206 ने सफलता पाई। इस प्रकार 1 लाख 44 हजार 84 परीक्षार्थी फेल हो गये। सामान्य हिंदी में भी छात्राएं आगे रहीं। उनका पास प्रतिशत 94.49 प्रतिशत रहा जबकि छात्र 87.30 प्रतिशत ही पास हो सके। सामान्य हिंदी में शामिल होने वाले छात्र छात्राओं की संख्या 6 लाख 73 हजार 300 थी। इनमें 5 लाख 96 हजार 952 पास हुये। हिंदी व सामान्य हिंदी दोनों में मिला कर कुल 2 लाख 20 हजार 132 परीक्षार्थी फेल हुए। हिंदी का 84.99 व सामान्य हिंदी का 88.70 प्रतिशत रहा है।

दैनिक जागरण के अनुसार, गुरुनानक इंटर कालेज के हिंदी प्रवक्ता अखिलेश कुमार शुक्ला कहते हैं, 'अंग्रेजी तो विदेशी भाषा है परंतु अपनी भाषा में इतनी संख्या में छात्र-छात्राओं का अनुत्तीर्ण होना दुर्भाग्यपूर्ण है। बोर्ड को पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, शिक्षकों की उपलब्धता आदि की समीक्षा कर इसके कारण तलाश कर हल निकालना चाहिये।' दूसरी भारतीय भाषाओं की सफलता का आकलन करें तो हिंदी व संस्कृत से भी बढ़कर पंजाबी भाषा का परिणाम सर्वाधिक रहा है। अच्छी बंगला जानने वालों में छात्राएं आगे हैं। छात्राएं शत प्रतिशत सफल रहीं तो छात्र 44 प्रतिशत ही सफल हुए।

Sunday, May 25, 2008

बीमा दावा के रूप में मिले रेकॉर्ड 307 करोड़ रुपये

हिमाचल प्रदेश में सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड ने देश के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा इंश्योरेंस भुगतान (307 करोड़ रुपये) लेकर एक नया रेकॉर्ड बनाया है। सितंबर, 2005 में सतलुज नदी में आई बाढ़ से 1500 मेगा वाट नाथपा झाखड़ी पनबिजली परियोजना के स्टेशन और इससे संबद्ध आधारभूत ढांचे को हुए भारी नुकसान और बिजली उत्पादन ठप होने से हुए नुकसान के लिए सतलुज जल विद्युत निगम ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को दावा भेजा था।

नैशनल इंश्योरेंस कंपनी के अध्यक्ष एवं एमडी वीरामास्वामी ने 307 करोड़ रुपये का चेक शिमला में विद्युत निगम के अध्यक्ष एवं एमडी एच.के. शर्मा को दिया। उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में इतना बड़ा बीमा भुगतान पहली बार किया जा रहा है।

Wednesday, May 21, 2008

महिला ने बीच बाजार कपड़े उतार कर विरोध प्रदर्शन किया: क्या इसे गांधीगिरी कहेंगे?

बलात्कार की शिकार एक महिला ने पंजाब पुलिस द्वारा अपराधियों के खिलाफ रिपोर्ट न लिखने के कारण अर्धनग्न होकर विरोध प्रर्दशन किया जिसके कारण पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। पीड़ित ने सोमवार, 19 मई को अपने कपड़े उतार दिए और भीड़-भाड वाले फिरोजपुर-लुधियाना राजमार्ग पर पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर चिल्ला-चिल्लाकर विरोध प्रदर्शन किया। रास्ते पर चलने वाले लोग इस तरह के विरोध को देखकर हतप्रभ रह गए।

पुलिस थाने से केवल सौ मीटर की दूरी पर पीड़िता ने विरोध प्रदर्शन किया। एक राहगीर ने इसकी सूचना थाने में दी। थोड़ी देर में ही पुलिस ने महिला को पुलिस हिरासत में ले लिया। गिरफ्तारी के लिए किसी महिला पुलिस को नहीं बुलाया गया था। इस घटना से शर्मसार पुलिस ने घोषणा की कि उसने पीड़ित महिला के बयान को लिख लिया है और उसने दो लोगों के खिलाफ कथित रूप से बलात्कार का मामला दर्ज किया है। जिला पुलिस प्रमुख अशोक भट्ट ने कहा कि महिला के विरोध प्रदर्शन से पहले ही मामला दर्ज कर लिया गया था। हालांकि उन्होंने कहा कि महिला द्वारा शिकायत करने के बाद कुछ देरी जरूर हुई क्योंकि पुलिस उस दौरान मामले की जांच कर रही थी।

इस महिला का आरोप है कि उसकी बेटी के सामने ही उसके दो रिश्तेदारों ने उसके साथ बलात्कार किया। इसकी शिकायत लेकर जब वह पुलिस के पास गई तो उसकी शिकायत दर्ज करने के बजाए उसे भगा दिया गया। इस घटना के बाद वह मोगा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में भी गई लेकिन वहां भी उसकी शिकायत नहीं सुनी गई। मजबूर होकर इस महिला ने मोगा की बाजार के बीच में खड़े होकर अपने कपड़े उतारकर और अपना सीना पीट-पीटकर लोगों को अपनी आप बीती सुनानी लगी।

Sunday, May 18, 2008

खेतिहर मजदूर के बेटे को NASA से न्यौता

महाराष्ट्र के कोल्हापुर के १७ साल के श्रीधर की कहानी बस चमत्कारिक है। दलित परिवार के इस लड़के की किस्मत खुली शोध प्रतियोगिता से। आकाशगंगा पर श्रीधर के सिद्धांत को न सिर्फ इनाम मिला बल्कि नासा के दरवाजे खुल गए। खेत में काम करने वाले मजदूर के बेटे को नासा ने बतौर जूनियर साइंटिस्ट काम करने का न्यौता दिया है।

श्रीधर अभी नासा तो नहीं पहुंचा है, लेकिन उसके गांव में लोग काफी खुश हैं। उसे न सिर्फ नासा से बल्कि कोलोरैडो यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन की पढ़ाई के लिए बुलावा आया है। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं होगा। पहले 2 साल का खर्च श्रीधर को वहन करना पड़ेगा। जिसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने ५० लाख की सहायता का आश्वासन दिया है। तीसरे साल से नासा से १००० डॉलर मासिक छात्रवृति मिलेगी।

Saturday, May 17, 2008

वेतन १९ हजार, एक दिन की कमाई सवा लाख

दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्रांच ने अशोक विहार ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के एमएलओ (Motor Licensing Officer) प्रवीण देसाई को गिरफ्तार कर लिया है। देसाई का चपरासी रामसिंह भी पकड़ा गया, जबकि बीट कॉन्स्टेबल मिथलेश फरार है। इसी ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का इंस्पेक्टर और सात दलाल पहले ही गिरफ्तार किए जा चुके हैं। ब्रांच के मुताबिक देसाई का वेतन 19 हजार रुपये है, जबकि उनकी हर दिन की कमाई एक से सवा लाख रूपए थी। उनके पास साउथ दिल्ली में पांच करोड़ रुपये का घर है, जिसके बाथरूम में भी एसी लगे हुए हैं।

