भारत की तलाश

 

Wednesday, April 30, 2008

दूल्हे का एक जाम, डेढ़ लाख का

कन्नौज के शाहपुर निवासी और रिटायर्ड टीचर सत्य प्रकाश श्रीवास्तव की बेटी संध्या और कानपुर के रावतपुर निवासी विजय श्रीवास्तव की शादी हो रही थी, लेकिन वहां एक अजीबोगरीब हंगामा खड़ा हो गया। शहर के कल्याणपुर थाना इलाके में दूल्हे को मंच पर अपने दोस्तों के साथ जाम टकराना महंगा पड़ गया।

जयमाला तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन इसके बाद दूल्हे को मंच पर अपने दोस्तों के साथ जाम टकराना महंगा पड़ गया। इस हरकत पर जब लड़की वालों ने ऐतराज किया, तो दोनों पक्षों में कहासुनी हो गई। बात इतनी बढ़ गई कि नशे में धुत्त दूल्हे ने अपने होने वाले ससुर का धक्का दे दिया और गालियां बक दीं।

बात जब दुल्हन के कानों तक पहुंची, तो उसने शादी करने से ही इनकार कर दिया। और तो और लड़की वालों ने दूल्हे और उसकी बहन सहित करीब डेढ़ दर्जन बरातियों को बंधक बना लिया। मामला पुलिस तक पहुंचा, तो शादी तोड़ने पर समझौता हुआ। लड़के वालों ने हर्जाने के तौर लड़की वालों को डेढ़ लाख रुपये देकर जान छुड़ाई।

Tuesday, April 29, 2008

दहेज़ के लिए बहू की ब्लू फिल्म बनायी और ब्लैकमेल किया

बड़े बुजुर्गों का अक्सर यह कहना रहा है कि बहू, बेटी होती है, घर की लाज होती है। उस पर कुल की मर्यादा ढोने की जिम्मेदारी समाज ने डाल रखी है। लेकिन यहाँ तो एक परिवार ने, दहेज की मांग पूरी करवाने के लिए अपने ही बेटे और बहू की चोरी से अश्लील वीडियो सीडी बना डाली और बहू को ब्लैकमेल किया। इसके अलावा बहू पर 'वाइफ स्वैपिंग' का दबाव भी डाला गया। अंत में परेशान होकर बहू ने पुलिस में सास ससुर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है।

राष्ट्रीय सहारा में आए समाचार में बताया गया है कि प्रीत विहार थाने में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार प्रभा (बदला हुआ नाम) की शादी 15 जनवरी 2007 को चित्रा विहार निवासी नितिन गुप्ता से हुई थी। नितिन के पिता राकेश गुप्ता एक जाने-माने बिल्डर हैं। शादी के दो माह बाद ही उसके ससुराल पक्ष के लोगों का रवैया बदलने लगा। प्रभा की सास ने उसके शादी के सारे गहने अपने पास रख लिए। इसके कुछ दिनों बाद, प्रभा के कपड़े पहनने के तौर-तरीके पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वह माडर्न लोग हैं और प्रभा को साड़ी के बजाए मिनी स्कर्ट व अन्य माडर्न ड्रेस पहननी चाहिए, लेकिन प्रभा ने इंकार कर दिया। इसके बाद राकेश व सपना ने प्रभा को अपने पिता से 80 लाख रूपए लाने को कहा ताकि नितिन को नया बिजनस कराया जा सके। जब प्रभा ने इसके लिए भी मना किया तो पति नितिन गुप्ता व ससुर राकेश गुप्ता ने उसे बताया कि उसके बेडरूम में एक हिडन कैमरा लगा हुआ है जिसकी मदद से उन्होंने नितिन व प्रभा की ब्लूफिल्म बना ली है। अगर वह अपने मायके से रकम नहीं लाएगी तो वे लोग उस सीडी में नितिन का चेहरा बदलकर उसे इंटरनेट पर डाल देंगे और एमएमएस द्वारा इसे फैला देंगे। जब प्रभा ने अपने कमरे में लगा हिडन कैमरा खोजकर उतार लिया तो राकेश गुप्ता ने वह कैमरा उससे छीन लिया और इसके बाद राकेश गुप्ता ने प्रभा को वह सीडी दिखाई, जिसे देखने के बाद प्रभा के होश उड़ गए। इसके साथ ही राकेश गुप्ता ने प्रभा से कहा कि उसे नोएडा में चलने वाले एक फैमिली क्लब से जुड़ना होगा जहां वाइफ स्वैपिंग होती है और इस क्लब में कई अमीर लोग आते हैं लेकिन प्रभा ने इससे इंकार कर दिया।

समाचार के अनुसार, प्रभा ने पुलिस को बताया कि अक्टूबर 2007 को उसके बेटे आदित्य के जन्म पर ससुराल पक्ष ने मायके से नितिन की बहन के चार लाख रूपए के गहने लाने को कहा। उसने अपने ससुर पर यह भी आरोप लगाया है कि राकेश गुप्ता ने उसके कमरे में घुसकर उसके कपड़े उतारने का प्रयास करने के साथ-साथ छेड़छाड़ भी की। इसके बाद 12 नवम्बर को प्रभा अपने पति नितिन व बेटे आदित्य के साथ प्रीत विहार में किराए के मकान में रहने के लिए चली गई। वहां भी राकेश गुप्ता आते-जाते रहते थे और एक दिन रात को जब प्रभा घर में अकेली थी तो उन्होंने उसके साथ छेड़छाड़ भी की। इसके बाद प्रभा अपने मायके चली गई और सारी बात अपने पिता व भाई को बताई। मायके वालों ने मिलजुल कर मामला सुलझाने का प्रयास किया लेकिन राकेश गुप्ता की मांग इतनी ज्यादा थी कि उसके परिजन उन्हें पूरा करने में असमर्थ थे। इसके बाद प्रभा ने इसकी शिकायत प्रीत विहार थाने में की जिसके बाद पुलिस आईपीसी की धारा 498ए व 354 के तहत मामला दर्ज कर लिया।

पुलिस का कहना है कि अब तक हुई जांच में प्रभा द्वारा लगाए गए आरोपों में कुछ तो सच्चाई है लेकिन जब तक सीडी नहीं मिल जाती तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है। पुलिस अभी राकेश गुप्ता, नितिन गुप्ता व अन्य आरोपितों से पूछताछ नहीं कर पाई है क्योंकि वे लोग हरिद्वार गए हुए हैं।

मौलवी द्वारा गीता का प्रवचन


मेरे इंडिया में धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटने वाले तो बहुत मिल जायेंगे, लेकिन वास्तविकता में ऐसा दिखता बहुत कम है। अभी तीन दिन पहले ही तो इसी ब्लॉग पर ख़बर थी एक ऐसे मदरसे की जहाँ दिन की शुरुआत गाँधी जी के प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम से होती है तो शाम को जय हिंद का उदघोष होता है। अब जो ख़बर आयी है इसका भी कोई जवाब नहीं है।

तमिलनाडु के कोथांडा रामा स्वामी मंदिर में बृहस्पतिवार को श्रध्दालुओं की भीड़ किसी हिंदू द्वारा नहीं बल्कि एक मौलवी एम। अब्दुल सलाम के मुख से कांबा रामायण सुनने को जुटती हैं। एक बार गीता पर प्रवचन देने का कार्यक्रम रद करने वाले एक हिंदू अध्यापक की जगह सलाम ने प्रवचन दिया और तभी से स्थानीय हिंदू, मुस्लिम और क्रिश्चियनों के धार्मिक संस्थानों में उन्हें मान्यता मिलने लगी। चार साल पहले स्थानीय कालेज में तमिल अध्यापक सलाम को भागवत गीता पर प्रवचन देने पर लोग प्यार से 'गीता सलाम' पुकारने लगे। उन्होंने पवित्र ग्रंथ के संदर्भ में अपने ज्ञान से सभी को चकित कर दिया। इसके चलते सलाम, स्थानीय मस्जिदों और चर्चों में भी काफी लोकप्रिय हैं। सलाम का पता भी इतना लोकप्रिय है कि खत पर सिर्फ 'गीता सलाम, रामनाथपुरम डिस्ट्रिक्ट' लिखना है और वह अपने पते पर आसानी से पहुंच जाएगा।

तमिल साहित्य के छात्रों को सलाम गीता और रामायण की ओर भाषा और दूसरे धर्मों को समझने के जुनून के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हालांकि सलाम संस्कृत नहीं जानते। वह केवल उसका अनुवादित संस्करण ही पढ़ते हैं। उनके पास गीता के 12 संस्करण मौजूद हैं।

Monday, April 28, 2008

प्रधानमंत्री अंधेरे में रहे, और विद्युत आपूर्ति का उद्घाटन किया!

ऐसा कारनामा तो मेरे इंडिया में ही हो सकता है, जहाँ जनता के लिए रोशनी का इंतजाम करते वक्त प्रधान मंत्री को अंधेरे में रखा जाए! हुया यह कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पिछले दिनों अपने झारखंड दौरे के दौरान बोकारो जिले के दस गांवों में विद्युत आपूर्ति योजना का शुभारंभ कर गए थे लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि पांच दिन बीत जाने के बाद भी इन दस में से आठ गांवों में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है। प्रधानमंत्री तो विद्युत आपूर्ति योजना का शुभारंभ कर चले गए लेकिन अब इस बात का खुलासा हुआ है कि जिन दस गांवों में विद्युत आपूर्ति योजना का शुभारंभ उन्होंने किया था उनमें से आठ गांवों में विद्युतीकरण का काम ही पूरा नहीं हुआ है। इस खुलासे से अचंभित झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब किया है।

प्रधानमंत्री ने 22 अप्रैल को इन दस गांवों में विद्युत आपूर्ति योजना का शुभारंभ किया था। राज्य सरकार ने दावा किया था कि केंद्रनीत राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के अंतर्गत इन गांवों के विद्युतिकरण का काम पूरा हो गया है। ताजा जानकारी के मुताबिक इन दस में से सिर्फ दो ही गांवों में विद्युतीकरण का काम पूरा हुआ था। शेष आठ गांवों का विद्युतीकरण ही नहीं हुआ। अलबत्ता प्रधानमंत्री के शुभारंभ के पांच दिन बाद भी इन आठ गांवों में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है। दरअसल, प्रधानमंत्री को अंधेरे में रख इन गांवों में विद्युत आपूर्ति योजना का शुभारंभ करवा दिया गया।

जिन आठ गांवों में अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है वे हैं मूगा सरला, काटमकुल्ही, ओरमो, बेरोटांड, बेमरोटांड, अरारायी, तांतेबेरा और रूकाम। मूंगा सरला गांव के निवासी भुवनेश्वर राजवार ने बताया, ''बिजली विभाग के अधिकारी हमारे गांव आए और कह गए कि 21 अप्रैल तक विद्युतीकरण का काम पूरा कर लिया जायेगा। लेकिन आज तक हम इसी इंतजार में हैं कि कब हमारे घर बिजली से रोशन होंगे।''

खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है। यहां तक कि राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी भी इस खुलासे से आश्चर्यचकित हैं। रजी ने राज्य सरकार से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। उन्होंने राज्य सरकार से पूछा है कि बिना विद्युतीकरण के क्यों इस योजना का शुभारंभ किया गया। ज्ञात हो कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत राज्य सरकार को केंद्र से लगभग तीन अरब रुपये की राशि मिली थी।


विश्व अंतरिक्ष के इतिहास में भारत ने पहली बार ...

निश्चित ही यह गौरव के क्षण हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( इसरो) ने आज उस वक्त एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, जब आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से सुबह नौ बजकर 23 मिनट पर पहली बार एक साथ 10 उपग्रह प्रक्षेपित किए गए। इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी9) ने 690 किलोग्राम वजन का भारतीय दूर संवेदी उपग्रह ‘कार्टोसेट 2 ए’ और 83 किलोग्राम वजन का भारतीय मिनी उपग्रह (।आईएमएस-1) तथा दूसरे देशों के आठ ‘नैनो’ उपग्रहों को लेकर सफलतापूर्वक उड़ान भरी। यह आठ ‘नैनो’ उपग्रह कनाडा, नीदरलैंड, डेनमार्क तथा जर्मनी के हैं।

नौ बजकर 23 मिनट पर इस यान को प्रक्षेपित किया गया। भारतीय अंतरिक्ष और विश्व अंतरिक्ष के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि 10 उपग्रहों को एक ही मिशन के तहत अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है। इन 10उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण को देखकर यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र के मिशन नियंत्रण कक्ष में इसरो प्रमुख जी माधवन नायर समेत अंतरिक्ष विज्ञानी खुशी से झूम उठे।

ऐसा पहली बार हुआ हैं जब भारतीय अंतिरक्ष वैज्ञानिकों ने इस तरह की सफलता हासिल की है। इससे पहले पिछले साल अप्रैल में रूस ने एक साथ 16 उपग्रह प्रक्षेपित किए थे। लेकिन जहां भारत का पीएसएलवी-सी9 कुल 824 किलो भार लेकर गया हैं वहीं रूस का यान मात्र 300 किलोग्राम भार लेकर गया था।

डीआईजी स्तर का पुलिस अधिकारी, नक़ल करते पकडाया

आप क्या समझते हैं, शैक्षणिक परीक्षायों में आम होती जा रही नक़ल की महामारी सिर्फ आपके आसपास के स्कूल या कॉलेज में ही हो सकती है? यहाँ, मेरे इंडिया में तो गुजरात कैडर के एक IPS अधिकारी को गांधीनगर के सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में एलएलबी की परीक्षा के दौरान नकल करते हुए पकड़ा गया।

गुजरात यूनिवर्सिटी के प्रति कुलपति एन।के.पटेल ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने नवभारत टाईम्स को बताया कि 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी रजनीश रॉय को शुक्रवार को नकल करते हुए पकड़ा गया। श्री पटेल ने बताया कि इसी परीक्षा में नकल करते हुए नौ अन्य लोगों को भी पकड़ा गया। रजनीश राय, उप महानिरीक्षक (राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के पद पर तैनात हैं। रॉय के नाम अनेक सनसनीखेज मामलों को सुलझाने का श्रेय भी जाता है। सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी पूर्व डीजीपी डीजी वंजारा व अन्य आला अधिकारियों को गिरफ्तार कर राय खासे चर्चित रहे थे।