एंटी करप्शन ब्रांच के अडिशनल कमिश्नर एन. दिलीप कुमार ने बताया कि अशोक विहार ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी में ड्राइविंग लाइसेंस दलालों और बिचौलियों के माध्यम से रिश्वत लेकर बनाए जा रहे थे। इस इलाके का बीट कॉन्स्टेबल मिथलेश इस रिश्वतखोरी में मदद करता था। ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का एक इंस्पेक्टर एक दिन में 100-125 ड्राइविंग लाइसेंस ही बना सकता है, लेकिन यहां हर दिन 250-300 लाइसेंस बनाए जा रहे थे। यहां तक कि बिचौलिए ही अफसरों को काम में मदद कर रहे थे और ये लोग ही उम्मीदवार का ड्राइविंग टेस्ट लेते थे। यह जानकारी मिलने के बाद एंटी करप्शन ब्रांच ने अशोक विहार ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी में कई दिन तक स्टिंग ऑपरेशन किया। रिश्वतखोरी की विडियो और ऑडियो रिकॉडिंग की गई। सबूत मिलने के बाद इंस्पेक्टर नरेंद्र सिंह राणा और सात दलालों को गिरफ्तार किया गया। इस दौरान कई दस्तावेज बरामद किए गए। इसके बाद गुरुवार को एमएलओ प्रवीण देसाई और उनके चपरासी राम सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। राम सिंह रिश्वतखोरी में हाथ बंटाता था। अब इस एरिया के बीट के सिपाही मिथलेश और दलाल महेश की तलाश की जा रही है। दोनों फरार हो गए हैं।

नवभारत टाइम्स को अफसरों ने बताया कि प्रवीण देसाई ने पिछले साल साउथ दिल्ली की पॉश कॉलोनी ग्रीन पार्क एक्सटेंशन में फ्लोर खरीदा था। इसकी बाजार में कीमत 4.5-5 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस फ्लैट में छह एसी लगे हैं। बाथरूम में भी एसी लगा हुआ है। देसाई की सैलरी 19 हजार रुपये है। उनकी पत्नी हाउसवाइफ हैं। ब्रांच के अफसर के मुताबिक, गिरफ्तार मुलजिमों से पूछताछ में जानकारी मिली है कि देसाई की हर दिन की कमाई एक से सवा लाख रुपये थी।

तीन साल के बच्चे ने गोली चलायी!?

हमारी पुलिस तो है ही कमाल की, चाहे वह मध्यप्रदेश की पुलिस हो या उत्तर प्रदेश की पुलिस। उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं हैं। तभी तो उसने बगैर कुछ सोचे विचारे महज तीन साल के मासूम को भी गोली चलाने का आरोपी बना डाला।

मामला मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले के नौगांव थाने का है। घटना कोई तीन माह पुरानी है। वीरपुरा गांव में 7 फरवरी को हरिहरण गंगेले पर जान लेवा हमला होता है। उन पर गोली चलाई जाती हैं, मगर वे बच जाते हैं। उनकी रिपोर्ट पर नौगांव पुलिस प्रताप सिंह राय, सुघर सिंह, राघवेन्द्र सिंह और राघवेन्द्र के छोटे भाई (मृगेन्द्र) को आरोपी बना देती हैं। इस मामले के तीन दिन बाद ही प्रताप सिंह की गिरफ्तारी हो जाती हैं और शेष तीन लोग फरार घोषित कर दिए जाते हैं।

दैनिक देशबंधु की ख़बर है कि, घटना के 90 दिन बाद नौगांव के न्यायालय में चालान पेश किया जाता है। राघवेन्द्र जब अपने भाई मृगेन्द्र के साथ न्यायालय में पेश होता है तो सभी हतप्रभ रह जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस ने जिस मृगेन्द्र को हत्या के प्रयास का आरोपी बनाया है, उसकी उम्र महज 3 साल ही हैं। न्यायालय ने मृगेन्द्र पर कार्रवाई करने की बजाए उसे कोर्ट से ले जाने के आदेश दिए। मजे की बात हैं कि पूरे 90 दिन में पुलिस ने प्रकरण की जांच की और चालान न्यायालय में पेश कर दिया। पुलिस ने यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि आरोपी कौन हैं और उनकी उम्र क्या हैं। इस सम्बन्ध में छतरपुर के पुलिस अधीक्षक डीं श्रीनिवास वर्मा का कहना है कि यह गड़बड़ी विवेचना करने वाले अधिकारी से हुई हैं। उसने पूरे प्रकरण और आरोपियों के बारे में ज्यादा खोज खबर नहीं की। इतना ही नहीं उसने विवेचना पूरी कर ली और न्यायालय में चालान पेश कर दिया। इस प्रकरण ने पुलिस के उस चेहरे को बेनकाब करने का काम किया है जिसे कम लोगों ने देखा हैं। साथ ही पुलिस को अपना वह चेहरा भी दिख गया, जिसे उसने खुद कम देखा है।

Friday, May 16, 2008

लखपति वृद्धा की मौत का इन्तजार कर रहे घरवाले

इस मां का भरा-पूरा परिवार है, बावजूद इसके उसे दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हुए हैं। जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी इस मां से बेटे-बहू और पोतों ने मुंह मोड़ लिया है। वे इसकी कोई सुध नहीं लेते, खाना देना तो दूर की बात है। पड़ोसियों की कृपा दृष्टि के सहारे वह अपने दिन काट रही है। यह हालत तब है जब यह महिला लाखों की संपत्ति की मालकिन है। थक-हार कर महिला ने पिछले महीने पुलिस को लिखित शिकायत भी दी थी लेकिन जनता की ‘हमदर्द’ पुलिस ने भी उसकी कोई सुध नहीं ली।

यह दर्दभरी व्यथा है नांगलोई स्थित जनता मार्केट के वाई ब्लॉक में रहने वाली 75 वर्षीय लीला देवी की। लाखों की संपत्ति की वारिस इस वृद्धा का एक बेटा है, जो अपनी पत्नी के साथ पास ही के एक अन्य मकान में रहता है। जबकि दो शादीशुदा पोते हैं। इनमें अचल नामक पोता अपनी पत्नी के साथ बुजुर्ग महिला के दो मंजिला मकान में रहता है, वहीं दूसरा अपने मां-बाप के साथ। वृद्धा के बेटे व पोतों का अपना बिजनेस है। 26 साल पहले वृद्धा के पति ने पचास हजार कीमत का एक प्लाट यहां खरीदा था। बाद में अपनी खून-पसीने की कमाई लगा उस प्लॉट को एक आशियाने का रूप दिया। करीब आठ माह पूर्व इनके पति प्रभु दयाल(80) का देहान्त हो गया और तब से ही इस अभागी मां का जीवन बद से बदतर होता चला गया। अब उसे यही डर सताता है कि जिस तरह उसके पति का देहान्त तड़प-तड़प कर हुआ, कहीं उसे भी वह दिन न देखना पड़ जाए।

जब ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने जब लीलादेवी से बातचीत की तो उन्होंने ‘बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रूपैया’ वाली कहावत को दोहरा कर अपना हाल बयां किया। उन्होंने बताया कि मुझे कई महीनों से सिर्फ एक वक्त का खाना दिया जा रहा है। वो भी मिला तो ठीक वरना दूध-ब्रेड ही सहारा है। पड़ोसी ही मेरा हालचाल पूछते हैं और मुझे खाना देते हैं। मेरे परिवार वाले मेरी संपत्ति को हड़पने के लिए लालयित है। विशेषकर मेरा इकलौता बेटा व बड़ा पोता। मेरे परिवार के लोग सिर्फ अब मेरी अर्थी के उठने की बाट जोह रहे हैं। यही कारण है कि आए दिन किसी न किसी बात को लेकर बेटे-बहू के साथ पोता तक ताने मारता है। बकौल लीला देवी, पोते की बहू तो ठीक है लेकिन उसकी ज्यादा चलती नहीं है। अंत में अभागी वृद्धा ने यही कहा कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। जैसा मेरे साथ व्यवहार हो रहा है, उन्हें भी यह दिन देखने को जरूर मिलेंगे।

दो जानों की क़ीमत, दो रुपए!?

यह घटना किसी एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरी इंसानियत पर सवाल उठाती है कि क्या कोई इंसान इतना संवेदनहीन भी हो सकता है। उड़ीसा में एक बस कंडक्टर ने सिर्फ़ दो रुपए के लिए एक बाप-बेटी को चलती बस से धक्का दे दिया और वे दोनों ही चलती बस के पहिये के नीचे आ गए और अपनी जान से हाथ धो बैठे। वह बेचारा चार साल की अपनी मासूम बेटी को लेकर किसी मंज़िल की ओर निकला था लेकिन मौत ने कंडक्टर का रूप धारण करके उन्हें मंज़िल की तरफ़ बढ़ने ही नहीं दिया।

35 वर्षीय एक आदिवासी व्यक्ति सनीचर टोप्पो तलपतिया नामक स्थान पर बस पर चढ़ा था लेकिन उसके पास किराए के पूरे पैसे नहीं थे, सिर्फ़ दो रुपए कम पड़ रहे थे। कंडक्टर ने सनीचर की यह फ़रियाद बिल्कुल अनसुनी कर दी कि सचमुच में ही उसके पास दो रुपए नहीं हैं। उसकी यात्रा का पूरी किराया बनता था दस रुपए, यानी उसके पास आठ रुपए तो थे लेकिन दो रुपए नहीं थे। बस में बैठे अनेक यात्रियों ने कंडक्टर की बेरहमी को देखते हुए पेशकश भी की कि सनीचर के दो रुपए उनमें से कोई भी दे देगा लेकिन कंडक्टर किसी की भी सुनने को तैयार नहीं था।

झगड़ा बढ़ा तो कंडक्टर ने सनीचर और उसकी चार साल की बेटी को एक साथ बस से कथित रूप से धक्का दे दिया। उस समय वह बस राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 पर चल रही थी। बाद में उस कंडक्टर और चालक को गिरफ़्तार कर लिया गया। बस में सवार यात्रियों और स्थानीय लोगों ने बस को आग लगा दी और सड़क को भी कुछ देर के लिए जाम कर दिया।

और हाँ, राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक कुछ ज्यादा उदार दिखे और इन दो जानों की कीमत एक लाख लगायी । मतलब, निकट संबंधियों को एक लाख रुपए का मुआवज़ा देने की घोषणा की है.

Wednesday, May 14, 2008

बरस रहे हैं नोट, मोबाईल हो रहे रिचार्ज, बिना मांगे!?

आजकल विभिन्न बोर्ड की दसवीं और बारहवीं के इम्तिहानों की उत्तर पुस्तिकाएं रुपये उगल रही हैं। केन्द्रीय मूल्यांकन केन्द्रों पर ये नजारे दिख रहे हैं। कॉपी जांचने में लगे परीक्षकों के लिए रुपये आकर्षण पैदा किए हुए हैं। परीक्षक उत्तर पुस्तिका जांचने से पहले नोट तलाशते हैं। इस बार कड़ी व्यवस्था और नकल विरोधी अभियान ने जहां नकलची छात्रों को निराश किया है, वहीं उन्होंने पास होने के लिए टीचरों तक सीधे घूस पहुंचाने की नई तरकीब निकाली है। परीक्षा मूल्यांकन केन्द्रों पर बड़े पैमाने पर 100-50 व 10 रु. के नोट मिल रहे हैं। इनके साथ स्टूडेंट्स की छोटी सी और रोचक अपील भी है।

परीक्षकों के मुताबिक इस बार मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री और अंग्रेजी के पेपरों में छात्र बुरी तरह से फेल हो रहे हैं। एक परीक्षक ने बताया कि उसे 70 उत्तर पुस्तिकायों का एक बंडल जांचने के लिए मिला था। सभी में 100 से 200 रु. तक के करेंसी नोट लगे थे। इस प्रकार एक बंडल ने करीब 10 हजार के नोट एक ही दिन में उगल दिए। नियम के मुताबिकउत्तर पुस्तिका में नोट लगाना व इसे सीधे परीक्षकों द्वारा हजम कर जाना दोनों ही आपराधिक काम हैं और दंडनीय अपराध भी। पर फिलहाल इस मामले को संजीदगी से नहीं लिया जा रहा है।

एक और तरीका भी देखने में आ रहा है, जिसमें उत्तर पुस्तिका में लिखे गए मोबाईल नंबर पर जब कोई जांचकर्ता रिंग करता है तो थोड़ी ही देर में उसके मोबाईल पर ५०० या १००० रूपयों के रिचार्ज होने का एसएमएस आ जाता है!

Monday, May 12, 2008

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को भूली सरकार

विदेशियों के शासन के खिलाफ 1857 में शुरू हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को 150 साल खामोशी के साथ पूरे हो गए। 1857 में भड़की आजादी की पहली लड़ाई के 150 वें वर्ष की शुरूआत में तो कई कार्यक्रमों का आयोजन हुआ था साथ ही पूरे वर्ष कार्यक्रमों का सिलसिला चलने का एलान हुआ था। सरकारी स्तर पर १० मई के दिन किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन नहीं हुआ। आज जब 150 वर्ष पूरे हुए तो किसी को आजादी के उन परवानों की याद नहीं आई जिन्होंने पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को झकझोर कर रख दिया था। ब्रिटिश हुकूमत ने इसी संग्राम की दहशत में कंपनी शासन का अंत कर सम्राट का सिक्का चलाना शुरू किया था। उत्तर प्रदेश प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बहुत बड़ा केंद्र रहा था लेकिन वहां की सरकार ने भी १० मई के दिन कुछ खास नहीं किया।

उत्तर प्रदेश जो कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बहुत बड़ा केंद्र रहा था और आज के दिन अवध में इस लड़ाई का बिगुल बजा था और सबसे भयंकर संग्राम चला था। जिसकी मूक गवाह रेजीडेंसी आज भी है जहां एक हजार से अधिक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। लखनऊ ही वह शहर है जहां गली गली मोर्चे बने थे और ब्रिटिश फौजों को आलमबाग से रेजीडेंसी तक का सफर तय करने में कई दिन लग गये थे और वहां पर उन्हें पराजय हाथ लगी थी। 10 मई की तारीख स्वाधीनता संग्राम के इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तारीख है क्योंकि आज ही के दिन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से लड़ाई शुरू होनी थी। हालांकि मंगल पांडे और ईश्वरी प्रसाद ने इस तय तारीख से काफी पहले ही मार्च और अप्रैल महीने में आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था लेकिन लखनऊ योजनाबद्ध संग्राम की शुरूआत की तारीख 10 मई को ही तोपों को दागकर की गई थी।

आज हमें आजाद हुए 60 साल पूरे हो चुके हैं इतने कम समय में हम तरक्की के नये कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं लेकिन जरा सोचिए जब देश आजाद हुआ तब हमारे पास क्या था सिर्फ आजादी को छोड़कर। देश का निर्माण तो बाद में हुआ। लेकिन यदि हमें प्रगति की निरन्तरता को बनाए रखना है तो हमें अपने इतिहास को संजो कर रखना होगा ताकि हमें खुशी देने के लिए कफन आ॓ढ़ लेने वालों के प्रति हम अपने कर्तव्य को निभा सकें उन्हें नमन कर सकें।