Friday, April 25, 2008

पंडितजी की जमीन पर चल रहे मदरसे में गांधी के भजन, संस्कृत, जयहिंद

हालांकि यह एक सहज ख़बर है, लेकिन आज के माहौल में इसका प्रसार जरूरी है कि एक मदरसे में न सिर्फ हिंदुओं के लड़के ज्यादा पढ़ते हैं बल्कि यहां के छात्रों को राष्ट्रीयता और राष्ट्रनिर्माण के पाठ भी पढ़ाए जाते हैं।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत तहसील का चवरी बाजार आजकल सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खास तौर पर चर्चा में है , क्योंकि यहां पर एक ऐसा मदरसा है जो न सिर्फ हिन्दू बाहुल्य इलाके में है बल्कि इसमें मुस्लिम बच्चों से ज्यादा हिंदुओं के बच्चे पढ़ते हैं। पिछले एक दशक से अनवारुल इस्लामियां सल्फिया मदरसे में अन्य विषयों के अलावा राष्ट्रवाद का पाठ भी पढाया जाता है। मदरसे में दिन की शुरुआत गाँधी जी के प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम से होती है तो शाम को जय हिंद के बाद मदरसा अगले दिन तक के लिए बंद हो जाता है । चवरी बाजार के इस मदरसे में 435 बच्चे पढ़ रहे हैं । कक्षा 8 तक के इस मदरसे में 297 हिन्दू छात्र हैं और 138 मुसलमान हैं। इस मदरसे में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सभी विषयों के अलावा जितनी तन्मयता से उर्दू और अरबी पढ़ाई जाती है उतनी ही शिद्दत से संस्कृत की भी शिक्षा दी जाती है।

पढ़ने वाले बच्चों को यह पूरी छूट है कि वे चाहें तो संस्कृत पढ़ें या फिर उर्दू या अरबी लेकिन खास बात यह है कि यहां पढ़ने वाले सभी बच्चे दोनों भाषाएं पढ़ते हैं। मदरसे के चेयरमैन रिजवानुल हक बताते हैं कि देश में आम तौर से मदरसों की जो छवि पेश की जा रही है उसे सुधारने में यह मदरसा अग्रणी भूमिका निभा रहा है और ऐसा हम अकेले नही बल्कि हिंदू भी मिलकर कर रहे हैं। दरअसल इस मदरसे की बुनियाद ही गाँव के एक पंडित जी की जमीन पर 1997 में तब पड़ी जब इसके लिए रिजवानुल हक जमीन तलाश रहे थे। पंडित जी ने अपनी स्वेच्छा से यह जमीन मदरसे के लिये दे दी। तभी से यह मदरसा सांप्रदायिक सौहार्द की खुशबू बिखेर रहा है

आज सांप्रदायिक सौहार्द की बुलंदियों पर पहुचने के कारण ही यहां हिन्दुओं के बच्चे उर्दू और अरबी की शिक्षा ज्यादा ले रहे हैं जबकि मुस्लिम बच्चे संस्कृत की । एक छात्रा मदीना बानो कहती हैं कि हम संस्कृत भी पढ़ते हैं और जय हिंद भी करते हैं क्योंकि हम भी भारत माता की संतान हैं। रिंकी यादव जो कक्षा 5 में पढ़ती है बताती है, अब हमें उर्दू और अरबी की भी जानकारी हो गई है। अभिभावक भी खुशी - खुशी अपनें बच्चों को इस मदरसे में भेज रहे हैं क्योकि बच्चे यहां तालीम के साथ -साथ संस्कार भी सीख रहे हैं। मुस्लिम बच्चे बड़े मजे से संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं तो हिंदू बच्चे उर्दू और अरबी बड़े शौक से पढ़ रहे है। एक अभिभावक अक्षय सरोज का कहना है कि हमारे चवरी बाजार का यह मदरसा हिंदू मुस्लिम एकता के लिए खास तौर पर जाना जाने लगा है, जिसमे यहां के सभी लोगों का सहयोग है।

ये है मेरा इंडिया!

Thursday, April 24, 2008

अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाला नेत्रहीन जीता, लेकिन ...

नीलेश जब कॉलेज से एमए करके बाहर निकले तो उनके भी कुछ ख्वाब थे। उनमें से एक ख्वाब था मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग परीक्षा पास करके अपने प्रदेश और देश की सेवा करना। नीलेश ने जी जान से लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी की थी। चूंकि नीलेश देख नहीं सकते थे इसलिए वो अपने नोट्स टेप रिकार्डर से रिकार्ड कर लेते थे। ये एक मेहनत भरा और थका देने वाला काम था। फिर उन कैसेट्स को नीलेश सुनते और याद करने की कोशिश करते। 1997, 1998 और 1999 में नीलेश ने लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी और शुरुआती दोनों परीक्षाएं, प्रीलिम्स और मैंन पास कर गए।

अब बारी थी इंटरव्यू टेस्ट की। लेकिन, नीलेश को कभी भी इसके लिए बुलाया नहीं गया। एग्जाम में बैठने के अनुमति दी लेकिन जब साक्षात्कार की बात आई तो ये कहकर निकाल दिया कि आप विजवली इम्पेयर्ड हैं और हमारे पास आप के लिए कोई सीट नहीं हैं। नीलेश ने सवाल उठाया कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के पास अगर नेत्रहीनों के लिए कोई नौकरी नहीं है तो उन्हें परीक्षा देने के लिए क्यों बुलाया जाता है? और जब मुझ जैसे लोग परीक्षा पास कर लेते हैं तो हमें इंटरव्यू के लिए नहीं बुलाकर क्यों अपमानित किया जाता है? क्या सरकार के पास ऐसी कोई पोस्ट नहीं है जिसपर एक ऐसे शख्स को बिठाया जा सके जो देख नहीं सकता?

IBN7 पर समाचार आया है कि लोक सेवा आयोग के इस दोहरे रवैये के खिलाफ नीलेश ने आवाज उठाने का मन बना लिया और आयोग को हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में चुनौती दी। नीलेश ने दलील दी कि विकलांगता से ग्रस्त (Equal Opportunities, Protection and Rights & Full Participation) एक्ट 1995 में विकलांगों को आरक्षण यानि रिजर्वेशन देने की बात कही गई है। लेकिन मेरे जैसे नेत्रहीन कैंडिडेट के साथ भेदभाव कर नौकरी पाने के संवैधानिक अधिकार से क्यों वंचित किया गया। नीलेश की लड़ाई रंग लाई। 8 अप्रैल 2008 को हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि सरकारी नौकरियों में विकलांगों के लिए आरक्षण का खास ख्याल रखे। हाईकोर्ट का ये आदेश नीलेश के जंग का नतीजा है। हालांकि इससे नीलेश को नौकरी नहीं मिली, लेकिन उस जैसे हजारों लोगों के लिए एक रास्ता ज़रुर खुल गया।

Wednesday, April 23, 2008

फॉर्म न भर पाने वाले सरकार चला रहे !