इतिहासकार मालती मलिक का कहना है कि 10 मई की तारीख स्वाधीनता संग्राम के इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तारीख है, क्योंकि आज ही के दिन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से लड़ाई शुरू हुई थी। मंगल पांडे और ईश्वरी प्रसाद ने हालांकि 1857 के मार्च और अप्रैल महीने में ही आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था लेकिन योजनाबद्ध संग्राम की शुरुआत की तारीख 10 मई मानी जाती है। मेरठ, झांसी, लखनऊ और कानपुर इस संग्राम के बहुत बड़े केंद्र थे लेकिन आज के दिन उत्तरप्रदेश सरकार ने भी कोई खास आयोजन नहीं किया। मलिक ने कहा कि 10 मई की तारीख देश के गौरव का दिन है लेकिन इसे भुला देना शर्म की बात है। 10 मई को भड़की चिनगारी दिल्ली तक पहुंची थी और आजादी के मतवालों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे, लेकिन अंग्रेजों की कुटिल नीति और अपनों की ही दगाबाजी से यह आंदोलन सफल नहीं हो पाया।

Sunday, May 11, 2008

मदर्स डे पर, मां ने 4 साल के बेटे को चौथी मंजिल से फेंका

सुना है कि आज माँ का दिन है, याने कि मदर्स डे! इसी की पूर्व संध्या पर दिल को हिला देने वाली एक घटना में 4 साल के एक बच्चे की मौत उस समय हो गई जब कथित तौर पर उसकी मां ने यहां सैंट्रल मुंबई की एक बिल्डिंग की चौथी मंजिल से उसे नीचे फेंक दिया। पुलिस ने बताया कि मां ने जिस समय यह कदम उठाया उस समय वह शराब के नशे में थी। पुलिस ने कहा कि 4 वर्षीय फुल्ली को उसकी मां दयानदा उर्फ अनीता फुल्ली (23) ने अपने पति के साथ बहस के बाद पकड़ा और वर्ली स्थित बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर ले गई।

वर्ली थाने के एक सीनियर ऑफिसर ने कहा, ' अनीता शराब के नशे में थी और उसने चौथी मंजिल से बच्चे को नीचे फेंक दिया। कुछ पड़ोसियों द्वारा को निकट के केईएम हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उसने दम तोड़ दिया। ' पुलिस ने पहले दुर्घटना का मामला दर्ज किया था लेकिन उसकी मौत के बाद घटना का चश्मदीद होने की दावा करने वाली उसकी रिश्तेदार सामने आई और आज उसने मामला दर्ज कराया।

Saturday, May 10, 2008

चपरासी की नौकरी भी चलेगी, वेट लिफ्टिंग के राष्ट्रीय खिलाडी को

उसने, पुलिस महानिदेशक रंजीव दलाल के सामने जब बीस से अधिक मैडल और प्रमाण-पत्र रखकर नौकरी मांगी तो एक बारगी डीजीपी भी सोचने को मजबूर हो गए। 'सर.. ये मैडल और प्रमाण-पत्र खाने को नहीं देते। ..पेट तो रोटी से भरता है। मुझे नौकरी पर रख लो.. चाहे चपरासी ही रख लो..।’ ये कहना था वेट लिफ्टिंग में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी श्रीनिवास का।

दैनिक भास्कर के समाचार अनुसार भारोत्तोलन में राज्य स्तर पर कई स्वर्ण पदक जीत चुका श्रीनिवास पुत्र रूलिया राम मूल रूप से महम का रहने वाला है। राष्ट्रीय स्तर की भी कई प्रतियोगिताओं में उसने भाग लिया है लेकिन अब रोजी-रोटी का कोई स्थायी साधन नहीं होने के कारण अभ्यास छूट चुका है। चार बेटियां का पिता श्रीनिवास कहता है, ‘जल्दी ही कोई नौकरी नहीं मिली तो उम्र भी निकल जाएगी। इन मैडल से पेट नहीं भरता। जहाँ जाता हूं..मैडल देखते हैं पर नौकरी कोई नहीं देता। अब तो चपरासी की नौकरी मिल जाए तो वह भी कर लूंगा।’

चंडीगढ़ से आए समाचार में यह भी बताया गया है कि डीजीपी से मिलते समय श्रीनिवास सफेद कुर्ते-पायजामे में था। जब वह चतुर्थ श्रेणी स्तर की नौकरी मांग रहा था तो एक पुलिस अधिकारी बोला, ‘कम से कम इस खादी का तो लिहाज कर। यह बहुत बड़ी चीज है। खादी पहनने वाले को इतनी छोटी नौकरी हम नहीं दे सकते।’ डीजीपी रंजीव दलाल ने श्रीनिवास को भरोसा दिलाया कि वह उसके लिए प्रयास करेंगे। पता करेंगे कि कहां इस श्रेणी का खाली पद है। पद मिला तो नौकरी दिलवाने की कोशिश करेंगे।

Thursday, May 8, 2008

25 साल बाद भी नहीं हटी घर के आगे से दीवार

कोई जरूरी नहीं कि परदे पर दिखायी जाने वाली घटनाएँ काल्पनिक हों, वह भी समाज से ली गयी रहतीं हैं. धारावाहिक 'आफिस-आफिस' में आपने देखा होगा कि किसी भी कार्य की फाइल कई वर्षो तक इधर से उधर घूमती रहती है, लेकिन निर्णय कुछ नहीं निकल पाता। जवानी में किसी समस्या के निस्तारण की मांग करने वाला व्यक्ति सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाते-लगाते बूढ़ा हो जाता है। कुछ ऐसा ही मामला हो रहा है दिल्ली से सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य बीएन गुप्ता के साथ। श्री गुप्ता ने अपने आवास के सामने दीवार हटवाने के लिए 25 साल पहले जीडीए में प्रार्थना पत्र दिया था। उस समय उनकी उम्र 44 साल थी। लेकिन अब तक दीवार नहीं टूटी और इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते उनकी उम्र लगभग 70 साल हो चुकी है। इस दौरान दीवार तोड़ने के संबंध में वे प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं।

दैनिक जागरण में आए समाचार के अनुसार श्री गुप्ता ने राजनगर में 1/13 भूखंड रीसेल में खरीदा था। वर्ष 1983 में उन्होंने इस भूखंड पर भवन बना लिया। लेकिन भवन बनने के बाद पता चला कि उनके मकान के सामने वाली रोड जो आरडीसी को जानने वाली थी, उसे जल निगम ने बीच में रोक दिया और उनके घर के सामने दीवार खड़ी कर दी। जिससे उनके आवास की न केवल लुक खराब हो गई, बल्कि उन्हें सड़क की मिलने वाली सुविधा से भी महरूम होना पड़ा। उन्होंने इसकी शिकायत जीडीए में की। उनका कहना है कि जीडीए द्वारा तैयार ले आउट प्लान में उनके आवास के सामने 60 फिट चौड़ी सड़क थी, जो ग्रीन बेल्ट में होते हुए आरडीसी कालोनी तक होनी चाहिए। लेकिन इस बीच जल निगम ने ग्रीन बेल्ट में न केवल कालोनी बना दी, बल्कि दीवार भी खड़ी कर दी। श्री गुप्ता की शिकायत पर जीडीए के तत्कालीन अधिकारियों ने दीवार को हटाने के निर्देश दिए, लेकिन दीवार नहीं हटाई गई। इसके बाद श्री गुप्ता समय-समय पर इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री, जीडीए, जल निगम में विभिन्न माध्यमों से शिकायत करते रहे, लेकिन अब तक उनकी समस्या का निराकरण नहीं हो सका है। उनके पास विभिन्न मंत्रालयों, विभागों के आदेश की मोटी फाइल बन चुकी है। इस दौरान श्री गुप्ता के आवास के बाहर नाला और बना दिया गया, जिससे उनके आवास के आस-पास बदबू फैली रहती है। इससे श्री गुप्ता बेहद परेशान हैं। उनका कहना है कि वह उस घड़ी को पछता रहे हैं, जब उन्होंने यह भूखंड खरीदा था। उनका कहना है कि वह अपनी शिकायत प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जा चुके हैं। जीडीए के चक्कर लगाते-लगाते थक गए है लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हो सका। अब वह आखिर कहां जाएं?