क्या आप मानते हैं कि दुकानें ‘चल संपत्ति’ हैं, जबकि पशु ‘अचल संपत्ति’? क्या आपकी शैक्षणिक योग्यता है-‘हायर सैकंडरी के सभी विषय’। ये बात हो रही है, चुनावी एफीडेविट की, जिसके जरिए बीते वर्ष के पंजाब विस चुनाव के प्रत्याशियों ने व्यक्तिगत संपत्ति, शैक्षिक योग्यता और आपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा दिया है। अधिकांश राजनेताओं की शैक्षणिक योग्यता या तो ‘अंडर मैट्रिक ’ है या फिर ‘अंडर मिडिल’, एक नेता ने लिखा है-‘लागू नहीं।'

दैनिक भास्कर में आए समाचार में कहा गया है कि इन एफीडेविट से सदस्यों द्वारा दी गई जानकारियों का राज्य चुनाव आयोग ने भी कोई नोटिस नहीं लिया। कैबिनेट का नेतृत्व करने वाले मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अपने एफीडेविट में अपने ऊपर चल रहे मामलों का पूरी तरह खुलासा नहीं किया है। उन्होंने न तो अपनी स्कूली शिक्षा का जिक्र किया है, न ही बालासोर स्थित अपने मकान का कोई उल्लेख किया है। उन पर कितना सरकारी बकाया है, इसका भी विवरण उन्होंने नहीं दिया है। बिजली बकाए को रिपीट कर दिया गया है, पानी के बकाए का जिक्र ही नहीं किया गया है।

कृषिमंत्री ने मकान, कैटल शैड्स और गोदामों का विवरण नहीं दिया है, आयकर और ऋण संबंधी विवरण देने की जरूरत नहीं समझी है। सहकारिता मंत्री ने चंडीगढ़, अमलोह और मोगा स्थित अपने मकान, दुकान और गोदामों का विवरण नहीं दिया है। आयकर रिटर्न भरने संबंधी जानकारी भी नहीं दी गई है। खाद्य आपूर्ति और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने अपने बैंक डिपॉजिट, बॉंडय्स, शेयर और अन्य वित्तीय स्रोतों की जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी है। ज्वैलरी वाले कॉलम को भी नहीं भरा गया है। आयकर संबंधी जानकारी को भी छुपाया गया है।

एक गैर सरकारी संगठन यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया। कोर्ट ने कार्रवाई करते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को सख्त आदेश दिए हैं कि वे चुनावी प्रत्याशियों की इस तरह की लापरवाही पर तुरंत लगाम कसें। सर्वेक्षण करने वाली संस्था, रिसोर्जेस इंडिया ने पाया कि 6 बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों ने कुल 388 एफीडेविट भरे थे, जिनमें से 369 अधूरे छोड़े गए थे। इन्हीं में एक मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का एफीडेविट भी है। सर्वेक्षण करने वाली संस्था के सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बताया कि अगर कोई उम्मीदवार अपने संबंध में गलत जानकारी देता है, तो सुप्रीम कोर्ट के नियमों के मुताबिक उसका नामांकन तो नहीं रद किया जा सकता, उसपर मुकदमा जरूर चलाया जा सकता है। वहीं, अगर किसी ने पूरी जानकारी नहीं दी है तो उसपर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, लेकिन उसके नामांकन पेपर रद किए जा सकते हैं। यहाँ यह बताया जाना जरूरी है कि मई 2002 में कोर्ट ने एक आदेश जारी कर सभी उम्मीदवारों को उनके घर-संपत्ति, पारिवारिक विवरण और शैक्षिक योग्यता और दायित्वों का विवरण देना अनिवार्य कर दिया था।

दैनिक भास्कर आगे लिखता है कि, जब इस संबंध में और खोजबीन की गई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। कुछ प्रत्याशियों ने अपने एफीडेविट में न केवल विवरणों को खाली छोड़ दिया है, बल्कि कई महत्वपूर्ण कॉलमों में गुमराह करने वाली जानकारियां भी दी गई हैं। उदाहरण के लिए 33 उम्मीदवारों ने मोहाली जिले के गांव कंसल स्थित अपने एएलए सोसायटी के समान रकबे के प्लाटों की अलग-अलग कीमत बताई है। किसी ने उसकी कीमत 60 लाख (प्रति 500 स्कवायर यार्ड) बताई है तो किसी ने उतने की ही कीमत 2.5 लाख लिखी है।

रिसोर्जेस इंडिया के महासचिव हितेंद्र जैन ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि ऐसे एफीडेविट कैसे स्वीकार कर लिए गए। कुछ अन्य मामलों में, फिरोजपुर के जीरा से बसपा के उम्मीदवार ने अपना और पिता का नाम, आयु और पता का कॉलम खाली छोड़ दिया है। चल संपत्ति के रूप में एक मोटरसाईकल को छोड़कर शेष सी कालम खाली हैं। कृषि भूमि, भवन, सरकारी बकाया, विभिननि प्रकार को करों का कॉलम भी रिक्त है। बसपा के ही मोगा के निहाल सिंह वाला विधानसभा उम्मीदवार केवल सिंह ने अपने एफीडेविट से कई कालम ही नष्ट कर दिए हैं। यही हाल जालंधर के फिल्लौर विधानसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार संतोख सिंह का रहा है। नंगल (रोपड़) से सीपीएम उम्मीदवार गुरदियाल सिंह ने आपराधिक विवरण वाला कॉलम उड़ा दिया है। साथ ही, कर्ज और पत्नी के नाम से संबंधित खाना भी गैर-मौजूद है। वहीं, तलवंडी साबो (बठिंडा) से शिअद प्रत्याशी अमरजीत सिंह ने अपनी गैर-कृषि भूमि और आश्रितों की जानकारी नहीं दी है। तरनतारन के खडूर साहिब से कांग्रेस प्रत्याशी तरसेम सिंह ने अपनी आवश्यकता के अनुसार एफीडेविट का प्रारूप बदल लिया और बैंक डिपॉजिट, शेयर, गहने, नामऔर पता, शिक्षा समेत तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां नहीं दी हैं।

होशियारपुर के शामचौरासी से कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी रामलुभाया ने अपनी 11 संपत्तियों का उल्लेख किया है, लेकिन उनका बाजार मूल्य नहीं दिया है। बैंक खातों का उल्लेख न करने के साथ ही उन्होंने अपनी संपत्तियों की लोकेशन भी स्पष्ट नहीं की है। बसपा के 6 उम्मीदवारों सुरजीत सिंह, कपिल बत्रा, राजू कुमार हंस, रामप्रकाश, बलविंदर सिंह और अशोक कुमार ने सभी हदें पार करते हुए खाली कॉलम चुनावों के बाद भर देने की बात लिखी है। यह समझ से बाहर है कि कैसे उनका नामांकन पत्र स्वीकार कर लिया गया।

जान से मारने की धमकी मिली तो रिटायर्ड एसपी ने युद्ध की तैयारी की!?