चार साल के बच्चे पर गुंडा एक्ट

पुलिस जांच के मामलों को कितनी गंभीरता से अंजाम देती है, इसका खुलासा उस वक्त हुआ जब एक चार साल के बच्चे पर गुंडा एक्ट लगा दिया गया। पुलिस प्रशासन ने ऐसा करने वाले इंस्पेक्टर तथा एक अन्य पुलिसकर्मी को निलंबित कर दिया है।

उत्तरप्रदेश में सुलतानपुर के हलियापुर थाना की पुलिस ने गत 20 अप्रैल को जमीनी विवाद में चार साल के एक बच्चे पर गुंडा एक्ट लगा दिया। इस घटना की सूचना मिलने पर पुलिस अधीक्षक डीसी मिश्र ने इंस्पेक्टर तथा एक अन्य पुलिसकर्मी को निलंबित कर दिया। उत्तरप्रदेश राज्य पुलिस मुख्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार अप्रैल के पहले सप्ताह में गांव झाऊ का पुरवा में शांति भंग का मामला दर्ज किया गया था जिसमें इंस्पेक्टर हरेन्द्र प्रताप सिंह ने बिना सत्यता की जांच किए ही अदालत में धारा 110 के तहत कार्रवाई की रिपोर्ट भेज दी। हालांकि बाद में अदालत को यह भी बताया गया कि रिपोर्ट गलती से भेजी गयी है। इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की जाए। पुलिस अधीक्षक ने इस गलती को गंभीरता से लेते हुए इंस्पेक्टर और कांस्टेबल तजमूल हुसैन को निलंबित कर दिया।

बारह घंटे पंद्रह मिनट में 101 बगीचों का शिलान्यास

कांक्रीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे इंदौर को हरियाली की चादर आ॓ढ़ाने के मकसद से १ मई को अनूठा रिकार्ड बनाया गया। इंदौर नगर निगम की महापौर डा। उमाशशि शर्मा ने अपने मैराथन अभियान के दौरान पूरे शहर में 101 बगीचों का शिलान्यास किया। इस काम में उन्हें 12 घंटे 15 मिनट का वक्त लगा। इस उपलब्धि को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड के अगले संस्करण में जगह दी जाएगी।

एक बार में एक किलो मिर्च खा जाती हैं, दो बच्चियां

उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले के छोटे से गांव की दो लड़कियां इन दिनों लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। ये लड़कियां मिलकर एक बार में एक किलो हरी मिर्च खा जाती हैं। तुनि और पुनीता नामक इन बच्चियों के पिता शशांक सेन बताते हैं कि उनकी बेटियां शुरू से ही ऐसा करती आ रही हैं। गौरतलब है कि गांव के लोगों का सामान्य भोजन हरी मिर्च और प्याज के साथ चावल है इसलिए और लोगों की तरह सेन भी अपने खेत में मिर्च उगाते हैं।

आईएएनएस से समाचार है कि उनकी बेटियां पौधों से मिर्च तोड़ने में अपने मां-बाप की मदद करती हैं और साथ-साथ उन्हें खाती भी जाती हैं। शुरुआत में तो वे 20 से 50 मिर्च ही रोज खाती थीं लेकिन बाद में उनकी मात्रा बढ़ती गई। सेन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि उनकी बच्चियां जल्दी ही मिर्च खाने का रिकार्ड कायम करेंगी।

इस संबंध में बात करने पर एक शिशु रोग विशेषज्ञ गदाधर सारंगी ने कहा, ''अगर वे मिर्च खाती रहें तो इससे उनको कोई नुकसान तो नहीं होगा लेकिन किसी भी बात की अति बुरी होती है। मां-बाप को अपाने बच्चों को ज्यादा मात्रा में मिर्च खाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।''

लैपटॉप बेचकर गर्ल फ्रेंड को खुश कर रहे हैं छात्र

प्रेमिका (सॉरी, आजकल इन्हें गर्ल फ्रेंड कहते हैं) को फिल्में दिखाना, रेस्तरां में खाना खिलाना और उससे मोबाइल पर घंटों बातें करने का खर्च बाहर से आ कर किसी शहर में पढ़ने वाले छात्रों की जेब पर भारी पड़ रहा है। इसके साथ बाइक का खर्च, दोस्तों के साथ जाम छलकाने और महंगे कपड़े आजकल के 'बच्चों' की दुखती रग बन गए हैं।

घर से मिलने वाले तयशुदा पैसों में यह सारे खर्चे पूरे नहीं हो पाते हैं। इसके लिए इन छात्रों ने कई तरीके निकाल लिए हैं। मोबाइल फोन और लैपटॉप बेचकर, उनकी चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराकर वे अपने खर्चे पूरे कर रहे हैं। ऐसे मामले हर रोज सामने आ रहे हैं। कासना थाने में ही इस तरह का मामला हर तीसरे दिन आ जाता है। पुलिस की जांच में यह बात साबित हो गई है कि अपने खर्चे पूरे करने के लिए ये छात्र ऐसा काम कर रहे हैं। वे सामान चोरी होने का बहाना बनाकर घर वालों से पैसा वसूल लेते हैं।

मीडिया में आयी खबरों के अनुसार, ग्रेटर नोएडा के संस्थानों में करीब 40 हजार छात्र हैं। बदलते लाइफस्टाइल ने इनके खर्चे भी बढ़ा दिए हैं। वे सबसे ज्यादा अपनी गर्ल फ्रेंड के ऊपर खर्च करते हैं। बात चाहे उसे मूवी दिखाने की हो या फिर रेस्तरां में खाना खिलाने की हो, सभी कामों में वे खुलकर पैसे खर्च करते हैं। इसके अलावा रात में घंटों मोबाइल फोन पर बातें करने का बिल भी हजारों में आता है। वहीं बाइक से लॉंग ड्राइव पर जाना और दोस्तों के साथ जाम छलकाना भी जेब ढीली कर देता है, लेकिन उनको एक निश्चित रकम ही मिलती है। बढ़े खर्च को पूरा करने के लिए स्टूडेंट्स कुछ अलग रास्ते निकाल रहे हैं।

स्टूडेंट्स ने अपने महंगे मोबाइल फोन और लैपटॉप बेचने शुरू कर दिए हैं। इनको बेचकर वे अपने परिजनों को चोरी की सूचना देते हैं। कुछ छात्रों के पालकों को अपने सपूतों के कारनामों का आभास होता है, ऐसे में ये 'लायक बेटे' सामान की चोरी के सबूत के तौर पर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं। ग्रेटर नोएडा के कासना थाने के इंचार्ज गुलजार अहमद के अनुसार उनके पास हर तीसरे दिन ऐसी चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने स्टूडेंट्स आते हैं। चोरी होती है लैपटॉप और महंगे मोबाइल की। उन्होंने बताया कि लैपटॉप चोरी के मामले बढ़ने की जांच की गई, तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए। कई स्टूडेंट्स से कड़ी पूछताछ की गई, तो उन्होंने लैपटॉप बेचने की बात स्वीकार कर ली। इसके साथ ही उन्होंने थाना इंचार्ज से प्रार्थना की कि उनके परिजनों को यह बात न बताई जाए।

उन्होंने बताया कि इसके अलावा कुछ स्टूडेंट्स लूट और चैन स्नैचिंग जैसी वारदात में भी अंजाम देते हैं। करियर को ध्यान में रख पुलिस इनके प्रति नरम रुख अपनाती है, जिसका ये फायदा उठाते हैं।

सौ शीर्ष बुद्धिजीवियों में सात भारतीय

हालांकि जनसंख्या को देखते हुए और अपनाए गए मापदंडों के चलते संख्या कुछ कम दिखती है, फिर भी अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका फारेन पालिसी ने नोबेल पुरस्कार विजेता अम‌र्त्य सेन और प्रसिद्ध उपन्यासकार सलमान रुश्दी समेत सात भारतीयों को दुनिया के सौ शीर्ष बुद्धिजीवियों की सूची में शामिल किया है।

पत्रिका द्वारा तैयार की गई सूची में सेन और रुश्दी के अतिरिक्त पत्रकार लेखक फरीद जकारिया तथा सैन डियागो में बसे न्यूरो वैज्ञानिक वी एस रामचंद्रन भी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त इतिहासकार रामचंद्र गुहा, राजनीतिक मनोवैज्ञानिक आशीष नंदी और पर्यावरणविद सुनीता नारायण की भी पहचान दुनिया के शीर्ष बुद्धिजीवियों के रूप में की गई है। ये सभी भारत में रहते हैं। राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ वकीलों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रसिद्ध वकील एवं नेता एतजाज एहसान इस सूची में शामिल एकमात्र पाकिस्तानी हैं। माइक्रो फाइनेंस गुरु मुहम्मद यूनुस इस सूची में शामिल एकमात्र बांग्लादेशी हैं। सूची में दुनिया के प्रसिद्ध राजनीति विज्ञानियों, अर्थशास्त्रियों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, पत्रकारों और पर्यावरणविदों को शामिल किया गया है।

सूची में सबसे ज्यादा उत्तरी अमेरिका के लोग शामिल हैं। शीर्ष सौ बुद्धिजीवियों में इस महाद्वीप के 36 लोग शामिल हैं। इनमें अल गोर और नोम चोम्सकी जैसे नाम प्रमुख तौर पर हैं। दुनिया के अग्रणी बुद्धिजीवियों में यूरोप के 30 तथा एशिया के 12 लोग शामिल हैं। एशियाई बुद्धिजीवियों में आधे से अधिक भारतीय हैं। जबकि चीन के चार बुद्धिजीवियों को शामिल किया गया।

वैसे आपके वोटों पर आधारित मतों के अनुसार दुनिया के २० बुद्धिजीवियों का चुनाव अभी बाक़ी है। अन्तिम तारीख १५ मई है। वोट देने के लिए यहाँ देखे

Wednesday, May 7, 2008

गंगा की गोद में जीवन बिताना चाहती है कैलिफोर्निया की शिवानी

लगता है कि आधुनिकता की चकाचौंध और भाग दौड़ की जिंदगी से पाश्चात्य देशों के लोग अब उबने लगे हैं। तभी तो वाराणसी घूमने आने वाले कई देशों के लोग न सिर्फ यहीं पर शान्ति की तलाश में जीवन गुजार रहे हैं, बल्कि कई तो साधू के भेष में गंगा और शिव की पूजा भी कर रहे हैं। वैसे वाराणसी के गंगा घाट तो हमेशा से देश ही नहीं बल्कि विदेशी लोगों के आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। लेकिन आजकल यह आकर्षण शान्ति और भक्ति की तलाश में कुछ ज्यादा ही दिख रहा है।

माथे पर लाल चंदन और शरीर पर गेरुआ वस्त्र पहने शिवानी कैलिफोर्निया से तीन साल पहले वाराणसी आई तो थी घूमने, लेकिन काशी नगरी उसे इतनी भायी कि वह अब यहीं की होकर रह गई है। शिवानी सुबह चार बजे उठती है, गंगा स्नान करती है, उसके बाद बाबा विश्वनाथ का दर्शन करके अपने शिव मंदिर में पूजा करती है। शिवानी कहती हैं कि मैं यहीं पर गंगा और शिव की पूजा करते हुए मर जाना चाहती हूं। शिवानी अपना असली नाम बताने से मना करती है। वह नहीं चाहती है कि उसे शिवानी के अलावा किसी नाम से कोई पुकारे। अस्सी घाट के किनारे का ही घर अब उसका आशियाना है जहां खर्च के लिए वह छोटा सा रेस्तरां भी चलाती है। लेकिन ध्यान हर वक्त उस शिव में लगा रहता है, जिसके लिए वो शिवानी बन चुकी हैं।

शिवानी अकेली ऐसी विदेशी नहीं है, जो इस शिव की नगरी में शान्ति की तलाश कर रही है। जर्मनी का क्रिस्टोफर जो अब केदार बन चुका है, को तो वनारस ऐसा भाया कि उसने यहां न सिर्फ संस्कृत भाषा सीखी, बल्कि हिंदू रीति रिवाज से इटली की जुली से शादी कर यहीं घर भी बसा लिया है। आज केदार धोती कुर्ता पहनता है और उसकी पत्नी साड़ी। प्रतिदिन सुबह पति पत्नी दोनों गंगा स्नान करते हैं और चंदन टीका लगाकर शिव की पूजा करते हैं। केदार (क्रिस्टोफर) संस्कृत में बताते हैं कि कश्यान मरडान मुक्ति (काशी में मरने से मुक्ति मिलती है) इसलिए मैंने काशी को चुना है। अमेरिका के योगानंद तो लोगों को अब संस्कृत में प्रवचन भी देने लगे हैं। उनका दावा है है कि काशी जैसा शहर विश्व में दूसरा नहीं है, क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि काशी शंकर के त्रिशूल पर बसी है जिसका कभी विनाश नहीं होता है, इसलिए यहां जो ऊर्जा मिलती है वहीं कहीं नहीं मिलेगी।

वाराणसी के घाटों पर गंगा की गोद से निकलने वाली धर्म और संस्कृति की धारा में गोता लगाने से हम भारतीय भले ही कतराने लगे हों, लेकिन इन विदेशियों को तो इसी में अब शांति दिखाई देने लगी है लिए वे सात समुन्दर पार से खींचे चले आते हैं।
(सौजन्य: इंडो-एशियन न्यूज सर्विस)

नहीं चाहिए ऐसा पुरस्कार

सन 2004 की मई में वरुणा नदी में चार बच्चों को डूबने से बचाने पर 2008 में राष्ट्रपति का 'उत्तम जीवन रक्षा पदक' पाने वाली मंजुमा इकबाल पुरस्कार राशि लौटाने जा रही हैं। मंजुमा और उसके परिवार का कहना है कि बिना किसी पदक अथवा सम्मान समारोह के पुरस्कार राशि दिया जाना ''सम्मान, नहीं अपमान '' है।