पंजाब में एक सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक के घर से आभूषणों और अन्य कीमती वस्तुओं की चोरी के एक मामले की जांच कर रही पुलिस उस समय हैरत में पड़ गई, जब उसे इस अधिकारी के घर से हथियारों का जखीरा मिला। मामले की जांच कर रही पुलिस ने सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक (एसपी) सुरेंद्र सिंह अटवाल को उनके सेक्टर 15 स्थित बंगले से रविवार रात को गिरफ्तार कर लिया।

अटवाल के घर पर हुए चोरी के एक मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने मीडिया को बताया, ''ऐसा लगता है कि अटवाल किसी युध्द की तैयारी कर रहे थे पर उन्होंने तर्क दिया है कि उन्हें जान से मार देने की धमकी मिली थी। इसलिए ये हथियार खुद की सुरक्षा के लिए रखे गए थे।'' पुलिस ने बताया कि अटवाल के घर से एक एके-47 आटोमेटिक राइफल, 1,351 कारतूस, एक 38 बोर का प्रतिबंधित रिवॉल्वर, प्रतिबंधित नौ एमएम पिस्तौल के 168 कारतूस, एके-47 का एक खाली ड्रम, स्वचालित राइफल की 95 राउंड गोलियां, एक 303 राइफल व 59 राउंड गोलियां और सात खाली मैगजींस जब्त की गई हैं।

पंजाब में जब 1982-95 के दौरान आतंकवाद परवान पर था, तो अटवाल को होशियारपुर, अमृतसर, तरनतारन, मजिठा और फिरोजपुर में तैनात किया गया था।

Tuesday, April 22, 2008

'पब्लिक' स्कूलों में जनता के बच्चों को दाखिला नहीं

सिर्फ होनहार होने से बारह साल का मोहित और उसके भाई राजीव को दाखिला नहीं मिल सकता। ये मेरा इंडिया है , जनाब। वो अपनी पेंटिंग्स के लिए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और तमाम बड़ी हस्तियों के हाथों पुरस्कृत हो चुका है। दिल्ली के परिवहन मंत्री हारून यूसुफ, उपराज्यपाल व कई अन्य मंत्रियों ने पुरस्कार के जरिए उसके हुनर को सराहा है।

यह सबक मिला है पढ़ाई और पेंटिंग में काबिल इन लड़कों के पिता दीपक कुमार को। बच्चों के सर्टीफिकेट और ट्रॉफियां लेकर वह हर स्कूल की सीढ़ियां चढ़ चुके हैं। पर उनके बच्चों के लिए कहीं कोई सीट नहीं है। यकीनन दीपक हाईफाई स्कूलों की ‘क्वालिफेकशन’ नहीं रखता। मयूर विहार फेज-3 इलाके में, दीपक अपने परिवार के साथ रहता है। वह सिलाई व कपड़ों में जरी का काम करता है, जिसमें उसकी पत्नी व बेटी भी मदद करती हैं। बकौल दीपक ‘मेरे बच्चे की पेंटिंग से प्रधानाध्यापक ने कमरा तो सजा रखा है, लेकिन उसे अपने स्कूल में दाखिला नहीं दे सकते। इनके सार्टिफिकेट के साथ मयूर विहार इलाके के तमाम स्कूलों का चक्कर लगा चुका हूं, लेकिन गरीबों के लिए आरक्षित सीट पर दाखिला देने के लिए कोई भी तैयार नहीं है।’

रूंधे गले से दीपक ने कहा कि गरीबों के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में मुफ्त पढ़ाने की बात उसे एक छलावा लग रही है। कोई स्कूल उसके बेटों को दाखिला देने को तैयार नहीं है। कुछ स्कूलों के प्रिंसिपल्स ने तो उसे झिड़क तक दिया और जब उसने सरकारी अधिकारियों से फरियाद लगाई तो आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।

दरअसल जिस स्कूल में वह दोनों पढ़ते हैं वहां आठवीं के बाद पढ़ाई नहीं होती। अब राजीव आठवीं पास कर चुका है तो उसे जाहिरतौर पर स्कूल बदलना है। मोहित छठी पास है। दीपक चाहते हैं कि उनके दोनों बेटे एक ही स्कूल में पढ़ें। इसलिए वह मोहित को सातवीं और राजीव को नौंवी क्लास में एडमीशन दिलाने के लिए ठोकरं खा रहे हैं।

साहित्य अकादमी सम्मान बेचने को मजबूर एक स्वाभिमानी

खाने और दवाओं की जरूरत पूरी करने के लिए 'वह' अपने मेडल और अन्य सम्मान बेचने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें उन्हें, 2007 में मिला साहित्य अकादमी सम्मान भी शामिल है। ये हैं भारी आर्थिक तंगी से जूझ रहे, वयोवृध्द हिंदी उपन्यासकार और स्वतंत्रता सेनानी अमर कांत, जो अपनी मूल हस्तलिपियां तक बेच चुके हैं।

उत्तर प्रदेश के बलिया के अमर कांत, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग ले चुके हैं। उन्हें राज्य के महात्मा गांधी पुरस्कार और साहित्य भूषण सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इस समय बुरे दौर से गुजर रहे अमर कांत ने प्रकाशकों पर धोखाधड़ी करने और सरकार पर संवेदनहीन होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि वह जीवनभर अपनी लेखनी से समाज के लिए और स्वतंत्रता के संघर्ष में योगदान देते रहे हैं। अब सरकार की बारी उनके लिए कुछ करने की है, जिससे कि वह अपनी दवाओं और रोजाना का खर्चा पूरा कर सकें।

मजबूरी के चलते 83 साल के कांत अपनी मूल हस्तलिपियां मामूली दामों में बेच चुके हैं। अब वह अपने मेडल और सम्मान बेचने को भी मजबूर हो गए हैं। इनमें उनका साहित्य अकादमी सम्मान भी शामिल है, जो उन्हें उपन्यास 'इन्हीं हथियारों से' के लिए दिया गया था। उनका कहना है कि जब वह खुद ही इतनी तंगी में हैं तो इन्हें रखने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने सम्मानित जीवन जिया है लेकिन अब वह पाई-पाई के लिए जूझ रहे हैं।

शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की तरह ही कांत भी अपने अच्छे दिनों में बहुत बड़े परिवार की देखभाल करते थे और उनका बेटा अरविंद बिंदू उनके विचारों को कलम से कागज पर उतारता था। कांत कहते हैं कि उनके प्रकाशकों ने उन्हें रॉयल्टी नहीं दी, जबकि उनके 'सूखा पत्ता' (इसके लिए 1984 में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड मिला), 'काले उजाले', 'देश के लोग' और अन्य उपन्यासों ने प्रकाशकों को अच्छी कमाई कराई।