उल्लेखनीय है कि उस घटना के दौरान मंजुमा को अपने बेटे शाहिद की जान से हाथ धोना पड़ा था। मंजुमा ने आईएएनएस को बताया, ''उस घटना के चार वर्ष बाद जब मुझे पता चला कि मुझे यह पुरस्कार मिलने वाला है, तो कुछ सांत्वना मिली थी। लेकिन जिस तरीके से यह पुरस्कार दिया गया, उससे मुझे बहुत दुख हुआ ।'' उन्होंने बताया कि उन्हें जिला न्यायाधीश के कार्यालय में बुलाकर 45 हजार रुपए का ड्राफ्ट पकड़ा दिया गया था।

मंजुमा के पति इकबाल के अनुसार, ''मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। अपने बच्चे की जान की कीमत पर चार अन्य बच्चों को बचाने वाली औरत की बहादुरी का इस तरीके से सम्मान किया जाना बहुत शर्मनाक है।''
मंजुमा और उनके पति के अनुसार 24 फरवरी को पुरस्कार मिलने के बाद से वह अपना विरोध दर्ज कराने के लिए जगह-जगह भटक रहे हैं।

उन्होंने बताया कि वह राष्ट्रपति को भी दो बार याचिका भी दे चुके हैं, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। अपने बेटे को याद करती हुई मंजुमा रूंधे गले से कहती हैं, ''मैं उसे न बचा पाने के कारण उससे कई बार माफी मांग चुकी हूं।''

Tuesday, May 6, 2008

सरकार के फैसले को लागू करवाने को अर्जी दी, समय से पहले तबादला मिला

अभी अभी तो ख़बर आयी थी अनाथालय की जमीन पर अस्सी अरब में बन रहे आशियाने की। अब खबर आयी है कि इस आशियाने के मालिक, रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी, के कब्जे वाली इस जमीन की बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष याचिका दाखिल करने वाले महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड के सीईओ एआर शेख का तबादला ग्रामीण विकास विभाग में कर दिया गया है।

दैनिक भास्कर में समाचार है कि सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका की सुनवाई के एक दिन बाद ही शेख का तबादला कर दिया गया। शेख ने फोन पर कहा कि 3 मई को उन्हें स्थानांतरण आदेश मिले हैं और वे जल्द ही वे अपने अभिभावक विभाग में हाजिरी देंगे। हालांकि उन्होंने इन खबरों पर प्रतिक्रिया नहीं दी जिनमें कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की वजह से उनका तबादला किया गया है।

मामला यह है कि अंबानी की कंपनी एंटीलिया कमर्शियल प्राइवेट लि. ने अल्टामाउंट रोड पर 4532 वर्गमीटर का यह प्लॉट छह साल पहले एक अनाथालय से सार्वजनिक नीलामी के दौरान 21 करोड़ रुपए से ज्यादा में खरीदा था। इस सौदे को अवैध करार देते हुए सरकार ने पिछले साल जुलाई में बोर्ड से प्लॉट का कब्जा लेने को कहा था।

इसके बाद शेख ने एंटीलिया को वक्फ एक्ट के सेक्शन 52 के तहत नोटिस जारी कर वक्फ संपत्ति बोर्ड को सौंपने को कहा था। शेख ने इस प्लॉट को एंटीलिया के नाम किए जाने का भी विरोध किया था। अब शेख से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उनका तबादला इसलिए किया गया है क्योंकि उन्होंने गड़बड़ियों पर ऐतराज जताया और एंटीलिया को राहत देने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।

राजस्व और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि हाई कोर्ट में एक याचिका है जिसमें शेख को बतौर बोर्ड का सीईओ नियुक्त किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। इस याचिका का परीक्षण किए जाने के बाद शेख के तबादले का निर्णय लिया गया है। अंबानी प्लॉट डील से शेख के तबादले का कोई संबंध नहीं है।

शेख ने सीईओ की भूमिका में बोर्ड में डेप्यूटेशन पर 3 नवंबर 2006 को पदभार संभाला था। इससे पहले वे विदर्भ में वाशिम में ग्रामीण विकास विभाग में कार्यरत थे। सामान्य रूप से डेप्यूटेशन तीन साल के लिए होता है लेकिन शेख के मामले में डेढ़ साल में ही तबादला किया गया है।

Monday, May 5, 2008

अंग्रेजों की धरती पर भारत का बोलबाला

कभी हम पर राज करने वाले ब्रिटेन के औद्योगिक साम्राज्य पर अब भारतीयों की छाप है।
कोरस और जगुआर-लैंड रोवर का अधिग्रहण कर टाटा समूह ब्रिटेन के औद्योगिक नक्शे पर पहले से ही विराजमान है। अनिवासी भारतीय उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल यहां के सर्वाधिक अमीर व्यक्ति हैं। हिंदुजा स्वराज पाल भी यहां के प्रमुख उद्योगपतियों में शुमार किए जाते हैं। वोडाफोन के सीईओ अरुण सरीन यहां के सर्वाधिक प्रभावशाली टेलीकाम व्यवसायी हैं। अब इस सूची में संजय पटेल का नाम जुड़ गया है। दुनिया की प्रमुख निवेश फर्म गोल्डमैन सैश के सीनियर एक्जीक्यूटिव पटेल को ब्रिटेन के 20 सबसे प्रभावशाली फंड मैनेजरों में शुमार किया गया है।

ब्रिटेन के प्रमुख अखबार डेली टेलीग्राफ द्वारा तैयार हेज फंड के क्षेत्र में कार्यरत 100 प्रमुख लोगों की सूची में पटेल का नंबर 19वां है। गोल्डमैन सैश में अपनी दूसरी पारी में काम कर रहे पटेल कंपनी की यूरोपीय पीई और भारतीय पूंजी इक्विटी कारोबार के सह प्रमुख हैं। सर्वश्रेष्ठ प्राइवेट इक्विटी [पीई] समूहों में से एक पर्मिरा के चेयरमैन डैमोन बफिनी इस सूची में शीर्ष पर हैं।

डेली टेलीग्राफ ने कारोबार के 10 विभिन्न क्षेत्रों के हजार सबसे प्रभावशाली लोगों पर आधारित अलग-अलग सूचियां तैयार की हैं। अगले दो हफ्ते के दौरान इनमें से हर क्षेत्र के 100 सर्वश्रेष्ठ लोगों की सूची प्रकाशित की जाएगी। अब तक खुदरा खाद्य उद्योग, ऊर्जा एवं यूटिलिटी बैंकिंग, बीमा, मीडिया तथा मनोरंजन, टेक्नोलाजी, टेलीकाम, फंड मैनेजमेंट एवं प्रापर्टी क्षेत्र की सूची प्रकाशित की गई है।

पिछले हफ्ते प्रकाशित टेक्नोलाजी क्षेत्र की सूची में प्रमुख इंटरनेट सर्च इंजन गूगल के यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीकी परिचालन के भारतीय मूल के अध्यक्ष निकेश अरोड़ा का स्थान चौथा है। इसी तरह बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र में अंशु जैन को ब्रिटेन का तीसरा प्रभावशाली व्यक्ति करार दिया गया है। जैन जर्मनी के ड्यूश बैंक के ग्लोबल बाजार विभाग के प्रमुख हैं।

Sunday, May 4, 2008

अस्सी अरब में बन रहा है आशियाना, अनाथालय की जमीन पर

दुनिया के गिने चुने सबसे अमीरों में शामिल रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी अपने परिवार के लिए लगभग 80 अरब रूपए की लागत से एक शीशमहल बनवा रहे हैं। इसमें वह अपनी पत्नी नीता अंबानी और तीन बच्चों के साथ रहेंगे। उनका अन्टिला नामक यह शीशमहल मुम्बई में मलाबार हिल के अल्टामाउंट रोड पर निर्माणाधीन है जिसके अगामी जनवरी तक पूरी हो जाने की संभावना है। चार लाख वर्ग फीट क्षेत्रफल में फैले इस 27 माले की आलीशान बिल्डिंग की ऊंचाई 550 फीट है।

अंबानी का यह शीशमहल दुनिया के महंगे और आलीशान बिल्डिंगों में गिना जाएगा। अन्टिला की डिजाइन अंतरराष्ट्रीय स्तर के आर्किटेक्ट ने वास्तु को ध्यान में रखकर की है। इसकी खासियत यह है कि इसके सबसे ऊपरी मंजिल पर हैलीपैड होगा। इसमें लीविंग क्वाट्र्स हैं और लॉबी में आने के लिए नौ एलिवेटरों की सुविधा है। 43 अरब डॉलर के मालिक अंबानी के अन्टिला की हर मंजिल अलग है। किसी भी माले को एक तरह से नहीं बनाया जा रहा है। इसमें एक हॉल ऐसा है जिसके छत का 80 फीसदी हिस्सा हीरे-जवाहरात से बने झूमर से सजा होगा। दो माले की सीढ़ियों को चांदी से बनाए जा रहे हैं।





ऊपरी मंजिल को मनोरंजन के लिए रखा गया है जहां अंबानी कभी-कभी अपने मेहमानों के साथ व्यवसायिक चर्चा करेंगे। यहां से अंबानी अरेबियन सागर का भी आनंद लेंगे। चौथे तल पर खुला बगीचा होगा। इसके छठवें तल को पार्किंग के लिए सुरक्षित रखा गया है। कहा जाता है कि नीता अंबानी की इच्छा के मुताबिक नवीं मंजिल की डिजाइन की गई है और लकड़ी, मेटल और क्रिस्टल लगाए गए हैं। वैसे यह अन्टिला बिल्डिंग, वक्फ बोर्ड की विवादास्पद अनाथालय की बेची गई जमीन पर खड़ी हो रही है। यह मामला बांबे हाई कोर्ट में विचाराधीन है और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर दखल देने से इनकार कर दिया है।

दुनिया की इस सबसे महंगी बिल्डिंग के बारे में विस्तृत जानकारी आप यहाँ पा सकते हैं

ट्रक ड्राइवर के बेटे ने जीता अमेरिकी टैलंट हंट

फिल्म 'नमस्ते लंदन' में तो अक्षय कुमार ने विरोधी पक्ष के छक्के छुड़ा दिए थे, बेसबाल के खेल में। वास्तविकता के धरातल पर उत्तर प्रदेश के ट्रक ड्राइवर के बेटे और अंग्रेजी न बोल सकने वाले रिंकू ब्रह्मादीन सिंह ने बेसबाल के एक Talent Hunt में ऐसा जोश दिखाया कि उन्होंने न सिर्फ इस प्रतियोगिता को जीता, बल्कि इस खेल की बारीकियों की बेहतर समझ के लिए वह अमेरिका रवाना हो रहे हैं।

एक अमेरिकी खेल कंपनी ने भारत के 30 शहरों में टैलंट हंट कराकर 30 हजार युवाओं के बीच से रिंकू और दिनेश कुमार पटेल को चुना है। दोनों युवा खिलाड़ियों को सैन फ्रैंसिस्को के जानेमाने प्रशिक्षकों से एक साल की ट्रेनिंग दी जाएगी। अगर इन्होंने ट्रेनिंग के दौरान उम्दा प्रदर्शन किया तो 2009 के सत्र में इन्हें मेजर बेसबॉल टीम में शामिल होने का मौका मिल सकता है।

मिलियन डॉलर आर्म हंट में रिंकू ने 89 मील प्रति घंटे की रफ्तार से बेसबॉल थ्रो करके सबसे तेज थ्रोअर के रूप में पहचान बनाई और एक लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 40 लाख रु.) का पुरस्कार भी जीता। इस हंट में दिनेश दूसरे नंबर पर रहे। अमेरिकी राजदूत डेविड सी. मलफर्ड ने इनके चयन पर बधाई देते हुए कहा कि इन दोनों युवा खिलाड़ियों के लिए यह सुनहरा मौका तो है ही, Major Leauge Baseball के लिए भी यह अनोखा मौका है। इस लीग में दुनियाभर के कई खिलाड़ी चुने जाते हैं, लेकिन भारत से कोई खिलाड़ी इसमें हिस्सा नहीं ले रहा था।

शारीरिक अपंगता, नेत्रहीनता? वो क्या होती है !?

दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा और जुनून हो, तो तमाम मुश्किलों को घुटने टेकने पड़ते हैं। भले ही यह मुश्किल शारीरिक अपंगता के रूप में ही क्यों न हो! नेत्रहीनता जैसी एक ऐसी ही मुश्किल अहमदाबाद के गगनबीर सिंह छाबड़ा की ताल पर भांगडा करती नजर आई, जब उन्होंने CAT के गले में घंटी बांध दी। गगनबीर देख नहीं सकते, इसके बावजूद 2007-08 की 'कैट' परीक्षा में उन्होंने 94 परसेंटाइल हासिल किया। उन्हें 5 आईआईएम से कॉल आईं। IIM बेंगलुरु और IIM कोलकाता ने गगन की हिम्मत को सलाम करते हुए उन्हें एडमिशन का ऑफर भी कर दिया है।

आईआईएम की डिग्री को आमतौर पर मोटी तनख्वाह की गारंटी माना जाता है, लेकिन गगन की निगाहें कहीं और हैं। अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद गगन कॉरपोरेट जगत का हिस्सा नहीं बनना चाहते, बल्कि सरकारी और अर्द्धसरकारी संस्थानों में रहकर कुछ अनुभव हासिल करना चाहते हैं। उनके लक्ष्य भी बेहद साफ हैं। वह साफ शब्दों में कहते हैं कि आज से 10 साल बाद मैं भारत का बेस्ट मानव संसाधक प्रबंधक बनना चाहता हूं।

नवभारत टाइम्स की ख़बर है कि जन्म से ही नेत्रहीनता (लगभग १५ से २० प्रतिशत की दृष्टि), Retinitis Pigmentosa की समस्या से जूझ रहे २२ वर्षीय गगनबीर का आईआईएम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। नेत्रहीनता के चलते आने वाली समस्याओं और लोगों के कमेंट्स ने गगनबीर के उत्साह को कदम-कदम पर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन अपनी मां की प्रेरणा से आईआईएम का ख्वाब संजोने वाले इस शख्स ने आखिर में अपने सभी आलोचकों को गलत साबित कर दिया। गौरतलब है कि Human Resource Management की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने टॉप रैंक हासिल की थी। कामयाबी का पूरा श्रेय मां स्वर्गीय हरिंदर कौर को देने वाले गगनबीर को किसी से कोई शिकायत नहीं है, बस एक दुख जरूर है। वह यह कि शानदार कामयाबी के इन लम्हों में काश! आज उनकी मां उनके साथ होतीं।