Monday, April 21, 2008

अवसादग्रस्त बच्चों के लिए अनोखी प्रयोगशाला

मशीन पर बैठिए, बटन दबाइए और अपनी मेमोरी तेज बनाइए। यह कैसे हो सकता है? लेकिन लखनऊ स्थित सिटी इंटरनेशनल कालेज में स्थापित की जा रही मेमोरी लैब से सम्भव होने जा रहा है। यह तरीका पढ़ाई में कमजोर स्मरण शक्ति के कारण अवसाद झेल रहे बच्चों के लिए ढूंढ़ निकाला गया है। यहां इस प्रयोगशाला को विशेष रूप से विश्वरुप रायचौधरी ने तैयार किया है, जिन्होंने स्मरण शक्ति बढ़ाने के तमाम तरीकों को एक पुस्तक में लिखकर अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाड्र्स में दर्ज कराया है।

दरअसल पढ़ाई को लेकर बढ़ रहे मानसिक अवसाद और स्मरण शक्ति में कमजोर होने की वजह से हीनता का शिकार हो रहे बच्चों के कारण विद्यालय ऐसे ही किसी तरीके की तलाश में था। शोध और तमाम शिक्षाविदों से विचार-विमर्श के बाद कालेज प्रशासन ने इसके लिए विश्वरुप रायचौधरी से संपर्क किया और उसके बाद इस प्रयोगशाला का खाका तैयार किया गया। सिटी इंटरनेशनल कालेज की प्रधानाचार्य सुनीता गांधी ने इस अनोखी प्रयोगशाला के बारे में बताया कि बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने का यह तरीका अदभुत है। इस प्रयोगशाला में बच्चों की कल्पना शक्ति बढ़ाने के लिए कई उपकरण विशेष प्रकार से डिजाइन किए गए हैं। यह सिस्टम चुंबकीय और तकनीकी पर आधारित है।

उन्होंने कहा कि ग्रीक और रोमन पद्धति से तैयार की गई इस तकनीक में अगर बच्चे इसको पूरी तरह से अपना लेंगे, तो उनकी स्मरण क्षमता इतनी प्रबल हो जाएगी कि वह आठ घंटे की पढ़ाई केवल दो घंटे में ही कर लेंगे। इस प्रयोगशाला का सबसे पहला आधार यह है कि इंसान जिस चीज को देखता है, वह उसे जल्द याद हो जाती है। लिहाजा इस तकनीक में चित्रों व कल्पना को बहुत महत्व दिया जा रहा है। इस तरीके को इतिहास और गणित में बेहद कारगर माना गया है।

स्मरण शक्ति बढ़ाने का यह तरीका पांच हजार साल पुराना है। विश्व में निजी क्षेत्र में छह ऐसे केन्द्र हैं, जहां इस तरीके से स्मरण शक्ति बढ़ाने के उपाय बताए जाते हैं। लेकिन प्रयोगशाला के रूप में किसी स्कूल में यह पहली बार स्थापित किया गया है। सुनीता गांधी के अनुसार अभी से बच्चे इस प्रयोगशाला में काफी आनंद उठा रहे हैं। नये सत्र से इसमें काम शुरू हो जाएगा।

चिता पर, काव्य पाठ के माध्यम से, श्रद्धांजलि दी

आमतौर से जहां चिताएं जलती है वहां पर माहौल गमगीन होता है, लेकिन भोजपुरी साहित्य के पुरोधा पंडित चंद्रशेखर मिश्र की चिता पर तो उनके साथी कवियों ने न सिर्फ कविता पाठ किया, बल्कि इसी के माध्यम से उन्हे श्रद्धांजलि भी दी।

भोजपुरी साहित्य के आकाश पर नक्षत्र की तरह लगभग पांच दशकों तक विराजमान रहने वाले पंडित चंद्रशेखर मिश्र का लंबी बीमारी के बाद बृहस्पतिवार देर रात निधन हो गया था। वाराणसी के हरिशचंद्र घाट पर शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस अवसर पर कवियों ने उनकी चिता पर काव्य पाठ करके उन्हे अंतिम विदाई दी। वहां उपस्थित कवियों ने बताया कि मिश्र की अंतिम इच्छा थी की उनके मरने के बाद कविता पाठ के बाद ही उन्हे मुखाग्नि दी जाए।

साहित्य जगत में वीर रस को प्रतिष्ठापित करने वाले मिश्र के निधन के बाद उनके घर पर साहित्यकारों और कवियों का जमावड़ा लग गया था। 80 साल के हो चुके पंडित मिश्र अपने चार बेटे और चार बेटियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए है।

हरिशचंद्र घाट पर जब उन्हे दाह-संस्कार के लिए लाया गया तो चिता स्थल पर पहले से ही कवियों की महफिल सजी हुई थी। कविता के माध्यम से पंडित मिश्र को श्रद्धांजलि देने वालों में प्रमुख रूप से साड बनारसी, धर्मशील चतुर्वेदी, बैकुंठ बनारसी, झगडू भइया सहित दर्जनों कवियों ने अपनी कविताओं से भोजपुरी के इस अमूल्य रत्‍‌न को श्रद्धांजलि दी।

अपनी मिट्टी से लगाव रखने वाले पंडित मिश्र ने अपनी कई कालजयी रचनाओं से भोजपुरी साहित्य का भंडार भरा था। पंडित मिश्र का भोजपुरी में पहला महाकाव्य कुंअर सिंह है। इसके अलावा भीष्म बाबा, द्रोपदी, सीता, लोरिक चंद, देश के सच्चे सपूत, पहला सिपाही और आल्हा उदल जैसे काव्यों ने मिश्र को को भोजपुरी साहित्य के शिखर पर पहुंचा दिया था। भोजपुरी साहित्य को एक मुकाम दिलाने वाले मिश्र को कई देशीय और अंतर्देशीय पुरस्कार भी मिल चुके थे। इनमें से मारीशस द्वारा विश्व सेतु सम्मान, अवंतिबाई पुरस्कार, मंगला प्रसाद सम्मान आदि प्रमुख है।
सौजन्य: दैनिक जागरण

Sunday, April 20, 2008

अब सच लगता है: करदे मुश्किल जीना, इश्क कमीना

इश्क, प्यार, मुहब्बत। कोई माने या ना माने, इन शब्दों का एक ही मतलब होता है, त्याग। बेशक, तरीका अलग हो सकता है। ऐसे ही एक तरीके में, एक बेटी (!?) ने अपने परिवार के साथ जो किया, उसे देख व सुन शायद, इंसान यही कहने को विवश होगा कि भगवान ऐसी बेटी को किसी के घर जन्म ही न दे। इश्क, किसी परिवार के एक नहीं बल्कि सभी सात सदस्यों के लिए मौत का सबब बन जाएगा, इसकी कल्पना शायद ही कोई करे। ज्योतिबा फूले नगर [अमरोहा] में एक दुर्भाग्यपूर्ण परिवार की लड़की, परिजनों के लाख मना करने के बावजूद वह अपने प्रेमी से प्यार की पींगे बढ़ाती रही और आखिर में अपना प्यार परवान न चढ़ते देख प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिजनों के लिए यमराज बन बैठी। हैवान बनकर केवल अपने प्रेमी को पाने की खातिर माता-पिता व छोटे भाई-बहनों की जिंदगी अपने ही हाथों से छीन ली। इस बेहद वीभत्स व दर्दनाक वाकये को अंजाम देने से पहले उस लड़की का दिल अपने माता-पिता व छोटे भाई-बहनों की जिंदगी के लिए तनिक भी नहीं पसीजा और अपने परिवार का समूल ही मिटा दिया। ऐसा करके उसने खून के रिश्ते, इंसानियत, मानवता आदि का ही गला नहीं घोटा बल्कि मानवीय समाज की सभी वर्जनाओं को भी तार-तार करके रख दिया।

एक ही परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में पुलिस ने शबनम और सलीम को गिरफ्तार कर इस हत्याकांड का सनसनीखेज खुलासा किया। इस हत्याकांड में 24 वर्षीय शबनम ही एक मात्र जीवित बची थी क्योंकि वह छत पर सो रही थी। यह हत्याकांड हसनपुर थाना क्षेत्र के बावनखेड़ी गांव में हुआ था। जल्दी ही पुलिस को शबनम पर शक होने लगा और इसका आधार था घर का मजबूत लोहे का दरवाजा, जिसे तोड़कर अंदर आना संभव नहीं था। पुलिस यही मानकर चली कि दरवाजे को अंदर से ही खोला गया है। मारे गए सभी लोगों के शवों से भी पता चलता था कि ये सभी मूर्छित अवस्था में थे और प्रतिरोध किए जाने के कोई लक्षण नहीं मिले। शबनम के मोबाइल का विवरण प्राप्त करने के बाद पुलिस के हाथ महत्वपूर्ण सूत्र लगे। तीन महीने में 900 से ज्यादा बार उसकी बात उसी गांव में आरा मशीन चलाने वाले सलीम पुत्र अब्दुल रऊफ से हुई थी। दोनों के बीच गहरा इश्क था।

पुलिस महानिदेशक के अनुसार शबनम का परिवार हर दृष्टि से सलीम के परिवार से संपन्न था और शबनम स्वयं शिक्षा मित्र के रूप में कार्यरत थी। पारिवारिक रुतबे में बराबरी न होने के कारण शबनम के घरवालों ने दोनों की शादी से इनकार कर दिया था। शादी न करने देने से नाराज प्रेमी ने प्रेमिका के घरवालों को ही साफ करने का इरादा किया और इसमें उसका साथ प्रेमिका ने बखूबी निभाया। शबनम ने परिवार के सभी सदस्यो को नशीली दवा खाने में मिलाकर दे दी और जब वे बेहोश हो गए तो पूर्व निर्धारित योजनानुसार सलीम को फोन से बुलवा लिया।

उन्होंने बताया कि दोनो ने टार्च की रोशनी में परिवार के छह सदस्यों के गले काट दिए, जबकि एक बच्चे को गला घोटकर मार दिया। उन्होंने बताया कि तलाशी मे शबनम के घर से उसका रक्त रंजित सलवार कुर्ता और बायापोज की गोलियों का रैपर भी बरामद कर लिया गया है। पुलिस महानिदेशक ने कहा कि सलीम और शबनम ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है।

Saturday, April 19, 2008

मंत्री जी ने बिना टिकट यात्रा के आरोप पर जुर्माना भरा

ट्रेन के टीटी को जुर्माना नहीं देने पर मंत्री जी को गाजियाबाद स्टेशन पर उतरा गया, आई कार्ड देकर परिचय देने के बावजूद उन्हें जुर्माना भरना पड़ा। उनके साथ एक अटेंडेंट भी यात्रा कर रहा था। रेल यात्रा नियमों की अनदेखी वक्फ राज्यमंत्री सहजल इस्लाम अंसारी को महंगी पड़ी। लखनऊ शताब्दी एसी स्पेशल की एग्जीक्यूटिव श्रेणी में टिकट की फोटो कापी लेकर बरेली से दिल्ली की यात्रा के दौरान अंसारी पर 2980 रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

अमर उजाला में आए समाचार के अनुसार, 2003 ए लखनऊ-दिल्ली एसी शताब्दी स्पेशल शुक्रवार को नई दिल्ली जा रही थी। ट्रेन के एग्जीक्यूटिव डिब्बे में बर्थ संख्या 37 और 38 पर वक्फ राज्यमंत्री सहजल इस्लाम अंसारी अपने एक अटेंडेंट के साथ यात्रा कर रहे थे। उनका रिजर्वेशन बरेली से नई दिल्ली तक का था। एचओआर कोटा पर जारी टिकट का पीएनआर 261-0574841 था। जानकारी मुताबिक जब टीटी ने मंत्री जी से टिकट मांगा तो उन्होंने मूल टिकट नहीं दिखाया बल्कि टिकट की फैक्स कापी थमा दी। टीटी ने कहा फैक्स या टिकट की फोटो कापी को यात्रा अधिकार पत्र के रूप में रेलवे की ओर से मान्यता नहीं दी गई है, ऐसे में आपको जुर्माना भरना पड़ेगा।

मंत्री जी ने टीटी के सामने प्रदेश सरकार में अपना रुतबा बताया और जुर्माना नहीं देने की जिद पर अड़ गए टीटी ने तत्काल मामले की सूचना कंट्रोल को दी। कंट्रोल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए गाजियाबाद आरपीएफ और टिकट निरीक्षकों की टीम को मंत्री जी का चालान काटने का निर्देश जारी कर दिया। दोपहर 1:20 पर ट्रेन गाजियाबाद पहुंची तो टीम आरपीएफ के जवानों के साथ मंत्री जी के पास पहुंच गई। जानकारी के मुताबिक मंत्री फिर भी नहीं माने। ऐसे में उन्हें गाजियाबाद स्टेशन पर उतार लिया गया। मंत्री ने फोन करना शुरू किया। खुद को घिरते देख मंत्री का गुस्सा शांत हो गया। बढ़ते दबाव के आगे राज्यमंत्री ने आखिरकार 2980 रुपये बतौर जुर्माना भर दिया। जुर्माना भरने के बाद उन्हें ईएमयू से नई दिल्ली के लिए रवाना किया गया।

कोरम पूरा कराने के लिए मंत्री जी को टॉयलेट में घुसना पड़ा

राज्यसभा में १७ अप्रैल को उस वक्त बेहद अजीबोगरीब हालात पैदा हो गए जब सांसदों के नदारद होने से सदन का कोरम पूरा नहीं हुआ, नतीजतन सांसदों को संसद के चप्पे-चप्पे से ढूंढकर सदन में बैठाया गया। राज्यसभा में आज दोपहर भोज के बाद करीब १७ सांसद सदन में मौजूद थे, जबकि कोरम पूरा होने के लिए दस फीसदी सांसद होने चाहिए। विपक्ष की ओर से सवाल उठाने पर संसदीय कार्य राज्य मंत्री नारायण सामी ने संसद के प्रेस कांफ्रेंस हॉल से लेकर टॉयलेटों में से खोज-खोज कर सांसदों को सदन में बैठाया।

राजस्थान के एक दैनिक की ख़बर है कि कोरम पूरा नहीं होने पर सदन की कार्यवाही 15 मिनट नहीं चल पाई और लगातार कोरम की घंटी बजती रही। हड़बड़ाए नारायण सामी पर्यटन, परिवहन और सांस्कृतिक मामलों पर चल रही प्रेस कांफ्रेंस में घुस गए। कांफ्रेंस को सीताराम येचुरी संबोधित कर रहे थे, जबकि उनकी बगल में कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा बैठे थे। सामी ने सतीश शर्मा को इशारे से बुलाया, तो येचुरी ने पूछ डाला कि क्या हुआ। सामी ने कुछ नहीं बताया और शर्मा का हाथ पकड़कर तुरंत रफुचक्कर हो गए। लेकिन पत्रकारों ने चुटकी लेते हुए कहा कि सामी सदन का कोरम पूरा नहीं होने के कारण शर्मा का अपहरण करके ले गए है। वहीं राज्यसभा के एक सांसद ने बताया कि सामी ने कई सांसदों को टॉयलेट में जाकर सदन में जाने की गुजारिश की।
NJ

मानवाधिकार उल्लंघन में उत्तरप्रदेश अव्वल

देश में आबादी के साथ-साथ उत्तरप्रदेश न सिर्फ मानवाधिकारों के हनन के मामले में सबसे आगे है, बल्कि पूरे देश में इन मामलों की दर्ज शिकायतों में से आधे से अधिक इस राज्य से हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मानवाधिकारों के हनन के मामले में उत्तरप्रदेश के बाद देश की राजधानी दिल्ली का नंबर आता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वर्ष 2005-06 की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005-06 के दौरान आयोग को देश भर से कुल 74 हजार 444 शिकायतें मिली। इनमें आधे से अधिक 44 हजार 560 उत्तरप्रदेश की हैं। इनमें हिरासत में हुई मौत के 277 मामले हैं, जबकि हिरासत में दुष्कर्म का भी एक मामला दर्ज किया गया है। पूरे देश में मानवाधिकारों के हनन के संबंध में जितने मामले दर्ज किए गए हैं, उसका लगभग 60 फीसदी उत्तरप्रदेश के हैं।

मानवाधिकारों का हनन करने में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है जहां वर्ष 2005-06 के दौरान कुल पांच हजार 27 मामले दर्ज किए गए। इन मामलों में हिरासत में मौत संबंधी 32 शिकायतें शामिल हैं। इस सूची में बिहार तीसरे स्थान पर है, जहां मानवाधिकार हनन के चार हजार 545 मामले दर्ज किए गए। इन मामलों में हिरासत में 247 मौत की शिकायतें शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हिरासत में दुष्कर्म का भी एक मामला दर्ज किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप एक ऐसा क्षेत्र रहा जहां मानव अधिकारों के हनन से संबंधित एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि नागालैंड ऐसा राज्य है, जहां इस संबंध में सबसे कम केवल दो मामले दर्ज किए गए। सिक्किम और दादर नागर हवेली में मानव अधिकारों के हनन से संबंधित पांच-पांच मामले दर्ज किए गए। आयोग की रिपोर्ट में बिहार के बाद मानवाधिकारों के हनन के मामले में हरियाणा में 3001 मामले, राजस्थान में दो हजार 647 मामले और मध्यप्रदेश में दो हजार 465 मामले दर्ज किए गए।

मानवाधिकार हनन के मामलों में अन्य राज्यों में उत्तरांचल में 1789, महाराष्ट्र में 1586, झारखंड में 1540, पंजाब में 1029 मामले दर्ज किए गए। अन्य राज्यों में तमिलनाडु में 920, पश्चिम बंगाल में 865, आंध्रप्रदेश में 837, उड़ीसा में 753, गुजरात में 635, कर्नाटक में 529 तथा छत्तीसगढ़ में 491 मामले दर्ज किए गए। इनके अलावा केरल में 231, असम में 192, जम्मू-कश्मीर में 163, हिमाचल प्रदेश में 153, चंडीगढ़ में 135, गोवा में 39, त्रिपुरा में 36, पांडिचेरी में 32, मणिपुर में 30, मेघालय में 28, मिजोरम में 27, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 25, अरुणाचल प्रदेश में 18 तथा दमन और दीव में 11 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 277 मौतें हिरासत में हुई, जबकि बिहार इस मामले में दूसरे स्थान पर रहा जहां हिरासत में मौत के 247 मामले दर्ज किए गए।

Friday, April 18, 2008

जमाखोरी के खिलाफ तो कानून ही नहीं है!

फूड एंड सप्लाई विभाग जमाखोरी के खिलाफ कार्रवाई कर नहीं सकता, क्योंकि निश्चित सीमा तक स्टॉक से अधिक माल रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन तो फरवरी में ही खत्म हो गया था। इसके बाद नया नोटिफिकेशन जारी ही नहीं किया गया। जमाखोरी के मामले में सजा की सम्भावना अधिक रहती है जबकि आवश्यक वस्तु अधिनियम में छानबीन में अक्सर कमियां रह जाती हैं और आरोपी सजा से बच जाते हैं। जमाखोरी के खिलाफ दिल्ली सरकार के फूड एंड सप्लाई विभाग के अभियान में विभाग ने 165 गोदामों पर छापे मारकर बरामदगी का दावा किया, लेकिन पुलिस के पास केवल 37 एफआईआर ही दर्ज हैं।

विभाग ने नरेला, दिल्ली के एक फूड गोदाम में छापा मारकर जो करीब ढाई लाख क्विंटल चावल बरामद करने का दावा किया था उसकी तो अभी तक एफआईआर ही दर्ज नहीं हुई है। दरअसल वह चावल एक्सपोर्ट के लिए रखा था और उस होलसेलर ने गोदाम के बाहर कीमत और कितना स्टॉक है, यह डिस्प्ले नहीं किया था। इसी तरह लॉरेंस रोड पर करीब साढे छह हजार क्विंटल दाल जब्त की गई जबकि वह दाल मिलिट्री को सप्लाई की जानी थी।

फरवरी में जिस नोटिफिकेशन की सीमा खत्म हो गई है, उसके तहत एक व्यापारी एक बार में एक हजार क्विंटल गेहूं और दो क्विंटल दालों का स्टॉक कर सकता है। खाने के तेल पर यह नियम लागू नहीं होता। नया नोटिफिकेशन होने से व्यापारी स्टॉक रखने के लिए स्वतंत्र हो गए।

खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के कमिश्नर का कहना है कि महंगाई के दौर में यदि कोई व्यापारी स्टॉक किए गए माल को नहीं निकालता, तो वह गलत है। यह सही है कि केंद्र सरकार वाला नोटिफिकेशन फरवरी में खत्म हो गया था, लेकिन हमने इन जमाखोरों के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 के तहत कार्रवाई की है।

इसके तहत व्यापारी को अपने गोदाम में जमा किए हुए माल का विवरण बाहर डिस्प्ले करना होता है, जिसमें यह लिखा जाना चाहिए कि उसके पास कितना स्टॉक है और उसकी कीमत कितनी है। इसके अलावा स्टॉक करने वाले प्रत्येक व्यापारी को विभाग से लाइसेंस लेना होता है जोकि इन होलसेलर ने नहीं किया।